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शुक्रवार, 12 जून 2020

गुलामी सुनी सुनाई बात है लगभग सत्तर साल की महसूस कर बेवकूफ स्वतंत्र तो तू अभी कुछ साल पहले ही से तो हो रहा था




देखा
नहीं था
बस
कुछ सुना था

कुछ
किताबों के
सफेद पन्नों
पर

काले से
किसी ने कुछ
आढ़ा तिरछा सा
गड़ा था

उसमें से थोड़ा
मतलब का कुछ कुछ
पढ़ा था

बहुत कुछ
यूँ ही
पन्नों के साथ चिपका कर
बस
पलट 
चला था 

पल्ले ही नहीं
 पड़ा था

ना गुलाम
देखे थे
ना गुलामी
महसूस की थी
कहीं कोई
बंदिश नहीं थी

सब कुछ
आकाश था
चाँद तारों
और
चमकदार सूरज से
लबालब
भरा था

ऐसा
भी नहीं था
कहीं कूड़ा नहीं था

जैविक था
अजैविक भी था
सोच में भी
अलग से रखा
कूड़ादान
भी वहीं था

वैसा ही जैसे
 आज का
अभी का हो
रखा चमका हुआ
नया था

खुल भी रहा था
बन्द
ढक्कन के साथ
हो
रहा था

एक था गाँधी
कर गया था
गुड़ का गोबर
तब कभी

अभी अभी
कहीं कोई कह
रहा था

गाय बकरी भैंस
के दिन
फिर रहे थे
अब
कहीं जाकर

गोबर का
बस और बस
सब गुड़
हो रहा था

लड़का 
लिये छाता  
एक छत से कूदता
दूसरी छत
चाकलेट फेंकता

धूप से बचाता 
नीचे कहीं
राह चलती

एक लड़की

सामाजिक
दूरी बना
खुश
हो रहा था

समय
घड़ी की टिक टिक
के साथ

अन्दर
कहीं घर के
तालाबन्द हो कर
जार जार
खुशी के आँसू
दो चार बस रोज

 दिखाने का
कुछ रो
रहा था

महामारी
दौड़ा रही थी
मीलों
आदमी नंगे पाँव
सड़क पर

नेता
घर बैठ
चुनावी रैलियाँ
बन्द सारे
दिमागों में
बो रहा था

‘उलूक’
गुलामी
सुनी सुनाई बात है
लगभग
सत्तर साल की

महसूस कर
बेवकूफ

स्वतंत्र तो
तू अभी
कुछ साल
पहले ही से
हो रहा था।

चित्र साभार: www.123rf.com

बुधवार, 20 मार्च 2019

चुनावी होली और होली चुनावी दो अलग सी बातें कभी एक साथ नहीं होती

बेमौसम
बरसात

ठीक भी
नहीं होती

होली में
पठाके की

बात ही
नहीं होती


रंग
बना रहा है

कई
साल से
खुद के चेहरे में

अपने
घर के
आईने से

उसकी
कभी बात
नहीं होती

फिर से
निकला है

ले कर
पिचकारी
भरी हुयी

अपनी
राधा
उसके ही
खयालात
में नहीं होती


बुरा
ना मानो
होली है

कहता
नहीं है

कभी किसी से

सालों साल

हर दिन
गुलाल
खेलने वाले की

खुद की
काली
रात नहीं होती

समझ में
आते हैं सारे रंग

कुछ
रंगीलों के ही

किसने कह दिया

रंग
सोचने में
लग रहे
जोर की

रंगहीन
हो चुके
मौसम में
कहीं बात
नहीं होती


‘उलूक’
रात के अंधेरे

और
सुबह के
उजाले में फर्क हो

सबके लिये
जरूरी नहीं

दूरबीन से
देखकर
समझाने वालों
की होली कभी

खुद के
घर के
आसपास
नहीं होती।



 चित्र साभार: http://priyasingh0602.blogspot.com/2014/09/the-festival-of-colors-holi-is-oneof.html

