उलूक टाइम्स: कल्पना
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बुधवार, 17 जुलाई 2013

बैल एक दिखा इसलिये कहा

कल्पना की उड़ान
कब कहाँ को कर
जाये प्रस्थान
रोकना भी उसे
आसान नहीं
हो पाता है

अब कुछ अजीब
सा आ ही जाये
दिमाग के पर्दे में
बनी फिल्म को देखना
लाजमी हो जाता है

 क्या किया जाये
उस समय जब
एक बैल सामने
से आता हुआ
नजर आता है

 बैल का बैल होना
उसके हल को
अपने कंधों पर ढोना
खेत का किसी के
पास भी ना होना
सबके समझ में
ये सब आ जाता है

हर बैल लेकिन
अपने बैल के लिये
एक खेत की सीमा
जरूर बनाता है

 उसे भी होना ही
पड़ता है किसी
का एक बैल कभी
अपने बैल को देखते
ही लेकिन यही
वो भूल जाता है

ऊपर से नीचे तक
बैल के बैल का बैल
पर बैल हूँ एक मैं
कोई भी स्वीकार
नहीं ये कर पाता है

हरेक की इच्छा
होती है बहुत तीव्र
हर कोई एक ऎसा
बैल अपने लिये
हमेशा चाहता है

जिसके कटे हुऎ
हो सींग दोनो
हौ हौ करते ही
इशारा जिसके
समझ में आता है

बैल इस तरह
एक साम्राज्य
बैलों का बना
भी ले जाता है

लेकिन बैल तो
बैल होते हैं
गलती से कभी
उतर गया हल
कंधे से थोड़ी
देर के लिये

 हर बैल उजाड़
लेकिन चला ही
जाना चाहता है ।