उलूक टाइम्स: जरूरी
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मंगलवार, 15 अगस्त 2023

आजादी के मायने सबके लिये उनके अपने हिसाब से हैं बस हिसाब बहुत जरूरी है

 


आजादी दिखने दिखाने तक ही ठीक नहीं है
आजादी है कितनी है उसे लिखना भी उतना ही जरूरी है

जब मिली थी आजादी सुना है एक कच्ची कली थी 
आज के दिन पूरा खिल गयी है फूल बन गयी है
स्वीकार कर लेना है
आज की मजबूरी है

बात देश की करते हैं नौजवान आजकल के 
झंडा फहराते हैं एक संगठन का
समझाते है राष्ट्र तिरंगे के फहराने के समय
अपनी अपनी श्रद्धा है अपनी अपनी जी हजूरी है 

ना सैंतालीस मैं पैदा हुऐ ना गांधी से रूबरू कभी
धोती लाठी नंगा बदन तीन बंदरों की टोली
समझने की कोशिश भर रही
गांधी वांगमय समझ में आया या ना आया
सच को समझने की कोशिश भर रही
कह ले कोई कितना फितूरी है

समय दिख रहा है दिखा रहा है सारा सब कुछ
ठहरे स्वच्छ जल में बन रही तस्वीर की तरह
लाल किले पर बोले गए शब्द कितने आवरण ओढे
तैरते सच की उपरी परत पर
देख सुन रही है एक सौ चालीस करोड जनता
दो हजार चौबीस के चुनाव के परीक्षाफल
चुनाव होना ही क्यों है उसके बाद
किसने कह दिया जरूरी है

‘उलूक’ चश्मा सिलवाता क्यों नहीं अपने लिये
पता नहीं क्यों उनके जैसा
टी वी अखबार वालों के पास होता है जैसा
पता नहीं क्या देखता है क्या सुनता है

आँख से अंधा कान से बहरा
पैदा इसी जमीन से हुआ
कुछ अजीब सा हो गया
इस में कहीं ना कहीं कोई तो गड़बड़ है
कागज़ कागज़ भर रहा है लेकिन
कलम कुछ बिना स्याही है
और सफ़ेद है कोरी है | 

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

रविवार, 11 अक्तूबर 2020

बाढ़ थमने की आहट हुई नहीं बकवास करने का मौसम आ जाता है

 

वैसे तो
सालों हो गये अब

कुछ नहीं लिखते लिखते

और ये कुछ नहीं अब

शामिल हो लिया है
आदतों में सुबह की
एक प्याली जरूरी चाय की तरह

फिर भी इधर कुछ दिनों
कागजों में बह रही
इधर उधर फैली हुई
बहुत कुछ की आई हुई बाढ़ से
बचने बचाने के चक्कर में

कुछ नहीं भी
पता नहीं चला कहाँ खो गया 
है

होते हुऐ पर कुछ लिखना
कहाँ आसान होता है

हमेशा
नहीं हुआ कहीं भी
ही आगे कहीं दिख रहा होता है

अब
दौड़ में शुरु होते समय पानी की

हौले हौले से कुछ बूँदें
नजर आ ही जाती हैँ 

देख लिया जाता है
इंद्रधनुष भी बनता हुआ कहीं
किसी कोने में छा सा जाता है 

कुछ के होते होते बहुत कुछ

शुरु होता है ताँडव
बूंदों का जैसे ही

पानी ही
पता नहीं चलता है
कि है कहीं
सारा बहुत कुछ खो सा जाता है

जैसे नियाग्रा 
जल प्रपात से गिरता हुआ जल
धुआँ धुआँ
होना शुरु हो जाता है

‘उलूक’ भी
गहरी साँस खींचता सा कहीं से

अपनी
देखी दिखाई सुनी सुनाई पर
बक बकाई ले कर
फिर से हाजिर होना
शुरु हो जाता है। 

चित्र साभार: https://www.gettyimages.co.uk/

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

बन्द कर ले दिमाग अपना, एक दिमाग करोड़ों लगाम सपना खूबसूरती से भरा है, किस बात की देरी है

