उलूक टाइम्स: फैसले
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रविवार, 22 दिसंबर 2013

किताब पढ़ना जरुरी है बाकी सब अपने ही हिसाब से होता है

किताबों तक
पहुँच ही

जाते हैं
बहुत से लोग

कुछ नहीं भी
पहुँच पाते हैं

होता कुछ
भी नहीं है

किताबों को
पढ़ते पढ़ते
सब सीख
ही जाते हैं

किताबें
चीज कितने
काम की होती हैं

किताबों को
साथ रखना
पढ़ना ही
सिखाता है

अपनी
खुद की एक
किताब का
होना भी
कितना जरूरी
हो जाता है

एक
आदमी के
कुछ कहने
का कोई
अर्थ नहीं
होता है

क्या फरक
पड़ता है
अगर वो
गाँधी या
उसकी
तरह का ही
कोई और
भी होता है

लिखना पढ़ना
पाठ्यक्रम के
हिसाब से एक
परीक्षा दे देना

पास होना
या फेल होना
किताबों के
होने या
ना होने
का बस
एक सबूत
होता है

बाकी
जिंदगी के
सारे फैसले
किताबों से
कौन और
कब कहाँ
कभी ले लेता है

जो भी होता है
किसी की अपनी
खुद की किताब
में लिखा होता है

समय के साथ
चलता है
एक एक पन्ना
हर किसी की
अपनी किताब का

कोई जल्दी
और
कोई देर में
कभी ना कभी
तो अपने
लिये भी
लिख ही
लेता है

पढ़ता है
एक किताब
कोई भी
कहीं भी
और कभी भी

करने पर
आता है
तो उसकी
अपनी ही
किताब का
एक पन्ना
खुला होता है ।