उलूक टाइम्स: पालतू
पालतू लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
पालतू लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

क्या हुआ अगर खुद लिख कर खुद ही कोई समझ रहा है

रात रात भर
भौंक रहा है
आजकल घर का
पालतू कुत्ता
भौंक रहा है तो
भौंक रहा है
रोकने की कोशिश
भी जारी है
पर फिर भी कुछ
कहीं नहीं हो रहा है
अब जब आदमी को
मौका मिल रहा है
स्कूल जाने का
तो पढ़ लिख
ले रहा है
कोई कहीं भी उसे
रोक नहीं रहा है
जो नहीं जा पा
रहा है स्कूल
वो पढ़े लिखों की
संगत में रहकर
पढ़ने लिखने की
सोच ले रहा है
क्या बुरा कर रहा है
जहाँ तक कुछ
लिख लेने की
बात आती है
लिखना बस
चाहने तक की
बात होती है
हर कोई कुछ ना कुछ
लिख ही ले रहा है
अब कौन लिख रहा है
क्या लिख रहा है
क्यों लिख रहा है
किस पर लिख रहा है
किसी को इस सब से
कहाँ कोई मतलब
जैसा ही हो रहा है
खाना खाता है हर कोई
एक समय मिल गया
तो भी ठीक
नहीं तो कोई दो दो समय
भी अपना पेट भर रहा है
सुबह से लेकर शाम तक
कभी ना कभी फारिग
भी हो ले रहा है
चल रहा है होना ही है
इसलिये हो रहा है
किसी के फारिग
हो लेने से किसी को
क्या कोई फर्क पड़ रहा है
क्या किया जाये अगर
दिमाग किसी का
चल रहा है
चल रहा है तो
चल रहा है
कमप्यूटर के प्रिंटर का
रिफिल जो क्या है
कह दिया जाये
आज खाली हो रहा है
बाजार में नया
नहीं मिल रहा है
फर्क बस इतना है
कि पालतू कुत्ता
अकेला भौं भौं
नहीं कर रहा है
पूरी रात भौकता है
जब एक बार
शुरु कर रहा है
शहर के हर कोने से
कोई ना कोई जानवर
पालतू या आवारा
उसका साथ देने में
कोई कसर भी
नहीं कर रहा है
बात अलग है
कि उलूक के पल्ले
कुछ नहीं पड़ रहा है
इतना सोच कर बस
खुश हो ले रहा है
कि पढ़े लिखे होने का
असर कहीं तो
किसी पर पड़ रहा है !

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

करे तो सही कोई समझौता वो करना सिखाना चाहता है

जानवर को पालतू
हो जाने में कोई
परेशानी नहीं होती है
काबू में आसानी
से आ जाता है
कोशिश करता है
सामंजस्य बैठाने की
हर अवस्था में
अगर बांध दिया
जाता है जंजीर से
तब भी मान लेता है
बंधन को और
खुश रहता है
ऐसा लगता है
क्योंकि खुल गया कभी
तो कहीं नहीं जाता है
वापस लौट आता है
लगता है जानवर को
आदमी बहुत अच्छी
तरह से समझ
में आता है
आदमी भी तो आदमी
से हमेशा सामंजस्य
बिठाना चाहता है
बराबरी की बने रहे रिश्तेदारी
इसलिये स्टूल में बैठ कर
सामने वाले को जमीन
में बैठाना चाहता है
स्टूल में बैठना बहुत
ही दुखदायी होता है
हर बात में इसी बात को
समझाना चाहता है
बना रहता है सामंजस्य
हमेशा तब तक जब तक
जमीन पर बैठा आदमी
अपने लिये भी एक
स्टूल नहीं बनवाना चाहता है
कोई स्टूल कोई रस्सी
कोई जंजीर कहीं भी
किसी को नजर
नहीं आती है
हर किसी के लिये
हर कोई एक
अलग ही तरीका
इस सब में
अपनाना चाहता है
दिखती रहे सबको
रेगिस्तान में हरियाली
समझदारी से
सारी बातों को
इशारों में ही समझा
ले जाना चाहता है
आदमी की तरह बना रहे
आदमी की तरह करता रहे
आदमी की तरह दिखता रहे
हर समय हर जगह
बस अपने सामने
अपने आस पास ही
एक जानवर जैसा ही
बना ले जाना चाहता है
इस तरह के समझौते
होते रहे आपस में
वो भी मिल जुल कर
एक का समझौता
दूसरे को कभी भूल कर भी
बताना नहीं चाहता है ।