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मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020

ऐरे गैरे के लिखे ऐसे वैसे को काहे कहीं भी यूँ ही उठा कर के ले जाना है अलग बात है अगर किसी को कूड़ा घर घर पर ही बनाना है

जरूरी है
घिसना
चौक
काले श्यामपट
पर

पढ़ाना
नहीं है
ना ही कुछ
लिखना है

कुछ लकीरें
खींच कर
गिनना
शुरु
कर देना है

कोई
पूछे अगर
क्या
गिन रहे हैं
शर्माना नहीं है

कह देना है
 मुँह पर
ही

लाशें

किसकी
कोई पूछे
तो
बता देना है

अपने
घर के
किसी की
नहीं है

मातम
कहीं
दिख रहा हो
तो
पूछने
जरूर जाना है

कौन
मरा है
जात
सुनना है
 और
अट्टहास करना है
खिलखिलाना है

बातें
करना है
 मन की मन
से
जरूरी है
इधर उधर
ना जाना है
 मन की
बातों से
छ्नी बातों को
रास्तों में बिछाना हैं

अपने बनाये
भगवान के
गुण गाना है

घर का
कोई नहीं मरा है
सोच कर
 तालियाँ बजाना है

‘उलूक’
उल्लू के पट्ठे
के
लिखे लिखाये
के
चक्कर में
नहीं
 पड़ना है

अपना घर
अपनों से

बस

आज
बचाना है ।
चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com/corpse-5001351.html

गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

स्वागत: चलें बिना कुछ गिने बुने सपने एक बार फिर से उसी तरह


पिछली बार
वो गया था 
इसी तरह से 

जब सुनी थी
उसने इसके आने की खबर

ये आया था
नये सपने अपने ले कर अपने साथ ही

वो गया
अपने पुराने हो चुके
सपनों को साथ ले कर

इसके सपने इसके साथ रहे
रहते ही हैं

किसे फुर्सत है
अपने सपनों को छोड़
सोचने की
किसी और के सपनों की

अब ये जा रहा है
किसी तीसरे के आने के समाचार के साथ

सपने इसके भी हैं
इसके ही साथ में हैं
उतने ही हैं जितने वो ले कर आया था

कोई किसी को
कहाँ सौंप कर जाता है
अपने सपने
खुद ही देखने खुद ही सींचने
खुद ही उकेरने खुद ही समेटने पड़ते हैं
खुद के सपने

कोई नहीं
खोलना चाहता है
अपने सपनों के पिटारों को 
दूसरे के सामने

कभी डर से
सपनों के सपनों में
मिल कर खो जाने के

कभी डर से
सपनों के पराये हो जाने के

कभी डर से
सपनों के सच हो खुले आम 
दिन दोपहर मैदान दर मैदान
बहक जाने के

इसी उधेड़बुन में
सपने

कुछ भटकते
चेहरे के पीछे 
निकल कर झाँकते हुऐ
सपनों की ओट से

बयाँ करते 
सपनों के आगे पीछे के सपनों की
परत दर परत

पीछे के सपने
खींचते झिंझोड़ते सपनों की भीड़ के

बहुत अकेले
अकेले पड़े सपने

सपनों की
इसी भगदड़ में
समेटना सपनों को किसी जाते हुऐ का

गिनते हुऐ अंतिम क्षणों को

किसी का
समेरना 
उसी समय सपनों को

इंतजार में
शुरु करने की
अपने सपनों के कारवाँ अपने साथ ही

बस वहीं तक
जहाँ से लौटना होता है हर किसी को

एक ही तरीके से
अपने सपनों को लेकर वापिस अपने साथ ही

कहाँ के लिये
क्यों किस लिये
किसी को नहीं सोचना होता है

सोचने सोचने तक
भोर हो जाती है हमेशा
लग जाती हैं कतारें
सभी की इसके साथ ही

अपने अपने सपने
अपने अपने साथ लिये
समेटने समेरने बिछाने ओढ़ने लपेटने के साथ
लौटाने के लिये भी

