उलूक टाइम्स: कुआँ
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गुरुवार, 28 नवंबर 2019

ध्यान ना दें मेरी अपनी समस्यायें मेरा अपना बकना मेरा कूड़ा मेरा आचार विचार



हैं
दो चार

वो भी

कोई इधर

कोई उधर

कोई
कहीं दूर

कोई

कहीं
उस पार


सोचते हुऐ

होने की

आर पार

लिये
हाथ में

लिखने
का
कुछ

सोच कर
एक
हथियार


जैसे

हवा
को
काटती हुई
जंक लगी
सदियों पुरानी

शिवाजी

या
उसी तरह के
किसी
जाँबाज की

एक

तलवार

सभी
की
सोच में

तस्वीर

सूरज

और

रोशनी
 उसकी

शरमाती

हुई सी
नयी नवेली सी
नहीं

बल्कि
झाँसी की रानी
की सी

तीखी


करने

 वाली
हर मार पर
पलट वार

देखते
जानते हुऐ

अपने आस पास

अन्धेरे में

अन्धेरा
बेचने वाले

सौदागरों
की सेना


और

उसके
सरदार

खींचते हुऐ

लटकते हुऐ
सूरज पर

ठान कर


ना होने देंगे
उजाला

बरबाद
कर देंगे


लालटेन
की भी
सोच रखने वाले

कीड़े

दो चार
कुछ उदार

किसे
समझायें

किसे बतायें

किसने सुननी है

नंगे
घोषित कर दिये गये हों
शरीफों के द्वारा

जब हर गली

शहर पर
एक नहीं कई हजार

डिग्रियाँ
लेने के लिये
लगे हुऐ बच्चे

कोमल
पढ़े लिखे

कहलायेंगे
होनहार


उस से
पहले


खतना

कर दिये
जाने की


उनकी
सोच से

बेखबर

तितलियाँ

बना कर
उड़ाने का है

कई
शरीफों का

कारोबार

पहचान
किस की
क्या है


सब को पता है


बहुत कुछ


हिम्मत
नहीं है

कहने की

सच


मगर
बेच रहा है
दुकानदार भी

सुबह का अखबार


‘उलूक’

हैं
कई बेवकूफ
मेंढक

कूदते
रहते हैं

तेरी तरह के

अपने अपने

कूओं में

तुझे
क्या करना है
उनसे

तू कूद
अपनी लम्बाई
चार फिट की

अपनी

सोच के
हिसाब से


किसे पड़ी है
आज

अगर
बन जाता है

एक
कुआँ

मेढकों का स्वर्ग


और
स्वर्गवासी
हो लेने के अवसर
तलाशते दिखें

हर तरफ

मेंढक हजार।


चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/

रविवार, 20 सितंबर 2015

देखा कुछ ?

देखा कुछ ?
हाँ देखा
दिन में
वैसे भी
मजबूरी में
खुली रह जाती
हैं आँखे
देखना ही पड़ता है
दिखाई दे जाता है
वो बात अलग है
कोई बताता है
कोई चुप
रह जाता है
कोई नजर
जमीन से
घुमाते हुऐ
दिन में ही
रात के तारे
आकाश में
ढूँढना शुरु
हो जाता है
दिन तो दिन
रात को भी
खोल कर
रखता हूँ आँखें
रोज ही
कुछ ना कुछ
अंधेरे का भी
देख लेता हूँ
अच्छा तो
क्या देखा ? बता
क्यों बताऊँ ?
तुम अपने
देखे को देखो
मेरे देखे को देख
कर क्या करोगे
जमाने के साथ
बदलना भी सीखो
सब लोग एक साथ
एक ही चीज को
एक ही नजरिये
से क्यों देखें
बिल्कुल मत देखो
सबसे अच्छा
अपनी अपनी आँख
अपना अपना देखना
जैसे अपने
पानी के लिये
अपना अपना कुआँ
अपने अपने घर के
आँगन में खोदना
अब देखने
की बात में
खोदना कहाँ
से आ गया
ये पूछना शुरु
मत हो जाना
खुद भी देखो
औरों को भी
देखने दो
जो भी देखो
देखने तक रहने दो
ना खुद कुछ कहो
ना किसी और से पूछो
कि देखा कुछ ?

