उलूक टाइम्स: अच्छा जमाना
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सोमवार, 14 सितंबर 2015

‘उलूक’ का बुदबुदाना समझे तो बस बुखार में किसी का बड़बड़ाना है

ना किसी को
समझाना है
ना किसी को
बताना है

रोज लिखने
की आदत है
बही खाते में

बस रोज का
हिसाब किताब
रोज दिखाना है

किसी के देखने
के लिये नहीं
किसी के समझने
के लिये नहीं

बस यूँ हीं कुछ
इस तरह से
यहीं का यहीं
छोड़ जाना है

होना तो वही है
जो होना जाना है

करने वाले हैं
कम नहीं हैं
बहुत बहुत हैं
करने कराने
के लिये ही हैं
उनको ही करना है
उनको ही कराना है

कविता कहानी
सुननी सुनानी
लिखनी लिखानी
दिखना दिखाना
बस एक बहाना है

छोटी सी बात
घुमा फिरा कर
टेढ़े मेढ़े पन्ने पर
कलम को
भटकाना है

हिंदी का दिन है
हिंदी की बात को
हिंदी की भाषा में
हिंदी के ही कान में
बस फुसफुसाना है

आशा है
आशावाद है
कुछ भी नहीं है
जो बरबाद है

सब है बस
आबाद है

महामृत्युँजय
मंत्र का जाप
करते रहे
हिंदी को
समझाना है

‘उलूक’
अच्छा जमाना
अब शर्तिया
हिंदी का
हिंदी में ही
आना है ।


चित्र साभार: www.cliparthut.com