मजबूरी है

बीच
बीच में
थोड़ा थोड़ा

कुछ
लिख देना
भी जरूरी है

उड़ने
लगें पन्ने

यूँ ही
कहीं खाली
हवा में

पर
कतर देना
जरूरी है

हजूर
समझ ही
नहीं पाते हैं

बहुत
कोशिश
करने के
बाद भी

कि यही
जी हजूरी है

फितूरों से
भरी हुयी है

दुनियाँ
यहाँ भी और वहाँ भी

कलम
लिखने वाले की
खुद ही फितूरी है

उलझ
लेते हैं फिर भी
पढ़ने पढ़ाने वाले

जानते हुऐ

टिप्पणी
ही यहाँ

बस
एक लिखे लिखाये
की मजदूरी है

आदत
नहीं है
झेलना
जबरदस्ती
फरेबियों को

रोज देखते हैं
समझते हैं

रिश्तेदार
उनके ही जैसे
आस पास के

टटपूँजियों से
बनानी दूरी है

‘उलूक’
दिमाग अपना
खोलना ही क्यूँ है

लगी
हुयी है भीड़
आँखे कान नाक
बन्द करके

इशारे में
कहीं भी
किसी
अँधे कूँऐं में
कूद लेने
की तैयारी

किस
पागल ने
कह दिया
अधूरी है ।

चित्र साभार: https://free.clipartof.com/details/1833-Free-Clipart-Of-A-Controlling-Puppet-Master

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

अभी अभी पैदा हुआ है बहुत जरुरी है बच्चा दिखाना जरूरी है

जब भी तू
समझाने की
कोशिश करता है
दो और दो चार

कोई भाव
नहीं देता है
सब ही कह देते हैं
दूर से ही नमस्कार

जमाने की नब्ज में
बैठ कर जिस दिन
शुरु करता है तू
शब्दों के
साथ व्यभिचार

जयजयकार गूँजती
है चारों ओर
और समझ में
आना शुरु होता है
उसी क्षण से व्यवहार।

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शव का इंतजार नहीं शमशान का खुला रहना जरूरी होता है

हाँ भाई हाँ
होने होने की
बात होती है
कभी पहले सुबह
और उसके बाद
रात होती है
कभी रात पहले
और सुबह उसके
बाद होती है
फर्क किसी को
नहीं पड़ता है
होने को जमीन से
आसमान की ओर
भी अगर कभी
बरसात होती है
होता है और कई
बार होता है
दुकान का शटर
ऊपर उठा होता है
दुकानदार अपने
पूरे जत्थे के साथ
छुट्टी पर गया होता है
छुट्टी लेना सभी का
अपना अपना
अधिकार होता है
खाली पड़ी दुकानों
से भी बाजार होता है
ग्राहक का भी अपना
एक प्रकार होता है
एक खाली बाजार
देखने के लिये
आता जाता है
एक बस खाली
खरीददार होता है
होना ना होना
होता है नहीं
भी होता है
खाली दुकान को
खोलना ज्यादा
जरूरी होता है
कभी दुकान
खुली होती है और
बेचने के लिये कुछ
भी नहीं होता है
दुकानदार कहीं
दूसरी ओर कुछ
अपने लिये कुछ
और खरीदने
गया होता है
बहुत कुछ होता है
यहाँ होता है या
वहाँ होता है
गन्दी आदत है
बेशरम ‘उलूक’ की
नहीं दिखता है
दिन में उसे
फिर भी देखा और
सुना कह रहा होता है ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

गाय बहुत जरूरी होती है श्राद्ध करने के बाद पता चल रहा था


श्राद्ध पक्ष अष्टमी पिता जी का श्राद्ध 
सुबह सुबह पंडित जी करवा कर गये आज 

साथ में श्राद्ध में प्रयोग हुऐ व्यँजनों को 
किसी भी गाय को खिलाने का निर्देश भी दे गये 

