उलूक टाइम्स: अब उसे भी क्या समझना जिसे एक बेवकूफ तक समझता है

मंगलवार, 25 मार्च 2014

अब उसे भी क्या समझना जिसे एक बेवकूफ तक समझता है



किसी
के

कुछ 

कहे को

समझने 
के लिये

कहीं जाना 

और
जा कर 

समझने
की 
कोशिश करना 

समझ
में
आ 
गया
कुछ
की 

गलतफहमी
हो 
जाने
को
समझ कर 

समझे
हुऐ पर 

कुछ
कहने
की 
हिम्मत करना


सब के
बस की 

बात
नहीं होती है 

अपनी बात
कहने 
में
ही

बहुत जोर 
लगाना पड़ता है 

कम से कम 
किसी एक
समझने 
वाले
को

कहे हुए
को 
समझने
के लिये 

उसके बाद

कहीं से 
बुलाना
भी
पड़ता है 

कहने
की आदत 
हो जाने
के बाद 

कोई
कहाँ
कहीं 
किसी के लिये 
रुकता है 

उसे
तो बस 
कह
देना होता है 

कोई फर्क
किसी को 
कहीं भी
नहीं
पड़ता है 

कहता रहे
कोई 

ये
तो इसकी 
हमेशा
की
आदत है 

कुछ
भी नहीं 
कर
सकता है 

इसलिये
कुछ 
ना कुछ

कहीं
भी 
जा कर
बक देता है 

इस
तरह के 
लोगों से

हर कोई 
कन्नी
काटता है 

उसके
नजदीक भी 
नहीं
फटकता है 

ये बात
तब
और 
महत्वपूर्ण
हो 
जाती है

जब 
किसी तरह के 
किसी चीज
के 

मूल्याँकन
करने वाले 
दल के
आने का 
पता
चलता है 

जिसे
किसी
चीज के 
बारे में

एक भी
सच 
नहीं
बताना होता है 

जितना
हो सके 
उतना

झूठ का 
अँबार
लगाना होता है 

बहुत कुछ
जो कहीं 
भी
नहीं होता है 

वही
और वही 
बस
बताना
और 
समझाना होता है 

उलूक
 दूर रखना 
होता है

तेरे जैसे 
समझने समझाने 
वालों को
हमेशा 

जब भी
कोई 
पंडाल
कोई मजमा 
तेरे
अपने ही 
घर पर लगता है 

समझ में
आ गया 
किसी को
कुछ अगर 

समझा कर 

कोई

कोई
ए++ 

कोई
बी
कोई
बी++ 


सोचने
समझने
के 
बाद

ऐसे ही 
नहीं
रखता है ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. समझकर कहना आसान नहीं
    नहीं समझना सा समझाना ही ठीक है
    वर्ना हुजूम के आगे मुश्किल है

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (26-03-2014) को फिर भी कर मतदान, द्वार पर ठाढ़े नेता- चर्चा मंच 1563 में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 31 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बात तो एकदम सही है आपकी सर ।समझ कर भी नासमझ बनना यह भी एक कला है ।

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