उलूक टाइम्स: परिवर्तन
परिवर्तन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
परिवर्तन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 23 जून 2015

परिवर्तन दूर बहुत दूर से बस दिखाना जरूरी होता है

बहुत साफ समझ में
आना शुरु होता है
जब आना शुरु होता है
बात बदल देने के लिये
शुरु होती है बहुत
जोर शोर से सब कुछ
जड़ से लेकर शिखर तक
पेड़ ऐसा मगर कहीं
लगाना नहीं होता है
बात जंगल जंगल
लगाने की होती है
बात जंगल जंगल
फैलाने की होती है
जंगल की तरफ
मगर किसी को
जाना नहीं होता है
परिवर्तन परिवर्तन
सुनते सुनते उम्र
गुजर जाने को होती है
परिवर्तन की बातों में
करना होता है परिवर्तन
समय के हिसाब से
परिवर्तन लिखना होता है
परिवर्तन बताना होता है
परिवर्तन लाने का तरीका
नया सिखाना होता है
इस सब के बीच बहुत
बारीकी से देखना
समझना होता है
परिवर्तन हो ना जाये
अपने अपने हिसाब
किताब के पुराने
बहीखातों में इसलिये
इतना ध्यान जरूरी
रखना होता है
इसका उसका
दोस्त का दुश्मन का
साथ रखना होता है
गलती से ना आ पाये
परिवर्तन भूले भटके
गली के किनारों से भी
कहीं ऐसे किसी रास्ते को
भूल कर भी जगह पर
छोड़िये जनाब ‘उलूक’
कागज में बने नक्शों
में तक लाना नहीं होता है ।

चित्र साभार: jobclipart.com

बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

राम का भरोसा रख बहुत कुछ होने वाला है

सुनाई
दे रहा है
बहुत बड़ा
परिवर्तन
जल्दी ही
होने वाला है

चुनाव
की जगह
सरकार के
नुमाइंदो
और
अध्यक्षों के
पदों के लिये
समाचार पत्रों
में विज्ञापन
आने वाला है

ना भी
हो रहा हो
ऐसा मान लिया
सोचने में
ऐसी बात को
किसी का क्या
जाने वाला है

इस सब
के लिये
सबसे पहले
कुछ बीच के
लोगों का
चुनाव किया
जाने वाला है

उसके लिये
सबसे पहले
देख लिया
जाने वाला है
कि कौन है
ऐसा जो
इधर भी
और
उधर भी
आने जाने
वाला है

पूजा पाठ
मंदिर
आने जाने से
कुछ नहीं
कहीं होने
वाला है

अगर डंडे
पर लगे हुऐ
झंडे को
अपने घर
और
अपने सर
पर नहीं
लगाने वाला है

मंदिर की
घंटियों को
बेचने वाले को
पुजारी
छांटने के लिये
बुलाया
जाने वाला है

जमाना
बदल रहा है
बहुत तेजी से
देखता रह

कपड़े पहने
हुऐ दिखेगा
जो भी शहर
की गलियों में
अंदर कर दिया
जाने वाला है

समय की
बलिहारी है
छुप छुपा
के हो रहा है
जो भी जहां भी
खुले आम होते हुऐ
जल्दी ही दिखाई
देने वाला है ।

मंगलवार, 1 मई 2012

"चर्चा जारी है"

बहुत वाद
विवाद
के बाद
कुछ निकल
कर के आया

एक वक्ता
ने बताया

बंदरों की
शक्लों में
समय
के साथ

किस
तरह का
परिवर्तन
है आया

शहर में
आजकल
हर मुहल्ले
के बंदर
अलग अलग
सूरतों के
नजर आ रहे हैं

आदतों में भी
किसी मुहल्ले
वासी से मेल
नहीं खा रहे हैं

जबकि
देखा गया है
अफ्रीका के
बंदर अफ्रीकी

योरोप के
बंदर यूरोपी

भारत के बंदर
भारतीय
जैसे ही
दिखाई
दिया करते हैं

जैसा जनता
करती है
वैसा ही
वहां के
बंदर भी
ज्यादातर
किया करते हैं

कोई
ठोस उत्तर
जब कोई
नहीं दे पाया

तो इस विषय
को अगली
संगोष्ठी में
उठाया जायेगा
करके
किसी ने बताया

वैसे भी
इस बार
थोड़ी
जल्दीबाजी
के कारण

बंदरों का
प्रतिनिधि
शरीक
नहीं हो पाया

बंदरों की
तरफ से
कोई जवाब
किसी ने भी
दाखिल
नहीं कराया।