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शनिवार, 7 सितंबर 2013

पहचान नहीं बना पायेगा सलीका अपना अगर दिखायेगा


जिंदगी

कोई चावल

और दाल के
बडे़ दाने
की तरह
नहीं है

कि
बिना

चश्मा लगाये
साफ कर
ले जायेगा

जीवन
को
सीधा सीधा
चलाने की
कोशिश
करने वाले

तेरी
समझ में

कभी ये भी
आ जायेगा

जब
तरतीब

और सलीके
से साफ
किये जा चुके

जिंदगी
के
रामदाने
का डिब्बा

तेरे
हाथ से

फिसल जायेगा

डब्बे
का
ढक्कन
खुला नहीं

कि
दाना दाना
मिट्टी में
बिखर कर
फैल जायेगा

समय रहते
अपने
आस पास
के
माहौल
से
अगर

तू अभी भी

कुछ नहीं
सीख पायेगा

खुद भी
परेशान
रहेगा


लोगों की

परेशानियों
को भी
बढ़ायेगा

तरतीब
से लगी

जिंदगी
की किताबें


किसी
काम की

नहीं होती है 

सलीकेदार
आदमी की

पहचान होना

एक
सबसे
बुरी
बात होती 
है

आज
सबसे सफल

वो ही
कहलाता है


जिसका
हर काम

फैला हुआ
हर जगह
पर
नजर आता है


एक काम को

एक समय में
ध्यान लगा कर
करने वाला


सबसे बड़ा
एक
बेवकूफ
कहलाता है


बहुत सारे
आधे अधूरे

कामों को
एक साथ

अपने पास
रखना


और
अधूरा
रहने
देना ही

आज के
समय में
दक्षता की

परिभाषा
बनाता है


इनमें
सबसे महत्वपूर्ण

जो होता है

वो
हिसाब
किताब
करना कहलाता है


जिंदगी की
किताब का

हिसाब हो

या उसके

हिसाब की
किताब हो


इसमें
अगर कोई

माहिर
हो जाता है


ऊपर
वाला भी ऎसी

विभूतियों को

ऊपर

जल्दी बुलाने से
बहुत कतराता है

इन सबको
साफ
सुथरा
रखने वाला


कभी
एक गलती
भी
अगर
कर जाता है


बेचारा
पकड़ में

जरूर
आ जाता है


अपनी
जिंदगी
भर की

कमाई गई

एकमात्र

इज्जत को
गंवाता है


सियार
की तरह

होशियार
रहने वाला


कभी किसी
चीज को

तरतीब से
इसी लिये

नहीं लगाता है

घर में हो
या
शहर में हो


एक
उबड़खाबड़
अंदाज
से
हमेशा
पेश आता है


हजार
कमियाँ
होती हैं

किताब में
या हिसाब में


फिर भी
किसी से
कहीं
नहीं
पकड़ा जाता है


अपनी
एक अलग
ही
छवि बनाता है


समझने
लायक

कुछ होता
नहीं है

किसी में

ऎसे
अनबूझ
को
समझने के लिये


कोई
दिमाग भी

अपना नहीं
लगाता है


ऎसे समय
में ही
तो
महसूस होता है


तरतीब
से करना

और
सलीके
से रहना


कितना
बड़ा बबाल

जिंदगी का
हो जाता है


एक छोटे
दिमाग वाला
भी
समझने के लिये

चला आता है

बचना
इन सब से


अगर
आज भी

तू चाहता है

सब कुछ
अपना भी


मिट्टी में
फैले हुवे

रामदाने के
दानों की
तरह

क्यों नहीं
बना
ले जाता है ।

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पूरी बात

शर्ट की
कम्पनी
सामने
से ही
पता चल
जाती है
पर
अंडरशर्ट
कौन सी
पहन कर
आता है
कहाँ 
पता 
चल पाता है

अंदर
होती है
एक
पूरी बात
किसी के
पर वो
उसमें से
बहुत
थोडी़ सी
ही क्यों
बताता है

सोचो तो
अगर
इस को
गहराई से
बहुत से
समाधान
छोटा सा
दिमाग
ले कर
सामने
चला
आता है

जैसे
थोड़ी 
थोड़ी
पीने से
होता है
थोड़ा सा
नशा
पूरी
बोतल
पीने से
आदमी
लुढ़क
जाता है

शायद
इसीलिये
पूरी बात
किसी को
कोई नहीं
बताता है

थोड़ा थोड़ा
लिखता है
अंदर की
बात को
सफेद
कागज
पर अगर
कुछ
आड़ी तिरछी
लाइने ही
खींच पाता है

सामने वाला
बिना
चश्मा लगाये
अलग अलग
सबको
पहचान ले
जाता है

पूरी बात
लिखने की
कोशिश
करने से
सफेद
कागज
पूरा ही
काला हो
जाता है

फिर कोई
कुछ भी
नहीं पढ़
पाता है

इसलिये
थोड़ी
सी ही
बात कोई
बताता है

एक
समझदार
कभी भी
पूरी रामायण 
सामने नहीं
लाता है

सामने वाले
को बस
उतना ही
दिखाता है
जितने में
उसे बिना
चश्में के
राम सीता
के साथ
हनुमान भी
नजर आ
जाता है

