उलूक टाइम्स: खुजली
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शुक्रवार, 18 अगस्त 2023

सामने ‘उलूक’ को देख कर खुजली से भर जाता है लेकिन बाद में कही और जा कर खुजलाता है


होती है खुजली कोई अनोखी बात नहीं होती है
किसको किससे होती है किसको कब होती है और
किसको कहां होती है में जरूर कुछ बात होती है

सामने से दिखे आता हुआ कोई  
खुजली हो और खुजला ना सके कोई
गलत बात होती है
रास्ता संकरा होने से इधर उधर कहीं जा ना सके कोई
चहरे पर नजर आना शुरू हो जाए खुजली
आ रही है देख कर भी मुस्कुरा ना सके कोई
कैसे कहे कोई ये बाते बस इत्तेफाक होती हैं

बहुत ही खतरनाक होती है कुछ खुजली
अचानक शुरू हो लेती है कहीं पर भी कभी भी
गजब की खुजली होती है और बेबात होती है

कोई किसी को नहीं बताता है कि खुजलाता है
कोई किसी को नहीं दिखाता है कि खुजलाता है
खुजली को महसूस भर कर लेता है थोड़ा सा
दिमाग में अपने ही कुछ दही जमाता है
मौके का इंतज़ार करता है खुजलाने वाला
लोहा गरम देख कर हमेशा हथौड़ा चलाता है

खुजली हुई थी बहुत जोर से हुई थी
खुजला लिया गया है साफ़ साफ़ पता चल जाता है
एक नोटिस छोटा झंडा फहराने का
और एक नोटिस झंडे पर ज़रा  सा टेड़ा डंडा लगाने का
एक डंडे वाला हाथ में जब थमा जाता है

‘उलूक’ कुछ दवा क्यों नहीं खाता है
कुछ ईलाज अपना क्यों नहीं करवाता है
बहुत से लोगों को किसलिए होने लगती है खुजली
जब भी कभी उन्हें तू
सामने से मुस्कुराता हुआ आता नजर आ जाता है ?

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/



 

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2021

खुजली कौन लिखता है सब बिजली लिखते हैं फिर भी नया साल मुबारक


खुजली
सब को होती है
लिखते
सब नहीं हैं

बिजली
सब लिखना चाहते हैं
वो भी
चार सौ चालीस वोल्ट की

झटके
सबको लगते हैं
दिखाते नहीं हैं
बस

बताते जरूर हैं
झटके
लगते हैं जोर के
सामने वाले को
कुछ भी
धीरे से कहने के बाद 

बंद होने
के कगार पर
लिखना लिखाना चला जाये
बुरी बात
नहीं होती है

कौन सा
बकवास को लिखना पढना
मान लेने वाले
विद्वानों की गिनती करनी है

एक दो
निकल भी गये तो
सिद्ध करवा दिया जा सकता है 
निरे बेवकूफ हैं

आध्यात्मिक लिखा हुआ
पढते समय
लेखक खुजलाता हुआ
सोच मे आ जाये
कौन सी बुरी बात है

होता है
होता रहेगा
जो लिखा दिखता है सामने
वो किसी एक घर पर
रोने वाले ने लिखा है

महीना डेढ़ से बंद लिखना
नहीं बता पाता है
लिखने वाला
कितना कितना खुजलाता है

अब
खुजलाना भी
बहुत बड़ा हो गया है
समझा और माना जाता है
जब लिखने वाला
लिखने ही नहीं आ पाता है

एक हाथ से लिखना
और दूसरे से
खुजला लेने की
महारत भी पायी जाती है
पर ना तो दिखाई जाती है
ना ही बताई जाती है

कोई बात नहीं
लिखना भी
जारी रहना जरूरी है
और खुजली को
खुजलाना भी जरूरी है

खुजलाइये प्रेम से
एक हाथ से
और लिखने भी आ जाइये
दूसरे हाथ से

‘उलूक’
ठीक बात नहीं है
खुजलाने के चक्कर में
लिख जाना भूल जाना

नया साल
नयी खुजलियाँ लाये
नयी विधियाँ पैदा की जायें 
 खुजली हो भी
और खुजली पर
कुछ लिख दिया जाये

खुजली जिंदाबाद
लिखना रहे आबाद

इसी तरह
फिर एक नये साल का हो
खुजलाता हुआ आगाज।

चित्र साभार: 
https://www.clipartmax.com/

मंगलवार, 9 नवंबर 2021

माचिस की तीली कुछ सीली कुछ गीली रगड़ उलूक रगड़ कभी लगेगी वो आग कहीं जिसकी किसी को जरूरत होती है



