उलूक टाइम्स: अप्रैल 2012

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

शैतान बदरिया

ओ बदरिया कारी
है गरमी का मौसम
और तू रोज रोज
क्यों आ जा रही
बेटाईम आ आ के
भिगा रही
बरस जा रही
सबको ठंड लगा रही
जाडो़ भर तूने नहीं
बताया कि तू क्यों
नही बरसने
को आ रही
लगता है तू आदमी
को अपना
मूड दिखा रही
आदमी के
कर्मों का
फल उसको
दिला रही
पर तू ये भूल
क्यों जा रही
कि तेरे बदलने
से ही तो
आदमी की पौ
बारा हो जा रही
क्लाईमेट चेंज और
ग्लोबल वार्मिंग
के नाम पर
जगह जगह दुकानें
खुलते जा रही
जैसे ही नदी सूख
जाने की खबर
दी जा रही
तू शैतान बरस
के पानी से लबालब
करने क्यों आ रही
बदरिया जरा कुछ
तो बता जा री।

रविवार, 29 अप्रैल 2012

स्वामी विवेकानन्द और अल्मोड़ा 1863 - 2013


एक पूरी और एक आधी सदी
पुन : एक बार फिर से खुली
एक बंद खिड़की

आहट कुछ हुवी
नरेन्द्र के यहाँ कभी आने की

भारत के झंडे
अमेरिका में गाड़े थे
जिस युवा ने कभी

कोशिश करी किसी ने तो
उस स्मृति को हिलाने की

मेरे शहर अल्मोड़ा ने
देखा फिर से एक बार
वो अवतार

स्वामी विवेकानन्द
अवतरित होकर आया
बच्चों के रूप में इस बार

एक दिन के लिये ही कहीं
बच्चे युवा बुजुर्ग जुड़े यहीं

किया याद अश्रुपूर्ण नेत्रों से
उस अवतार को

जिसपर लुटाया था
मेरे शहर ने अपने प्यार को

कम उम्र में माना कि
वो हमेंं छोड़ कर चला गया

"उठो जागो रुको मत करो प्राप्त अपना लक्ष्य "
का संदेश पूरे जग को दे गया।

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

"चुहिया"

गीदड़ ने
अखबार में
छपवाया है
वो शेर है

ताज्जुब है
वो अब
तो गुर्राता
भी है

शेरों को
कोई फर्क
कहाँ पड़ता है

हर शेर
हमेशा
की तरह
आफिस
आता है

बॉस को
लिखाता है
वो अभी
भी शेर है

चुहिया
हमेशा
की तरह
लिपिस्टिक
लगा कर
आती है
पूंछ
उठाती है
हर शेर के
चारों तरफ
हौले हौले
कदमताल
रोज कर के
ही जाती है

शेर कुछ
कह नहीं
पाते हैं

बस
मूँछ मूँछ
में ही कुछ
बड़बड़ाते हैं
चुहिया की
मोटापे को
सुन्दरता
की पायजामा
अपने शब्दों
में पहनाते है

चूहा
शेरों की
दुकान
चलाता है
भेजता
जाता है
चुहिया को 
गीदड़ के
घर रोज

ताकि
किसी दिन
गीदड़ भटक
ना जाये
और
कबूल ना
कर ले जाये
वो शेर नहीं है ।

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

पप्पू और दुकान


पप्पू
की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता

पिछली
सरकार से 
पप्पू
का था
कुछ नाता

पप्पू
पाँच साल
तक रहा 
पुराना राशन
बिकवाता

सभी
संभ्रांत लोगों
को
पप्पू
था बहुत ही भाता

ज्यादातर
लोगों
का 
पप्पू
की दुकान तक

इसीलिये
दिनभर में
एक
चक्कर तो था
लग ही जाता 

पप्पू
का
दीदार एकबार
होना ही
खाना पचा पाता

जब से
सरकार बदली है
अपने
कर्मों से
अभी तक
भी
नहीं वो संभली है

पता नहीं
चल पा रहा 
ऊँट
किस करवट 
बैठने को है
जाता

कौन सा
दुकानदार
अबकी बार
सरकार में
है
कुछ पैठ बनाता

बुद्धिजीवी
शाँत हो गया
कुछ नहीं है
वो बताता

पप्पू
भी
अब दुकान में
बहुत कम ही है
जाता

पप्पू की
दुकान में
अब
कोई नहीं आता।

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

सायरन बजा देवता नचा

कुछ ही दिन पहले तक
लोगों के बीच में था
एक आदमी अब
सायरन सुना रहा है
सड़क पर खड़ी जनता को
अपने से दूर भगा रहा है
सायरन बजाने वालों
में बहुत लोगों का अब
नम्बर आ जा रहा है
जिसका नहीं आ पा रहा है
वो गड्ढे खोदने को जा रहा है
काफिले बदल रहे हैं
झंडे बदल रहे हैं
कुछ दिन पहले तक
सड़क पर दिखने वाला 

चेहरा आज बख्तरबंद 
गाड़ी में जा रहा है
पुराने नेता और उनको
शहर से बाहर तक 

छोड़ने जाने वाले लोगों
को अब बस बुखार
ही आ रहा है
गाड़ियां फूलों की माला
सायरन की आवाज
काफिले का अंदाज
नहीं बदला जा रहा है
टोपी के नीचे वाला
हर पाचं साल में
बदल जा रहा है
शहर में लाने ले जाने
वाले भी बदल जा रहे हैं
बदल बदल के पार्टियों
के राजकाज को वोटर 

