उलूक टाइम्स: भगवान
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गुरुवार, 18 जनवरी 2024

कितना बहकेगा तू खुद उल्लू थोड़ा कभी बहकाना सीख

 

मयकशी ही जरूरी है किस ने कह दिया
समय के साथ भी कभी कुछ बहकना सीख

कदम दिल दिमाग और जुबां लडखडाती हैं कई बिना पिए 
थोड़ा कुछ कभी महकना सीख
दिल का चोर आदत उठाईगीर की जैसी बताना मत कभी
साफ़ पानी के अक्स की तरह चमकना सीख

आखें बंद रख जुबां सिल दे
उधड़ते पल्लुओं की ओर से मुंह फेर कर
फट पलटना सीख

अच्छी आदतें अच्छी इबादतें सब अच्छे की बातें कर
कर कुछ उल्टा सुल्टा लंगडी लगा पटकना सीख

सब कुछ ठीक है बहुत बढ़िया है समझा जनता को
घर के परदे के अन्दर रहकर झपटना सीख

सकारात्मक रहो सकारात्मक कहो समझा कर सबको
खुद दवाई खा अवसाद की भटकाना सीख

घर गली मोहल्ले में घर घर जा धमका कर सबको
कौन देख रहा है कौन सुन रहा है किसे पडी है समझाना सीख

घर में मंदिर पूजा घर की जगह जगह घेरेगी
कोई एक भगवान पकड़ कर लोगों को पगलाना सीख

राम राम हैं राम राम थे राम राम में राम रमे है
आगे बढ़ ‘उलूक’ अब राधे राधे भी तो है ना मत आंखें मींच 
तू भी तो कुछ कहीं कभी कुछ तो ऐसा कुछ चमकाना सीख

चित्र साभार: https://in.pinterest.com/

मंगलवार, 1 सितंबर 2020

लिख ही लें थोड़ा सुकून इधर से लेकर उधर तक फैल चुके हों जहाँ जर्रा जर्रा बेजुबान

 

डा० कफ़ील खान

भगवान जी और अल्ला मियाँ
का तो पता नहीं 
पर सुबह अच्छी खबर मिली और अच्छा लगा

पता नहीं किसे सुनाई दी
किसे कुछ भी
अब भी पता नहीं चला 

आदमी के आदमी ने आदमी पर
लगा कर इल्जाम बता कर गुनाहगार 

बोल कर कुछ
दिखा कर कर गया जैसे कोई
शब्दों से कत्लेआम 

कर दिया गया अन्दर
बिना पूछे बिना देखे हथियार और कत्ल का सामान 

लगा दी गयी धारायें
एक आदमी पर सारी सभी भीड़ की 
मानकर उसे एक नहीं कई कई आदमी एक साथ
जैसे हो एक जगह उगाये खुद की ही हजारों जुबान 

फ़िर आदमी ने ही कर दिया इन्कार
देने से सजा झूठ की
कुछ बचा हुआ होगा वहाँ शायद इंसान 

‘उलूक’ काट लिये दिन सैकड़ों
काल कोठरी में बेगुनाह ने

सजा कौन देगा यंत्रणा देने वाले गुनहगार को
कौन सा अल्ला या कौन सा भगवान ?


चित्र साभार: https://www.gograph.com/
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Alexa Traffic Rank 130398 Traffic Rank in इंडिया 12663 01/09/2020 के दिन 9:25 पीएम 
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रविवार, 31 मई 2020

मदारी मान लिया हमने तू ही भगवान है बाकी कहानियों के किरदार हैं और हम तेरे बस तेरे ही जमूरे हैं


