उलूक टाइम्स: गुनहगार
गुनहगार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
गुनहगार लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 12 सितंबर 2015

गुनाह करने का आजकल बहुत बड़ा ईनाम होता है

तेरी समझ में
आ रहा होता है
गुनाह और
गुनहगार
कहाँ नहीं होता है
तुझे भी पता होता है
होता रहे इससे
कुछ नहीं होता है
तू बेचता क्या है
ना तू वकील है
ना ही जज है
ना तूने मुकद्दमा
ही ठोका होता है
फिर तुझे किस
बात की खुजली
हर जगह होती है
खुजली होती है
तो खुजली का
मलहम कहीं से
क्यों नहीं लेता है
अब कोई कापी
किसी को दो घंटे
के लिये बाहर कहीं
से कुछ लिख लाने
के लिये दे देता है
तेरे कहने से
क्या होता है
सब को
पता होता है
तब भी क्या
होना होता है
जब कहीं रपट
नहीं होती है
ना ही कोई किसी
से कुछ कहता है
फिर कोई किसी को
किसी की जगह पर
परीक्षा में लिखने
लिखाने का ठेका
अगर दे भी देता है
तहकीकात होना
दिखाना ही काफी
और बहुत होता है
नाटक करने के लिये
सारा जंतर जुगाड़
किया गया होता है
हर जगह होता है
तेरे यहाँ भी किया
जा रहा होता है
तेरी किस्मत में
रोना लिखा होता है
तू क्यों नहीं दहाड़े
मार मार कर रोता है
देखा कभी किसी
बड़े चोर को
एक छोटा चोर
फाँसी देने का
हुकुम कहीं देता है
निपटाने के लिये
होती हैं ये सारी
नौटंकियाँ हर जगह
दिख जाता है
गुनहगार
माला पहने हुऐ
कहीं ना कहीं
दिख जाता है
जाँच करने वाला
चोर ही उसे
फूल का एक
गुच्छा बना
कर देता है
जो अखबार में
कभी भी कहीं
नहीं होता है
ऐसी खबर को
देने का हक
हर किसी को
नहीं होता है
‘उलूक’ तोते को
दी जाती है हमेशा
हरी मिर्च खाने को
माना कि उल्लू को
कोई नहीं देता है
तू भी कभी कभी
कुछ ना कुछ इस
तरह का खुद ही
खरीद कर क्यों
नहीं ले लेता है
मिर्ची खा कर
सू सू कर लेना
ही सबसे अच्छा
और सच में बहुत
अच्छा होता है।
चित्र साभार: www.dreamstime.com