उलूक टाइम्स: खबर
खबर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
खबर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 27 सितंबर 2014

छोटी चोरी करने के फायदों का पता आज जरूर हो रहा है

                               

चोर होने की औकात है नहीं डाकू होने की सोच रहा है 
तू जैसा है वैसा ही ठीक है 
तेरे कुछ भी हो जाने से 
यहाँ कुछ
नया जैसा नहीं हो रहा है 

थाना खोल ले
घर के किसी भी कोने में 
और सोच ले
कुर्सी पर बैठा एक थानेदार 
मेज पर अपना सिर टिका कर सो रहा है 

देख नहीं रहा है दूरदर्शन आज का 
कुछ अनहोनी सी खबर कह रहा है 

चार साल के लिये अंदर हो जाने वाली है 
और ऊपर से
सौ करोड़ जमा करने का आदेश भी
न्यायालय
उसको साथ में दे रहा है 

बेचारी को
बहुत महँगा पड़ रहा है 
दोस्त देश के बाहर गया हुआ भी 
दो शब्द साँत्वना के नहीं कह रहा है 

समझ में
ये नहीं आ पा रहा है कि 
पुराना घास खा गया घाघ अभी तक अंदर है 
या बाहर कहीं किसी जगह अब मौज में सो रहा है 
खबर ही नहीं आती है उसकी कुछ भी मालूम नहीं हो रहा है 

आज कुछ कुछ
कोहरे के पीछे का मंजर
थोड़ा सा कुछ साफ जैसा हो रहा है 

बहुत समझदार है
मध्यम वर्गीय चोर मेरे आस पास का 
ये आज ही सालों साल सोचने के बाद भी बिना सोचे 
बस आज और आज ही पता हो रहा है 

हाथ लम्बे
होने के बाद भी 
लम्बे हाथ मारने का खतरा कोई फिर भी 
क्यों नहीं ले रहा है 

बस थोड़ा थोड़ा
खुरच कर दीवार का रंग रोगन 
अपने आने वाले भविष्य की संतानों के लिये
बनने वाले सपने के ताजमहल की पुताई का 
मजबूत जुगाड़ ही तो हो रहा है 

‘उलूक’ बैचेन है 
आज जो भी हो रहा है किसी के साथ 
इस तरह का बहुत अच्छा जैसा तो नहीं हो रहा है 

थोड़ी थोड़ी करती
रोज कुछ करती हमारी तरह करती 
तो पकड़ी भी नहीं जाती 
शाबाशियाँ भी कई सारी मिलती 
जनता रोज का रोज ताली भी साथ में बजाती 
सबकी नहीं भी होती
तो भी 
दो चार शातिरों की फोटो
खबर के साथ अखबार में 
रोज ही किसी कालम में नजर आ ही जाती 

दूध छोड़ कर
बस मलाई चोर कर खाने का 
बिल्कुल भी अफसोस 
आज जरा सा भी नहीं हो रहा है । 

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

बुधवार, 30 अप्रैल 2014

पँचतंत्र लोकतंत्र पर हावी होने जा रहा है


खाली रास्ते पर 
एक खरगोश
अकेला दौड़ लगा रहा है

कछुआ बहुत 
दिनों से गायब है
दूर दूर तक 
कहीं भी नजर नहीं आ रहा है

सारे कछुओं से 
पूछ लिया है
कोई कुछ नहीं बता रहा है

दौड़ चल रही है
खरगोश दौड़ता ही जा रहा है

इस बार लगता है
कछुआ मौज में आ गया है
और 
सो गया है
या
कहीं छाँव में बैठा बंसी बजा रहा है

दौड़ शुरु होने से 
पहले भी
कछुऐ की 
खबर 
कोई अखबार 
नहीं दिखा रहा है

कुछ ऐसा जैसा 
महसूस हो पा रहा है
कछुवा कछुओं के साथ मिलकर
कछुओं को 
इक्ट्ठा करवा रहा है

एक नया करतब 
ला कर दिखाने के लिये
माहौल बना रहा है

कुछ नये तरह का 
हथियार बन तो रहा है
सामने ला कर कोई नहीं दिखा रहा है

दौड़ करवाने वाला भी
कछुऐ को कहीं नहीं देखना चाह रहा है

खरगोश गदगद 
हो जा रहा है
कछुऐ और उसकी छाया को दूर दूर तक
अपने आसपास फटकता हुआ
जब 
नहीं पा रहा है

‘उलूक’ हमेशा ही 
गणित में मार खाता रहा है
इस बार उसको लेकिन 
दिन की रोशनी में
चाँदनी देखने का जैसा मजा आ रहा है