गलती से भी 
कौर खाने का किसी बैल के मुँह में 
गाय से पहले ना लगे जरा सा 
खबरादर भी कर के गये 

श्राद्ध करने कराने तक तो सब 
आसान सा ही लग रहा था 

कोई मुश्किल नहीं पड़ी थी 
सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था 

गाय की बात आते ही 
समस्या लेकिन बड़ी एक खड़ी हो गई थी 

रोज कई दिनों से अखबार टी वी रेडियो 
जगह जगह से गाय गाय की माला जपना 
हर किसी का दिखता हुआ मिल रहा था 

गाय को देखे सुने कई जमाने हो चुके थे 
घर के आस पास दूर दूर तक 
गाय का पता नहीं मिल रहा था 

घर से निकला 
हर दुकान में गाय का 
प्लास्टिक का पुतला जरूर दिख रहा था 

पीठ में एक छेद था पैसा डालने के लिये 

आगे कहीं एक नगरपालिका का कूड़ेदान दिख रहा था 

एक घायल बैल 
प्लास्टिक के एक बंद थेले के अंदर के 
कचरे के लिये जीजान से उस पर पिल रहा था 

‘उलूक’ चलता ही जा रहा था 
गाय की खोज में 
गाय गाय सोचता हुआ चल रहा था 

खाने से भरा थैला 
उसके दायें हाथ से कभी बायें हाथ में 
कभी बायें हाथ से दायें हाथ में 
अपनी जगह को बार बार बदल रहा था ।

चित्र साभार: www.allfreevectors.com

बुधवार, 19 अगस्त 2015

सरकारी स्कूल में जरूरी है अब पढ़ाना कोर्ट का आदेश है शुरु होना ही है शुरु हो भी जायें

ओ मास्साब
क्षमा करें
ओ मास्टरनी
भी कहा जाये
सारे पढ़ाने वाले
अपने उपर
इस बात को
ना ले जायें
यू जी सी के
प्रोफेसरान
बिल्कुल भी
ना घबरायें
अपनी मूँछों
में मक्खन
तेल लगायें
अगर मूँछे
नहीं हैं बहुत
छोटी सी
बात है
बस एक
मजाक है
परेशान भी
नजर नहीं आयें
सरकारी है
गैर सरकारी है
कान्वेंट का है
कहाँ का
पढ़ाने वाला है
बस इतना
ही यहाँ बतायें
तन्खा रोटी दाल
में घीं डालने
के लिये मिल
ही जाती है
उसके उपर
का तड़का
कहाँ से क्या क्या
करके लाते हैं
जरा जनता को
भी कभी समझाँयें
इंकम टैक्स वाले
भी जरा नींद से जागें
बस बीस करोड़
खाने वालों को छोड़ कर
कभी बीस बीस कर बीसों
जोड़ लेने वालों की
तकियों के नीचे
भी झाँक कर आयें
उत्तर प्रदेश के कोर्ट
के आदेश से जरा
भी ना घबरायें
पूरे देश में ना फैले
ये बीमारी जतन
करने में लग जायें
लगे रहें इसी तरह से
पढ़ाई की क्वालिटी
के ज्ञान विज्ञान
पर चर्चा कर दुनियाँ
को बेवकूफ बनायें
कोई नहीं भेजने
वाला है अपने पूत
कपूतो को कहीं भी
दाल भात बटने वाले
सकूल में बिना इस
देश के भगवान
से पूछे पाछे
इस तरह की अफवाह
कृपया ना फैलायें
‘उलूक’ की तरह रोज
नोचें एक खम्बा कहीं
अपने ही किसी
खम्बों में से ही
देश को इसी तरह
खम्बों के जुगाड़ से
उठाने का जुगाड़
लगाने का जुगाड़
बनायें और बनाते
ही चले जायें
दाऊद बस ये आया
आ गया ये
पकड़ा गया
बस सोचें और
खुल कर मुस्कुरायें।