सिर खुजाता जा रहा है
बस सुन रहा है सायरन
का संगीत बार बार
पहले वो बजा रहा था
अब ये बजा रहा है
देव भूमि के देवताओं
को नचा रहा है
मेरा प्रदेश बस 
मातम  मना रहा है
दिन पर दिन
धरती में समाता
जा रहा है 

उसको क्या पड़ी है
वो बस सड़क पर
गाड़ियां दौड़ा रहा है
सायरन बजा रहा है।

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

बदल जमाने के साथ चल

जमाने के 
साथ आ
जमाना अपना मत बना
ईमानदारी कर मत बस खाली दिखा

अन्ना की तरफदारी भी कर ले
कोई तेरे को कहीं भी नहीं रोक रहा
सफेद टोपी भी लगा 

शाम को मशाल जलूस अगर कोई निकाले
अपने सारे गिरोह कोउसमें शामिल करा लेजा

"सत्य अहिंसा भाईचारा कुछ नये प्रयोग" पर
सेमिनार करा 
संगोष्ठी करा वर्कशोप करा

इन सब कामों में हम से कुछ भी काम तू करवा

हमें चाहे एक धेला भी ना दे जा
पर हमारे लिये परेशानी मत बनजा 

कल उसने कुत्ते को देख कर बकरी कहा
कोई कुछ कर पाया
हमने कुत्ते को कागज पर 
"एक बकरी दिखी थी"
का स्टेटमेंट जब लिखवाया 

अब भी संभल जा उन नब्बे लोगों में आ
जिन्होने कुत्ते को बकरी कहने पर 
कुछ भी नहीं कहा
बस आसमान की तरफ देख कर 
बारिश हो सकती है कहा
बचे दस पागलों का गिरोह मत बना 
जिनको कुत्ता कुत्ता ही दिखा

गाड़ी मिट्टी के तेल से घिसट ही रही हो
पहुंच तो रही है कहीं
पैट्रोल से चलाने का सुझाव मत दे जा

'उलूक' जाके कहीं भी आग लगा
और हमारी तरह 
सुबह के अखबार मे अपनी फोटो पा
बधाई ले लडडू बंटवा। 

चित्र सभार: https://www.deviantart.com/kimjam/art/you-look-like-a-dog-798957425

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

कूड़ा ही लिख


किसी ने 
कहा है 
क्या 
तुझसे 

कुछ लिख

इस पर 
भी लिख
उस  पर 
भी लिख

कुछ होता 
है अगर
तो होने 
पर लिख

नहीं होता 
है
कुछ तो 
नहीं होने 
पर लिख

सब लिख 
रहे हैं
तू भी 
कुछ लिख

किताब 
में लिख
कापी 
में लिख

नहीं मिलता 
है लिखने 
को तो

बाथरूम 
की ही
दीवारों 
पर ही लिख

पर 
सुन तो 
कुछ
अच्छा सा 
तो लिख

रोमाँस 
पर लिख
भगवान 
पर लिख

फूलों 
पर लिख
आसमान 
पर लिख

औल्ड कब 
तक लिखेगा
कुछ बोल्ड 
ही लिख

लिखना 
छोड़ने को
कहने की 
हिम्मत नहीं

पर इतना 
तो बता

किसने 
कहा 
तुझसे 
'उलूक'

तू कूड़े 
पर लिख

और 
कूड़ा 
कूड़ा 
ही लिख।

चित्र साभार: imageenvision.com

सोमवार, 23 अप्रैल 2012

आहा मेरा पेड़

मुर्गे
मुर्गियां
कबूतर तीतर
मेरे पेड़ की
एक मिसाल हैं

हर एक
अपना
अपनी
जगह पर
धर्म निभाते हैं

मुर्गियां
मुर्गियों के साथ
कबूतर
कबूतर के साथ
हमेशा
ही पाये जाते हैं
कव्वे
कव्वों से ही
चोंच लड़ाते हैं
धर्म
निरपेक्षता का एक
उत्तम
उदाहरण दिखाते हैं

जंगल के
कानून
किसी को भी
नहीं पढ़ाये जाते हैं
बड़े छोटे
का कोई भेद
नहीं किया जाता है
कभी कभी
उल्लू को भी
राजा बनाया जाता है

कोई
झगड़ा फसाद
नहीं होता है
मेरे पेड़ पर कभी
सरकारी चावल
ताकत के अनुसार
घौंसलों में ही
पहुंचा दिया जाता है

पेड़
के अंदर
कोई लाल बत्ती
नहीं लगाता है

जंगल
जाने पर ही
लाल बत्ती है करके
बस शेर को ही बताता है

कोई किसी
को कभी
थोड़ा सा भी
नहीं डराता है
जिसकी जो
मन में आये
कर ले जाता है

बहुत ही
भाईचारा है,
आनन्द ही
आ जाता है
साल के
किसी दिन जब
सफेद कौआ
काले कौऎ को
साथ लेकर
कबूतर के
घर जाता हुवा
दिखाई दे जाता है।

