उलूक टाइम्स: गंध
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सोमवार, 13 सितंबर 2021

एक चेहरा एक शख्सियत जरूरी है सामने रखना बेचने के लिये अंदर बाहर का सारा सब कुछ लगाये बिना कोई भी नकाब

 

खाली सफेद पन्ने का
सामने से भौंकना मुँह पर
मुहावरा नहीं है सच है जनाब

समझ में नहीं आया ना
आयेगा
अगर एक साफ सफेद पन्ने से
कभी रूबरू होंगे आप

कुछ शब्द कुछ यादें शब्दों की
बचपन से आज तक की
एक मास्टर और उसकी सौंटी से
बजते हाथ के साथ कान लाजवाब

कपड़े हमेशा आये समझ में
ढकने वाली एक ढाल झूठ को
सच समझ में आया हमेशा
कपड़े उतारी हुई
सारी शख्सियत साफ साफ

मुस्कुराइयेगा नहीं दर्खास्त है
दबा लीजियेगा हंसी भी
अगर कोशिश करे निकलने की
किसी कोने से होंठो के

दर्द कटे का
व्यंग यूँ ही नहीं बनता है
सब जानते हैं सबको पता है
बैखौफ रहना खता है
खुश रहिये बेहिसाब

कुछ प्लास्टिक जलने की
गंध सी है माहौल में
कौन जानता है
जल रहा है
बहुत कुछ अंदर से कहीं
और जल रहा है बेहिसाब

किसे पड़ी है किसे सोचना है
बर्बाद कर दूँगा सब कुछ
की घोषणा कर देने वाले के
खौफ के साये में में जब हैं
गद्दी नशीन साहिबे जनाब

‘उलूक’
एक चेहरा
एक शख्सियत
जरूरी है सामने रखना

बेचने के लिये 
अंदर बाहर का सारा सब कुछ
लगाये बिना
कोई भी नकाब ।

चित्र साभार: https://m.facebook.com/

मंगलवार, 23 सितंबर 2014

सब कुछ सब की समझ में आना जरूरी नहीं पर एक भोगा हुआ छाँछ को फूँकने के लिये हवा जरूर बनाता है

मकड़ी की
फितरत है
क्या करे

पेट भरने के लिये
खून चूस लेती है

उतना ही खून
जितनी उसकी
भूख होती है

मकड़ियाँ मिल कर
जाल नहीं बुनती हैं

ना ही शिकार को
घेरने के लिये कोई
षडयंत्र करने की
उनको कोई
जरूरत होती है

हर आदमी मकड़ी
नहीं होता है
ना ही कभी होने
की ही सोचता है

कुछ आदमी जरूर
मकड़ी हो जाते हैं
खून चूसते नहीं है
खून सुखाते हैं

शायद ये सब उन्हे
उनके पूर्वजों के
खून से ही
मिल जाता है

विज्ञान का सूत्र भी
कुछ ऐसा ही
समझाता है

खून सुखाने के लिये
कहीं कोई यंत्र
नहीं पाया जाता है

एक खून सुखाने वाला
दूसरे खून सुखाने वाले
की हरकतों से उसे
पहचान जाता है

सारे खून सुखाने वाले
एक दूसरे के साथ
मिल जुल कर
भाई चारा निभाते हैं

हजारों की भीड़ भी हो
कोई फर्क नहीं पड़ता है

अपने बिछुड़े हुऐ
खून की गंध बहुत
दूर से ही पा जाते हैं

अकेले काम करना
इनकी फितरत में
नहीं होता है

किसी साफ खून वाले
को सूँघते ही जागरूक
हो कर शुरु हो जाते हैं

यंत्र उनका
एक षडयंत्र होता है
पता ही नहीं चलता है
खून सूखता चलता है

क्या ये एक गजब
की बात नहीं है

‘उलूक’ भी
ये सब
देख सुन कर
सोचना शुरु करता है

ऐसा कारनामा
जिसमें
ना जाल होता है
ना मक्खी फंसती है
ना खून निकलता है

मकड़ी और मक्खी
आमने सामने होते हैं
मकड़ी मुस्कुराती है
मक्खी के साथ बैठी
भी नजर आती है

खून बस सूख जाता है
किसी को कुछ भी
पता नहीं चल पाता है

मकड़ियाँ कब से
पकड़ रही हैं
मक्खियों को

और इससे ज्यादा
उनसे कई जमानों तक
और कुछ नया जैसा
नहीं हो पाता है

पर उनका सिखाया
पाठ आदमी के लिये
वरदान हो जाता है

होता हुआ कहीं कुछ
नजर नहीं आता है
लाठी भी नहीं टूटती है
और साँप भी मर जाता है ।

चित्र साभार: http://faredlisovzmesy.blogspot.in