उलूक टाइम्स: गू
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शनिवार, 18 नवंबर 2017

टट्टी जिसे गू भी कहा जाता है

अजीब सी
बात है

पर
पता नहीं

सुबह से

दिमाग में
एक शब्द
घूम रहा है

टट्टी

तेरी टट्टी
मेरी टट्टी से
खुशबूदार कैसे

या

तेरी टट्टी
मेरी टट्टी से
ज्यादा
असरदार कैसे

पाठकों
को भी
लग रहा होगा

टट्टी भी

कोई
बात करने
का विषय
हो सकता है

सुबह
उठता है
आदमी

खाता है

शाम होती है
फिर से खाता है

खाता है
कम या बहुत

लेकिन
रोज सबेरे

कुछ ना कुछ
जरूर हगने
चला जाता है

जो हगता है
उसे ही टट्टी
कहा जाता है

टट्टी बात
करने का
विषय नहीं है

हर कोई
हगने

और टट्टी
जैसे शब्दों के
प्रयोग से
बचना
चाहता है

टट्टी पर या
हगने जैसे
विषय पर

गूगल करने
वाला भी

कोई एक
कविता
लिखा हुआ
नहीं पाता है

कविता
और टट्टी

हद हो गई

कविता
शुद्ध होती है
शुद्ध मानी
जाती है

टट्टी को
अशुद्ध में
गिना जाता है

अपने
आस पास
हो रहा
कुछ भी

आज
क्यों इतना ज्यादा

टट्टी
जिसे
गू भी
कहा जाता है

याद दिलाता है

‘उलूक’ को
हर तरफ
हर आदमी

अपने
आसपास का

टट्टी पाने की
लालसा के साथ

दौड़ता हुआ
नजर आता है

पागल कौन हुआ
‘उलूक’

या दौड़ता
हुआ आदमी
टट्टी के पीछे

समझाने वाला

कोई कहीं
बचा नहीं
रह जाता है ।

चित्र साभार: Weclipart