चित्र साभार: clipartzebraz.com

मंगलवार, 5 मई 2015

क्यों होता है कौन जानता है लेकिन होता है

भावुक होना
गुण नहीं है प्यारे
एक अवगुण है
समझा कर
अरे कहीं लिखा
हुआ नहीं है तो क्या
किसने कह दिया
हर बात को लिख देना
भी जरूरी होता है
ये भी जरूरी नहीं है
लिखा गया ही
सच ही होता है
भाई जमीन के
नींचे ही कुआँ होता है
अब कुआँ तो
सब ही खोदते हैं
कैसे खोदा गया
क्यों खोदा गया
ये सब पूछना
जरूरी नहीं होता है
सब को दिखता है
अपने अपने
हिसाब का पानी
सब को पता होता है
उसका पानी
कितना पानी
और कहाँ होता है
भावुकता कहाँ
काम आती है
हर किसी को
पता होता है
हर कोई जानता है
भाव भावुकता का
अब लिखे हुऐ की
बात की बात सुन
कहीं कुछ लिख देने से
कुछ नहीं होता है
सरकारी आदेशों को
पढ़ने समझने का
अलग अलग
अंदाज होता है
सरकारी आदेश
लिखा ही इस तरह
से जाता है जैसे
किसी पानी भरने के
बर्तन में नीचे से
एक बहुत बड़ा
छेद होता है
इस देश में
इन छेदो को
बनाने और काम में
लाने वालों की
कमी नहीं होती है
हर छेद माफिया के
खून का रंग भी
सफेद होता है
सारे सफेद रंगी खून
वालों की ना जात होती है
ना ही कोई मजहब होता है
ना ही कोई देश होता है
ऐसे सारे लोगों को
भावुक हो जाने वाली
किसी भी चीज से
परहेज होता है
‘उलूक’ कभी तो समझ
लिया कर अपने आस पास
के माहौल को देखकर
तुझे देखते ही सबके
चेहरे पर छपा क्यों
हमेशा एक
औरंगजेब होता है ।

चित्र साभार: printablecolouringpages.co.uk

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

होली हो ली मियाँ चलो आओ शुरु करते हैं खोदना फिर से अपना अपना कुआँ

होली हो ली मियाँ
चलो आओ
शुरु करते हैं
खोदना फिर से
अपना अपना कुआँ
अपनी अपनी समझ
की समझ है
अपनी अपनी
आग और
अपना ही
होता है धुआँ
जमाना बहुत
तरक्की पर है
अनदेखा
मत कीजिये
देखिये परखिये
अपनी अपनी
अक्ल से नापिये
कुत्तों की पूँछ
की लम्बाईयाँ
एक ही नस्ल
की अलग
मिलेगी यहाँ
और अलग
मिलेगी वहाँ
वो अपने कुत्ते
को होशियार
बतायेगा
मुझे अपने ही
कुत्ते पर
बहुत प्यार आयेगा
कुत्ता आखिर
कुत्ता ही होता है
ना वो समझ पायेगा
ना मेरी ही समझ
में ये आ पायेगा
सियार भी अब
टोलियों में
निकलते हैं कहाँ
कर जरूर रहे हैं
पर अकेले में
खुद अपने अपने
लिये हुआँ हुआँ
होली हो ली
इस साल की मियाँ
आगे के जुगाड़
पर लग जाओ
लगाओ आग कहीं
बनाओ कुछ धुआँ
मिलेगी जरूर
कोई पहचान
‘उलूक’ तुझे भी
और तेरी सोच को
कर तो सही
कुछ उसका जैसा
जिसे कर कर के
वो बैठा है आज
बहुत ऊपर वहाँ ।

चित्र साभार: funny-pictures.picphotos.net

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

कल फोड़ने के लिये रखे गये पठाकों को कोई पानी डाल डाल कर आज धो रहा है

फेशियल किया हुआ
एक एक चेहरा
चमक चमक कर
फीका होना
शुरु हो रहा है
उन सब चेहरों
पर सब कुछ
जैसे बिना जले
भी धुआँ धुआँ
सा हो रहा है
नजर फिसलना
शुरु हो गई है
चेहरे से
चेहरे के ऊपर
रखा हुआ चेहरा
देखना ही
दूभर हो रहा है
दिखने ही
वाला है सच में
सच का झूठ
और झूठ का सच
ऐसा जैसा ही
कुछ हो रहा है
ऐसे के साथ
वैसा ही कुछ कुछ
अब बहुत साफ साफ
दिखाई भी दे रहा है
उधर खोद चुके हैं
खाई खुद के लिये
इधर भूल गये शायद
उनका अपना ही
खोदा हुआ कुआँ
भरा भरा सा हो रहा है
उड़ गई है नींद रातों की
कोई कह नहीं पा रहा है
परेशान हो कर
दिन में ही कहीं
किसी गली में
खड़े खड़े बिजली के
खम्बे से सहारा
ले कर सो रहा है
गिर पड़ा है मुखौटा
शेर का मुँह के ऊपर से
बिल्ले ने लगाया हुआ है
साफ साफ पता
भी हो रहा है
सिद्धांतो मूल्यों की जगह
गाली गलौच करना
बहुत जरूरी हो रहा है
बहुत ज्यादा हो गया
बहुत कुछ उस की ओर को
अब इसकी ओर भी कुछ
होने का अंदेशा हो रहा है
जो भी हो रहा है ‘उलूक’
तेरे हिसाब से बहुत ही
अच्छा हो रहा है
दो चार दिन की बात है
पता चल ही जायेगा
दीदे फाड़ कर
बहुत हंसा वो
अब दहाड़े मार मार
कर रो रहा है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

