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बुधवार, 30 मई 2012

झंडा है जरूरी

ये मत समझ लेना
कि वो बुरा होता है

पर तरक्की पसन्द
जो आदमी होता है

किसी ना किसी
दल से जरूर
जुड़ा होता है

दल से जो 
जुड़ा
हुवा नहीं होता है

उसका दल तो
खुद खुदा होता है

स्टेटस उसका बहुत
उँचा उठा होता है

जिसके चेहरे पर
झंडा लगा होता है

सत्ता होने ना होने
से कुछ नहीं होता है

इनकी रहे तो
ये उनको
नहीं छूता है

उनकी रही तो
इनको भी कोई
कुछ नहीं कहता है

इस बार इनका
काम आसान होता है
उनका ये समय तो
आराम का होता है

अगली बार उनका
हर जगह नाम होता है
इनका कुन्बा दिन
हो या रात सोता रहता है

बिना झंडे वाले
बकरे का
बार बार काम
तमाम होता है

जिसे देखने
के लिये भी
वहाँ ना ये होता है
ना ही वो होता है

भीड़ काबू करने का
दोनो को जैसे कोई
वरदान होता है

भीड़ के एक छोटे
हिस्से पर इनका
दबदबा होता है
बचे हिस्से को
जो काबू में
कर ही लेता है

अपने कामों को
करने के लिये
झंडा मिलन भी
हो रहा होता है

मीटिंग होती है
मंच बनता है
उस समय इनका
झंडा घर में सो
रहा होता है

पर तरक्की पसंद
जो आदमी होता है
किसी ना किसी
झंडे से जुड़ा होता है

जिसका
कोई झंडा
नहीं होता है
वो कभी भी
ना ये होता है
ना वो होता है।

मंगलवार, 31 जनवरी 2012

वोट घुस गया

लम्बे इंतजार के बाद
हुवा आज मैं सपरिवार
वोट देने के लिये तैयार
बहुत खुश था जैसे
बनाने जा रहा था अपनी
केवल अपनी सरकार
वोटर आई डी कार्ड
लौकर से निकाला
बटुवे की चोर जेब
के अंदर डाला
जूते को पौलिश लगाया
सिर में तेल डाल
बालों को संवारा
छोटे बेटे को बताया
पड़ोसी को सुनाया
दरवाजा अंदर से
बंद जरूर कर लेना
वोट डालने जा रहा हूँ
यूँ गया और यूँ ही
वापस आ रहा हूँ
एक बूथ के बगल
से निकल रहा था
हर पार्टी का आदमी
बड़ी आशा भरी
निगाहो से हमे
तौल रहा था
हौले हौले अपने
बूथ पर पहुंच पाया
लिस्ट देखने वाले को
वोटर आई डी कार्ड
मैने हाथ में थमाया
पूरी लिस्ट जब छान
मारी तो अपना ही
नहीं पूरे परिवार के
नामों को गायब पाया
निराश हो कर
अगल बगल
के कुछ और बूथों में
चक्कर लगाया
मैं अपने परिवार के
सांंथ खो चुका था
किसी को कहीं
भी नहीं ढूंड पाया
वापस लौट के जब आ
रहा था चाल में वो
तेजी नहीं पा रहा था
मन ही मन चुनाव आयोग
को धन्यवाद देता जा रहा था
एक कविता अपनी भड़ास का
अंतिम हथियार कुड़ता हुवा
सोचता चला जा रहा था
आज शायद एक पाप
करने से ऊपर वाले
ने मुझे बचा लिया
इसीलिये मेरा
और मेरे परिवार
वालों के नाम को
वोटर लिस्ट से
ही हटा लिया ।

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

चुनाव

चूहा कूदा फिर कूदा
कूद गया फिसल पड़ा
एक कांच के गिलास
में जाकर डूब गया
छटपटाया फड़फड़ाया
तुरंत कूद के बाहर
निकल आया
सामने देखा तो
दिखाई दे गयी
अचानक उसे
एक बिल्ली
पर ये क्या
बिल्ली तो
नांक मुंह
सिकोड़ने
लगी
चूहे से मुंह
मोड़ने लगी
चूहा कुछ फूलने
सा लगा
थोड़ा थोडा़ सा
झूमने भी लगा
बिल्ली को देख कर
पूंछ उठाने लगा
फिर बिल्ली को
धमकाने लगा
बिल्ली बोली
बदबू आ रही है
जा पहले नहा के आ
वर्ना अपनी शकल
मुझे मत दिखा
चूहा मुस्कुराया
फिर फुसफुसाया
हो गया ना कनफ्यूजन
गिलास में क्या गिरा
बदबू तुम्हें है आने लगी
पर गिलास में शराब
नहीं है दीदी
वहां तो सरकार है
चुनाव नजदीक आ रहा है
टिकट बांटे जा रहे हैं
मैंने फिसल के
अपना भाग्य है चमकाया
जीतने वाली पार्टी
का टिकट उड़ाया
और कूद के बाहर
हूँ आया।