उलूक टाइम्स: तीन महीने
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शनिवार, 6 जुलाई 2013

पता नहीं चलता, चलता भी तो क्या होता ?

पता ही कहाँ
चल पाता है
जब कोई भगवान
अल्लाह या
मसीहा
हो जाता है
पता ही कहाँ
चलता है
जब आदमी
होना बेमानी
हो जाता है
पता ही कहाँ
चलता है जब
सब संडास
हो जाता है
पता ही कहाँ
चलता है जो
मजा आ रहा है
वो सड़ांध
फैलाने से
सबसे ज्यादा
आता है
पता ही
कहाँ चलता है
सड़ांध और संडास
का कोई कब
आदी हो जाता है
पता ही कहाँ
चल पाता है
तीन तीन साल
आकर आराम करने
वालों में से एक
छ : महीने में ही
भाग जाता है
पता ही कहाँ
चल पाता है
उसके जाते ही
ऊपर का ऎक
किसी के ना
चाहते हुऎ भी
आ जाता है
पता चलता है
वो भी जल्दी
छोड़ के जाना
चाहता है
पता कहाँ
चलता है
अखबार को
ये सब सबसे
पहले कौन
जा कर
बता आता है
पता चलता है
सड़ांध का आदी ही
संडास को सबसे
आसानी से चला
ले जाता है
पता चल
जाता है
बाहर से
आने वाला
संड़ाध को झेल
ही नहीं
पाता है
तीन साल नहीं
तीन महीने में
ही भाग
जाता है ।