उलूक टाइम्स: बहुत कुछ
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बुधवार, 8 जुलाई 2015

कुछ कुछ पर लिखना चाहो कुछ लिखने वाले बहुत कुछ लिख ले जाते हैं

माने निकाले
तो कोई
कैसे निकाले
कुछ के कुछ भी
माने नहीं होते हैं
कुछ के कुछ
माने होने जरूरी
भी नहीं होते हैं
बहुत से लोग
बहुत कुछ
लिखते हैं
बहुत से लोग
कुछ कुछ
लिखते हैं
कुछ लोग
बहुत कुछ
पढ़ते हैं
कुछ लोग
कुछ कुछ
ही पढ़ते हैं
इतना कुछ है
यहाँ देखिये
लिखने वाला
अटक रहा है
भी तो कहाँ
कुछ पर या
कुछ कुछ पर
अब एक कुछ का
कुछ माने होना
और कुछ के साथ
एक कुछ और
लगा देने से
माने बदल जाना
कुछ कुछ का
कुछ हो जाना
कुछ लोग कुछ
पर ही लिखते हैं
कुछ लोग कुछ
कुछ पर ही
लिखते हैं
कितनी मजेदार
है ना ये बात
कुछ लोग कुछ
लोगों को ही
पढ़ना चाहते हैं
कुछ लोग सब
लोगों को पढ़ना
चाह कर भी
नहीं पढ़ पाते हैं
अब क्या
क्या लिखेंगे
कितना लिखेंगे
कुछ पर कुछ
लिखना चाह
कर भी कुछ लोग
कुछ भी नहीं
लिख पाते हैं
‘उलूक’ तेरा कुछ भी
नहीं हो सकता है
लोग बहुत कुछ
करना चाहते हैं
कुछ लोगों की
नजरे इनायत है
कुछ लोग कुछ
करना चाहकर भी
कुछ नहीं कर पाते हैं ।

चित्र साभार: www.boostsolutions.com

शनिवार, 14 मार्च 2015

तेरे लिखे हुऐ में नहीं आ रहा है मजा

बहुत कुछ लिख रहे हैं
बहुत ही अच्छा
बहुत से लोग यहाँ
दिखता है आते जाते
लोगों का जमावाड़ा वहाँ
कुछ लोग कुछ भी
नहीं लिखते हैं
उनके वहाँ ज्यादा
लोग कहते हैं आओ
यहाँ और यहाँ
क्या किया जा सकता है
उस के लिये जब
किसी को देखना पड़ता है
जब चारों ओर का धुआँ
सोचना पड़ता है धुआँ
और मजबूरी होती है
लिखना भी पड़ता है
तो बस कुछ धुआँ धुआँ
रोज कोई ना कोई
खोद लेता है अपने लिये
कहीं ना कहीं एक कुआँ
किस्मत खराब कह लो
या कह लो कुछ भी तो
नहीं है कहीं भी कुछ हुआ
अच्छा देखने वाले
अच्छे लोगों के लिये
रोज करता है कोई
बस दुआ और दुआ
दिखता है सामने से
जो कुछ भी खुदा हुआ
कोशिश होती है
छोटी सी एक बस
समझने की कुछ
और समझाने की कुछ
फोड़ना पड़ता है सिर
‘उलूक’ को अपने लिये ही
आधा यहाँ और आधा वहाँ
होता किसी के आस पास
वो सब कहीं भी नहीं है
जो होता है
अजीब सा हमेशा
कुछ यहाँ
और कुछ वहाँ
देखने वालों की जय
समझने
वालों की जय
होने देने
वालों की जय
ऊपर वाले
की जय जय
उसके होने का
सबूत ही तो है
जो कुछ हो रहा है
यहाँ और वहाँ ।

सोमवार, 19 मई 2014

सब कुछ लिख लेने का कलेजा सब के हिस्से में नहीं आ सकता है

सब कुछ
साफ साफ
लिख देने
के लिये
किसी को
मजबूर नहीं
किया जा
सकता है

सब कुछ
वैसे भी
लिखा भी
नहीं जा
सकता है

इतना तो
एक अनपढ़
की समझ में
तक आ
सकता है

सब कुछ
लिख लेने
का बस
सोचा ही
जा सकता है

कुछ
कुछ पूरा
लिखने की
कोशिश
करने वाला

पूरा लिखने
से पहले ही
इस दुनियाँ
से बहुत दूर भी
जा सकता है

सब कुछ
लिख देने
की कोशिश
करने में
आपदा भी
आ सकती है

साल
दो साल नहीं
सदियाँ भी
पन्नों में
समा सकती हैं

नदियाँ
समुद्र तक
जा कर
लौट कर
भी आ
सकती हैं

सब कुछ
सब लोग
नहीं लिख
सकते हैं

उतना ही
कुछ लिख
सकते हैं
उतना ही
कुछ बता
सकते हैं

जितने को
लिखने या
बताने में
कुछ
ना कुछ
पी खा
सकते हैं

कुछ
आने वाली
पीढ़ियों
के लिये
बचा सकते हैं

सब कुछ
लिख
देने वाला
अच्छी तरह
से जानता है

बाहर के
ही नहीं
अंदर के
कपड़े भी
फाड़े या
उतारे जा
सकते हैं

हमाम में
कोई भी
कभी भी
आ जा
सकता है

नहाना चाहे
नहा सकता है
डुबकी लगाने
की भी मनाही
नहीं होती है

डुबकी
एक नहीं
बहुत सारी भी
लगा सकता है

साथ
किसी के
मिलकर
करना हो
कुछ भी
किसी भी
सीमा तक
कर करा
सकता है

किसी
अकेले का
सब कुछ
किये हुऐ
की बात
शुरु करने
से ही
शुरु होना
शुरु होती है
परेशानियाँ

सब कुछ
लिखने
लिखाने की
हिम्मत करने
वाले का कुछ
या
बहुत कुछ
नहीं
सब कुछ भी
भाड़ में
जा सकता है

‘उलूक’
कुछ कुछ
लिखता रह
पंख नुचवाता रह

सब कुछ
लिखने का
जोखिम
तू भी नहीं
उठा सकता है

अभी
तेरी उड़ान
रोकने की
कोशिश
से ही
काम चल
जाता है
जिनका

तेरे
सब कुछ
लिख देने से
उनका हाथ
तेरी गरदन
मरोड़ने के
लिये भी
आ सकता है ।