उलूक टाइम्स: बुरा
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शुक्रवार, 30 जून 2017

बुरा हैड अच्छा टेल अच्छा हैड बुरा टेल अपने अपने सिक्कों के अपने अपने खेल

           
              चिट्ठाकार दिवस की शुभकामनाएं ।


आधा
पूरा 
हो चुके 


साल
के 
अंतिम दिन 

यानि

ठीक 
बीच में 

ना इधर 
ना उधर 

सन्तुलन 
बनाते हुऐ 

कोशिश 
जारी है 

बात
को 
खींच तान 
कर

लम्बा 
कर ले 
जाने
की 

हमेशा 
की
तरह 

आदतन 

मानकर

अच्छी
और 
संतुलित सोच 
के
लोगों को 

छेड़ने
के लिये 
बहुत जरूरी है 

थोड़ी सी 
हिम्मत कर 

फैला देना 
उस
सोच को 

जिसपर 

निकल
कर 
आ जायें 

उन बातों 
के
पर 

जिनका 
असलियत 
से

कभी 
भी कोई 
दूर दूर 
तक
का 
नाता रिश्ता 
नहीं हो 

बस

सोच 
उड़ती हुई 
दिखे 

और 
लोग दिखें 

दूर 
आसमान 
में कहीं 

अपनी
नजरें 
गढ़ाये हुऐ 

अच्छी
उड़ती हुई
इसी 
चीज पर 

बंद
मुखौटों 
के
पीछे से 

गरदन तक 
भरी

सही 
सोच को 

सामने लाने 
के
लिये ही

बहुत
जरूरी है 

गलत
सोच के 

मुद्दे

सामने 
ले कर
आना 

डुगडुगी
बजाना 

बेशर्मी के साथ 

शरम
का 
लिहाज 
करने वाले 

कभी कभी 

बमुश्किल 
निकल कर 
आते हैं
खुले में

उलूक’ 

सौ सुनारी 
गलत बातों
पर 

अपनी अच्छी 
सोच
की 

लुहारी
चोट 
मारने
के
लिये।

गुरुवार, 11 जून 2015

कीचड़ करना जरूरी है कमल के लिये ये नहीं सोच रहा होता है

जब सोच ही
अंधी हो जाती है
सारी दुनियाँ
अपनी जैसी ही
नजर आती है

अफसोस भी
होता है
कोई कैसे किसी
के लिये कुछ
भी सोच देता है

किसी के काम
करने का कोई
ना कोई मकसद
जरूर होता है

उसकी नजर होती है
उसकी सोच होती है

बुरा कोई भी
नहीं होता है
जो कुछ भी होता है
अच्छे के लिये होता है

कुछ भी किसी
के लिये भी
किसी समय भी
कहने से पहले
कोई क्यों नहीं
थोड़ा सोच लेता है

एक उल्टा
लटका हुआ
चमगादड़ भी
उल्टा ही
नहीं होता है

वो भी
सामने वाले सीधे को
उल्टा हो कर ही
देख रहा होता है

‘उलूक’
तेरे लिये
तेरे आस पास
हर कोई गंदगी
बिखेर रहा होता है

सब के चेहरे पे
मुस्कान होती है
देखने वाला भी
खुश हो रहा होता है

बस यहीं पर पता
चल रहा होता है
एक अंधी सोच वाला
अंधेरे को बेकार ही में
कोस रहा होता है

जबकि गंदगी
और कीचड़
बटोरने वाला
हर कोई
आने वाले
समय में कमल
खिलाने की
सोच रहा होता है ।

चित्र साभार: www.cliparthut.com

गुरुवार, 5 मार्च 2015

होली की हार्दिक शुभकामनाऐं कहना मजबूरी हो गया है छुट्टी खुद लेकर अपने घर जा कर अपना त्योहार खुद ही मनायें कहना जरूरी हो गया है

इस बार
ही हुआ है
पहली बार
हुआ है

होली में होता
था हर साल
मेरे घर में
बहुत कुछ

इस बार कुछ
भी नहीं हुआ है
पोंगा पंडित
लगता है
कहीं गया हुआ है

पूजा पाठ होने
की खबर इस बार
हवा में नहीं
छोड़ गया है

दंगा होने के
भय का अंदेशा
भी नहीं हुआ है

खुले रहे हैं
रात भर घर
के दरवाजे
चोर और थानेदार
दोनों ने मिलकर
भाँग घोट कर
साथ मिल बाँट
कर पिया है

छुटियों का
अपना खाता
सबने खुद ही
प्रयोग कर लिया है
दुकान के खुलने
बंद होने के
दिनों को कागज ने
पूरा कर दिया है

होली पढ़ने पढा‌ने
की बस बात है
पढ़ने वाला अब
समझदार हो गया है

ऊँचाईयों को
छूने के लिये
जमीन से पाँव
उठाना बहुत
जरूरी हो गया है

होली में होता था
हर साल मेरे घर
में बहुत कुछ
इस बार कुछ भी
नहीं हुआ है
किसी से नहीं
कहना है
बुरा ना मानो होली है
‘उलूक’ ने ऐसा वैसा
हमेशा का जैसा ही
कुछ कह दिया है ।