रविवार, 22 अप्रैल 2012

आज छुट्टी है

रोज कुछ कहने को
जरूरी नहीं बनायेगा

भौंपू आज बिल्कुल
नहीं बजाया जायेगा

किसी पर भी उंगली
आज नहीं उठायेगा

'उलूक' आज कोई
गाना नहीं सुनायेगा

आँख बंद रखेगा
और
सीटियां बजायेगा

रविवार है
मौन रखेगा
शांति से
छुट्टी मनायेगा

'चर्चामंच' वालो से
निवेदन किया जायेगा

कोई इस बात की चर्चा
भी वहां नहीं करायेगा

'रविकर' को भी
पता नहीं चलने
दिया जायेगा
देखते हैं आज कैसे
दिल्लगी कर पायेगा

सोमवार से शनिवार
पता रहता है
कोई यहां
देखने नहीं आयेगा

रविवार को कम से कम
बेवकूफ नहीं बन पायेगा

'ऊँ शाँति ऊँ शाँति
शाँति शाँति ऊँ'
वाला कैसेट बजा के
सबको सुनाया जायेगा

एक दिन के लिये
ब्लाग 'उलूक टाईम्स'
में ताला 'हैरीसन' का
लगाया ही जायेगा।

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

फूलों की बातें

बातों
बातों में
एक बात
निकल कर
आती है

फूलों की
उपस्थिति
तो सुकून
देती ही है
फूलों की
बातें भी
सबको
लुभाती हैं

पौपी की
कली अफीम
बनवाती है
बेनूरी पर
नरगिस
अपनी क्यों
रोती चली
जाती है
डैफोडिल
जलते भी है
रजनीगंधा
देख कर
लोगों के दिल
मचलते भी हैं

ये सब
फूल
फूलों में
अभिजात्य
कहलाये
जाते हैं

फूलों में
भी होती
है वर्ग
व्यवस्था
आदमी के
द्वारा ही
फूलों की
राजनीति में
समझाये
भी जाते हैं

हर एक
अपने
गमले के
फूल की
तारीफ में
उलझ
जाता है
खुश्बू
पाता है
खुश हो
जाता है

दूसरी ओर
जिंदगी के
अपने आप
उग आये
झाड़ों को
जब पता
चलता है

कहीं
आसपास
उनके कोई
खुश्बूदार
फूल
खिलता है

झाड़ घेर
लेते हैं
फूल को
और
दबा देते हैं
उसकी
खुश्बू को
फैलने से

सब कुछ
पूरी तैयारी
के साथ
होता है

हर झाड़
का अपनी
तरह से
इसमें कुछ
ना कुछ
हाथ होता है

उसके बाद
घर से लेकर
हर खबर में
बस
झाड़ ही झाड़
होता है

पर फूल तो
भाई 'उलूक'
फूल होता है

फैल ही
जाती है
उसकी
खुश्बू

शहर में
नहीं पर
दूर कहीं
जाकर

और
जब आती है
फूल और
उसकी
खबर

पड़ गयी
है किसी
की फूल
पर नजर

सारे झाड़
एक साथ
आते हैं
फूल को
फूलों की
माला
पहनाते हैं
और
फिर
लौट जाते है
अपने अपने
बाल
नोंंचते हुए

घर में दबाये
गये फूल
आकाश में
इसी तरह
फैल जाते हैं ।

शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012

नमस्ते हैलो हाय

नमस्ते हैलो हाय
वो जब उधर से आई
इधर की महिलायें भी
जवाब में मुस्कुराई
बहुत दिन से आप
नहीं दी हमको दिखाई
हाँ रे मै ना ज्यादातर
उधर से ही आती हूँ
और इधर से चली जाती हूँ
आप लोग इधर से आते होंगे
उधर से चले जाते होंगे
तभी तो हम सालभर में
कभी कभी टकराते होंगे
वैसे भी मैं तो स्कूटी
से ही आ पाती हूँ
कभी कभी ना उनसे
कार से भी छुड़वाती हूँ
पैदल रास्ते यहां के
और गाड़ी की सड़क
भी यहां कहीं मिलाये
नहीं गये हैं
मोड़ मोड़ कर
रास्तों को रास्ते से
उलझाये से गये हैं
जो जिस रास्ते से
यहां आ पाते है
उसी तरह के लोगो
से मेलमिलाप बढा़ते हैं
अब क्या करें साल में
मजबूरी हो जाती है
परीक्षाओं के बहाने
सब लोगों को एक
दूसरे से नमस्ते
हैलो हाय कह कर
मुस्कुराने की प्रैक्टिस
तो कराती है।

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

कुछ कुछ पति

अंदर का सबकुछ
बाहर नहीं लाया
जा रहा था
थोड़ा कुछ
छांट छांट कर
दिखाया जा रहा था
बीबी बच्चों के बारे में
हर कोई कुछ
बता रहा था
अपनी ओर से
कुछ कुछ
समझाये जा रहा था
तभी एक ने कहा
दुनियाँ करती पता
नहीं क्या क्या है
लेकिन पब्लिक में
तो यही कहती है
अपने बच्चे
सबसे प्यारे
दूसरे की बीबी
खूबसूरत होती है
बीबी सामने बैठी हो
तो कोई क्या कह पाये
अगल बगल झांके
सोच में पड़ जाये
भैया बीबी तो
बीबी होती है
इधर की होती है
चाहे
उधर की होती है
एक आदमी जब
बीबी वाला
हो जाता है
फिर सोचना
देखना रह ही
कहाँ जाता है
जो देखती है बीबी
ही देखती है
दूसरे की बीबी को
देखने की कोई
कैसे सोच पाता है
हाँ कुछ होते हैं
मजबूत लोग
इधर भी देख लेते हैं
उधर भी देख लेते है
ऎसे लोगो को
ऎसी जगह बैठा
दिया जाता है
जहां से हर कोई
नजर में आ जाता है
पत्नी का एक पति
कुछ और पति
भी हो जाता है
इधर उधर देखने
का फायदा
उठा ले जाता है।