चित्र साभार: magnificentmaharashtra.wordpress.com

शनिवार, 8 अगस्त 2015

हर कोई मरता है एक दिन मातम हो ये जरूरी नहीं होता है

हर बाजार में
हर चीज बिके
ये जरूरी भी
नहीं होता है
रोज बेचता है कुछ
रोज खरीदता है कुछ
उसके बाद भी कैसे
किसी को अंदाजा
नहीं होता है
किसी की मौत
कहाँ बिकेगी
कौन कब और
कहाँ पैदा होता है
कहीं सुंदर सी
आँखों की गहराई
ही बिकती है
कहीं खाली आवाज
गुंजाता हुआ
खंडहर हो चुके
एक कुऐं में भी
प्राइस टैग बहुत
उँचे दामों का
लगा होता है
कहीं बहुत भीड़
नजर आती है
और सामने से
बहुत कुछ उधड़ा
हुआ सा होता
ये जरूरी नहीं है
जिंदगी का फलसफा
हर किसी के लिये
हमेशा एक सा होता है
किसी को खून देखकर
गश आना शुरु होता है
किस को अगर नशा
होता है तो बस गिरे हुऐ
खून के लाल रंग को
देखने से ही होता है
बहुत मरते हैं रोज
कहीं ना कहीं दुनियाँ
के किसी कोने में
हर किसी के मरने
का मातम जरूरी नहीं है
हर किसी के यहाँ होता है ।

चित्र साभार: www.examiner.com

मंगलवार, 23 जून 2015

परिवर्तन दूर बहुत दूर से बस दिखाना जरूरी होता है

बहुत साफ समझ में
आना शुरु होता है
जब आना शुरु होता है
बात बदल देने के लिये
शुरु होती है बहुत
जोर शोर से सब कुछ
जड़ से लेकर शिखर तक
पेड़ ऐसा मगर कहीं
लगाना नहीं होता है
बात जंगल जंगल
लगाने की होती है
बात जंगल जंगल
फैलाने की होती है
जंगल की तरफ
मगर किसी को
जाना नहीं होता है
परिवर्तन परिवर्तन
सुनते सुनते उम्र
गुजर जाने को होती है
परिवर्तन की बातों में
करना होता है परिवर्तन
समय के हिसाब से
परिवर्तन लिखना होता है
परिवर्तन बताना होता है
परिवर्तन लाने का तरीका
नया सिखाना होता है
इस सब के बीच बहुत
बारीकी से देखना
समझना होता है
परिवर्तन हो ना जाये
अपने अपने हिसाब
किताब के पुराने
बहीखातों में इसलिये
इतना ध्यान जरूरी
रखना होता है
इसका उसका
दोस्त का दुश्मन का
साथ रखना होता है
गलती से ना आ पाये
परिवर्तन भूले भटके
गली के किनारों से भी
कहीं ऐसे किसी रास्ते को
भूल कर भी जगह पर
छोड़िये जनाब ‘उलूक’
कागज में बने नक्शों
में तक लाना नहीं होता है ।

चित्र साभार: jobclipart.com

शनिवार, 23 मई 2015

जरूरी कितना जरूरी और कितनी मजबूरी

दुविधाऐं
अपनी अपनी
देखना सुनना
अपना अपना
लिखना लिखाना
अपना अपना
पर होनी भी
उतनी ही जरूरी
जितनी अनहोनी
दुख: सुख: अहसास
खुद के आस पास
बताना भी उतना
ही जरूरी जितना
जरूरी छिपाना
खुद से ही खुद
को कभी कभी
खुद के लिये ही
समझाना भी
बहुत जरूरी
समझ में आ जाने
के बाद की मजबूरी
परेशानी का आना
स्वागत करना भी
उतना ही जरूरी
जितना करना
उसके नहीं आने
की कल्पना के साथ
कुछ कुछ कहीं
कभी जी हजूरी
भावनाऐं अच्छी भी
उतनी ही जरूरी
जितनी बुरी कुछ
बुरे को समझने
बूझने के लिये
निभाने के लिये
अच्छाई के
साथ बुराई
बुराई के
साथ अच्छाई
बनाते हुऐ कुछ
नजदीकियाँ
साथ लिये हुऐ
बहुत ज्यादा नहीं
बस थोड़ी सी दूरी
सौ बातों की एक बात
समय के मलहम
से भर पायें घाव
समय के साथ
समय की आरी से
कहीं कुछ कटना
कुछ फटना भी
उतना ही जरूरी ।