बहुत जोर शोर से ही हमेशा
बकवास शुरु होती है

किसे बताया जाये क्या समझाया जाये
गीली मिट्टी में
सोच लिया जाता है दिखती नहीं है
लेकिन आग लगी होती है

दियासलाई भी कोई नई नहीं होती है
रोज के वही पिचके टूटे डब्बे होते हैं
रोज की गीली सीली तीलियाँ होती हैं

घिसना जरूरी होता है
चिनगारियाँ मीलों तक कहीं दिखाई नहीं देती हैं

मान लेना होता है गँधक है
मान लेना होता है ज्वलनशील होता है
मान लेना होता है घर्षण से आग पैदा होती है
मान लेना होता है आग सब कुछ भस्म कर देती है
और बची हुई बस कुछ होती है तो वो राख होती है

इसी तरह से रोज का रोज खिसक लेता है समय
सुबह भी होती है और फिर रात उसी तरह से होती है

कुछ हो नहीं पाता है चिढ़ का
उसे उसी तरह लगना होता है
जिस तरह से रोज ही
किसी की शक्ल सोच सोच कर लग रही होती है

खिसियानी बिल्ली के लिये
हर शख्स खम्बा होना कब शुरु हो लेता है
खुद की सोच ही को नोच लेने की सोच
रोज का रोज पैदा हो रही होती है

रोज का रोज मर रही होती है
तेरे जैसे पाले हुऐ कबूतर बस एक तू ही नहीं
पालने वाले को
हर किसी में तेरे जैसे एक कबूतर की जरूरत हो रही होती है

‘उलूक’ खुजलाना मत छोड़ा कर कविता को
इस तरह रोज का रोज
फिर रोयेगा
नहीं तो किसी एक दिन कभी आकर
कह कर
खुजली किसी और की खुजलाना किसी और का
बिल्ली किसी और की खम्बा किसी और का
तेरी और तेरे लिखने लिखाने की
किसे जरूरत हो रही होती है ।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

शनिवार, 25 मई 2019

खुजली कान के पीछे की और पंजा ‘उलूक’ की बेरोजगारी का


पहाड़ी
झबरीले 

कुछ काले
कुछ सफेद

कुछ
काले सफेद

कुछ मोटे कुछ भारी
कुछ लम्बे कुछ छोटे
कुत्तों के द्वारा
घेर कर ले जायी जा रही

कतारबद्ध
अनुशाशित
पालतू भेड़ों
का रेवड़

गरड़िये
की हाँक
के साथ

पथरीले
ऊबड़ खाबड़

ऊँचे नीचे
उतरते चढ़ते
छिटकते
फिर
वापस लौटते

मिमियाते
मेंमनों को
दूर से देखता

एक
आवारा जानवर

कोशिश
करता हुआ

समझने की

गुलामी
और आजादी
के बीच के अन्तर को

कोशिश करता हुआ 
समझने की

खुशी और गम
के बीच के
जश्न और
मातम को

घास के मैदानों के
फैलाव के
साथ सिमटते
पहाड़ों की
ऊँचाइयों के साथ

छोटी होती
सोच की लोच की
सीमा खत्म होते ही
ढलते सूरज के साथ

याद आते
शहर की गली के
आवारा साथियों
का झुँड

मुँह उठाये
दौड़ते
दिशाहीन
आवाजों में
मिलाते हुऐ
अपनी अपनी
आवाज

रात के
राज को
ललकारते हुऐ

और

इस
सब के बीच

जम्हाई लेता
पेड़ की ठूँठ पर
बैठा
‘उलूक’

सूँघता
महसूस
करता हुआ

तापमान

मौसम के
बदलते
मिजाज का

पंजे से
खुजलाता हुआ

यूँ ही
कान के पीछे के
अपने ही
किसी हिस्से को

बस कुछ
बेरोजगारी

दूर
कर लेने की
खातिर
जैसे।

चित्र साभार: www.kissanesheepfarm.com

रविवार, 5 मई 2019

ग्रह पूर्वा और इससे लगे ग्रहण को पूर्वाग्रह ग्रसित बताने का ठेकेदार नजर में आ गया

कुछ
दिनों से

लगातार
हो रही

खुजली
के इलाज
के बावत

किसी
चिकित्सक
के पास
जाने का

मन
बनाते बनाते

‘उलूक’

