उलूक टाइम्स: खंडहर
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शनिवार, 8 अगस्त 2015

हर कोई मरता है एक दिन मातम हो ये जरूरी नहीं होता है

हर बाजार में
हर चीज बिके
ये जरूरी भी
नहीं होता है
रोज बेचता है कुछ
रोज खरीदता है कुछ
उसके बाद भी कैसे
किसी को अंदाजा
नहीं होता है
किसी की मौत
कहाँ बिकेगी
कौन कब और
कहाँ पैदा होता है
कहीं सुंदर सी
आँखों की गहराई
ही बिकती है
कहीं खाली आवाज
गुंजाता हुआ
खंडहर हो चुके
एक कुऐं में भी
प्राइस टैग बहुत
उँचे दामों का
लगा होता है
कहीं बहुत भीड़
नजर आती है
और सामने से
बहुत कुछ उधड़ा
हुआ सा होता
ये जरूरी नहीं है
जिंदगी का फलसफा
हर किसी के लिये
हमेशा एक सा होता है
किसी को खून देखकर
गश आना शुरु होता है
किस को अगर नशा
होता है तो बस गिरे हुऐ
खून के लाल रंग को
देखने से ही होता है
बहुत मरते हैं रोज
कहीं ना कहीं दुनियाँ
के किसी कोने में
हर किसी के मरने
का मातम जरूरी नहीं है
हर किसी के यहाँ होता है ।

चित्र साभार: www.examiner.com

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

पुराने एक मकान की टूटी दीवारों के अच्छे दिन आने के लिये उसकी कब्र को दुबारा से खोदा जा रहा था

सड़कों पर सन्नाटा
और सहमी हुई सड़के
आदमी कम और
वर्दियों के ढेर
बिल्कुल साफ
नजर आ रहा था
पहुँचने वाला है
जल्दी ही मेरे शहर में
कोई ओढ़ कर एक शेर
शहर के शेर भी
अपने बालों को
उठाये नजर आ रहे थे
मेरे घर के शेर भी
कुछ नये अंदाज में
अपने नाखूनों को
घिसते नजर आ रहे थे
घोषणा बहुत पहले ही
की जा चुकी थी
एक पुराने खंडहर
की दीवारें बाँटी
जा चुकी थी
अलग अलग
दीवार से
अलग अलग
घर उगाने का
आह्वान किया
जा रहा था
एक हड्डी थी बेचारी
और बहुत सारे बेचारे
कुत्तों के बीच नोचा
घसीटा जा रहा था
बुद्धिजीवी दूरदृष्टा
योजना सुना रहा था
हर कुत्ते के लिये
एक हड्डी नोचने
का इंतजाम
किया जा रहा था
बहुत साल पहले
मकान धोने सुखाने
का काम शुरु
किया गया था
अब चूँकि खंडहर
हो चुका था
टेंडर को दुबारा
फ्लोट किया
जा रहा था
हर टूटी फूटी
दीवार के लिये
एक अलग
ठेकेदार बन सके
इसके जुगाड़
करने पर
विमर्श किया
जा रहा था
दलगत राजनीति
को हर कोई
ठुकरा रहा था
इधर का
भी था शेर
और उधर का
भी था शेर
अपनी अपनी
खालों के अंदर
मलाई के सपने
देख देख कर
मुस्कुरा रहा था
‘उलूक’ नोच रहा था
अपने सिर के बाल
उसके हाथ में
बाल भी नहीं
आ रहा था
बुद्धिजीवी शहर के
बुद्धिजीवी शेरों की
बुद्धिजीवी सोच का
जलजला जो
आ रहा था ।


चित्र साभार: imgkid.com

शुक्रवार, 21 जून 2013

मदद कर मदद के लिये मत चिल्ला



अरे !
तू तो
मत चिल्ला
हमेशा ही तो
है यहाँ रहता
तू थोडे़ ना
है कहीं फंसा
अपनी गिनती
आपदाग्रस्तों में
मत करवा
मान भी जा
सड़कें बह गयी
सब पानी में
तो क्या हुआ
कहीं को मत जा
सैलानियों की
मदद कर
आधे बड़ आ
राष्टृ की धारा में
हमेशा ही है
जब तू बहा
छोटी बात
इस समय
तो मत उठा
पहाडी़ पहाडो़
का दर्द समझ
बस पहाडी़
राज्य एक बना
देश के नाम
पर करता रहा है
हमेशा जब तू
जान कुर्बान
आज भी मौका
जब मिला है
शहीद हो जा
वैसे भी करना है
एक दिन यहाँ
से पलायन तुझे
घर बह गया तेरा
अच्छा हुआ
खंडहर की
फोटो बनने
से तो रह गया
कल वो सड़क
फिर बनायेगा
कुछ अपना लेगा
कुछ ऊपर
दे आयेगा
तू फिर से
मंदिर को सजा
धार्मिक पर्यटन की
सोच को बढा़
हिमालय के रंग
अभी भी बदलेंगे
सूरज के साथ
हमेशा की तरह
कुछ नये पोस्टर
और छपवा
देश पर आयी
है आफत जब
कभी पहले भी
तूने कभी
कदम पीछे
कहाँ है खीँचा
एक बार फिर
कदमताल करने
का मन बना
वक्तव्य छप
रहे हैं चुनिंदा
यहाँ छपे
हैं जो आज
कल के
अखबार में
तू भी
कोशिश कर
एक दो
कमेंट दे जा
फेसबुकिया
ट्विटिया
कुछ भी कर ले
बस हल्ला
मत मचा ।