कछुओं का
शुरु से 
ही गायब हो जाना
सनीमा के सीन से 

दौ
 के गणित को
कहीं ना कहीं तो गड़बड़ा रहा है

प्रश्न कठिन है और 
उत्तर भी
शायद
कछुआ ही ले कर आ रहा है।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

सब कुछ जायज है अखबार के समाचार के लिये जैसे होता है प्यार के लिये

समाचार
देने वाला भी
कभी कभी
खुद एक
समाचार
हो जाता है

उसका ही
अखबार
उसकी खबर
एक लेकर
जब चला
आता है

पढ़ने वाले
ने तो बस
पढ़ना होता है

उसके बाद
बहस का
एक मुद्दा
हो जाता है

रात की
खबर जब
सुबह तक
चल कर
दूर से आती है

बहुत थक
चुकी होती है
असली बात
नहीं कुछ
बता पाती है

एक कच्ची
खबर
इतना पक
चुकी होती है

दाल चावल
के साथ
गल पक
कर भात
जैसी ही
हो जाती है

क्या नहीं
होता है
हमारे
आस पास

पैसे रुपिये
के लिये
दिमाग की
बत्ती गोल
होते होते
फ्यूज हो
जाती है

पर्दे के
सामने
कठपुतलियाँ
कर रही
होती हैं
तैयारियाँ

नाटक दिखाने
के लिये
पढ़े लिखों
बुद्धिजीवियों
को जो बात
हमेशा ही
बहुत ज्यादा
रिझाती हैं

जिस पर्दे
के आगे
चल रही
होती है
राम की
एक कथा

उसी पर्दे
के पीछे
सीता के
साथ
बहुत ही
अनहोनी
होती चली
जाती है

नाटक
चलता ही
चला जाता है

जनता
के लिये
जनता
के द्वारा
लिखी हुई
कहानियाँ
ही बस
दिखाई
जाती हैं

पर्दा
उठता है
पर्दा
गिरता है
जनता
उसके उठने
और गिरने
में ही भटक
जाती है

कठपुतलियाँ
रमी होती है
जहाँ नाच में
मगन होकर

राम की
कहानी ही
सीता की
कहानी से
अलग कर
दी जाती है

नाटक
देखनेवाली
जनता
के लिये ही
उसी के
अखबार में
छाप कर
परोस दी
जाती है

एक ही
खबर
एक ही
जगह की
दो जगहों
की खबर
प्यार से
बना के
समझा दी
जाती है ।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है

आज का नुस्खा
दिमाग में आम
को घुमा रहा है
आम की सोचना
शुरु करते ही
खास सामने से
आता हुआ नजर
आ जा रहा है
कल जब से
शहर वालों को
खबर मिली कि
आम आज जमघट
बस आमों में आम
का लगा रहा है
आम के कुछ खासों
को बोलने समझाने
दिखाने का एक मंच
दिया जा रहा है
खासों के खासों का
जमघट भी जगह
जगह दिख जा रहा है
जोर से बोलता हुआ
खासों का एक खास
आम को देखते ही
फुसफुसाना शुरु
हो जा रहा है
आम के खासों में
खासों का आम भी
नजर आ रहा है
टोपी सफेद कुर्ता सफेद
पायजामा सफेद झंडा
तिरंगा हाथ में एक
नजर आ रहा है
वंदे भी है मातरम भी है
अंतर बस टोपी में
लिखे हुऐ से ही
हो जा रहा है
“उलूक” तो बस
इतना पता करना
चाह रहा है
खास कभी भी
नहीं हो पाया जो
उसे क्या आम में
अब गिना जा रहा है ।

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

जब भी कुछ संजीदा लिखने का मन होता है कोई राकेट उड़ गया की खबर दे देता है

राकेट
बना के
उड़ा देना
एक बात है

राकेट
की खबर
बना के
उड़ाना
कुछ
अलग
बात है

धरातल पर
जो कभी नहीं
होने दिया जाता है

वो सब
कहीं ना कहीं
को भिजवा
दिया गया एक
राकेट हो जाता है

अब
उड़ चुका
राकेट होता है

किसी को
नजर भी
कहीं नहीं
आ पाता है

हर तरफ
होती है खबर
राकेट के
कहीं होने की

अखबार
वाला भी
खबर लेने
राकेट के
उड़ने के
बाद ही
पहुंच पाता है

राकेट
बनाने वाला
राकेट
के बारे में
बताते हुऐ
जगह जगह
पर नजर
आ जाता है

जहाँ
खुद नहीं
पहुँच पाता है
राकेट
बनाने वाली
टीम के
सदस्य को
भिजवा
दिया जाता है

जिसे राकेट
के बारे में
पता नहीं
होता है
उसे
कुछ नहीं
आता है
कह कर
बदनाम कर
दिया जाता है

