उलूक टाइम्स: गाँडीव
गाँडीव लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गाँडीव लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 7 मई 2015

रोज होता है होता चला आ रहा है बस मतलब रोज का रोज बदलता चला जाता है

अर्जुन
और कृष्ण
के बीच का
वार्तालाप
अभी भी
होता है

उसी तरह
जैसा हुआ
करता था

तब जब
अर्जुन
और
कृष्ण थे
युद्ध के
मैदान
के बीच में

जो नहीं
होता है
वो ये है कि

व्यास जी ने
लिखने
लिखाने से
तौबा कर ली है

वैसे भी
उन्हे अब
कोई ना कुछ
बताता है
ना ही उन्हे
कुछ पता
चल पाता है

अर्जुन
और कृष्ण
के बीच
बहुत कुछ था
और
अभी भी है

अर्जुन के
पास अब
गाँडीव
नहीं होता है

ना ही
कृष्ण जी
को शंखनाद
करने की
जरूरत होती है

दिन भर
अर्जुन अपने
कामों में
व्यस्त रहता है

कृष्ण जी
को भी
फुरसत
नहीं मिलती है

दिन डूबने
के बाद
युद्ध शुरु
होता है

अर्जुन
अपने घर पर
कृष्ण
अपने घर पर
गीता के
पन्ने गिनता है

दोनो
दूरभाष पर ही
अपनी अपनी
गिनतियों
को मिला लेते हैंं

सुबह सवेरे
दूसरे दिन
संजय को
खबर भी
पहुँचा देते है

संजय भी
शुरु हो जाता है

अंधे
धृतराष्ट्रों को
हाल सुनाता है

सजा होना
फिर
बेल हो जाना
संवेदनशील
सूचकाँक
का लुढ़ककर
नीचे घुरक जाना

शौचालयों
के अच्छे
दिनों का
आ जाना

जैसी
एक नहीं कई
नई नई
बात बताता है

अर्जुन
अपने काम
पर लग जाता है

कृष्ण
अपने आफिस
में चला जाता है

‘उलूक’
अर्जुन और
कृष्ण के
बीच हुऐ
वार्तालाप
की खुश्बू
पाने की
आशा और
निराशा में
गोते लगाता
रह जाता है ।

चित्र साभार: vector-images.com