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

छ से छन्द

कविता सविता
तो तब लिखता
अगर गलती से
भी कवि होता

मैं सिर्फ
बातें बनाना
जानता हूँ
छंद चौपाई
दोहे नहीं
पहचानता हूँ

रोज दिखते
हैं यहां कई
उधार लेकर
जिंदगी बनाते

कुछ जुटे
होते हैं
फटती हुवी
जिंदगी में
पैबंद लगाते

जो देखता
सुनता
झेलता
हूँ अपने
आस पास
कोशिश कर
लिख ही
लेता हूँ
उसमें से
कुछ
खास खास

ऎसे में
आप कैसे
कहते हो
छंद बनाओ
हमारी तरह
कविता एक
लिख कर
दिखाओ

गुरु आप
तो महान हो
साहित्य जगत
की एक
गरिमामय
पहचान हो

खाली दिमाग
वालों पर
इतना जोर
मत लगाओ
बेपैंदे के
लोटे को तो
कम से कम
ना लुढ़काओ

क से कबूतर
लिख पा
रहा हो
अगर
कोई यहां
गीत लिखने
की उम्मीद
उससे तो
ना ही लगाओ

हो सके
तो उसे  

ख से
खरगोश
ही
सिखा जाओ

नहीं कर
सको
इतना भी
तो
कम से कम
उसके लिये
एक ताली ही
बजा जाओ।

अ धन ब का वर्ग

परीक्षाऎं हो गयी हैं शुरु
मौका मिलता है
साल में एक बार
मुलाकातें होती हैं
बहुत सी बातें होती हैं
बहुत से सद्स्यों की
टीम में एक हैं
मेरे आदरणीय गुरू
उनको बहुत कुछ
वाकई में आता है
प्रोफेसर साहब से रहा
नहीं जाता है
पढाने लिखाने की
आदत पुरानी है
किसी से कहीं भी
उन के द्वारा कुछ भी
पूछ ही लिया जाता है
कल की बात आज
वो खाली समय में
बता रहे थे
क्या होता जा रहा है
आज के बच्चों को
समझा रहे थे
सर में वैसे तो उनके
बाल बहुत कम दिखाई देते हैं
पर नाई की दुकान का
वर्णन वो अपनी कथाओं
में जरुर ले ही लेते हैं
बोले कल मैं जब एक
नाई की दुकान में गया
कक्षा नौ में पढ़ने वाली
एक बच्ची ने प्रवेश किया
नाई को बौय कट बाल
काटने का आदेश दिया
बच्ची बाल कटवा रही थी
मेरे दिमाग की नसें
प्रश्नो को घुमा रही थी
आदत से मजबूर मैं
अपने को रोक नहीं पाया
बच्ची के सामने एक प्रश्न
पूछने के लिये लाया
बेटी क्या तुम अ धन ब
का वर्ग कितना होगा
मुझे बता सकती हो
बच्ची मुस्कुराई
उसने नाई की कैंची
चेहरे के ऊपर से हटवाई
बोलते हुवे चेहरा अपना घुमाई
अरे अंकल आप तो
बड़ी कक्षाओं को पढ़ाते हो
ये फालतू के प्रश्न कैसे
अब सोच पाते हो
कैल्कुलेटर का जमाना है
बटन सिर्फ एक दबाना है
किस को पड़ी है अ या ब की
हमारी पीढी़ को तो राकेट
कल परसों में हो जाना है
तो फालतू में अ धन ब
फिर उसपर उसका वर्ग
करने काहे जाना है।

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

चमेली

चमेली
सब लोगों
की पसंद है
बूढे़ चमेली
को देख
कर जवान
हो जाते हैं
चमेली
की फालतू
अदाओं पर
कुर्बान हो
जाते हैं
चमेली
हर जगह
पायी जाती है
चमेली
कुछ नहीं
करती है
चमेली
फिर भी
खबर हो
जाती है
चमेली
होना अपने
आप में
एक क्वालिटी
हो जाता है
चमेली 

के प्रभाव
में आ जाना
चमेली इफेक्ट
कहलाता है
चमेली
को छेड़ने
पर चमेली
बस मुस्कुरा
देती है
वो एक
चमेली
है छेड़ने
वाले को
इस तरह
बता देती है
फिर
बार बार
कुछ कहने
कुछ सुनने
का रास्ता
तैयार हो
जाता है
हर कोई
चमेली
के आस पास
रहने का
जुगाड़
लगाता है
चमेली
बरसों से
इसी तरह
अपने काम
निकालती
जा रही है
चमेली
तरह तरह
लोगों को
बेवकूफ
बना रही है
सबको पता है
चमेली
चमक के
जिस दिन
आती है
कहीं ना
कहीं जा
कर के
बिजली
गिराती है
चमेली
चमेली है
बहुत से
लोग बहुत
अच्छी तरह
जानते है
अन्जान
बन कर
फिर भी
चमेली
की दुकान
सम्भालते हैं
अपने
आस पास
आप भी
ढूंढिये
तो जरा
शायद कोई
चमेली
आपको भी
दिख जाये
और
आप भी
चमेली
प्रभाव को
उदाहरण
सहित
समझ जायें।