अब
राकेट
तो राकेट
होता है
धरातल में
कहीं भी
नहीं होता है

बस
खबर उड़
रही होती है
राकेट का कहीं
भी अता पता
नहीं होता है

समझने
की थोड़ी
सी कोशिश
तो करिये जनाब
कितना
अजब और
कितना
गजब होता है

राकेट
बनाने वाला
बहुत चालाक
भी होता है

राकेट के
लौट के
आने का
कहीं
इंतजाम
नहीं होता है

कितने कितने
राकेट उड़ते
चले जाते हैं

बातें होती
ही रहती हैं
वो कभी भी
कहीं भी
लौट के
नहीं आते हैं ।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

सब को आता है कुछ ना कुछ तुझे क्यों नहीं आता है

लिख देने
के बाद भी

यहीं पर
पड़ा हुआ
नजर आता है

इतनी सी
भी मदद
नहीं करता
कहीं को चला
भी नहीं जाता है

अखबार
से ही सीख
लेता कुछ कभी

कितनो
का लिखा
अपने सिर पर
उठा उठा
कर लाता है

खुद ही जाकर
हर किसी के घर भी
रोज हो ही आता है

अपनी
अपनी खबर
पढ़ लेने का मौका

हर कोई
समानता से
पा भी जाता है

बहुत
कम होते हैं ऐसे
जिन्हे है फुरसत यहाँ
जमाने भर की

और वो
यहाँ आ कर
पढ़ क्या गया तुझको

तू तो
बहुत ही मजे
मजे में आ जाता है

कुछ तो
सऊर सीख भी ले अब

इधर उधर के
पन्नों से कभी

जिसमें
लिखा हुआ
कुछ भी कहीं भी

बहुत
सी जगह
पर जा जा कर
कुछ ना कुछ
लिखवा ही लाता है

एक तू है पता नहीं
किस चीज का बना हुआ

ना खुद लिख पाता है
ना ही कुछ किसी से
लिखवा ही पाता है

जब देखो
जिस समय देखो
यहीं पर पड़ा रह रह कर

बेकार में
सारी जगह
घेरता चला जाता है

अरे ओ
बेवकूफ पन्ने
किसी की समझ में
बात आये ना आये

तेरी समझ में
कभी भी कुछ
क्यों नहीं आता है

'उलूक'
के बारे में
भी कुछ सोच
लिया कर कभी

उससे भी
आँखिर
कब तक और
कहाँ तक सब
लिखा जाता है ।

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

बात ही अजीब हो तो कोई कैसे समझ पायेगा

कई बार
बहुत सारे
विषय
हो जाते हैं

लिखने
लिखने तक
सारे के
सारे ही
भूले जाते हैं

सोच ही
रहा था
आज उनमें
से किस पर
अच्छा सा कुछ
लिखा जायेगा

किसे
मालूम था
कुत्ता
आज ही
कहीं से
मार खा
कर चला
आयेगा

जानता था
विज्ञान को
समझना
बहुत मुश्किल
नहीं कभी
हो पायेगा

पता नहीं था
आस पास का
मनोविज्ञान ही
हमेशा
कुछ यूं
घुमायेगा

और एक
अजीब सा
इत्तेफाक
ये हो जायेगा

डाकिया
जितनी बार
अच्छी खबर
का एक
पोस्टकार्ड
ला कर
घर पर
दे जायेगा

शुभकामनाओं
की उम्मीद
किसी से ऐसे में
कोई कैसे
कर पायेगा

जब
हर अच्छी
खबर के बाद
किसी के
घर का
कुत्ता

हमेशा ही
मार
कहीं से खा
कर चला
आयेगा ।

शनिवार, 24 अगस्त 2013

सुबह सुबह ताजी ताजी गरम गरम

विधायक जी ने 
जिलाधिकारी जी को
रात को बारा बजे
जब दूरभाष लगाया

लड़खड़ाती
आवाज से उनकी
उन्हे आभास हो आया

पक्का ही
डी एम ने
पव्वा है लगाया

विधायक जी ने
तुरंत ही
इस घटना को
आयुक्त को
जब बताया

आयुक्त ने भी
पुष्टि करने को
डी एम
साहब को
फोन लगाया

भाई
तुम्हारी
आवाज तो
लड़खड़ा रही है

तुमने
पी हुई है
ऎसा कुछ
बता रही है

डी एम
साहब को
बहुत जोर
का गुस्सा
आना ही था
वो आया

थोड़ी सी
तो पी है
चोरी तो
नहीं की है

जो बनता है
बना डालो
मेडिकल
चाहो तो
वो भी
करवालो

ये सब
मुझे ही
किसी ने
नहीं है
बताया

मेरे घर में
जितने
अखबार
आते हैं

उनमें से
एक के
मुख्य पृष्ठ
पर मैं इसे
पढ़ पाया

तब से
कुछ भी
समझ में
नहीं आ
रहा है

इस समाचार का
विश्लेषण दिमाग
नहीं कर पा रहा है

वैसे खाली फोन में
आवाज से कोई कैसे
पकड़ा जाता है

हर अधिकारी
के घर में
सी सी टी वी
क्यों नहीं
लगाया जाता है

खुश्बू का भी पता
चल जाया करे
क्या ऎसा कोई
इंस्ट्रूमेंट बाजार में
नहीं आता है

शुरुआत तो
विधायक
निवास से ही
की जानी चाहिये

तस्वीर जनता तक
भी तो जानी चाहिये

खाली पड़ी
विधायक
हास्टल के
पीछे की
गली की
बोतलें भी
किसी ने
एक बार
ऎसी ही
अखबार में
छपवा दी थी

बताया गया था
विरोधी दल
के नेता ने
कबाड़ी से
खरीद कर
रखवा दी थी

फोटो खिंचवा के
अखबार के दफ्तर
को भिजवा दी थी

पता नहीं कुछ भी
समझ में नहीं
आ पा रहा है

शराब को
आखिर
इतना बदनाम
क्यों किया
जा रहा है

मुम्बई में हुआ है
फिर से गैंग रेप
पर
शराब की
खबर को
उससे भी
हाई
टी आर पी
का बताया
जा रहा है

आभारी रहूँगा
अगर आप में
से कोई
मुझे समझा देगा

इस समाचार में
अखबार वाला
क्या हमको
बताना चाह रहा है ।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