एक
“चिट्ठा ज्योतिष”
के चिट्ठे से


टकरा गया

नौ
ग्रहों का
छोड़कर
अगला


एक 
दसवें ग्रह
का बहीखाता

 साथ
में लेकर
आ गया

ग्रह
पूर्वा
के नाम से
जाना
जाने वाला

कुछ
लोगों को
लोगों के
पीछे लगाना

अगर
आप को
आ गया

तो
समझ लीजिये

जमाना
आपकी
मुट्ठी में
आ गया

ग्रह
पूर्वा का
ग्रहण
लगाने वाले

किसी
ना किसी
मदारी के
बन्दर होते हैं

वो
बताते हैं

 और
समझाते भी हैं

उनकी
लाईन से
अलग चलने वाले

पूर्वा ग्रह
से ग्रसित
बना
दिये जायेंगे

डंका

बजा बजा
कर शोर
मचा गया

उनको
बेशरम होकर

 किसी भी
हमाम में
नाच लेने
का तरीका

बहुत अच्छी
तरह से आता है

कुछ तो
तुम भी डरो

कह कर

डरा गया

उनके
नाचने के
तरीके
और
हिसाब से

उनको
कहीं

किसी
अच्छी
जगह पर
बैठा कर

ईनाम
दिया जाता है

बता गया
दिखा गया

सरकार
के आते ही

ऐसे ही
सारे लोगों को

कहीं ना कहीं
बैठा
दिया जाता है

उदाहरण
बता गया

एक
उदाहरण

जैसे
मास्टर
कोई है

कुलपति
बना दिया
जाता है

किसे
पता होता है

ऐसे
मास्टर
साहब का

कहीं ना कहीं

 किसी
संगठन
में जाकर

पैसे देने
और
सर झुकाने

का खाता है

इसी ग्रह
पूर्वा के
बारे में
बात करने

और
इस ग्रह से

लोगों को
ग्रसित
करने वाले
कुछ लोग

कुछ
सम्मानित लोगों

और
उनके किसी
फ्रंट में

जगह
बना लेते हैं

फिर
वहीं से
गुर्राते हैं

लोगों में
ग्रहण
लगाते हैं

कुछ
ना कह

और
कर
सकने
वाले लोग

पूर्वा
ग्रह
ग्रसित
हो जाते हैं

हमारी सुनो

हमारे
कहे से कहो

सोच
अपनी होना
ठीक नहीं

समझा गया

‘उलूक’
देखता हैं

उलूक
समझता है

ऐसे
सभी शरीफ
लोगों को

अपने 

आस पास के

पता
नहीं चला
बहुत दूर का

ऐसा ही
एक शरीफ

शरीफों
का रिश्तेदार


‘उलूक’
से
आकर

कब 

टकरा गया ।


चित्र साभार: https://www.aesc.org

सोमवार, 23 जुलाई 2018

अपना वित्त है अपना पोषण है ‘उलूक’ तेरी खुजली खुद में किया तेरा अपना ही रोपण है

(21/07/2018 की पोस्ट:‘शरीफों की बस्ती है  कुछ नहीं होना है एक नंगे चने की बगावत से’ की अगली कड़ी है ये पोस्ट। इसका देश और देशप्रेम से कुछ लेना देना नहीं है। उलूक की अपनी दुकान की खबर है जहाँ वो भी कुछ सरकारी बेचता है )
पहले से
पता था

कुछ नया
नहीं होना था

खाली टूटी
मेज कुर्सियाँ
सरकार की
दुकान में

सरकारी
हिसाब किताब
जैसा ही
कुछ होना था

सरकारी
दुकान थी
सरकार के
दुकानदार थे

सरकारी
सामान था

 किसी के
अपने घर का
कौन सा
नुकसान
होना था

दुकानदार
को भी
आदेशानुसार

कुछ देर
घड़ियाली
ही तो रोना था

दुकान
फिर से
खुलने की
खुशखबरी
आनी थी

दो दिन बस
बंद कर रहे हैं
की खबर
फैलानी थी

दुकान
बंद हो रही है
दुकानदारों की
फैलायी खबर थी

अखबार वाले
भी आये थे
अच्छी पकी
पकायी खबर थी

दस्तखत की
जरूरत नहीं थी
दुकान वालों
की लगायी
दुकान की
ही मोहर थी

सरकारी
दुकान के अन्दर
खोली गयी
व्यक्तिगत
अपनी अपनी
दुकान थी

बन्द होने की
खबर छपने से
दुकानदारों की
निकल रही जान थी

तनखा
सरकारी थी
काम सरकारी था
समय सरकारी
के बीच कुछ
अपना निकाल
ले जाने की
मारामारी थी

‘उलूक’
देख रहा था
उल्लू का पट्ठा
उसे भी देखने
और देखने
के बाद लिखने
की बीमारी थी

बधाई थी
मिठाई थी
शरीफों की
बाँछे फिर से
खिल आयी थी
दुकान की
ऐसी की तैसी
पीछे के
दरवाजों में
बहुत जान थी ।