सोमवार, 11 फ़रवरी 2019

विश्वविद्यालय शिक्षक संघ चुनाव जितना ‘उलूक’ देख पा रहा है

विश्व
के एक
विद्यालय में

जल्द ही

संघ का
चुनाव होने
जा रहा है

मजे
की बात है

हर
लड़ने वाला
इस चुनाव में

अपना
झंडा
छुपा रहा है

बुद्धिजीवी
बड़ी बात है

किसी एक
बुद्धिजीवी को

वोट देने
जा रहा है

मुद्दे
किसी के
पास हैं
और क्या हैं

पूछने पर

कोई
कुछ नहीं
बता रहा है

विश्व का
यही एक
विद्यालय

जल्दी ही
दो में टूटने
जा रहा है

किसलिये
और क्यों
तोड़ा
जा रहा है

अलग बात है

अच्छा है
किसी से
उसकी
औकात के
बाहर का प्रश्न

पूछा भी
नहीं जा रहा है

शहर
जिले प्रदेश
से छाँट कर

किसी
एक को

दूसरी

ऐसी ही
किसी एक
ऊँची दुकान में

सामान
बेचने
के लिये
भेजा
जा रहा है

अखबार
शहर का

बेचने और
खरीदने की
बात छोड़ कर

दुकानदार
बनाये गये
बुद्धिजीवी के
गाये गये
गाने को
समझा रहा है

सब
पके
पकाये हैं

हर कोई
एक दूसरे को
पका रहा है

विश्व के
विद्यालय के
विख्यात
व्याख्याताओं को

दो हजार उन्नीस
नजर आ रहा है

समझ में
नहीं आती हैं
कुछ बातें

तो लिखने
चला आ रहा है

लिखना
नहीं आता है
फिर क्यों
और
किसलिये
पढ़ा रहा है

लूटना
सिखाना
गिरोह बनाना

नहीं सिखा
पा रहा है

बेकार है
जिन्दगी उसकी

जो खाली
विषय
पढ़ा रहा है

‘उलूक’
तेरी बात है
मान लेते हैं

तू खुद भी
नहीं समझ
पा रहा है

दुआ
उसको दे

जो
ऐसे कूड़े पर

फिर भी

टिप्पणी
दे कर
जा रहा है ।


चित्र साभार: www.thebiharnews.in

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

अपनी कब्र का पेटेंट 2019 के चुनावों से पहले तुरन्त करा बिल्कुल नया है ये आईडिया

बहाने
मत बना
सही बात
साफ साफ बता

कलम
बीमार है
कागज का
पेट आज
बहुत खराब है

जैसा जुमला

अब रहने भी दे
किसी पुराने
पीतल या ताँबे के
गमले में दे सजा

कुछ भी
लिख
देने वाले
के साथ
ऐसा ही
है होता

कितने
साल हो गये
लिखते बकते

अब तो समझ ले

अभी भी
समय है
एक बार
फिर से
समझाया
जा रहा है

सुधर जा

अपने
पन्ने पर कर

जो करना है
जो देखना है
जो कहना है

किसी ने
नहीं है रोका

इधर उधर
इसके उसके
लिखे लिखाये को

देखने पढ़ने
के लिये तो
भूल कर
भी मत जा

कपड़े उतार
सड़क पर
लेट जा

अखबार के
चौथे पन्ने
यानी
बस कस्बे
की खबर
हो जा
छ्प जा
तर जा

बिना कोई
गुल छिपाये
गुल खिलाये
घर के अन्दर

मुख्य पृष्ठ में
छपने का
भूल जा

सोचना
सच में
होता है
बहुत ही बुरा

किसलिये
खाये जाता है
अपना ही दिमाग

इसमें कुछ
दिमाग लगा

लोग लिख रहे हैं
लिखते रहेंगे
दीवाने गालिब
की सोच कर
दीवाने होते रहेंगे

काहे
पागल लोगों के
लिखे लिखाये
के पीछू जाता है

अपने
पागलपन की
खुद कोई
पगलाई हुई सी
एक पागल
मोहर बना

बुराई
नहीं है

सच में

सलीकेदार
समझे बुझाये
पागलों की
भीड़ में
सच्चा एक
पागल हो जा

‘उलूक’
दुनियाँ को
समझने के लिये
किताबें मत पढ़

दुनियाँ
पागल बनाती है
समझ ले पहले से

पागल हो जा

फावड़ा उठा

अपनी
ही कब्र खोद

कब्र का पेटेंट
2019 के चुनावों
के होने से पहले
तुरन्त करा ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

NAAC ‘A’ की नाक के नीचे की नाव छात्रसंघ चुनाव

किसी
बेवकूफ
ने सभी
पदों पर
नोटा पर
निशान
लगाया था

तुरन्त
होशियार
के
होशियारों
ने उसपर
प्रश्नचिन्ह
लगाया था

सोये हुऐ
प्रशासन
की नींद
जारी
रही थी
काम
निपटाये
जा रहे थे

लिंगदोह
कुछ देर
के लिये
अखबार
में दिखा था
और
प्रशासन
की फूँक
भी खबर
के साथ
हवा में
उड़ती हुई
थोड़ी देर
के लिये
चेतावनियाँ
लिये
उड़ी थी

अखबार में
खबर किसने
चलाई थी
और क्यों ये
अलग प्रश्न था
अलग बात थी

गुण्डाराज
के गुण्डों
पर किसे
कुछ
कहना था
और
किस की
औकात थी

पर पिछले
दो महीने
के ताण्डवों
से परेशान
कुछ दूर
दराज के
गावों से
शहर में
आकर पढ़
रहे इन्सान
सुखाते
जा रहे
कुछ जान
कुछ बेजान
कुछ परेशान
किसी ने
नहीं देखे थे

दिखते
भी कैसे
नशे में
चूर भीड़
बौराई
हुई थी
और
प्रशासन
शाशन के
आशीर्वादों
से
लबालब
जैसे
मिट्टी नई
किसी
खेत की
भुरभुराई
हुई थी

जो
भी था
चुनाव
होना था
हुआ
मतपत्र
गिने
जाने थे
किसी ना
किसी ने
गिनना था

एक मत पत्र
बीच में
अकेला दिखा
जिसमें हर
पद पर नोटा
था दिया गया

किसी ना
किसी
ने कुछ
तो कहना
ही था

बेवकूफ
वोट देने
ही क्यों
आया था
सारे पदों
पर
नोटा पर
मुहर लगा
अपनी
बेवकूफी
बता कर
आखिर
उसने क्या
पाया था