कभी एक रोमानी खबर क्यों नहीं तू लाता है

सब कुछ तो
वैसा 
नहीं
होता है

जैसा 

रोज का रोज
आकर तू यहां
कह देता है

माना कि
अन्दर से
ज्यादातर
वही सब कुछ
निकलता है

जैसा कि
अपने आस
पास में
चलता है

पर
सब कुछ
तुझे ही

कैसे
और क्यों
समझ में
आता है

तेरे
वहाँ तो

एक से
बढ़कर एक
चिंतकों का

आना जाना
हमेशा से ही
देखा जाता है

पर
तेरी जैसी
अजीब
अजीब सी
परिकल्पनाऎं
लेकर

कोई ना तो
कहीं आता है
ना ही कहीं पर
जाकर बताता है

दूसरी
ओर देख

बहुत
सी चीजें
जो होती
ही नहीं है

कहीं
पर भी
दिखती नहीं हैं

उन
विषयों
पर भी

आज जब
विद्वानोंं द्वारा

बहुत कुछ
लिखा हुआ
सामने
आता है

शब्दों के
चयन का
बहुत ही
ध्यान रखा
जाता है

भाषा
अलंकृत
होती है

ऊल जलूल
कुछ भी
नहीं कहा
जाता है

तब तू भी
ऎसा कुछ
कालजयी
लिखने की
कला सीखने
के लिये

किसी को
अपना गुरू
क्यों नहीं
बनाता है

वैसे भी
रोज का रोज
सारी की सारी
बातों को
कहना

कौन सा
इतना जरूरी
हो जाता है

जहाँ
तेरे चारों ओर
के हजारों
लोगों को

अपने सामने
गिरते हुऎ
एक मकान
को देखकर

कुछ भी नहीं
हुआ जाता है

तू
बेकार में
एक छोटी सी
बात को

रेल में
बदलकर
हमारे सामने
रोज क्यों
ले आता है

अपना समय
तो करता ही
है बरबाद

हमारा
दिमाग
भी साथ
में खाता है ।

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

पूछ रहा है पता जो खुद है लापता

बहुत दिनों से
कई कई बार
सुन रहा था
नया आया है
एक हथियार
कह रहे थे लोग
बहुत ही काम
की चीज है
कहा जा रहा था
उसको सूचना
का अधिकार
एक आदमी
अपना दिमाग
लगाता है और
एक हथियार
अच्छा बना
ले जाता है
दूसरा आदमी
उसी हथियार
को सही जगह
पर फिट करना
सीख जाता है
कमाल दिखाता है
धमाल दिखाता है
ऎल्फ्रेड नोबल का
डायनामाईट कब
का ये हो जाता है
जिसने बनाया
होता है उसे
भी ये पता
नहीं चल
पाता है
उसके घर का
एक लापता
दस रुपिये
के पोस्टल
आर्डर से
उसको ढूँढने
के लिये उसको
ही आवेदन
थमा जाता है
उस बेचारे को
समझ में ही
नहीं आ पाता है
किस से पूछे
कैसे जवाब
इसका बनाया
जाता है कि वो
रहता है आता है
और कहीं भी
नहीं जाता है
तीस दिन तक
बस ये ही काम
बस हो पाता है
जवाब देने की
सीमा समाप्त
भी हो जाती है
जवाब भी तैयार
किसी तरह
कर लिया जाता है
किसी को भी
ये खबर नहीं
होती है कि
लापता इस
बीच फिर
लापता हो
जाता है
सूचना उसकी
कोई भी नहीं
दे पाता है ।

सोमवार, 10 जून 2013

कुछ नहीं हुआ