चित्र साभार: www.imagesbuddy.com

सोमवार, 17 नवंबर 2014

जरूरी है याद कर लेना कभी कभी रहीम तुलसी या कबीर को भी



बहुत सारी तालियाँ
बजती हैं हमेशा ही
अच्छे पर अच्छा
बोलने के लिये
इधर भी और
उधर भी
 नीचे नजर
आ जाती हैं
दिखती हैं
दूरदर्शन में
सुनाई देती हैं
रेडियो में
छपती हैं
अखबार में
या जीवित
प्रसारण में भी
सामने से खुद
के अपने ही
शायद बजती
भी हों क्या पता
उसी समय
कहीं ऊपर भी
अच्छा बोलने
के लिये अच्छा
होना नहीं होता
बहुत ही जरूरी भी
बुरे को अच्छा
बोलने पर नहीं
कहीं कोई पाबंदी भी
अच्छे होते हैं
अच्छा ही देखते हैं
अच्छा ही बोलते हैं
ज्यादातर होते ही हैं
खुद अपने आप में
लोग अच्छे भी
बुरी कुछ बातें
देखने की उस पर
फिर कुछ कह देने की
उसी पर कुछ कुछ
लिख देने की
होती है कुछ बुरे
लोगों की आदत भी
अच्छा अच्छा होता है
अच्छे के लिये
कह लेना भी
और जरूरी भी है
बुरे को देखते
बुरा कुछ कहते
रहना भी
करते हुऐ याद
दोहा कबीर का
बुरा जो देखन मैं चला
हर सुबह उठने
के बाद और
रात में सोने से
पहले भी ।

 चित्र साभार:
funny-pictures.picphotos.net

सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

क्या करे कोई अगर अच्छा देखने का भी बुरा नजरिया होता है

सबका शहर
सबके लिये
बहुत ही 
खास होता है

बहुत सी
खासियत
होती हैं
हर शहर की
जाना जाता है
पहचाना जाता है
देश ही नहीं
विदेश में भी
हर किसी के लिये
अपना शहर
उसकी नजर में
कुछ ना कुछ
विशेष होता है
सब के लिये
एक ही नहीं
कुछ अलग
भी होता है 
किसी का
बचपन होता है
किसी की
जवानी होती है
किसी का
बुढ़ापा होता है
कोई शहर
छोड़ भी
चुका होता है
पर उसकी
यादों में कुछ
जरूर होता है
मेरी यादों में
पागलों का एक
काफिला होता है
बचपन से आज
तक मैने शहर
की गलियों में
देखा होता है
बहुत ज्यादा मगर
अफसोस होता है
जब याद आता है
बचपन के जाने से
बुढ़ापे के आने  तक
बहुत कुछ बोलते
बहुत कुछ लिखते
बहुत सी जगहों पर
इसी शहर की
गलियों में बहुत से
पागलों को देखा है
बहुत कुछ
खो दिया होता है
जब खुद के
लिखे में उनका
लिखा हुआ
जैसा बहुत
कुछ होता है
मेरे शहर का
मिजाज तब
और होता था
आज कुछ
और होता है
पागल पहले
भी हुऐ है
लिखने और
बोलने वाले

आज भी होते हैं
बाकी हर शहर में
कुछ तो
अलग और

विषेश होता है
जो यहाँ होता है
उससे अलग
कहीं और भी
क्या पता
कुछ और
भी होता है

और बहुत ही
खास होता है ।

रविवार, 29 सितंबर 2013

मुड़ मुड़ के देखना एक उम्र तक बुरा नहीं समझा जाता है

समय के साथ बहुत सी
आदतें आदमी की
बदलती चली जाती हैं
सड़क पर चलते चलते
किसी जमाने में
गर्दन पीछे को
बहुत बार अपने आप
मुड़ जाती है
कभी कभी दोपहिये पर
बैठे हुऐ के साथ
दुर्घटनाऐं तक ऐसे
में हो जाती हैं
जब तक अकेले होता है
पीछे मुड़ने में जरा सा
भी नहीं हिचकिचाता है
उम्र बढ़ने के साथ
पीछे मुड़ना कम
जरूर हो जाता है
सामने से आ रहे
जोड़े में से बस
एक को ही
देखा जाता है
आदमी आदमी को
नहीं देखता है
महिला को भी
आदमी नजर
नहीं आता है
अब आँखें होती हैं
तो कुछ ना कुछ
तो देखा ही जाता है
चेहरे चेहरे पर
अलग अलग भाव
नजर आता है
कोई मुस्कुराता है
कोई उदास हो जाता है
पर कौन क्या देख रहा है
किसी को कभी भी
कुछ नहीं बताता है
सब से समझदार
जो होता है वो
दिन हो या शाम
एक काला चश्मा
जरूर लगाता है ।