‘उलूक’
मन ही मन
मुस्कुराया था
हजारों में
एक ही
सही पर
था कहीं
जो अपने
गुस्से का
इजहार
कर
पाया था
असली
मतदान
कर उस
अकेले
ने सारे
निकाय
को आईना
एक
दिखाया था ।

चित्र साभार: Canstockphoto.com

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

दो चार दिन और पश्चिमी विक्षोभ पूरब पर भारी रहेगा

जरूरी है
क्या जीतना
हार भी गया
तब भी
क्या होगा
एक तो
पक्का हारेगा
और एक
जीतेगा भी
एक बीच में
रह कर
तमाशा भी देखेगा
उसके बाद
कुछ होगा
या नहीं होगा
ये किसी को
भी पता नहीं होगा
ये बस आज ही
की बात नहीं है
जब से शुरु हुआ है
हारना और जीतना
तब से लगता रहा है
कुछ ऐसा ही होगा
ऐसा नहीं भी होगा
तो वैसा जरूर होगा
जीतने वाला बहुत
समझदार होगा
हारने वाला
बेवकूफ होगा
जिताने वाले के पास
बड़ा दिमाग होगा
हराने वाले के पास
हरा दिमाग होगा
बड़ा दिमाग कब
हरा दिमाग होगा
और हरा दिमाग कब
बड़ा दिमाग होगा
ये किसे पता होगा
इसे पता करना ही
बहुत बड़ा काम होगा
हर बार की तरह
इस बार भी होगा
एक ने जीतना होगा
एक ने हारना होगा
जिताने वाले के
पास इनाम होगा
हराने वाले के
पास इनाम होगा
हारना जीतना पहली नहीं
पिछली कई बार की तरह
ही इस बार भी होगा
बस देखना इतना ही है
जो होता आ रहा है
इस देश में
क्या वही इस बार होगा
वही होता रहेगा
और हर बार होगा
तेरा क्या होगा
तुझे मालूम होगा
मेरा क्या होगा
उसे मालूम होगा
उसका क्या होगा
किस को पता होगा
कहने वाला कह रहा है
इस समय भी
कुछ ना कुछ
उस समय भी
कुछ ना कुछ
कह रहा होगा
तेरा देश तेरा रहेगा
मेरा देश मेरा रहेगा
ये रहेगा तो ये करेगा
वो रहेगा तो वो करेगा
झंडा ऊँचा रहे हमारा
हमसे कहो कहने के लिये
ये भी कहेगा और
वो भी कहेगा ।

चित्र साभार: clipartof.com

शनिवार, 31 जनवरी 2015

एक को चूहा बता कर हजार बिल्लियों ने उसे मारने से पहले बहुत जोर का हल्ला करना है


बाअदब
बामुलाहिजा
होशियार

बाकी
सब कुछ
तो ठीक है
अपनी अपनी
जगह पर

तुम एक
छोटी
सी बात
हमको भी
बताओ यार

शेर के खोल
पहन कर
कब तक करोगे
असली शेरों
का शिकार

सबसे
मनवा
लिया है
सब ने मान
भी लिया है
कबूल कर
लिया है

सारे के सारे
इधर के भी
उधर के भी
हमारे और
तुम्हारे
तुम जैसे

जहाँ कहीं
पर जो भी
जैसे भी हो
शेर ही हो

उसको
भी पता है
जिसको
घिर घिरा
कर तुम
लोगों के
हाथों
बातों के
युद्ध में
मरना है

मुस्कुराते हुऐ
तुम्हारे सामने
से खड़ा है

गिरा भी लोगे
तुम सब मिल
कर उसको

क्योंकि एक के
साथ एक के युद्ध
करने की सोचना
ही बेवकूफी
से भरा है

अब बस एक
छोटा सा काम
ही रह गया है

एक चूहे को
खलास करने
के लिये ही

सैकड़ों
तुम जैसी
बिल्लियों को
कोने कोने से
उमड़ना है

लगे रहो
लगा लो जोर

कहावत भी है
वही होता है जो
राम जी को
पता होता है

जो करना
होता है
वो सब
राम जी ने ही
करना होता है

राम जी भी
तस्वीरों में तक
इन दिनों कहाँ
पाये जाते हैं

तुम्हारे
ही किसी
हनुमान जी
की जेबों
में से ही
उन्होने भी
जगह जगह
अपना झंडा
ऊँचा करना है

वो भी बस
चुनाव तक

उसके बाद
राम जी कहाँ
हनुमान जी कहाँ

दोनो को ही
मिलकर
एक दूसरे
के लिये
एक दूसरे के
हाथों में
हाथ लिये

विदेश
का दौरा
साल
दर साल
हर साल
करना है ।

चित्र साभार: www.bikesarena.com

शुक्रवार, 16 मई 2014

लो आ गई अच्छे दिन लाने वाली एक अच्छी सरकार

घर से निकलना
रोज की तरह
रोज के रास्ते से
रोज के ही वही
मिलने वाले लोग

रोज की हैलो हाय
नमस्कार पुरुस्कार

बस कुछ हवा का
रुख लग रहा था
कुछ कुछ अलग
बदला बदला सा

सबसे पहले वही
तिराहे का मोची
जूता सिलता हुआ

उसके बाद
चाय के
खोमचे वाला
दो महीने से
सर पर रखी
उसकी वही टोपी
पार्टी कार्यालय
से मिली हुई