गुरुवार, 1 मई 2014

क्या किया जाये अगर कभी मेंढक बरसात से पहले याद आ जाते हैं



कूँऐं के 

अंदर से चिल्लाने वाले मेढक की 

आवाज से परेशान क्यों होता है 

उसको
आदत होती है शोर मचाने की 

उसकी तरह का
कोई दूसरा मेंढक 
हो सकता है वहाँ नहीं हो 
जो समझा सके उसको 

दुनिया गोल है
और बहुत विस्तार है उसका
यहाँ से शुरु होती है और
पता नहीं कहाँ कहाँ तक फैली हुई है 

हो सकता है 
वो नहीं जानता हो कि किसी को 
सब कुछ भी पता हो सकता है 

भूत भविष्य और वर्तमान भी 

बहुत से मेंढक 
कूँऐं से कूद कर 
बाहर भी निकल जाते हैं 
जानते हैं कूदना बहुत ऊँचाई तक 

ऐसे सारे मेंढक 
कूँऐं के बाहर निकलने के बाद 
मेंढक नहीं कहलाते हैं 

एक मेंढक होना 
कूँऐं के अंदर तक ही ठीक होता है 

बाहर 
निकलने के बाद भी मेंढक रह गया 
तो फिर
बाहर आने का क्या मतलब रह जाता है 

वैसे 
किसी को ज्यादा फर्क भी नहीं 
पड़ना चाहिये 

अगर 
कोई मेंढक अपने हिसाब से कहीं टर्राता है 
किसी के 
चुप चुप कहने से बाज ही नहीं आता है 

होते हैं बहुत से मेंढक 
जरा सी आवाज से चुप हो जाते हैं 

और 'उलूक'
कुछ सच में 
बहुत बेशरम और ढीट होते हैं 

जिंदगी भर बस टर्राते ही रह जाते हैं ।

चित्र साभार:
https://www.shutterstock.com/

बुधवार, 1 अगस्त 2012

जोकर बचा / सरकस बच गया

जोकर ही
चले जायेंगे
तो सरकस
बंद हो जायेँगे

ये बात
किसी किसी
के समझ में
बहुत आसानी
से आ जाती है

जो जोकरों
को बर्बाद
होने से बचा
ले जाती है

सरकार भी
बहुत संजीदगी
से अपनी
जनता के बारे
में सोचती है

किसी के
लिये कुछ
करे ना करें
जोकरों के
लिये जरूर
एक कुआँ
कहीं ना कहीं
खोदती है

ये बात
सब लोग
नहीं जान
पाते हैं

कुछ लोग
जोकरों के
बीच
रहते रहते
जोकरिंग में
माहिर हो
जाते हैं

जोकरों
की खातिर
खुद भी
जोकर
हो जाते हैं

जोकरों की
समस्या लेकर
सरकार के
पास बार बार
कई बार जाते हैं

सरकार में
भी बहुत
से जोकर
होते हैं
जिनको ये
जोकर ही बस
पहचान पाते हैं

जोकरों
की खातिर
जोकर होकर
सरकार के
जोकरों से
जोकरों
के लिये
जोकरिंग
करने के
लाईसेंस का
नवीनीकरण
करा ही लाते हैं

सरकस को
बरबाद होने
से बचा
ले जाते हैं

ये बात
जोकरों
की सभा में
सभी जोकरों
को बुला
कर बताते हैं

जोकर लोग
जोर जोर
से तालियाँ
बजाते हैं
सरकार की
जयजयकार
के नारे साथ
में लगाते हैं

सरकारी
जोकर बस
दांत ही
दिखाते है ।