कुछ नहीं हुआ

 बस एक कूँची
चलाना सिखाने
वाले ने पेपर
कटर घुमा दिया

अपनी ही एक
शिष्या को
सुना है
हस्पताल में
पहुँचा दिया

सुबह से खबर
पर खबर
चल रही थी

इधर से उधर
भी आ और
जा रही थी

इसके मुँह में
बीज थी उसके
मुँह में फूल सा
एक बनता हुआ
दिखा रही थी

अखबार वाले
टी वी वाले
पुलिस वाले
हाँ असली
भूल गया
मेरे घर के
अंदर के ,
डंडे वाले

सभी टाईम
से आ गये थे
अपना अपना
धरम सब ही
निभा गये थे


टी वी में
कच्ची खबर
चलना शुरू
हो चुकी थी


असली खबर
मसाले के साथ
प्रेस में पकना
शुरु हो चुकी थी


कल सुबह
सारे अखबारों
के फ्रंट पेज में
आ भी जायेगी


क्या बतायेगी
ये तो कल को
ही पता
चल पायेगी


बहुत से मेडल
मिल रहे हैं
मेरी संस्था को
उसमें एक को
और
जोड़ ले जायेगी


मैंने जो क्या
किया है कुछ
मुझको क्यों
शरम आ जायेगी


सारी दुनियाँ
में जब हो
रहे हैं हजारों
कत्लेआम
रोज का रोज


एक बस
मेरे घर में
होने को हुआ
तो क्या हुआ


बस इतना सा
ही तो हुआ
और किसी
को कुछ भी
तो नहीं हुआ


चिंता किसी
को बिल्कुल
भी नहीं हुई


ये सबसे
अच्छा हुआ
जवाबदेही
किसी की
नहीं बनती है

थोड़ी सी भी
जब कुछ भी
कहीं भी
नहीं हुआ ।

मंगलवार, 21 मई 2013

बधाई रजिया ने दौड़ है लगाई

अफसोस हुआ बहुत
अभी अभी जब किसी
ने खबर मुझे सुनाई
होने वाला है ये जल्दी
कह रही थी मुझसे
कब से फेसबुकी ताई
पर इतनी जल्दी ये सब
हो ऎसे ही जायेगा
क्यों हुआ कैसे हुआ
अब कौन मुझे बतायेगा
रजिया जब से गुंडों को
सुधारने मेरे घर में आई
पच नहीं रही थी मुझे
उसकी ये बात
बिल्कुल भी भाई
बस लग रही थी जैसे
इतनी हिम्मत उसमें
किसने है जाकर जगाई
रजिया सुना सब कुछ
छोड़ कर जा रही है
मेरे घर का राज
फिर से मेरे घर के
गुण्डों को फिर से
थमा रही है
मेरे घर की किस्मत
फिर से फूटने को
सुना है जा रही है
चलो कोई बात नहीं
फिर से मिलकर अब
जुट जाना चाहिये
किसी और एक रजिया
को यहाँ आ कर
फंसने के लिये
फंसाना चाहिये
वैसे चिंता करने
की बात नहीं
होनी चाहिये
जो कर रही है
देश को बर्बाद
उसको मेरे घर को
गिराने के लिये
कोई बड़ा बहाना
कहाँ होना चाहिये
जल्दी ही सरकार
किसी रजिया को
फिर ढूँढ लायेगी
मेरे घर के गुंडो
का फिर भी वो
क्या कुछ कर पायेगी
ये बात ना मेरे को
ना मेरे पड़ोसियों
के समझ में आयेगी
जो शक्ति इतने बडे़
देश का कर रही है
बेड़ा गर्क रोज रोज
वो ही मेरे घर के बेडे़
का गड्ढा भी बनायेगी ।