नगरपालिका के
दिहाड़ी कर्मचारियों
के द्वारा खुद
दिहाड़ी पर रखे हुऐ
अट्ठारह बरस के
हो चुके लड़के

अच्छे लोगों के
खुद के घरों को
साफ कर सड़क
पर फेंके गये
पालीथीन में
तरतीब से बंद कर
मुँह अंधेरे फेंके गये
कूड़े के ढेरों से
उलझते हुऐ

उसी सब के बीच
तिराहे पर मेज पर
रखा रँगीन टी वी
और उसके चारों
ओर लगी भीड़
गिनते हुऐ
हार और जीत

भीख माँगने वाले
अपनी पुरानी
उसी जगह पर
पुराने समय के
हिसाब से
रोज की तरह
चिल्लाते हुऐ
नमस्कार
कुछ दे जाते
सरकार

सड़क पर
सुनसानी
और उससे लगे
हुऐ घरों से
लगातार
आ रहा चुनाव
विश्लेषण का शोर

माल रोड में
गाड़ियाँ और
दौड़ते हुऐ
दुपहियों पर
लहराते झंडे

खुशी से झूमते
कुछ लोग
दिमाग में लगता
हुआ बहुत जोर

बस यह समझने
की कोशिश कि
कुछ बदल गया है
और वो है क्या

लौटते लौटते
अचानक समझ में
जैसे कुछ चमका
कुछ समझ आया

‘उलूक’ को अपने
पर ही गुस्सा
ऐसे में आना
ही था आया

बेवकूफ था
पता था
पर इतना ज्यादा
सोच कर अपनी
बेवकूफी पर
खुद ही मुस्कुराया

फिर खुद ही
खुद को ही
इस तरह से
कुछ समझाया

आज का दिन
आने वाले
अच्छे दिनों का
पहला दिन है

कितने लोग
इस दिन को
कब से रहे
अंगुलियों
में गिन हैं
किसके आने
वाले हैं

इस सब के
गणित के
पीछे पीछे
मत जा
बस तू भी
सबकी तरह
अब तो
हो ही जा

शुरु हो जा
अच्छे दिनों को
आना है सोच ले
और खुश हो जा ।

रविवार, 4 मई 2014

बहुत पक्की वाली है और पक्का आ रही है

आसमान से
उतरी आज
फिर एक चिड़िया
चिड़िया से उतरी
एक सुंदर सी गुड़िया
पता चला बौलीवुड से
सीधे आ रही है
चुनाव के काम
में लगी हुई है
शूटिंग करने के लिये
इन दिनों और जगहों
पर आजकल नहीं
जा पा रही है
सर पर टोपियाँ
लगाये हुऐ एक भीड़
ऐसे समय के लिये
अलग तरीके की
बनाई जा रही है
जयजयकार करने
के लिये कार में
बैठ कर कार के
पीछे से सरकारी
नारे लगा रही है
जनता जो कल
उस तरफ गई थी
आज इसको देखने
के लिये भी
चली जा रही है
कैसे करे कोई
वोटों की गिनती
एक ही वोट
तीन चार जगहों
पर बार बार
गिनी जा रही है
टोपियाँ बदल रही है
परसों लाल थी
कल हरी हुई
आज के दिन सफेद
नजर आ रही है
लाठी लिये हुऐ
बुड़िया तीन दिन से
शहर के चक्कर
लगा रही है
परसों जलेबी थी हाथ में
कल आईसक्रीम दिखी
आज आटे की थैली
उठा कर रखवा रही है
काम पर नहीं
जा रहा है मजदूर
कई कई दिन से
दिखाई दे रहा है
शाम को गाँव को
वापस जाता हुआ
रोज नजर आ रहा है
बीमार हो क्या पता
शाम छोड़िये दिन में
भी टाँगे लड़खड़ा रही हैं
‘उलूक’ तुझे क्यों
लगाना है अपना
खाली दिमाग
ऐसी बातों में जो
किसी अखबार में
नहीं आ रही हैं
मस्त रहा कर
दो चार दिन की
बात ही तो है
उसके बाद सुना है
बहुत पक्की वाली
सरकार आ रही है ।