नियति यही है
आईये फिर से शुरु करते हैं

आगे बढ़ते हैं
अपने अपने सपने
अपने अपने साथ लिये
कुछ दिनों के लिये ही सही

बिना सोचे लौट जाने की बातों को

शुभ हो मंगलमय हो
जो भी जहाँ भी हो जैसा भी हो

सभी के लिये
सब मिल कर बस दुआ
और
दुआ करते हैं ।

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

बुधवार, 25 नवंबर 2015

अपनों के किये कराये पर लिखा गया ना नजर आता है ना पढ़ा जाता है ना समझ आता है

भाई ‘उलूक’
लिखना लिखाना है
ठीक है लिखा करो
खूब लिखा करो
मस्त लिखा करो
रोज लिखा करो
जितना मन में आये
जो चाहे लिखा करो
बस इतना और
कर दिया करो
क्या लिखा है
किस पर लिखा है
क्यों लिखा है
वो भी कहीं ऊपर
या कहीं नीचे
दो चार पंक्तियों में
हिंदी में या उर्दू में
लिख कर भी
कुछ कुछ
बता दिया करो
बहुत दिमाग लगाने
के बाद भी तुम्हारे
लिखे लिखाये में से
कुछ भी निकलकर
कभी भी नहीं आता है
जितना दिमाग के अंदर
पहले से होता है वो भी
गजबजा कर पता नहीं
कहाँ को चला जाता है
अब कहोगे जिसे समझ
में नहीं आता है तो वो
फिर पढ़ने के लिये
किस लिये रोज यहाँ
चला आता है
लोगों के आने जाने
की बात आने जाने
वालों की संख्या बताने
वाला गैजेट बता जाता है
लिखने लिखाने वाला
उसी पर लिखता है
जो लिखने वाले के
साथ पढ़ने वाले को
साफ साफ सामने
सामने से दिखता है
और नजर आता है
लिखने वाला आदतन
लिखता है सब कुछ
उसे पता होता है
पढ़ने वाला
कहीं साफ साफ सब
लिख तो नहीं दिया गया है
देखने के लिये चला आता है
पढ़ता है सब कुछ
साफ साफ समझता है
लिख दिये पर खिसियाता है
और फिर इसका लिखा
समझ में नहीं आता है
की डुगडुगी बजाता हुआ
गली मोहल्ले बाजार से
होते हुऐ शहर की ओर
निकल कर चला जाता है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

शनिवार, 17 मई 2014

कुछ भी कह देने वाला कहाँ रुकता है उसे आज भी कुछ कहना है

एक सपने बेचने
की नई दुकान का
उदघाटन होना है
सपने छाँटने के लिये
सपने बनाने वाले को
वहाँ पर जरूरी होना है
आँखे बंद भी होनी होगी
और नींद में भी होना है
दिन में सपने देखने
दिखाने वालों को
अपनी दुकाने अलग
जगह पर जाकर
दूर कहीं लगानी होंगी
खुली आँखों से सपने
देख लेने वालों को
उधर कहीं जा कर
ही बस खड़े होना है
अपने अपने सपने
सब को अपने आप
ही देखने होंग़े
अपने अपनो के सपनों
के लिये किसी से भी
कुछ नहीं कहना है
कई बरसों से सपनों
को देखने दिखाने के
काम में लगे हुऐ
लोगों के पास
अनुभव का प्रमाण
लिखे लिखाये कागज
में ही नहीं होना है
बात ही बात में
सपना बना के
हाथ में रख देने
की कला का प्रदर्शन
भी साथ में होना है
सपने पूरे कर देने
वालों के लिये दूर
कहीं किसी गली में
एक खिलौना है
सपने बनने बनाने
तक उनको छोड़िये
उनकी छाया को भी
सपनों की दुकान के
आस पास कहीं पर
भी नहीं होना है ।