उलूक टाइम्स: अकड़
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शनिवार, 28 जून 2014

आओ फलों के पेड़ हो जायें

आओ
फलों के
पेड़ हो जायें

खट्टे मीठे
फलों की
खुश्बुओं
से लद जायें

कुछ
तुम झुको
थोड़ा बहुत
कुछ हम भी
झुक जायें

अकड़ी
हुई सोच पर
कुछ चिकनाई लगायें

एक प्राण
निकला हुआ
शरीर ना बनकर
जिंदादिली से
जिंदा हो जायें

तैरना
अपने आप रहा
डूबने
को उतर जायें

एक
सूखी लकड़ी
होने से बचें

कहीं
कुछ हरा
कर जायें
कहीं
कुछ भरा
कर जायें

आओ
एक बार
फिर लौट लें

उसी
रास्ते पर
फूलों से भरे
बागों के
कुछ चित्र
फिर खींच
कर लायें

एक
रास्ते के
एक कारवाँ के
हाथ पैर हो जायें

जोर
आजमाईश
पर जोर ना लगायें

उसकी
हथेली से
अपनी हथेली मिलायें

नमस्कार
का भाव हो जायें

आओ
फिर से
कोशिश करें

थोड़ा
तुम आगे आओ
थोड़ा
हम आगे आ जायें

कड़क
लकड़ी
बनने से बचें

झूलती
गुलाब की
फूलों भरी
एक डाल हो जायें

आओ
गले मिलें
गिले शिकवे
मिटायें

कारवाँ
बढ़ रहा है

बटें और
बांटे नहीं
पेड़ पर एक
लता बन कर
लिपट जायें

थोड़ा
हम करें
थोड़ा
तुम करो

बाकी
सब के
मिलन के लिये
मैदान सजायें

आओ
फलों के
पेड़ हो जायें ।