उलूक टाइम्स: कपडे़ का जूता

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

कपडे़ का जूता

आज
एक छोटी
सी कहानी है

जो मैने
बस थोडे़
से में ही
यहां पर
सुनानी है

ये भी
ना समझ
लिया जाये
कि कोई
सुनामी है

जैसे
सबकी
कहानी होती है

किसी की
नयी तो
किसी की
बस
थोड़ी सी
पुरानी होती है

इसमें
एक मेरा
राजा है
और
दूसरी उसकी
अपनी रानी है

राजा मेरा
आज बहुत
अच्छे मूड
में नजर
आ रहा था

अपनी रानी
के लिये
तपती धूप में
एक मोची
के धौरे बैठा
कपड़े के जूते
सिलवा रहा था

मोची
पसीना
टपका रहा था

साथ में
कपड़े पर
सूईं से
टाँके भी 
लगाता
जा रहा था

राजा
आसमान के
कौओं को
देख कर
सीटी बजा
रहा था

मोची
कभी जूते
को देख
रहा था

कभी
राजा को
देख कर
चकरा रहा था

लीजिये
राजा जी

ये लीजिये
तैयार हो गया
ले जाइये

पर
चमड़ा छोड़
कपड़े पर
क्यों आ गये
बस ये बता
कर हमें जाइये

इतनी ही
विनती है हमारी
जिज्ञासा हमारी
जाते जाते
मिटा भी जाइये

राजा ने
जूता उठाया
मोची के हाथ
में उसके
दाम को टिकाया

अपना दायें
गाल को
छूने के लिये
मोची
की ओर
गाल को बढ़ाया

मोची भी
अब जोर से
खिलखिलाया

अरे
पहले अगर
बता भी देते तो
आपका क्या जाता

कपड़ा
जरा तमीज से
मैं भी काट ले जाता

एक कपड़े
का जूता
अपनी लुगाई
के लिये
भी शाम
को ले जाता

आपकी
तरह मेरा
गाल भी
बजने बजाने
के काम
से पीछा
छुड़ा ले जाता
राजा तेरा
क्या जाता।

2 टिप्‍पणियां: