उलूक टाइम्स: कुछ भी
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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

काहे पढ़ लेते हैं कुछ भी सब कुछ लिखना सब को नहीं आता है


यूँ ही
नहीं लिखता
कोई
कुछ भी

अँधेरे में
उजाला लिखना
लिखना अँधेरा
उजाले में

 उजाले में
उजाला लिखना
लिखना
अँधेरे में अँधेरा

एक बार लिखा
बार बार लिखना

 लिखना
बेमौसम
सदाबहार लिखना

यूँ ही
नहीं लिखता
कोई कुछ भी

सब
लिखते हैं कुछ

 कुछ
लिखना
सबको नहीं आता है

सब
सब नहीं लिखते हैं

 सब
लिखने की
हिम्मत
हर कोई
नहीं पा जाता है

सब लिखते हैं

 सब
लिखने पर
बात करते हैं

 सब
कोशिश करते हैं
अपने लिखे को
सब कुछ बताने की

सब
का लिखा
सब को
समझ में
नहीं आता है

 सब से
अच्छी टिप्पणी
सुन्दर होती है

 दो चार शब्द
कहीं दे आने से
ज्यादा कुछ
घट नहीं जाता है

लिखते लिखते

कहाँ
भटक गया होता है
लिखने वाले को भी
पता कहाँ चल पाता है

 कुछ भी है
लेकिन
सच
चाहे अपना हो
पड़ोस का हो
समाज का हो

किसी में
इतनी
हिम्मत
नहीं होती है

कि
लिख ले
कोई

नहीं
लिख पाता है

‘उलूक’
कोशिश करता है
फटे में झाँकने की
और बताने की

लेकिन
उसका जैसा
उल्लू का पट्ठा

शायद
कभी कोई
नजर आये

जो अपने
पैजामे के
नाड़े को
बाँधने के
चक्कर में

पैजामा
कौन सा है
बता पाये
नजर नहीं
आता है

बकवासों
का भी
समय
आयेगा कभी

खण्डहर
बतायेंगे
हर नाड़े को

पैजामा
छोड़ कर
जाने का
मलाल रह
ही जाता है।

 चित्र साभार: https://www.talentedindia.co.in

शनिवार, 23 अगस्त 2014

खुद को भी पता कहाँ कुछ भी होता है कहाँ किस समय कौन क्या किस के लिये इस तरह भी कह देता है

यूँ ही कुछ भी
कहीं भी
कहने वाला
नहीं कह देता है
हर किसी की
आदत सब कुछ
हर किसी से
कह देने की भी
नहीं होती है
कुछ कहने के
बारे में किसी से
कुछ पूछ लेना
कहने से पहले भी
बहुत जरूरी
नहीं होता है
फिर भी मन
करता है कह
लेना सब कुछ
सब से चिल्ला
चिल्ला कर
पर कौन कितना
बहरा होता है
देखने से कुछ भी
पता नहीं होता है
सब सामान्य
सा दिखता है
सामने वाला भी
अपने जैसा ही
आम लगता है
किसी का भी
होता होगा आदमी
लेबल लगा कर
कोई भी बेवकूफ
जनता के बीच
खड़ा नहीं होता है
इतना तो पक्का
ही होता है
घाव छोटा हो
या कुछ बड़ा भी
किसी ना किसी
के पास कहीं ना कहीं
जरूर बना होता है
बात उसी की
लेकर कहने के लिये
ही खड़ा होता है
माईक के सामने
शुरु करते ही
सब कुछ भूल कर
अपनी नहीं किसी
बड़ी तूफानी
शैतानी आत्मा
को जामा अच्छाई
का औढ़ा कर
अपनी सोच में
ओहदा भगवान
का दे देता है
अपनी बात किसी
और दिन कहने
के लिये रख कर
सबको पागल
बनाने वाले पागल
को भगवान तक
कह ही देता है
आज सोच बैठा
था ‘उलूक’ भी
कहने की सब कुछ
सब से यहाँ आकर
नहीं कह सका
रोज की तरह
सब को पता है
कुछ नहीं कहता है
बस कुछ कुछ
यूँ ही हमेशा
इसी तरह से
आ आ कर
कहने की सूचना
जरूर दे देता है
कुछ भी कहीं भी
यूँ ही कभी भी
किसी से भी
तो नहीं कह
देना होता है ।