मंगलवार, 14 मई 2013

कुछ तो सीख बेचना सपने ही सही

उसे देखते ही
मुझे कुछ हो
ही जाता है
अपनी करतूतों
का बिम्ब बस
सामने से ही
नजर आता है
सपने बेचने
में कितना
माहिर हो
चुका है
मेरा कुनबा
जैसे खुले
अखबार की
मुख्य खबर
कोई पढ़
कर सामने
से सुनाता है
कभी किसी
जमाने में
नयी पीढी़ के
सपनों को
आलम्ब देने
वाले लोग
आज अपने
सपनों को
किस शातिराना
अंदाज में
सोने से
मढ़ते चले
जा रहे हैं
इसके सपने
उसके सपने
का एक
अपने अपने
लिये ही बस
आधार बना
रहे हैं
सपने जिसे
देखने हैं
अभी कुछ
वो बस
कुछ सपने
अपने अपने
खरीदते ही
जा रहे हैं
सच हो रहे
सपने भी
पर उसके
और इसके
जो बेच
रहे हैं
खरीदने वाले
बस खरीद
रहे हैं
उन्हे भी
शायद पता
हो गया है
कि वो
सपने सच
होने नहीं
जा रहे हैं
वो तो बस
इस बहाने
हमसे सपने
बेचने की
कला में
पारंगत होना
चाह रहे हैं ।

सोमवार, 1 अक्तूबर 2012

जानवर की खबर और आदमी की कबर




हथिनी के बच्चे का नहर में समाना
कोशिश पर कोशिश नहीं निकाल पाना
हताशा में चिंघाड़ना और चिल्लाना
हाथियों के झुंड का 
जंगल से निकल कर आ जाना
आते ही दो दलों में बट जाना
नहर में उतर कर बच्चे को धक्के लगाना
बच्चे का सकुशल बाहर आ जाना
हथिनी का बच्चे के बगल में आ जाना
हाथियों का सूंड में पानी भर कर लाना
बच्चे को नहलाकर वापस निकल जाना
पूरी कहानी का फिल्मी हो जाना
जंगली जीवन की सरलता के
जीवंत उदाहरण का सामने आ जाना
आपदा प्रबंधन का नायाब तरीका दिखा जाना
नजर हट कर 
अखबार के दूसरे कोने में जाना
आदमी की चीख किसी का भी ना सुन पाना
बच्चे के उसके मौत को गले लगाना
आपदा प्रबंधन का पावर पोइंट प्रेजेन्टेशन याद आ जाना
सरकार का 
लाश की कीमत कुछ हजार बताना
सांत्वना की चिट्ठी सार्वजनिक करवाना
मौत की जाँच पर कमेटी बिठाना
तरक्की पसंद आदमी की सोच का
जानवर हो जाना ।