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

बक दिया बहुत चुनाव अब करवा दिया जाये नहीं तो कोई कह देगा भाड़ में जाओ बाय बाय

तीन दशक के
दस प्रशाशक
बहुत किये होगें
विश्वविद्यालय से
बाहर नहीं कहीं
कभी भेज पाये
देश के
  चुनाव का
इतना बड़ा काम
मगर इस बार वाले
ही कुछ दिला पाये
बुरा सौदा नहीं है
एक आड़ू बेड़ू को
अगर चुटकी में
जोनल मजिस्ट्रेट
बना दिया जाये
आभारी हैं वो
कुछ काम के लोग
और कुछ गधे
जो चुनाव करवाने
के काम में कुछ
काम धाम करने
के लिये इसी बार
गये हैं काट छाँट
कर गये लगवाये
कुछ पहले ही
भेजे दिये गये
उसके प्रचार के लिये
कुछ बाद में
इसके प्रचार के लिये
जा रहे हैं बोल कर
पूरी छूट ले आये
तटस्थ होना बहुत
अच्छा होता है
पहली बार गधे भी
अपनी समझ में
कुछ घुसा पाये
चुनाव कार्यक्रम
सफल बनाने
के लिये सुबह
पहुँचने का निमंत्रण
जिला प्रशाशन से
पाकर 
हर्षित हुऐ
कालर खड़े कर
कमीज के चले
गये दौड़ लगाये
मत देना या
दे देना मत
इसको या उसको
की बहसों में भाग
लेने की बेकार
बातों में भाग
लगाते लगाते
वैसे भी कई
महीने हो आये
नये काम की
नई जगह पर
जाकर चुनाव
करवाने की किताब
चुनाव अधिकारी
के द्वारा गये
पढ़ाये और लिखाये
कुछ बात
समझ में आई
कापी में लिख लाये
उसमें से चलो
कुछ कुछ
यहाँ पर भी कह
ही दिया जाये
यज्ञ कर्मठ परीक्षा
दावा ध्यान पढ़े लिखे
परीक्षा नम्बर गलतफहमी
गलती त्रुटी सस्पेंशन
जैसे शब्द वाक्यों में
प्रयोग कर के
जो गये बताये
दिमाग वाले
बिना दिमाग वाले
सारे के सारे
सफेद और काले
ये अच्छी तरह
समझ पाये
पानी नहीं भी मिला
कोई बात नहीं
कुछ और पी लेना
चुनाव हो तो जाये
इतना भी नहीं
कर सकता है कोई
तो बेकार है अगर
लाईन लगवा के
पर्ची पर खिलवाये
गये कच्चे भात दाल
के लिये आभार
ही कह दिया जाये
कोई जीते कोई हारे
इधर को आये या
उधर को जाये
किसे मतलब है
चुनाव को होना है
चुनाव करवा दिया जाये
मत किस को
देना है तूने
उलूक
तेरी ऐसी की तैसी
तू भाड़ में जाये । 

शनिवार, 26 अप्रैल 2014

अच्छी तरह से समझ लेना अच्छा होता है जब कोई समझा रहा होता है

समझा कर
जब कोई
बहुत प्यार से
कुछ समझा
रहा होता है
बस अच्छे दिन
आने ही वाले हैं
तुझे और बस
तुझे ही केवल
बता रहा होता है
किसके आयेंगे
कब तक आयेंगे
कैसे आयेंगे
नहीं सोचनी
होती हैं ऐसे में
ऐसी बातें जिनको
सुलझाने में
समझने वाला
खुद ही उलझा
जा रहा होता है
देश सबका होता है
हर कोई देश की
खातिर ही अपने
को दाँव पर
लगा रहा होता है
किसको गलत
कहा जा सकता है
ऐसे में अगर
ये इसके साथ
और वो उसके साथ
जा रहा होता है
मतदाता होने का
फख्र तुझे भी
होना ही है कुछ दिन
तक ही सही
बेकार का कुछ सामान
सबके लिये ही बहुत
काम की चीज जब
हो जा रहा होता है
होना वही होता है
कहते हैं जो
राम के द्वारा
उपर कहीं आसमान में
रचा जा रहा होता है
क्या बुरा है
देख लेना ऐसे में
शेखचिल्ली का
एक सपना जिसमें
बहुमत मत देने
वाले का ही
आ रहा होता है
वो एक अलग
पहलू रहा होता है
बात का हमेशा से ही
समझाने वाला
समझाते समझाते
अपने आने वाले
अच्छे दिनों का
सपना समझा
रहा होता है
समझा कर
कहाँ मिलता है
एक समझाने वाला
ये वाला भी
कई सालों बाद
फिर उसी बात को
समझाने के लिये
ही तो आ जा
रहा होता है ।

गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

तुम भी सरकार के चुनाव भी सरकार का हमें मत समझाइये

लोक सभा निर्वाचन
के सफल संचालन
हेतु जिला निर्वाचन
अधिकारी ने आदेश
निकाल कर एक
स्वायत्तशाशी संस्था
के कुछ चुने हुऐ
लोगों की चुनाव में
पहली बार ड्यूटी
जो क्या लगाई
ड्यूटी कटवाने के
जुगाड़ लगाने की
होड़ सी लोगों के
बीच तुरंत मच आई
एक दौड़ा बताने
वो एक बड़े दल का
फलाँ फलाँ पदाधिकारी है
संस्था में ही उसे
काम में लगाने की
इधर भी और उधर
भी मारा मारी है
अब यहाँ चुनाव में भी
आप की क्यों गई
मति मारी है
चुनाव करवायेंगे
या प्रचार हमसे
इतनी सी बात
आपके समझ में
पता नहीं क्यों
नहीं आ रही है
हमें चुनाव में
लगा कर क्यों
परेशानी मोल
लेना चाह रहे हैं
जो काम करते हैं
और संस्था के
चुनावों से भी
दूर रहा करते हैं
ऐसे निर्दलीय
लोगों पर आपकी
नजर क्यों नहीं
जा रही है
वैसे भी चुनावों में
सरकारी लोगों की
ड्यूटी ही आज तक
लगाई जाती है
देश का चुनाव भी है
तो हमारी कोई
जिम्मेदारी थोड़ी
हो जाती है
जो लोग चुनाव
लड़ने की कोचिंग
चलाया करते हैं
जवानों को चुनाव में
भाग लेने देने का
पाठ साल भर
पढ़ाया करते हैं
पुलिस की लोकल
इंटेलिजेंस यूनिट
वाले ऐसा हो ही
नहीं सकता कि
ये सारी बातें
आप तक नहीं
पहुँचाया करते हैं
ऐसे लोगों से
चुनाव में भाग लेने
वालों के साथ ही
ड्यूटी निभाने की
जिम्मेदारी छीन
कर ना रुलाइये
लाल पीली नीली
बत्तियों के भविष्य
को किसी के इस
तरह दाँव पर
ना लगाइये 

