उलूक टाइम्स: जुबान
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शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

इतना लिख कि लिख लिख कर कारवान लिख दे


चल रहने दे सब जमीन की बातें
कभी तो कोशिश कर थोड़ा सा आसमान लिख दे
लिखते लिखते घिस चुकी सोच
छोड़ एक दिन बिना सोचे पूरा एक बागवान लिख दे

ला लिखेगा जमा किया महीने भर का
जैसे एक दिन में कोई पूरा कूड़ेदान लिख दे
किसलिये करनी है इतनी मेहनत 
कौन कहता है तुझसे चल एक बियाबान लिख दे

सबको लिखना है सबको आता है लिखना 
तू अपना लिख पूरा इमतिहान लिख दे
किसने बूझना है लिखे को किसे समझना है 
आधा लिख चाहे पूरा दीवान लिख दे

होता रहा है होता रहेगा आना जाना यहां भी वहां भी 
रास्ते रास्ते निशान लिख दे
तू ना सही कोई और शायद कर ले कोशिश लौटने की फिर यहीं 
खाली उनवान लिख दे

आदत है तो है मगर ठीक नही है लिखना इस तरह से खीच कर 
पूरी लम्बी एक जुबान लिख दे
निकले कुछ तो मतलब कभी लिखे का तेरे ‘उलूक’ 
मत लिखा कर इस तरह कि दुकान लिख दे

चित्र साभार: https://www.indiamart.com/

सोमवार, 12 अगस्त 2019

तेरे जैसे कई हैं ‘उलूक’ बिना धागे के बनियान लिखते हैं


तारे
कुछ 
रोशनी के 
सामान 
लिखते हैं 

चाँद 
लिखते हैं 
आसमान 
लिखते हैं 

मिट्टी
पत्थर 
कुछ 
बेजुबान 
जमीन के 

सोच 
बैठते हैं 
वही
एक हैं 

जो 
जुबान 
लिखते हैं 

सिलवटें 
लिखते हैं 

सरेआम 
लिखते हैं 

कुछ 
लकीरें 
सोच कर 

तीर
कमान 
लिखते हैं 

कितना 
लिखते हैं
कुछ 

कई 
पन्नों में
बस 

हौले से 
मुस्कुराता
हुआ 
उनवान
लिखते हैं 

कुछ 
घर का 
लिखते हैं 

कुछ 
शहर का 
लिखते हैं 

थोड़े 
से
कुछ 

बस
मकान 
लिखते हैं 

अन्दर 
तक 

घुस के 
चीर 
देता है 

किसी 
का लिखना 

थोड़े से 
कुछ
बेशरम 

नुवान
लिखते हैं 

दाद देना 
बस में 
नहीं है 

दिखाते 
जरूर
हैं 

हिंदुस्तान 
लिखते हैं 

क्यों 
नहीं
लिखता 
कुछ नया 

लिखने जैसा 

तेरे जैसे 
कई हैं 
 ‘उलूक’ 

बिना 
धागे के 

बनियान 
लिखते हैं ।

 चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

रविवार, 25 मार्च 2012

सारे साहब

अपने रोज के नये साहब
को नया सलाम बोलता है
आके फिर से यहाँ
वो किताब खोलता है
सुबह खोलता है
शाम खोलता है
किताब के पन्ने
एक गुलाम खोलता है
देख कर नये पन्ने
जब दिमाग डोलता है
कई बार खोलता है
अपने आप बोलता है
खेल नहीँ खेलता है
खिलाड़ी को झेलता है
फुटबाल बना के कोई
जब हवा पेलता है
हर कोई अपने को
साहब बोलता है
गुलाम कभी नहीं
जुबान खोलता है
अपने रोज के नये साहब
को नया सलाम बोलता है
आके फिर से यहाँ
वो किताब खोलता है।