उलूक टाइम्स: आँसू
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शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

जरूरी काम निपटाना बहुत जरूरी होता है श्रद्धाँजलि तो मरे को देनी होती है उसके लिये जिंदों के पास समय ही समय होता है

तेज
दौड़ते रहने से
दिखायी नहीं
देती है प्रकृति

रुक लेना
जरूरी होता है

कहना
अपनी बात
और लिखना
उसी को

मजबूरी
हो सकता है
उसके लिये

जो बोलना
और लिखना
सीखते सीखते
भटक जाता है

कवि और
साहित्यकारों
के बीच में
रहने से भ्रम
हो ही जाता है

सामान्य लोग
और मानसिक
रूप से बीमार

साथ में
चलते रहते हैं

समय
समय देता है
समझने के लिये
पागलों को भी

एक ही
रास्ते में
चलने का
नुकसान

पागल
को ही
उठाना
पड़ जाता है

तरक्की
ऐसे ही
नहीं होती है

छोटा
बहुत जल्दी
बहुत बड़ा
हो जाता है

शतरंज
के मोहरे भी
ऊब जाते हैं

कब तक
चले कोई
एक ही
तरह से

किसी के
चलाने से
सीधा आढ़ा
या तिरछा

बिसात को
छोड़ कर
एक ना
एक दिन

हर कोई
बाहर
चला आता है

मौत
शाश्वत है
जीवन
चला जाता है

मोहरे
मरते नहीं हैं
बिसात से
बाहर
निकल आते हैं

बिसात में
बिताये समय का
सदउपयोग कर
मौत बेचना
शुरु हो जाते हैं

खेलने वाले
जब तक
समझ पाते हैं
शतरंज

मोहरे
समझाने वाले
खिलाड़ियों
की पाँत में
बहुत आगे
पहुँच जाते हैं

चुनाव
हार और जीत
शतरंज और मोहरे

हर तरफ फैल कर
अमरबेल की तरह
जिंदगी से
लिपट कर उसे चूसते हैं

कहीं हीमोग्लोबिन
चार पहुँच जाता है

कुछ शूरवीर
पन्द्रह सोलह
के पार हो जाते हैं

देश
देशभक्ति
शहीद याद आते ही

घर के दरवाजे
शोक में बन्द
कर दिये जाते हैं

‘उलूक’
देखता रहता है
ठूँठ पर बैठा
रात में दौड़ते चूहों को

सड़क दर सड़क

अच्छी बात है
कुछ होता है तब
जली मोमबत्ती लेकर

अपनी अपनी
चाल
बहुत धीमी
कर ले जाते हैं

बलिहारी हैं
बिल्लियाँ
जिनकी
नम आखों से
टपकते आँसू

चूहों का उत्साह
इस आसमान से
उस आसमान
तक पहुँचाते हैं

लाशों के बाद वोट
या
वोट के बाद लाश

क्या फर्क पड़ता है

बेवकूफ
हराम के
खाने वाले
हरामी

हमेशा
सामने वाले के
मुँह पर टार्च जला कर
शीशा सामने से
ले कर आते हैं ।

चित्र साभार: https://herald.dawn.com

शुक्रवार, 1 जुलाई 2016

होता है उलूक भी खबर लिये कई दिनों तक जब यूँ ही नदारत हो रहा होता है

होता है

सभी के
साथ होता है


कोई
गा देता है
कोई रो देता है

कोई
खुद के
खो गये होने के
आभास जैसा
मुँह बनाये लटकाये

शहर
की किसी
अंधेरी गली
की ओर
घूमने जाने
की बात करते हुए

चौराहे
की किसी
पतली गली
की ओर
हो रहा होता है


कोई
रख देता है
बोने के लिये बीज

सभी
चीजों के

नहीं
बनते हैं
जानते हुए
बूझते हुए
पेड़ पौंधे
जिनके

कुछ को
आनन्द आता है
जूझते हुए

हुए के साथ

होने
ना होने का
बही खाता बनाये

हर खबर
की कबर
खोदने वाला
भी भूल सकता है

खबरें
भी लाशें
हो जाती है

सड़ती हैं
फूलती हैं
गलती हैं
पड़ी पड़ी

अखबार
समाचार टी वी
रेडियो पत्रकार

निकल निकल
कर गुजर जाते हैं

उसके
अगल बगल से

कुछ
उत्साहित

उसे
उसी के
होंठों पर
बेशरमी
के साथ

सरे आम
भीड़ के
सामने सामने
चूमते हुए भी

अपनी
अपनी ढपली
पीटते सरोकारी लोग

झंडे
दर झंडे जलाते

पीटते
फटी आवाज
के साथ

फटी
किस्मत के
कुछ घरेलू बीमार

लोगों की
तीमारदारी
के रागों को

शहर भी
इन सब
सरोकारों के साथ
जहाँ लूला काना
अंधा हो चुका होता है

सरोकारी
‘उलूक’ भी
अपनी चोंच को
तीखा करता हुआ

एक
खबर को
बगल में दबाये हुए

एक
कबर को
खोदने में
कई दिनों से
लगा होता है

सब को
सब मालूम

सब को
सब पता होता है

मातम होना है

पर मातम होने
तक का इंतजार

किसी
को भी
नहीं होता है

ना खून होता है
ना आँसू होते हैं

ना ही
कोई होता है
जो जार जार
रोता है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

फिर किसी की किसी को याद आती है और हम भी कुछ गीले गीले हो लेते हैं

कदम
रोक लेते हैं
आँसू भी
पोछ लेते हैं

तेरे पीछे नहीं
आ सकते हैं
पता होता है

आना चाहते हैं
मगर कहते कहते
कुछ अपने ही
रोक लेते हैं

जाना तो हमें भी है
किसी एक दिन के
किसी एक क्षण में

बस इसी सच को
झूठ समझ समझ कर
कुछ कुछ जी लेते हैं

यादें होती हैं कहीं
किसी कोने में
मन और दिल के

जानते बूझते
बिना कुछ ढकाये
पूरा का पूरा
ढका हुआ जैसा ही
सब समझ लेते हैं

कुछ दर्द होते है
बहुत बेरहम
बिछुड़ने के
अपनों से
हमेशा हमेशा
के लिये

बस इन्हीं
दर्दों के लिये
कभी भी कोई
दवा नहीं लेते हैं

सहने में
ही होते हैं
आभास उनके

बहुत पास होने के
दर्द होने की बात
कहते कहते भी
नहीं कहते हैं

कुछ आँसू इस
तरह के ठहरे हुऐ
हमेशा के लिये
कहीं रख लेते हैं

डबडबाते से
महसूस कर कर के
किसी भी कीमत पर
आँख से बाहर
बहने नहीं देते हैं

क्या करें
ऐ गमे दिल
कुछ गम
ना जीने
और
ना कहीं
मरने ही देते हैं

बहुत से परदे
कई नाटकों के
जिंदगी भर
के लिये ही
बस गिरे रहते हैं

जिनको उठाने
वाले ही हमारे
बीच से
पता नहीं कब
नाटक पूरा होने से
बस कुछ पहले ही
रुखसती ले लेते हैं ।

"750वाँ उलूक चिंतन:  आज के 'ब्लाग बुलेटिन' पर"