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

बातें ही बातें

लिख लिख
कर अपनी
बातों को
अपने से ही
बातें करता हूँ

फिर
दिन भर पन्ना
खोल खोल
कई कई बार
पढ़ा करता हूँ

मेरी बातों
को लेकर
वो सब भी
बातेंं करते हैं

मैं बातेंं ही
करता रहता हूँ
बातों बातों
में कहते
रहते हैं

इन सारी
बातों की
बातों से
एक बात
निकल कर
आती है

बातें
करने का
अंदाज किसी का
किसी किसी
की आँखों में
चुभ जाती है

कोई कर भी
क्या सकता है
इन सब बातों का

वो सीधे कुछ
कर जाते हैं
वो बातें कहाँ
बनाते हैं

मैं कुछ भी
नहीं कर
पाता हूँ
बस केवल
बात बनाता हूँ

फिर
अपनी ही
सारी बातों को
मन ही मन
पढ़ पाता हूँ

फिर
लिख पाता हूँ
कुछ बातें

कुछ बातें
लिख लिख
जाता हूँ

कुछ
लिखने में
सकुचाता हूँ

बस अपने से
बातें करता हूँ

बातों की बात
बनाता हूँ

बस बातें ही
कर पाता हूँ।

रविवार, 15 अप्रैल 2012

निखालिस बचत

सुनिये जी
कमप्यूटर
कालेज से लाये
आप को
जमाना हो गया

बदल के
दूसरा ला दीजिये
अब ये
पुराना हो गया

फ्रिज भी लाये
दस साल
से ज्यादा हो गये

नये माडल
मार्केट में आने
क्या बंद हो गये

शोध का क्षेत्र
ग्रीन कैमिस्ट्री
अब करवा लीजिये

कुछ नये
माइक्रोवेव ओवन
ही मंगवा लीजिये

गैस में
खाना पकाने पर
सिलैण्डर
लैब का मंगवाना
पड़ता है

खाली खाली
चपरासी से
काम करवाना
पड़ता है

रजिस्टर
कागज पेंसिल
भी नहीं लाये
आप कब से

कापियाँ
बच्चे से स्कूल में
लाने को कह रहे हैं तब से

इंटरनेट
कनेक्शन सुना है
सारे विभागों में
लगाये जा रहे हैं

डाउनलोडिंग
के पैसे भी
खाली खाली
सायबर कैफे में
बरबाद जा रहे हैं

प्राथमिक
शिक्षा वाले
कितने
समझदार है

मध्याहन
भोजन का जारी
उनका कारोबार है

उच्च शिक्षा
में भी अगर ये
योजना अगर
आप चलवाते

हम भी
कम से कम
महीने का
राशन बचा पाते ।

शनिवार, 14 अप्रैल 2012

भारतीय ..... बैंक देश का सबसे बड़ा बैंक ।

छुट्टी लो
बैंक हो आओ
बचे हुवे काम
निपटाओ

छोटे बैंक में
जा कर आओ
कोई डिपोसिट
मत दे आओ

चाय पियो
मिठाई भी खाओ
आते समय
कैलेण्डर ले जाओ

देश के
सबसे बड़े
बैंक में जाओ
लम्बी लाईन में
खड़े हो जाओ
आधा घंटा
दाढ़ी खुजलाओ

नम्बर आये
तो घबराओ
कुर्सी सामने की
खाली पाओ

इधर उधर
नजर दौड़ाओ
साहब जी
बतियाते पाओ
किस्मत अच्छी
धन्य हो जाओ
साहब जी
काउंटर पर पाओ

पासबुक अपनी
आगे बढ़ाओ
दो बड़ी आँखे
घूरते पाओ
अपना पैसा
दे तो जाओ
भीख माँगने तो
मत आओ

प्रिंटर की
शक्ल पर मत जाओ
पासबुक फंसे
मत घबराओ
वापस लेलो
डाँठ भी खाओ
फिर करवाना
सुन ले जाओ
लौट लो बुद्धू
घर को जाओ।

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

झपट लपक ले पकड़

जमाना
वाकई में
बड़ी तेजी से
बदलता
जा रहा है

कौआ
कबूतर को
राजनीति
सिखा रहा है

कबूतर
अब चिट्ठियाँ
नहीं पहुंचाया
करता है

कौवा भी
कबूतर को
खाया नहीं
करता है

कौवा
उल्लुओं का
शिकार करने
की नयी
जुगत
बना रहा है

कौवा
कबूतर
भेज कर
उल्लूओं को
फंसा रहा है

ये पक्षियों
को क्या होता
जा रहा है

पारिस्थितिकी
को क्यों इस तरह
बिगाड़ा जा रहा है

"आदमी की
संगत का असर 

पक्षियों का
राजनीतिक
सफर"

मूँछ मे
ताव देता
एक प्रोफेसर
टेढ़े टेढ़े मुंह से
हंसता हुवा
यू जी सी की
संस्तुति हेतु
एक करोड़
की परियोजना
बना रहा है।

