उलूक टाइम्स: पैमाने
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बुधवार, 3 मार्च 2021

बकवास बिना कर लगे है करिये कोई नहीं है जो कहे सब पैमाने में है

 

सालों हो गये
कुछ लिख लेने की चाह में
कुछ लिखते लिखते पहुँच गये
आज इस राह में

शेरो शायरी खतो किताबत
पता नहीं क्या क्या सुना गया लिखा गया

याद कुछ नहीं रहा
बस एक मेरे लिखे को
तेरे समझ लेने की चाह में

वो सारे
तलवार लिये बैठे हैं हाथ में
सालों से
कलम छोड़ कर बेवकूफ
तू लगता है
ले कर बैठेगा एक कलम भी कब्रगाह में

उनके साथ हैं
उन की जैसी सोच के लोग हैं

और 
बड़ी भीड़ है 
कोई बात नहीं है 

तेरा जैसा है ना एक आईना 
देख ले खुश हो ले 
तेरे साये में है

झूठ के साथ हैं 
कई झूठ हैं सब साथ में हैं
आज हैं और डरे हुऐ हैं
डराने में हैं

जहर खा लो कह लो
कह देने वाले
कहीं कोने में बैठे हैं बेगानों में हैं

‘उलूक’
लिखना है तुझे
कुछ बकवास सा ही हमेशा

कोई
कर नहीं लगना है
इस वित्तीय साल का
अंतिम महीना भी अब
कुछ कुछ
निकल जाने में है।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

रविवार, 13 दिसंबर 2020

चैन लिखना बेचैनी होते हुऐ किसलिये सोचना क्या रखी है और कहाँ रखी है

सारे बेचैनो ने
लिख दिये हैं चैन
दरो दीवार छोड़िये सड़क मैदानों तक में 

लिखे को पढ़िये पन्ने दर पन्ने
किसलिये  ढूंढनी है 
कलम किस की है और कहाँ रखी है 

कुछ कहां हो रहा है
किसलिये बैचेन है
चैन ढूंढ और जमा कर पैमाने तक में 

लिखते चले जा
खाली गिलास खाली बोतल
किसने देखनी है किसकी है और कहाँ रखी है 

चैन और बेचैनी
रिश्ता बहुत पुराना है
खोज ना जा कर घर से लेकर मैखाने तक में 

मिलेगा जरूर
कुछ राख कुछ धुआँ
कुछ टुकड़े बचे बीड़ी के भी
कौन लिखता है हिसाब बही कहाँ रखी है 

बेचैनी  लिखने में भी दिख जाता है चैन
चैन से नहीं लिखा कर बैचनी यूँ ही खदानों तक में 

खोदना तुम को आता है
किसे मालूम है जरूरी है कुदालें भी किसे पता है कहाँ रखी हैं 

‘उलूक’ जानता है
चैन है ही नहीं कहीं सारे 
बेचैन हैं बताते नहीं हैं 

लिखा करना जरूरी है चैन
अपने लिये ना सही
बेचैन के लिये सही बेचैनी है पता है कहाँ रखी है।

चित्र साभार: https://webstockreview.net/

शनिवार, 9 सितंबर 2017

किस बात की शर्म जमावड़े में शरीफों के शरीफों के नजर आने में



किस लिये चौंकना मक्खियों के मधुमक्खी हो जाने में
सीखना जरूरी है बहुत कलाकारी कलाकारों से उन्हीं के पैमानों में

किताबें ही किसलिये दिखें हाथ में पढ़ने वालों के
जरूरी नहीं है नशा बिकना बस केवल मयखाने में

शहर में हो रही गुफ्तगू पर कान देने से क्या फायदा
बैठ कर देखा किया कर घर पर ही हो रहे मुजरे जमाने में

दुश्मनों की दुआयें साथ लेना जरूरी है बहुत
दोस्त मशगूल हों जिस समय हवा बदलवाने की निविदा खुलवाने में

‘उलूक’ सिरफिरों को बात बुरी लगती है
शरीफों की भीड़ लगी होती है जिस बात को शरीफों को शराफत से समझाने में ।

चित्र साभार: Prayer A to Z