उलूक तैयार है 
करने को ड्यूटी
उस पर और उसके
जैसे और कई लोगों
पर दाँव लगाइये
ऊपर कहीं से आपको
मजबूर करवाने
के लिये हमे
मजबूर मत करवाइये
चुनाव और देश भक्ति
पर कहीं भाषण
करवाना हो तो
जरूर एक मौका
हमें दिलवाइये।

रविवार, 9 मार्च 2014

बारी बारी से सबकी ही बारी क्यों नहीं लगा दी जाती है

बंदर बाँट
काट छाँट
साँठ गाँठ

सभी कुछ
काम में जब
लाना ही
पड़ता है
बाद में भी

तो
पहले इतने
झंडे वंडे
पोस्टर वोस्टर
टिकट विकट
के झगड़े वगड़े
एक बार के लिये
करना जरूरी
नहीं होना चाहिये

आपस में ही
पक्ष और विपक्ष
को बैठ कर
फैसला एक ठोस
देश के हितार्थ
ले लेना चाहिये

बारी बारी से
हैड और टेल
करते हुऐ
अपनी अपनी
पारियों को खेल
लेना चाहिये

टीमें तो बननी
घर से ही
शुरु हो जाती है

सूक्ष्म रूप में
अगर दूरदृष्टी
किसी के पास
थोड़ी सी भी
पाई जाती है

किसी भी टीम
को बनाने और
बैठाने में
अक्ल ही तो
काम में शायद
लाई जाती है

सामन्जस्य
बिठा कर काले
पीले नीले को
उसके ही रंग की
सारी जिम्मेदारी
सौंप दी जाती है

किसी भी तरह की
मुद्रा कहीं भी
इन कामों के लिये
बरबाद नहीं जब
की जाती है

फिर इतने बड़े
देश के चुनावों
के लिये क्यों
खजाने की
ऐसी तैसी
बार बार
हर बार
की जाती है

जनता के हाथ
में आता कभी
कुछ भी नहीं है
चुनाव के बाद भी

उसकी ही खाल
खींच ली जाती है

संशोधनों पर
विचार कर लेने से
कई परेशानियाँ
चुटकी में ही
हल की जाती हैं

बहुत अच्छा
आईडिया आया है
खाली दिमाग में
“उलूक” के

चुनाव
करने की जगह
कुछ लोगों के बीच
बारी बारी से
क्यों नहीं बारी
लगा दी जाती है

पैसा देश का
बचा कर अपने
अपने लिये
इंतजाम
कर लेने से

देश के
साथ साथ
जनता की जेब
कितनी आसानी से
कटने से ऐसे में
बच जाती है

टीमें हर जगह
बनती आई हैं
अपने अपने
हिसाब से
छोटी हो या
बड़ी संस्था में
जब बिना किसी
लफड़े झगड़े के

तो सबसे
बड़ी टीम भी
पहली बार में
आपस में ही
मिल बैठ कर
क्यों नहीं बना
ली जाती हैं ।

