उलूक टाइम्स: किसी की लकीरों का किसी को समझ में आ जाना

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

किसी की लकीरों का किसी को समझ में आ जाना

कई दिन से
देख रहा हूँ
उसका एक
खाली दीवार
पर कुछ
आड़ी तिरछी
लकीरें बनाते
चले जाना
उसके चेहरे
के हाव भाव
के अनुसार
उसकी लकीरों
की लम्बाई
का बढ़ जाना
या फिर कुछ
सिकुड़ जाना
रोज निकलना
दीवार के
सामने से
राहगीरों का
कुछ का
रुकना
कुछ का
उसे देखना
कुछ का
बस दीवार
को देखना
कुछ का
उसके चेहरे
को निहारना
फिर मुस्कुराना
उसका किसी
के आने जाने
ठहरने से
प्रभावित
नहीं होना
बिना नागा
जाड़ा गरमी
बरसात
लकीरों को
बस गिनते
चले जाना
हर लकीर
के साथ
कोई ना
कोई अंतरंग
रिश्ता बुनते
चले जाना
उसकी खुशी
उसके गम
उसके
अहसासों का
कुछ लकीरें
हो जाना
सबसे बड़ी बात
मेरा कबूल
कर ले जाना
उसकी हर
लकीर का
मतलब उतना
ही उसकी
समझ के
जितना ही
समझ ले जाना
उसकी लकीरों
का मेरी अपनी
लकीरें हो जाना
महसूस हो जाना
लकीर से
शुरु होना
एक लकीर का
और लकीर पर
जा कर
पूरी हो जाना | 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आड़े टेढ़े लकीरे ही मॉडर्न आर्ट का जन्मदाता -लकीरों का महत्त्व बहुत है
    नई पोस्ट वो दूल्हा....
    latest post कालाबाश फल

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (06-12-2013) को "विचारों की श्रंखला" (चर्चा मंचःअंक-1453)
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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