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

टीम स्प्रिट

चलो एक
दल बनायें
चलो देश
को बचायें

कांंग्रेस
भाजपा
सपा बसपा
सबको मिलायें

हाथ में कमल
को खिलायें
साईकिल को
हाथी पर चढ़ायें

चलो लोगों
को बतायें
एक रहने के
फायदे गिनायें

चलो
घंटियां बजाये
चुनाव
बंद करवायें

चलो
खर्चा बचायें
जो बचे
बांट खायें

चलो
ईमानदारी
दिखायें

चलो
उल्लू बनायें

चलो
दिल से
दिल मिलायें

चलो
प्रेम की
भाषा सिखायें

चलो
मिल कर
घूस खायें

चलो
अन्ना को
भगायें

चलो
लोकपाल
ले कर आयें
केजरीवाल
को फसांये

चलो
अब तो
समझ जायें
हंसी अपनी
ना उड़वाये

आडवाणी जी
का हाथ
सोनिया जी
को दे
कर आयें

चलो
सामने
तो आयें
पीछे पीछे
ना मुस्कायें

चलो
एक
दल बनायें

चलो
देश
को बचायें।

बुधवार, 11 अप्रैल 2012

जयजयकार बिल्लियों की

सौ चूहे भी खा गयी
बिल्ली कबका हज
कर के भी आ गयी
बिल्ली अब
हाजी कहलाती है
बिल्ली अब
चूहे नहीं खाती है
बिल्ली
चूहों को हिंसक होने
के नुकसान बताती है
बिल्ली अब
देशप्रेमी कहलाती है
केन्द्रीय सरकार से
सीधे पैसे ले के आती है
सरकारी कार्यक्रम
हो नहीं पाते हैं
अगर बिल्ली वहाँ
नहीं आती है
बिल्ला भी दांतो का नया
सेट बनवा के लाया है
उसने भी घर पर
मुर्गियों के लिये
एक आश्रम बनवाया है
बीमार मुर्गे मुर्गियों
को रोज दाना खिलाता है
उसके लिये सरकारी
ग्राँट भी लेके आता है
अपने बुड्ढे बुढ़ियों से
बरसों से इसी कारण
नहीं मिल पाता है
बिल्ली और बिल्ले
के बलिदान को देख
मेरी आँखे भर आती हैं
वो दोनो जब गाड़ी
से जा रहे होते हैं
लेट कर प्रणाम करने
की तीव्र इच्छा जाग
ही जाती है ।

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

वक्त रहते सुधर जाओ

कितना
कनफ्यूजन
हो जाता है

कौन सही है
कौन गलत है
नापने का
पैमाना हर
कोई अपने
अपने घर से
अपने बस्ते में
लेकर आता है

मास्टर जी
आप अब
पुराने हो
चुके हो
आकर वो
बताता है

प्यार से
समझाता है
तुम्हारे
जमाने
में ये सब
नहीं होता
रहा होगा
कहीं पर
अब हर
जगह यही
और ऐसा
ही होता है
इतना छोटा
सा हिसाब
आपसे इस
उम्र में भी
पता नहीं
क्यों नहीं
लग पाता है

तुमको ना
जाने क्यों
नहीं कुछ
दिखाई
देता है
सारा होना
आज सड़क
में होता है
बाजार में
होता है
जंगल में
जाने की
जरूरत
नहीं होती है

खुले
आसमान
में खुले
आम
होता है

पर्दे में
अब रखने
की कुछ भी
जरूरत
नहीं होती है

जो भी
होता है
पूरा मजमा
लगा कर
सरेआम
होता है

अब तू
नहीं कर
पाता है
इसलिये
जार जार
रोता है

तेरे जैसे
विचारों
वाला
इसी लिये
ओल्ड
होता है

जो किया
जा रहा है
वो ही बस
बोल्ड
होता है

तू भी
करले
नहीं तो
बहुत
पछतायेगा

नये लोगों
की फिरकी
नहीं खेल
पायेगा

बल्ला
तेरे हाथ
में मजबूत
होगा
लेकिन
तू
क्लीन बौल्ड
हो जायेगा ।

अन्नास्वामी नाराज है

मित्र मेरा मुन्नाभाई
कुछ दिन जब अन्ना
की संगत में आया
अन्नाभाई कहलाया
बाबाओं की जयकारे से
अन्नास्वामी नाम धर लाया
बहुत अच्छा चालक है
ब्लागगाड़ी चला रहा है
अपने ट्रेक में तो माहिर है
इधर उधर की गाड़ियों
को भी ट्रेक दिखा रहा है
कभी कोई ट्रेक से
बाहर हो जाता है
अन्नास्वामी को जोर
का गुस्सा आ जाता है
कल से अन्नास्वामी
नाराज हो रहा है
गुर्रा रहा है पंजे के
नाखून से ब्लाग को
नोचता भी जा रहा है
असल में किसी ब्लागर
का पेट हो गया था खराब
और वो अनर्गल कुछ
बातें ब्लाग में रहा था छाप
अन्नास्वामी नहीं सह पाया
शांत भाव से ब्लागर को
उसने समझाया
पर बीमार कहाँ बिना
दवाई के ठीक हो पाता
बीमार तो बीमार
एक तीमारदार अन्नास्वामी
पर चढ़ के है आता
अन्नास्वामी को जब है
उसने धमकाया तो
हमको भी गुस्सा है आया
अब हम भी मिलकर
जयकारा लगायेंगे
अन्नास्वामी के लिये
जलूस लेकर जायेंगे
'अन्ना तुम संघर्ष करो
हम तुम्हारे साथ हैं'
के नारे भी जोर जोर
से लगायेंगे।

