उलूक टाइम्स: डाकू
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शनिवार, 27 सितंबर 2014

छोटी चोरी करने के फायदों का पता आज जरूर हो रहा है

                               

चोर होने की औकात है नहीं डाकू होने की सोच रहा है 
तू जैसा है वैसा ही ठीक है 
तेरे कुछ भी हो जाने से 
यहाँ कुछ
नया जैसा नहीं हो रहा है 

थाना खोल ले
घर के किसी भी कोने में 
और सोच ले
कुर्सी पर बैठा एक थानेदार 
मेज पर अपना सिर टिका कर सो रहा है 

देख नहीं रहा है दूरदर्शन आज का 
कुछ अनहोनी सी खबर कह रहा है 

चार साल के लिये अंदर हो जाने वाली है 
और ऊपर से
सौ करोड़ जमा करने का आदेश भी
न्यायालय
उसको साथ में दे रहा है 

बेचारी को
बहुत महँगा पड़ रहा है 
दोस्त देश के बाहर गया हुआ भी 
दो शब्द साँत्वना के नहीं कह रहा है 

समझ में
ये नहीं आ पा रहा है कि 
पुराना घास खा गया घाघ अभी तक अंदर है 
या बाहर कहीं किसी जगह अब मौज में सो रहा है 
खबर ही नहीं आती है उसकी कुछ भी मालूम नहीं हो रहा है 

आज कुछ कुछ
कोहरे के पीछे का मंजर
थोड़ा सा कुछ साफ जैसा हो रहा है 

बहुत समझदार है
मध्यम वर्गीय चोर मेरे आस पास का 
ये आज ही सालों साल सोचने के बाद भी बिना सोचे 
बस आज और आज ही पता हो रहा है 

हाथ लम्बे
होने के बाद भी 
लम्बे हाथ मारने का खतरा कोई फिर भी 
क्यों नहीं ले रहा है 

बस थोड़ा थोड़ा
खुरच कर दीवार का रंग रोगन 
अपने आने वाले भविष्य की संतानों के लिये
बनने वाले सपने के ताजमहल की पुताई का 
मजबूत जुगाड़ ही तो हो रहा है 

‘उलूक’ बैचेन है 
आज जो भी हो रहा है किसी के साथ 
इस तरह का बहुत अच्छा जैसा तो नहीं हो रहा है 

थोड़ी थोड़ी करती
रोज कुछ करती हमारी तरह करती 
तो पकड़ी भी नहीं जाती 
शाबाशियाँ भी कई सारी मिलती 
जनता रोज का रोज ताली भी साथ में बजाती 
सबकी नहीं भी होती
तो भी 
दो चार शातिरों की फोटो
खबर के साथ अखबार में 
रोज ही किसी कालम में नजर आ ही जाती 

दूध छोड़ कर
बस मलाई चोर कर खाने का 
बिल्कुल भी अफसोस 
आज जरा सा भी नहीं हो रहा है । 

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/