बुधवार, 19 फ़रवरी 2014

धर्म की शिक्षा जरूरी है भाई नहीं तो लगेगा यहीं पर है मार खाई

चुनाव
की आहट

धर्म ने
सुन ली है

और

भटकना
शुरु हो गई हैं

कुछ
अतृप्त आत्माऐं

मुक्ति की चाह में

चुनाव
के बाद

अपनी
नाव को किनारे
लगाने के लिये

कक्षाऐं
चालू हो चुकी हैं

जिनमें

किसी भी
परीक्षा को
लाँघने का
कोई रोढ़ा नहीं है

वैसे भी

पढ़ने
मनन करने
के लिये
नहीं होता है धर्म

बस
कुछ विशेष
लोगों को

मिला होता है
अधिकार
सिखाने का

धर्म और
धार्मिक
मान्यताऐं भी

आदमी होना

सबसे बड़ा
अधर्म होता है

सीधे सीधे
नहीं
सिखाया जाता है

कोमल
मन में
बिठाया जाता है

एक
लोमड़ी की
चालाकी से
प्रेरणा लेते हुऐ

सीखने
वाले को
पता नहीं
होता है कभी भी

जिस
दीक्षा को देकर

उसे
सड़क पर

लोगों को
धर्म का
शीशा दिखाने
के लिये
भेजा जा रहा है

उस
शीशे में

भेजने
वाले को
अपना चेहरा
देखना भी

अभी
नहीं आ
पा रहा है

आने
वाले समय
के लिये

धार्मिक
गुरु लोग

जिन
मंदिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च
की कल्पना में

अपने
अपने मन में
लड्डू बम
बना रहे होते हैं

उनके
फूटने से

वो
नहीं मरने
वाले हैं
वो अच्छी
तरह से  जानते हैं

बस

प्रयोग में
लाये जा रहे
धनुषों को

ये पता
नहीं होता है

कि
समय की
लाश पर
बहुत खुशी
के साथ

यही लोग

कल
जब ठहाके
लगा रहे होंगे

धर्म
के कच्चे
पाठ की
रोटियाँ
लिये हुऐ

कुछ
कोमल मन

अपने अपने
भविष्य के
रास्तों में
पड़े हुऐ
काँटो को
हटाते हटाते

हताशा में
कुछ भी
नहीं निगलते
या उगलते

अपने को
पाकर बस
उदास से
हो जा रहे होंगे

और

उस समय
उनके ही

धार्मिक
ठेकेदार
गुरु लोग

गुलछर्रे
कहीं दूर
उड़ा रहे होंगे

अपने अपने
काम का
पारिश्रमिक

भुना रहे होंगे।

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

राम का भरोसा रख बहुत कुछ होने वाला है

सुनाई
दे रहा है
बहुत बड़ा
परिवर्तन
जल्दी ही
होने वाला है

चुनाव
की जगह
सरकार के
नुमाइंदो
और
अध्यक्षों के
पदों के लिये
समाचार पत्रों
में विज्ञापन
आने वाला है

ना भी
हो रहा हो
ऐसा मान लिया
सोचने में
ऐसी बात को
किसी का क्या
जाने वाला है

इस सब
के लिये
सबसे पहले
कुछ बीच के
लोगों का
चुनाव किया
जाने वाला है

उसके लिये
सबसे पहले
देख लिया
जाने वाला है
कि कौन है
ऐसा जो
इधर भी
और
उधर भी
आने जाने
वाला है

पूजा पाठ
मंदिर
आने जाने से
कुछ नहीं
कहीं होने
वाला है

अगर डंडे
पर लगे हुऐ
झंडे को
अपने घर
और
अपने सर
पर नहीं
लगाने वाला है

मंदिर की
घंटियों को
बेचने वाले को
पुजारी
छांटने के लिये
बुलाया
जाने वाला है

जमाना
बदल रहा है
बहुत तेजी से
देखता रह

कपड़े पहने
हुऐ दिखेगा
जो भी शहर
की गलियों में
अंदर कर दिया
जाने वाला है

समय की
बलिहारी है
छुप छुपा
के हो रहा है
जो भी जहां भी
खुले आम होते हुऐ
जल्दी ही दिखाई
देने वाला है ।

शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

कहानी की भी होती है किस्मत ऐसा भी देखा जाता है

कहानियाँ
बनती हैं
एक नहीं बहुत

हर जगह पर
अलग अलग

पर
हर कहानी
एक जगह नहीं
बना पाती है

कुछ
छपती हैं
कुछ
पढ़ी जाती हैं

अपनी अपनी
किस्मत होती है
हर कहानी की

उस
किस्मत के
हिसाब से ही
एक लेखक
और
एक लेखनी
पा जाती हैं

एक
बुरी कहानी
को एक अच्छी
लेखनी ही
मशहूर बनाती है

एक
अच्छी कहानी
का बैंड भी एक
लेखनी ही बजाती है

पाठक
अपनी
सोच के
अनुसार ही
कहानी का
चुनाव कर पाता है

इस मामले में
बहुत मुश्किल
से ही अपनी
सोच में कोई
लोच ला पाता है

मीठे का शौकीन मीठी
खट्टे का दीवाना खट्टी
कहानी ही लेना चाहता है

अब कूड़ा
बीनने वाला भी
अपने हिसाब से ही
कूड़े की तरफ ही
अपना झुकाव
दिखाता है

पहलू होते हैं ये भी
सब जीवन के ही

फ्रेम देख कर
पर्दे के अंदर रखे
चित्र का आभास
हो जाता है

इसी सब में
बहुत सी
अनकही
कहानियों की
तरफ किसी का
ध्यान नहीं जाता है

क्या किया जाये
ये भी होता है
और
बहुत होता है

एक
सर्वगुण
संपन्न भी
जिंदगी भर
कुँवारा
रह जाता है ।

गुरुवार, 8 मार्च 2012

उ0 प्र0 2012

आधी बकवास 'उलूक' की आज के 'अमर उजाला' के पेज 9 पर छपी है बाकी बची खुची कहो पूरी कहो यहाँ नीचे पड़ी है।

बड़ी
मुश्किल से
हाथी काबू
में आया है
अगले पाँच
साल के लिये
बांध कर के
सुलाया है

महावत ही
खा रहा था
हाथी का खाना
बच ही नहीं
पा रहा था
कुछ उसके
अपने ही
परिवार के
लिये दाना

महावत
आज बहुत
खुश नजर
आ रहा था

अपनी
छकड़ा
साईकिल
निकाल कर
बहुत इतरा
रहा था

अगले
पाँच साल
वो साइकिल
में जाया करेगा

हाथी बेचारा
बैठे बैठे सूँड
हिलाया करेगा

मेरा कुछ
हो पायेगा
मुझे कुछ भी
नहीं मालूम
टूटे हाथ में
कमल मेरे
पहले की तरह
मुर्झाया करेगा

