उलूक टाइम्स: फड़फड़ाती
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गुरुवार, 14 नवंबर 2013

मत कह बैठना कहानी में आज मोड़ है आ रहा

मकड़ी के
जाले में फंसी
फड़फड़ाती
एक मक्खी

छिपकली
के मुँह से
लटकता
कॉकरोच

हिलते डुलते
कटे फटे केंचुऐ

खाने के लिये
लटके छिले हुऐ
सांप और मेंढक

गर्दन कटी
खून से सनी
तड़फती
हुई मुर्गियाँ

भाले से
गोदे जा रहे
सुअर के
चिल्लाने
की आवाज

शमशान घाट
से आ रही
मांस जलने
की बदबू

और भी
ऐसा बहुत कुछ

पढ़ लिया ना
अब दिमाग
मत लगाना

ये मत सोचना
शुरु हो जाना

लिखने वाला
आगे अब
शायद है कुछ
नई कहानी
सुनाने वाला

ऐसा कुछ
कहीं नहीं है
सूंई से लेकर
हाथी तक पर
बहुत कुछ
जगह जगह
यहां है लिखा
जा रहा

अपनी अपनी
हैसियत से
गधे लोमड़ी
पर भी फिलम
एक से एक
कोई है
बनाये जा रहा

पढ़ना जो
जैसा है चाहता
उसी तरह
की गली में
है चक्कर
लगा रहा

लेखक की
मानसिक
स्थिति को
कौन यहां
सही सही
पहचान
है पा रहा

कभी एक
अच्छे दिन
दिखाई दी थी
सुन्दर व्यक्तित्व
की मालकिन एक
चाँद से उतरते हुऐ

वही दिख रही थी
झाड़ू पर बैठ कर
चाँद पर उड़ती हुई
एक चुड़ैल जैसे
कुछ करतब करते हुऐ

मूड है
बहुत खराब
'उलूक'
का बेहिसाब
कुछ ऐसा
वैसा ही
है आज

जैसा लिखा
हुआ तुझे
यहाँ नजर
है आ रहा ।