सामने
वाला जब
इतने से
ही भक्त
बना लिया
जाता है

तो

कोई
बेवकूफी
करके
पूरी
खिचड़ी
सामने
क्यों कर
ले आता है
दाल और
चावल के
कुछ दानों
से जब
किसी का
पेट भर
जाता है ।

बुधवार, 21 मार्च 2012

गौरेया का दिन

बहुत
कम जगह
सुना है
अब वो 

पायी
जाती हैं
लेकिन
गौरेया 

बिना नागा
सुबह यहाँ 

जरूर
आती हैंं

खेत की
झाड़ियों 
में
हो कर इकट्ठा 

हल्ला मचाती
चहचहाती हैं

दाना पाने
की उम्मीद में
फिर आंगन
में आकर
सब बैठ
जाती हैं

एक लड़की
जो करती है
उनकी
रखवाली
सुबह
सवेरे ही
उठ के
आती है
झाडू़
लगाती है
आंगन में
उनके लिये

खुश हो कर
वो चावल
के दाने
भी फैलाती है

कोने कोने
के घौंसलों
में 
आजकल

उनके
बच्चों की
चीं चीं की
आवाज
कानों
में घंटी
बजाये
जाती है

दाना ले
जा कर
गौरेया
उनको
खिलाये
जाती हैं

बिल्लियाँ
मेरे पड़ौस
की रहती हैं
उनकी ताक में
बिल्लियों
को लड़की
झाडू़ फेंक
कर भगाये
जाती है

बाज
होता है
बिल्ली से
फुर्तीला
कभी एक
दो को
ले कर
ऊड़ ही
जाता है

लड़की
उदास
हो जाती है
उस दिन
लेकिन
फिर से
अपने
काम पर
हमेशा
की तरह
तैनात
हो जाती है

गौरेया
से है
उसका
बहुत याराना
चावल
ना मिले तो
लड़की के
कंधों पर
आकर
चढ़ जाती हैं

छोटी सी
गौरेया
का दिन
है आज
देखा था
अखबार में
छपा था
दिन पर दिन
कम होते
जाती हैं

घर पर
हमारे बहुत
हो गयी हैं
जो
चहचहाती हैं
रोज
आती है
दाना
ले जाती हैं
फुर्र से
उड़ जाती हैं ।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2012

खिचड़ी

लोहे की
एक पतली
सी कढ़ाही
आज सीढ़ियों
में मैंंने पायी

कुछ
चावल के
कुछ
माँस की
दाल के दाने

अगरबत्ती
एक
बुझी हुवी
साथ में
एक
डब्बा माचिस

मिट्टी का दिया
तेल पिया हुवा
जलाने वाले
की
तरह बुझा हुवा

बताशे
कपड़े के
कुछ टुकड़े
एक रूपिये
का सिक्का

ये दूसरी बार
हुवा दिखा
पहली बार
कढ़ाही
जरा छोटी थी
साँथ मुर्गे की
गरधन भी
लोटी थी

कुत्ता मेरा
बहुत खुश
नजर आया था
मुँह में दबा कर
घर उठा लाया था

सामान
बाद में
कबाड़ी ने
उठाया था
थोड़ा मुंह भी
बनाया था
बोला था
अरे
तंत्र मंत्र
भी करेंगे
पर फूटी कौड़ी
के लिये मरेंगे
अब कौन
भूत
इनके लिये
इतने सस्ते
में काम करेगा
पूरा खानदान
उसका
भूखा मरेगा

इस बार
कढ़ाही
जरा बड़ी
नजर आई
लगता है
पिछली वाली
कुछ काम
नहीं कर पायी

वैसे अगर
ये टोटके
काम करने
ही लग जायें
तो क्या पता
देश की हालत
कुछ सुधर जाये

दाल चावल
तेल की मात्रा
तांत्रिक थोड़ा
बढ़ा के रखवाये
तो
किसी गरीब
की खिचड़ी
कम से कम
एक समय की
बन जाये

बिना किसी
को घूस खिलाये
परेशान आदमी
की बला किसी
दूसरे के सिर
जा कर चढ़ जाये
फिर दूसरा आदमी
खिचड़ी बनाना
शुरू कर ले जाये

इस तरह

श्रंखला
एक शुरू
हो जायेगी
अन्ना जी की
परेशानी भी
कम हो
जायेगी

पब्लिक
भ्रष्टाचार
हटाओ को
भूल जायेगी

हर तरफ
हर गली
कूचें मेंं
एक कढ़ाही
और
खिचड़ी
साथ में
नजर आयेगी ।

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

गौरैया

गौरैया
रोज की तरह
आज 
सुबह

चावल
के
चार दाने
खा के
उड़ गयी

गौरैया
रोज आती है

एक मुट्टी
चावल
से
बस चार दाने
ही
उठाती है

पता नहीं क्यों

गौरेया
सपने नहीं देखती
होगी शायद

आदमी
चावल के बोरों
की
गिनती करते
हुवे
कभी नहीं थकता

चार मुट्ठी चावल
उसकी किस्मत
में होना
जरूरी 
तो नहीं

फिर भी
अधिकतर
होते ही हैं
उसे मालूम है
अच्छी तरह

जाते जाते
सारी बंद मुट्ठियां
खुली रह जाती हैंं 

और
उनमें
चावल 
का
एक दाना
भी नहीं होता

गौरैया
शायद ये
जानती होगी ।