उलूक टाइम्स: छपना
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शनिवार, 31 अगस्त 2019

ठीक नहीं ‘उलूक’ थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना



आभार पाठक
 'उलूक टाइम्स' पर जुलाई 2016 के अब तक के अधिकतम 217629 हिट्स को 
अगस्त 2019 के 220621 हिट्स ने पीछे छोड़ा 
पुन: आभार 
पाठक


सुना गया है
अब हर कोई एक खुली हुयी किताब है 

हर पन्ना जिसका
झक्क है सफेद है और साफ है 

सभी लिखते हैं
आज कुछ ना कुछ
बहुत बड़ी बात है 

कलम और कागज ही नहीं रहे बस
बाकी सब इफरात है 

कोई नहीं लिखता है कहीं
किसी भी अन्दर की बात को 

ढूँढने निकलता है
एक सूरज को मगर
वो भी किसी रात को 

सोचता है साथ में
सब दिन दोपहर में
कभी आ कर उसे पढ़ें

कुछ वाह करें
कुछ लाजवाब
कुछ टिप्पणी
कुछ स्वर्णिम गढ़ें

समझ में
सब के सब कुछ
बहुत अच्छी तरह से आता है 

जितने से
जिसका काम चलता है
उतना समझ गया होता है
उसे
ढोल नगाड़े साथ ला कर
खुल कर
जरूर बताता है 

जहाँ फंसती है जान
होता है
बहुत बड़ी जनसंख्या से जुड़ा
कोई उनवान
शरमाना दिखा कर
अपने ही किसी डर के खोल में
घुस जाता है 

किस अखबार को
कौन कितना पढ़ता है
सारे आँकड़े
सामने आ जाते हैं 

किस अखबार में
कैसे अपनी खबर कोई
हर हफ्ते छपवा ले जाता है
कैसे हो रहा है होता है
ऐसा कोई
पूछने ही नहीं जाता है 

कोई
नजर नहीं आता है का मतलब
नहीं होता है
कि
समझ में नहीं आता है 

उलूक के लिये
बस
एक राय 

लिखना लिखाना छपना छपाना कहीं भीड़ कहीं खालिस सा वीराना
‘उलूक’ ठीक नहीं थोड़ा सा समझने के लिये इतने सारे साल लगाना 

चित्र साभार: https://www.123rf.com/

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

कुछ भी लिखे पर छपने लगे एक किताब क्या जरूरी है ऐसा हो जाये

कुछ
अच्छे पर

कुछ
अच्छा कभी
कहा जाये

और

एक
किताब हो जाये

दिखे
रखी हुई
सामने से कहीं

किताबों की बीच

किताबों की भी
किताब हो जाये

किसकी
चाहत नहीं
होती कभी

बहुत सी

खुश्बू भरी
हुई कुछ
ऐसी ही एक
बात हो जाये

कल
दिखे तो
पढ़े कोई

परसों दिखे
फिर पढ़े कोई

पढ़ते पढ़ते
पता ना चले

दिन
हो कहीं
और कहीं
रात हो जाये

यहाँ
रोज लिखी
देखता है

बेवकूफी
की एक
बाराहखड़ी

सब
अच्छा सा
होता होगा कहीं

उसे
देखने की
आदत होगी
तुझे भी पड़ी

बात बात में
कुछ भी लिखे
को देख कर
बोल देता है

अब
एक किताब
हो जाये

ऐसे में
कुछ नहीं
कहा जाता
किसी से

कहा भी
क्या जाये

अनहोनियाँ
हो रही हैं
जिस तरह
आसपास

तेरे भी
और
मेरे भी

तू ही बता

कितने
दिनों तक
देख देख कर
सब कुछ

चुप रहा जाये

आज फिर
कह दिया
‘उलूक’ से

कह
दिया होगा
बहुत मेहरबानी

अगली
बार से
इसी बात को

फिर
ना कहा जाये

इस
तरह
की बातें
लिखी भी
जायें कहीं

लिखी
जाते ही

मिटा
भी दी जायें

गीता
नहीं लिखी
जा रही हो अगर
कहीं किसी से

फिर
से ना
कह दिया जाये

अब
किताब
हो जाये ।