रविवार, 8 अप्रैल 2012

मदारी और बंदर

हर
मदारी
अपने बंदर
नचा रहा है

बंदर बनूं
या मदारी

समझ में
ही नहीं
आ रहा है

हर कोई
ज्यादा से
ज्यादा बंदर
चाह रहा है

ज्यादा
बंदर वाला

बड़ा
हैड मदारी
कहलाया
जा रहा है

बंदर
बना
हुवा भी

बहुत खुश
नजर आ
रहा है

मदारी
मरेगा तो

डमरू
मेरे ही हाथ
में तो पड़ेगा
के सपने
सजा रहा है

बंदर
बना कर
नचाना

और
मदारी
हो जाना

अब
सरकारी
प्रोग्राम होता
जा रहा है


सुनाई दे
रहा है

जल्दी ही
बीस सूत्रीय
कार्यक्रम में
भी शामिल
किया जा
रहा है

काश !

मुझे भी
एक बंदर
मिल जाता

या फिर  

कोई
मदारी
ही मुझको
नचा ले जाता

पर
कोई भी
मेरे को 
जरा सा भी
मुंह नहीं
लगा रहा है

क्या
आपकी
समझ में कुछ
आ रहा है?

चित्र साभार: 1080.plus

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

कुछ

कभी कुछ
व्यक्त नहीं
करने वाली
भीड़ में से

कुछ लोग
अपने आप
कुछ हो
जाते हैं

बाकी कुछ को
समाचार पत्र के
माध्यम से बताते हैं
वो कुछ हो गये हैं

नहीं बोलने
वाले कुछ लोगों
को कोई फर्क
नहीं पड़ता है
अगर कोई
अपने आप कुछ
हो जाता है
और बताता है

जो कुछ
हो जाते हैं
वो भी कभी
कुछ नहीं
बोलते हैं

बस कुछ कुछ
करते चले जाते हैं
कुछ भी किसी को
कभी नहीं बताते हैं

ऎसे ही कुछ कुछ
होता चला जाता है

ऎसे ही यहाँ के कुछ
वहाँ के कुछ लोगों
से मिल जाते हैं

बीच बीच में
कुछ कुछ
करने कहीं कहीं
को चले जाते हैं

ये सब भारत देश
के छोटे लोकतंत्र
कहलाते हैं

कुछ भी हो कुछ
करना इतना भी
आसान नहीं होता है

कुछ कर लिया
जिसने यहां
उससे बड़ा
भगवान ही
नहीं होता है।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

बाबा

पत्रकार मित्र
कई दिन से
पाल रहे थे
अपने मन में
एक विचार
भारत में
फलते फूलते
बाबा बाजार
को देख कर
उत्साहित
हो रहे थे
दिन में एक
नहीं कई बार
किसी एक दिन
दुकान पर बैठे
अखबारी मित्र
से कर रहे थे
मगन हो कर
इसी विषय पर
कुछ विचार

भूला भटका
पहुँच बैठा 

मैं भी उधर
पूछते पूछते
कटहल का
मीठा अचार
पहुंचते ही मेरे
मित्र के मित्र ने
मेरा किया
ऊपर से नीचे
तक मुआयना
और
पेश किया
फिर
तुरत फुरत
अपना विचार
ये कब हो
रहे हैं रिटायर
इनसे भी तो
काम चलाया
जा सकता है
एक सटीक
और मस्त बाबा
इनको भी
तो बनाया
जा सकता है

बस ये जबान
नहीं खोलेंगे
बाकी जनता
को तो हम
खुद ही धो लेंगे
मित्र ने
दिया जवाब
बहुत ही
लाजवाब
रिटायर होने
की प्रक्रिया
इन लोगों के
यहाँ धीरे धीरे
बंद ही हो
जाने वाली है
अभी ये पैंसठ
पर अढ़े हुवे हैं
उसके बार मरने
मरने तक की
जाने वाली है

अभी सरकार
से बोल रहे हैं
नहीं होंगे रिटायर
उसके बाद
भगवान की भी
बारी आने वाली है
भगवान से भी
ये कहने वाले हैं
तू हमे नहीं
उठा सकता
इस धरती से अभी
हम ऊपर नहीं
आने वाले हैं
वैसे भी बाबा
के कारोबार
और
इनकी दुकान
में मिलता है
एक तरह का
ही सामान
ये पढ़ाने लिखाने
के धंधे से
अनपढों को पैदा
करते जा रहे हैं
उधर इनकी
उगाई फसल से
बाबा लोग अपनी
फैक्ट्री चला रहे हैंं 
मेरी समझ में
भी कुछ कुछ
आने लगा था
विचार मित्र
का धीरे धीरे
पैठ मन में
बनाने लगा था

क्या नुकसान है
अगर मैं बाबा
भी बन जाता हूँ
कालेज में
वैसे भी
कक्षा में
जा कर भी
कहाँ कुछ
पढ़ा पाता हूँ
हाँ
अखबार वालोंं
बुला बुला कर
फोटो जरूर
छपवाता हूँ
बाबा बन जाउंगा
तो सारे काम
अपने आप ही
होते चले जायेंगे
मित्र लोग मेरे
मेरे लिये भीड़
को जुटवायेंगे
पत्रकार हैं तो
फोटो के लिये
भी किसी को
बुलाना
नहीं पड़ेगा
मौन रहना ही है
इशारे से 