चार हजार
करोड़ के साथ
थोड़ा और कुछ
ही खा पाया था
हाथी सुना है

बचा हुवा
साईकिल की
रिपेयर में
काम आया करेगा

श्रीमती मेरी
दूध सब्जी गैस
के दामों पर
अभी भी चिल्लायेगी

क्या पता दीदी
की जगह भतीजे
को देख अब
वो मुस्कुरायेगी

आओ दुवा करो
मेरे साथ आप भी
मिलकर वोटरो

साईकिल बिना
रिपेयर के
पाँच साल
चल ही जायेगी
पैट्रोल के बिल
दिखा कर
एन आर एच एम
की कहानी
कम से कम फिर से
नहीं दोहरायेगी

कुछ बेकसूर
लोगो को
यूँ ही मौत
की नीद
असमय ही
ना सुलायेगी

अमन चैन
ना भी ला सकी
उसके सपने
तो दे ही जायेगी।

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

वोट घुस गया

लम्बे इंतजार के बाद
हुवा आज मैं सपरिवार
वोट देने के लिये तैयार
बहुत खुश था जैसे
बनाने जा रहा था अपनी
केवल अपनी सरकार
वोटर आई डी कार्ड
लौकर से निकाला
बटुवे की चोर जेब
के अंदर डाला
जूते को पौलिश लगाया
सिर में तेल डाल
बालों को संवारा
छोटे बेटे को बताया
पड़ोसी को सुनाया
दरवाजा अंदर से
बंद जरूर कर लेना
वोट डालने जा रहा हूँ
यूँ गया और यूँ ही
वापस आ रहा हूँ
एक बूथ के बगल
से निकल रहा था
हर पार्टी का आदमी
बड़ी आशा भरी
निगाहो से हमे
तौल रहा था
हौले हौले अपने
बूथ पर पहुंच पाया
लिस्ट देखने वाले को
वोटर आई डी कार्ड
मैने हाथ में थमाया
पूरी लिस्ट जब छान
मारी तो अपना ही
नहीं पूरे परिवार के
नामों को गायब पाया
निराश हो कर
अगल बगल
के कुछ और बूथों में
चक्कर लगाया
मैं अपने परिवार के
सांंथ खो चुका था
किसी को कहीं
भी नहीं ढूंड पाया
वापस लौट के जब आ
रहा था चाल में वो
तेजी नहीं पा रहा था
मन ही मन चुनाव आयोग
को धन्यवाद देता जा रहा था
एक कविता अपनी भड़ास का
अंतिम हथियार कुड़ता हुवा
सोचता चला जा रहा था
आज शायद एक पाप
करने से ऊपर वाले
ने मुझे बचा लिया
इसीलिये मेरा
और मेरे परिवार
वालों के नाम को
वोटर लिस्ट से
ही हटा लिया ।

सोमवार, 30 जनवरी 2012

चुनाव पूर्व संध्या

एक बार फिर

कल
चांद सितारों
की तमन्ना बोने

देखें
कितने लोग
अपने कोटरों से
निकल कर आते हैं

अपने अपने
घोड़ो पर
दांव लगाने
कहाँ कहाँ से
कूद फांद
लगाते हैं

लम्बी
दौड़ का
एक घोड़ा
कोई चलेगा
खच्चर से
भी बनाने

कोई
तगड़े घोड़े
को पीछे भी
खिसकायेगा

अपने अपने
घोड़ों की
इस रेस में

इस
बार दुवा
करियेगा

असली
दौड़ का घोड़ा
घोड़ों से ही
ना उलझ पायेगा

मेरे देश
को चाहिये
जो दिशा

उसे
देने के लिये
वो ही
सबसे आघे
निकल जायेगा

बरसों से
बोती
आ रही है

जो
चांद और सितारे
इस धरती की
अबोध संताने

घोड़ा
अपने लिये ही

केवल
नहीं जुटायेगा

चांद सितारे
तोड़ कर
ना भी ला पाये

कोई बात नहीं
उनकी रोशनी
ही काफी होगी

उससे एक
मुस्कान हर
चेहरे पर देने

पाँच 

सालों मे
कम से कम
कुछ बार
जरूर
आ जायेगा।

रविवार, 29 जनवरी 2012

प्रचार बंद हुवा

शक्ति प्रदर्शन
चिल्ल पौं
हल्ला गुल्ला
भौं भौं
सब आज
हो गया पूरा
पांच बजे
और आम
जनता का
हुवा सवेरा
कान पक
गये थे
इतने दिनो
के शोर से
कल से
शायद बाग
की तितलियाँ
दिखाई दे जायेंगी
मधुमक्खियाँ वैसे
तो रोज ही
गुनगुनाया
करती ही हैं
पर अब उनकी
भिन भिन
सुनाई दे जायेंगी
नारे लगाते लगाते
थक गये होंगे
जो बेचारे
थोड़ा राहत
आज पायेंगे
नमक के
पानी से गरारे
भी शायद कुछ के
घरवाले करवायेंगे
जोश देखकर
लोगों का
वैसे आज मन
खुश बहुत हो गया
था मेरा
लग रहा था जैसे
नेता इस जलूस
के इसके बाद
बोर्डर पर
लड़ने जायेंगे ।