चित्र साभार: www.gograph.com

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

खुजली ‘उलूक’ की

युद्ध
हो रहा है

बिगुल
बज रहा है

सारे सिपाही
हो रहे हैं

अपने अपने
हथियारों
के साथ

सीमा पर
जा रहे हैं

देश के
अन्दर
की बात
हो रही है

कुछ ही
देश प्रेमी हैं
बता रहे हैं

बाकी सब
देश द्रोही हैं
देश द्रोहियों
से आह्वान
कर रहे है

देश प्रेमियों
को चुनने
को क्यों
नहीं आगे
आ रहे हैं

देश को
किसलिये
थोड़ा सा
भी नहीं
बचा रहे हैं

देश
द्रोहियों से
कह रहे है
थोड़ा सा
कुछ तो
शरमायें

कुछ
देश भक्त
गिड़गिड़ा
रहे हैं

फालतू में
कुछ
देश द्रोहियों
के चरण
पकड़े थे
पिछली बार

आज खुल
कर बता
रहे हैं

प्रायश्चित
कर रहे हैं

इस बार
वो भी
देशभक्तों
के साथ
आ रहे हैं
समझा रहे हैं

समझिये
देश भक्त
देशभक्ति
चुनाव और
लोगों की
सक्रियता

सभी कर
रहे हैं
कुछ
ना कुछ

देश के
लिये
शहीद
होने
जा रहे हैं

‘उलूक’
तेरे दिमाग
में भरे
हुऐ गोबर
के कीड़े

बहुत
ज्यादा
कुलबुला
रहे हैं


मत खोला
कर अपना
मुँह इस
तरह से

तेरे बारे में
बहुत से
लोग लगे हैं
समझाने में
बहुत से
लोगों को
बहुत कुछ

पता नहीं
इतना एक
उल्लू से
किसलिये
लोग
घबरा रहे हैं

कल किसे
पता है
कौन रहेगा
देश भक्तों
के साथ

किसे
मालूम है
कौन रहेगा
देश द्रोहियों
के साथ

कौन से
देश भक्त
अभी जा
रहे हैं
या
कुछ देर
के बाद
आ रहे हैं

जो अभी हैं
वो रहेंगे
जो नहीं हैं
वो क्या करेंगे

किसे पता है
किसे पड़ी है
अपनी अपनी
खुजली लोग
अपने आप
खुजला रहे हैं ?

चित्र साभार: ClipartFest

शनिवार, 7 नवंबर 2015

नहीं दिखा कुछ दिन कहाँ गया पता चला खुजलाने गया है

कब किस चीज
से कहाँ खुजली
मचना शुरु हो जाये
कौन जानता है
कौन किसे
जा कर बताये
कौन किसे
क्या समझाये
देखने से खुजली
छूने से खुजली
सुनने से खुजली

इन सब पचड़ों
को छोड़ो भी

कुछ दिनों से
कुछ अजीब सी
खुजली हो रही है

कुछ तार बेतार के
खुजली के खुजली से
भी तो जोड़ो जी


हो रही है तो हो रही है
खुजला रहे हैं बैठ कर
कहाँ हो रही है
क्यों हो रही है
सोचने समझने में
लग गये कलम ही
छूट गई हाथ से
क्यों छूटी कुछ सोचो
मनन करो हर बात
पर शेखचिल्ली का
चिल्ला तो मत फोड़ो जी

अंदाज आया पता चला
कुछ नहीं लौटा पाने
की खुजली है
अब भिखारी लौटाये
भी तो क्या
कुछ चिल्लर
और किसे
कौन लेगा और
लौटाया भी जाये
तो किसे लौटाया जाये

ध्यान सारा एक ही
जगह पर लगना
शुरु हो गया और
इसी में गजब हो गया
गजब क्या हुआ
बाबा रामदेव की
मैगी का भोग हो गया
मत समझ बैठियेगा
पर हुआ कुछ ऐसा ही
जैसे योग हो गया

पहले क्यों नहीं
आया होगा ये
लौटाने पलटाने
वाला खेल
अब देखिये जिसे भी
उसी ने बना ली है
अपनी पटरी और
ले जोर शोर से छाती
पीट पीट कर चलाना
शुरु कर चुका है
उसके ऊपर अपनी रेल

जो भी है अब तो
खुजलाने में बहुत
मजा आने लगा है
जिसे देखो वो कुछ
ना कुछ लौटाने
में लगा है

‘उलूक’ तू वैसे भी
हमेशा उल्टे बाँस
बरेली जाने के जुगाड़
में लगा ही रहता है
लगा रह मजे से
खुजलाने में
साथ में बजाता
भी चल एक कनिस्तर
गाता हुआ कुछ गीत
ऐसा महसूस करें तेरी
उस खुजली को सभी
जिसे खुजलाते खुजलाते
तुझे भी खुजली खुजली
खेलने में अब बहुत
ज्यादा मजा आने लगा है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com