ही काम
चलाना पड़ेगा

चल पड़ी
तो विदेश
जाने का
मौका भी
बिना कुछ
करे कराये
चुटकियों में
हासिल
हो जायेगा
वीसा पास्पोर्ट
कोई बेवकूफ
बना बनाया
लाकर बिना
पैसे का
हाथ में
दे जायेगा

ढोंगी बाबा
'उलूक'
तुम भी यहीं
हम भी यहीं
देख भी लेना
हाँका लगाने
वाला मदारी
प्रिय जमूरों
की खातिर
बाबा उद्योग
का अध्यादेश
आज नहीं तो
कल किसी दिन
ले कर आयेगा
और
पक्का आयेगा।


चित्र साभार: www.jagran.com

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

भूख

भूख तब लगती है
जब पेट खाली होता है
सुना ही है बस कि
भूख बना सकती है
एक इंसान को हैवान
भूख से मरते भी हैं
कहीं कुछ लोग कभी
यहाँ तो बिना चश्मा
लगाये भी साफ साफ
दिखाई दे रहा है
गले गले तक
भरे हुवे पेट
कैसे तड़फ रहे हैं
निगल रहे हैं
कुछ भी कभी भी
यहाँ तक भूख
को भी निगल
लेते हैं ये ही लोग
बिना आवाज किये
उनकी भूख देखी
ही नहीं जाती है
और मर जाती है भूख।

बुधवार, 4 अप्रैल 2012

रास्ता

मेरा रास्ता तो
रास्ते में ही
खो जाता है

लगता है
सही रास्ता
खुद ही
भटक
जाता है

लोगों
का रास्ता
शायद
मंजिल तक
जाता है

जब भी
मैं कहीं
को जाता हूँ
अपने रास्ते
में किसी को
कभी भी
नहीं पाता हूँ

लोग तो
जा रहे
होते हैं
समूह भी
बना रहे
होते हैं

वर्षों से
लोगों ने
रास्ते
बनाये हैं

बना कर
कई रास्ते
रास्ते में छोड़
भी आये हैं

उन रास्तों
ने किसी
को नहीं
भटकाया है

हो सका है
तो भटके
हुवे को ही
रास्ता
दिखाया है

आज भी
लोग नये
रास्ते बनाते
चले जा रहे हैं

आगे को
जा रहे हैं
पीछे के
रास्ते को
रास्ते से
हटाते
जा रहे हैं

जानते हैं
जहां
वो रास्ता
उन्हें
पहुंचायेगा

पीछे वाला
भी कभी
ना कभी वहां
पहुंच ही जायेगा

रास्ते का भेद
रास्ते में ही
खुल जायेगा।

मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

अतिथि देवो भव :

क्या हुवा  
भाई
काहे  

बौरा रहे हो
खच्चड़  

हो गया
किसे  

सुना रहे हो?

साहब को
खच्चर
कैसे
बता रहे हो?

परीक्षक
तो आते
ही रहते हैं
परीक्षा
भी हर
साल की
तरह ही
तो करा
रहे हो

अब चार
सितारे
ही तो
दिये गये हैं
यूजीसी/नाक
के द्वारा आपको

फिर पाँच
सितारा
फैसिलिटी
अतिथि गृह में
क्यों चाह रहे हो

माना की
अतिथि का
सत्कार करना
हमारा धर्म है
पर उसे भी
क्या नहीं
करना चाहिये
कुछ कर्म है

आते ही
शुरु हो
जाता है
चाय चाय
चिल्लाता है
पत्ती दूध
अपने साथ
लेकर
क्यों नहीं
वो आता है

कुछ 

देर बाद
चादर
को लेकर
चिल्लायेगा
हल्की तो
होती है
अपने साथ
फिर भी
लेकर
नहीं आयेगा

नाश्ता
खाना पानी
पर ध्यान
फिर लगायेगा
पढ़ाई लिखाई
की बात
करने के
लिये आया है
वो क्या उसका चाचा
करके यहाँ जायेगा

अरे
पूरा देश जब
भगवान के
भरोसे
चलाया
जा रहा है
तो आप
लोगों का
विश्वास
उसपर से
क्यों उठा
जा रहा है

भगवान के
मंदिर वंदिर
घुमा के
ले आओ
विद्यालय
अतिथि गृह को
ताजमहल होटल
बनाने के सपने
मत बनाओ

जाओ
ठंडे हो
जाओ
दिमाग
मत खाओ।

रविवार, 1 अप्रैल 2012

मूर्खता दिवस

आप के लिये
हो ना हो

मेरे लिये
बहुत खास है

आज का दिन
लगता है कितना
अपना अपना सा

देख रहें हो जैसे
दिन में ही एक
सुन्दर सपना सा

देश ही नहीं
विदेश में भी
मनाया जाता है

कितनी खुशी
मिलती है
जब चर्चा
में आपको
लाया जाता है

वैसे मेरे लिये
हर दिन एक
अप्रैल होता है

मेरी सोच का
मुश्किल से ही
किसी से कोई
मेल होता है

ईनाम मिलने
की बारी अगर
कभी आयेगी

जनता जनार्दन
किसी और को
टोपी पहनायेगी

मेरे हाथ मे
कव्वे का एक
पंख देकर
मुझे ढ़ाढस
जरूरे बधायेगी

कोई बात नहीं
मुझे अपने पर
इतना भरोसा है

वो सुबह कभी
तो आयेगी
मेरी टोपी मेरे
सिर में ही कभी
पहनायी जायेगी।