चित्र साभार: chronicyouth.com

सोमवार, 9 सितंबर 2013

लड़खड़ाने के लिये पीना जरूरी नहीं है !

तेरा लिखा हुआ
आजकल मुझे
बहका हुआ सा
नजर आता है
तू पता नहीं
क्या करता है
तेरा लिखा हुआ
जरूर कुछ तो
कहीं से पीकर
के आता है
नशे में होना
फिर नशे की
बात पर कुछ
हिलते डुलते
हुऎ लिखना
नहीं पीने वाले
के भी समझ में
आ ही जाता है
लिखा हुआ हो
किसी का और
पढ़ते पढ़ते
पढ़ने वाले को
ही पड़ जाये
हिलना और डुलना
ऎसा तो कहीं भी
नहीं देखा जाता है
बिना पिये भी कोई
शराबी सा कभी
लिख ले जाता है
इसका मतलब
ये नहीं कि उसको
पीना भी आता है
लिखने वाला
लिख रहा है
क्या ये कम नहीं
चारों तरफ उसके
सब कुछ जब
शराबी शराबी
सा हो जाता है
ना बोतल नजर
आती है कहीं
ना कोई गिलास
नजर आता है
शराब भी नहीं
होती है कहीं पर
कुछ माहौल ही
शराबी हो जाता है
होश में रहने वाले
माने जाते हैं
जहाँ के सब लोग
वहाँ के हर आदमी
का हर काम
लड़खड़ाता हुआ
नजर आता है
ऎसे में लिखा
जा रहा है कुछ
लड़खड़ाता हुआ
ही मान लो सही
संभालने के लिये
तू ही थोड़ा सा
आगे क्यों नहीं
खुद आ जाता है ।

बुधवार, 30 मई 2012

झंडा है जरूरी

ये मत समझ लेना
कि वो बुरा होता है

पर तरक्की पसन्द
जो आदमी होता है

किसी ना किसी
दल से जरूर
जुड़ा होता है

दल से जो 
जुड़ा
हुवा नहीं होता है

उसका दल तो
खुद खुदा होता है

स्टेटस उसका बहुत
उँचा उठा होता है

जिसके चेहरे पर
झंडा लगा होता है

सत्ता होने ना होने
से कुछ नहीं होता है

इनकी रहे तो
ये उनको
नहीं छूता है

उनकी रही तो
इनको भी कोई
कुछ नहीं कहता है

इस बार इनका
काम आसान होता है
उनका ये समय तो
आराम का होता है

अगली बार उनका
हर जगह नाम होता है
इनका कुन्बा दिन
हो या रात सोता रहता है

बिना झंडे वाले
बकरे का
बार बार काम
तमाम होता है

जिसे देखने
के लिये भी
वहाँ ना ये होता है
ना ही वो होता है

भीड़ काबू करने का
दोनो को जैसे कोई
वरदान होता है

भीड़ के एक छोटे
हिस्से पर इनका
दबदबा होता है
बचे हिस्से को
जो काबू में
कर ही लेता है

अपने कामों को
करने के लिये
झंडा मिलन भी
हो रहा होता है

मीटिंग होती है
मंच बनता है
उस समय इनका
झंडा घर में सो
रहा होता है

पर तरक्की पसंद
जो आदमी होता है
किसी ना किसी
झंडे से जुड़ा होता है

जिसका
कोई झंडा
नहीं होता है
वो कभी भी
ना ये होता है
ना वो होता है।