चित्र साभार: https://www.upi.com/

मंगलवार, 25 सितंबर 2012

सपना कर अपना पूरा कम्पनी बना

अपने
सपनों को
हकीकत
में नहीं
अगर
बदल पाओ

दिमाग
है ना
उसे 
काम
में लाओ

अपने
सपनों के
शेयर बनाओ

कुछ
अपने जैसे
सपने देखने
वालों के
सपनों के
साथ मिलाओ

कम्पनी
एक खड़ी
कर बाजार
में ले आओ

कम्पनी
के सपनों
की ये बात
किसी को
भूल कर भी
मत बताओ

ऎसा
मुद्दा एक
इसके
बाद उठाओ

जिसको
लेकर लोगों
के सपनों को
उकसा पाओ

पार्टी शार्टी
जात पात
भेद भाव
ऊँच नीच
की सोच पर
कुछ दिन
के लिये
विराम लगाओ

मनमोहन
के हो तो
आडवानी जी
वाले के साथ
कुछ दिन बिताओ

माया दीदी
से प्रेम
रखने वाले
मुलायम वाले
की साईकिल
पर बैठे
दिख जाओ

धार्मिक
आस्था भी
कुछ दिन
के लिये
भूल जाओ

एक
दूसरे में
हिल मिल
जाओ

देखने
वाले लोग
पागल हो जायें

कुछ कुछ
ऎसा माहौल
दो चार ही महीनो
के लिये बनाओ

कुछ दिन
मीटिंग सीटिंग
करते हुऎ
नजर आओ

पोस्टर
वोस्टर थोडे़
शहर में
वाओ

अखबार
में कुछ
समाचार
छपवाओ

इन सब
के बीच
काम हो गया
पता चलते ही
गोल हो जाओ

नजर
मत आओ
कम्पनी की टोपी
किसी दूसरे के
सर पर रख जाओ

सन्यासी
हो गये हैं
वो तो कब के
जैसी 
खबर
तुरंत फैलाओ 


जाओ
अब यहाँ
क्या बचा है
किसी और के
सपनो में अपना
सिर मत खपाओ ।

सोमवार, 3 सितंबर 2012

अच्छी दिखे तो डूब मर

घरवाली
की आँखें
एक अच्छे
डाक्टर को
दिखलाते हैं

काला चश्मा
एक बनवा के
तुरंत दिलवाते हँ

रात को भी
जरूरी है
पहनना

एक्स्ट्रा
पैसे देकर
परचे में
लिखवाते हैं

दिखती हैं
कहीं भी
दो सुंदर
सी आँखें

बिना
सोचे समझे ही
कूद जाते हैं

तैराक होते हैं
पर तैरते नहीं
बस डूब जाते हैं

मरे हुऎ
लेकिन कहीं
नजर नहीं आते हैं

आयी हैं
शहर में
कुछ
नई आँखे

खबर पाते ही

गजब के
ऎसे कुछ
कलाकार

कूदने
की तैयारी
करते हुऎ

फिर
से हाजिर
हो जाते हैं

हम
बस यही
समझ पाते हैं

अच्छे
पिता जी
अपने बच्चों को

तैरना
क्यों नहीं
सिखाते हैं ।

रविवार, 19 अगस्त 2012

खबर

बहुत से समाचार
लाता है रोज
सुबह का अखबार
कहाँ हुई कोई घटना
किस का टूटा टखना
मरने मारने की बात
लैला मजनूँ की बारात
कौन किसके साथ भागा
कहाँ पड़ गया है डाका
ज्यादातर खबर होती हैं
देखी हुई होती हैं
और पक्की होती हैं
सौ में पिचानवे
सच ही होती हैं
इन सब में से
मजेदार होती है
वो खबर जो कहीं
तैयार होती है
रात ही रात में बिना
कोई बीज को बोये
सुबह को एक ताड़
का पेड़ होती हैं
इस के लिये पड़ता है
किसी को कुछ
कुछ खुद बताना
चार तरह के लोगों से
चार कोनों में शहर के
एक जोर का ऎसा
भोंपू बजवाना
जिसकी आवाज का हो
किसी को भी सुनाई
में ना आना
जोर का हुआ था शोर
ये बात बस अखबार से ही
पता किसी को चल पाना
या कुछ बंदरों को जैसे
केलों के पेडो़ के
सपने आ जाना
बंदरों के सपनो की बातें
सियारों के सोर्स से
पता चल जाना
इसी बात को
गायों का भी
रम्भा रम्भा
कर सुनाना
पर अलग अलग
अखबार में
केलों के साईज का
अलग अलग हो जाना
बता देती है खबर किस
खेत में उगाई गयी है
मूली के बीच को बोकर
गन्ना बनाई गयी है
पर मूली गन्ने
और बंदर के केले को
किसी को भी
कहाँ खाना होता है
पता ये चल जाता है
कि किस पैंतरेबाज को
खबर पढ़ने वालों को
उल्लू बनाना होता है
बेखबर होते हैं ज्यादातर
खबर पढ़ने वाले भी
उनको कुछ समझ में
कहाँ आना होता है
पेंतरेबाजों को तो अपना
उल्लू कैसे भी सीधा
करवाना ही होता है ।

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

फूलों की बातें

बातों
बातों में
एक बात
निकल कर
आती है

फूलों की
उपस्थिति
तो सुकून
देती ही है
फूलों की
बातें भी
सबको
लुभाती हैं

पौपी की
कली अफीम
बनवाती है
बेनूरी पर
नरगिस
अपनी क्यों
रोती चली
जाती है
डैफोडिल
जलते भी है
रजनीगंधा
देख कर
लोगों के दिल
मचलते भी हैं

ये सब
फूल
फूलों में
अभिजात्य
कहलाये
जाते हैं

फूलों में
भी होती
है वर्ग
व्यवस्था
आदमी के
द्वारा ही
फूलों की
राजनीति में
समझाये
भी जाते हैं

हर एक
अपने
गमले के
फूल की
तारीफ में
उलझ
जाता है
खुश्बू
पाता है
खुश हो
जाता है

दूसरी ओर
जिंदगी के
अपने आप
उग आये
झाड़ों को
जब पता
चलता है

कहीं
आसपास
उनके कोई
खुश्बूदार
फूल
खिलता है

झाड़ घेर
लेते हैं
फूल को
और
दबा देते हैं
उसकी
खुश्बू को
फैलने से

सब कुछ
पूरी तैयारी
के साथ
होता है

हर झाड़
का अपनी
तरह से
इसमें कुछ
ना कुछ
हाथ होता है

उसके बाद
घर से लेकर
हर खबर में
बस
झाड़ ही झाड़
होता है

पर फूल तो
भाई 'उलूक'
फूल होता है

फैल ही
जाती है
उसकी
खुश्बू

शहर में
नहीं पर
दूर कहीं
जाकर

और
जब आती है
फूल और
उसकी
खबर

पड़ गयी
है किसी
की फूल
पर नजर

सारे झाड़
एक साथ
आते हैं
फूल को
फूलों की
माला
पहनाते हैं
और
फिर
लौट जाते है
अपने अपने
बाल
नोंंचते हुए

घर में दबाये
गये फूल
आकाश में
इसी तरह
फैल जाते हैं ।

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

चमेली

चमेली
सब लोगों
की पसंद है
बूढे़ चमेली
को देख
कर जवान
हो जाते हैं
चमेली
की फालतू
अदाओं पर
कुर्बान हो
जाते हैं
चमेली
हर जगह
पायी जाती है
चमेली
कुछ नहीं
करती है
चमेली
फिर भी
खबर हो
जाती है
चमेली
होना अपने
आप में
एक क्वालिटी
हो जाता है
चमेली 

के प्रभाव
में आ जाना
चमेली इफेक्ट
कहलाता है
चमेली
को छेड़ने
पर चमेली
बस मुस्कुरा
देती है
वो एक
चमेली
है छेड़ने
वाले को
इस तरह
बता देती है
फिर
बार बार
कुछ कहने
कुछ सुनने
का रास्ता
तैयार हो
जाता है
हर कोई
चमेली
के आस पास
रहने का
जुगाड़
लगाता है
चमेली
बरसों से
इसी तरह
अपने काम
निकालती
जा रही है
चमेली
तरह तरह
लोगों को
बेवकूफ
बना रही है
सबको पता है
चमेली
चमक के
जिस दिन
आती है
कहीं ना
कहीं जा
कर के
बिजली
गिराती है
चमेली
चमेली है
बहुत से
लोग बहुत
अच्छी तरह
जानते है
अन्जान
बन कर
फिर भी
चमेली
की दुकान
सम्भालते हैं
अपने
आस पास
आप भी
ढूंढिये
तो जरा
शायद कोई
चमेली
आपको भी
दिख जाये
और
आप भी
चमेली
प्रभाव को
उदाहरण
सहित
समझ जायें।

सोमवार, 9 जनवरी 2012

इतवारी मुद्दा

दैनिक हिन्दुस्तान रविवार का पन्ना छ:
पढ़ कर हुवा मैं भावुक और गया बह ।

शिक्षक संघर्ष समिति खफा सुन राज्य सरकार
वादाखिलाफी का लगाया आरोप किया खबरदार।

खबर है "बेरोजगार और शिक्षक सरकार से खफा"
"बेरोजगार शिक्षक" होती तो ज्यादा आता मजा।

विपक्ष के हो गये मजे सरकार को नहीं देगें ये अब वोट
साठ से पैंसठ नहीं किये हैं ये अब खायेंगे देखो चोट।

इतना जरूर अच्छा हुवा है कोई नहीं बदला अपना दल
सरकार के दल वाला नहीं गया और कहीं पाला बदल।

इस बार सरकार के दल वाले शिक्षक हो गये थोड़ा विफल
सांठ गांठ है ही विपक्ष के शिक्षक शायद अब दें तकदीर बदल।

चिंता की कोई बात नहीं है सरकार जिसकी भी आयेगी
बहुत जोर है बूढे़ बाजुओं में पैंसठ जरुर करवायेगी।

बाकी खबर खबर है ये बेरोजगार कैसे फंसे खबर में
शायद सोचे होंगे रास्ता साफ हो जायेगा ये तो जायेंगे कबर में।