बहुत से हैं
पूरे हैं

दिख रहे हैं
साफ साफ
कि हैं

फिर
किसलिये
ढूँढ रहा है
जो
अधूरे हैं

क्षय होना
और
सड़ जाने में
धरती आसमान
का अन्तर है

उसे
क्या सोचना

जिसने
जमीन
खोद कर
ढूँढने ही बस

मिट चुकी
हवेलियों के
कँगूरे हैं 

समझ में
आता है
घरेलू
जानवर का
मिट्टी में लोटना
मालिक की रोटी
के लिये

उसके
दिल में भी हैं
कई सारे बुलबुले
बनते फूटते
चाहे आधे अधूरे हैं

 सम्मोहित होना
किसने कह दिया
बुरा होता है

अजब गजब है
नखलिस्तान है
टूट जाने के
बाद भी
सपने

उस्ताद
के लिये
तैयार
मर मिटने के लिये
जमूरे हैं

मर जायेंगे
मिट जायेंगे
हो सकेगा तो
कई कई को
साथ भी
ले कर के जायेंगे

जमीर
अपना
कुछ हो
क्या जरूरी है

जोकर पे
दिलो जाँ
निछावर
करने के बाद

किस ने देखना
और
सोचना है

मुखौटे के पीछे

किस बन्दर
और
किस लंगूर के

लाल काले
चेहरे
कुछ सुनहरे हैं

‘उलूक’
किसलिये
लिखना
लिखने वालों
के बीच
कुछ ऐसा

जब
पहनाने  वाले

उतारने 
वालों से
बहुत ही कम है

सब 

हमाम में हैं
भूल जाते हैं

उनके चेहरे
उनके नकाब
और
उनके
आईने तक

हर किसी के पास हैं

नये हैं
अभी खरीदें हैं

और
जानते हैं

कुछ छोले हैं
और
कुछ भटूरे हैं।

https://steemit.com/

बुधवार, 8 जनवरी 2020

किसी ने कहा लिखा समझ में आता है अच्छा लिखते हो बताया नहीं क्या समझ मे आता है



Your few poems touched me.
इस बक बक ️को कुछ लोग समझ जाते हैं । वो *पागल* में कुछ *पा* के *गला* ️हुआ इंसान देख लेते हैं । ऐसे लोगो की कविताओं में गूढ़ इशारे होतें हैं । जो जागे हुए लोगों को दिख जातें हैं । मुझे आपकी कविताओं में कुछ अलग दिखा, जिसके कारण में आने उद्गारों को रोक नही पाया ।
 मैँ आपकी बक बक का मुरीद हुं आगे और भी सुन्ना चाहूंगा यूट्यूब पर । 
वी पी सिंह

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नहीं लिखने 
और लिखने के बीच में 
कुछ नहीं होता है 

दिन भी संख्याओं में गिने जाते हैं 
लिखने लिखाने के दिन 
या 
नहीं लिख पाने के दिन 
सब एक से होते हैं 

दर्द अच्छे होते हैं जब तक गिने जाते हैं 
संख्याओं के खेल निराले होते हैं 
कहीं जीत के लिये संख्या जरूरी होती है 
कहीं हार जरूरी होती है संख्या के जीतने से अच्छा 

सब से बुरा होता है गाँधी का याद आना 
मतलब साफ साफ 
एक धोती एक लाठी एक चश्मे की तस्वीर का 
देखते देखते सामने सामने द्रोपदी हो जाना 

चीर 
अब होते ही नहीं हैं 
हरण जो होता है उसका पता चल जाये 
इससे बड़ी बात कोई नहीं होती है 

अजीब है जो सजीव है बेजान में जीवन देखिये
जान है नजर भी आ जाये 
मुँह में बस एक कपड़ा डाल लीजिये 
निकाल लीजिये 

नहीं समझा सकते हैं किसी को 
समझाना शुरु हो जाते हैं 
समझदार लोग पुराने साल 

कत्ल हो भी गया 
कोई सवाल नहीं करना चाहिये 
क्योंकि कत्ल पहली बार जो क्या हुआ है 

सनीमा भीड़ का घर से देखकर 
घर से ही कमेंट्री कर 
उसे परिभाषित कर देने का 
मजा कुछ और है 

क्योंकि लगी आग में झुलसा 
अपने घर का कोई नहीं होता है 

लगे रहिये गुंडों के देवत्व को 
महिमामण्डित करने में 

भगवान करे तुम या तुम्हारे घर का 
तुम्हारा अपना कोई 
आदमखोर का शिकार ना होवे 

और उस समय तुम्हें अपनी छाती पीटने का 
मौका ही ना मिले 

‘उलूक’ की बकवास किसी की समझ में आयी 
और उसने ईमेल किया कि बहुत कुछ समझ में आया 

बस रुक गया कहने से कि बहुत मजा 
जो अभी आना है क्यों नहींं आया।

चित्र साभार: https://www.pngfly.com/

मंगलवार, 9 जुलाई 2019

खुद अपना मन्दिर बना कर खुद मूर्ती एक होना चाहता है साफ नजर आता है देखिये अपने आसपास है कोई ऐसा जो भगवान जैसा नजर आता है


"ब्लॉग उलूक पर पच्चीस  लाख कदमों  को शुक्रिया"


भगवान बस 
भगवानों से ही 

रिश्ते बनाता है 

किसी 
आदमी से 
बनाना चाह लिया 
रिश्ता कभी उसने तो 

सब से 
पहले उसे 
एक भगवान बनाता है 

एक 
आदमी 
उसे जरा 
सा दमदार 
अगर नजर 
आ भी जाता है 

उससे 
तार मिलाने 
की इच्छा को 
उभरता हुआ 
महसूस यदि 
कर ही जाता है 

सबसे पहले 
उस आदमी से 
आदमियत 
निकाल कर 
उसे भगवान 
बनाता है 

भगवानों की 
श्रँखलायें होती है 

इंसानियत 
के साये से 
बहुत दूर होती हैं 

भगवान 
इन्सान को 
पाल सकता है 

मौज में 
आ गया कभी 
तो कुत्ता भी 
बना ले जाता है 

हर 
इन्सान 
के आसपास 

कई 
भगवान होते हैं 

कौन 
कितना 
भगवान 
हो चुका है 

समय 
के साथ 
चलता हुआ 
आदमी का 
अच्छा बुरा 
समय ही 
उसे 
समझाता है 

कुछ 
आदमी 
भगवान ने 
भगवान 
बना दिये होते हैं 

भगवान 
से बहुत 
ज्यादा 
भगवान 

उनकी 
हरकतों से 
बहता हुआ 
नजर आता है 

धीरे धीरे 
हौले हौले 
हर तरफ 
हर जगह 
बस भगवान 
ही नजर आता है 

‘उलूक’ 
देखता 
चलता है 

आदमी के 
बीच से 
होते हुऐ 
भगवान 
कई सारे 

देखने 
में मजा 
भी आता है 

आदमी 
तो आदमी 
ही होता है 

भगवान 
बना भी दिया 
अगर किसी 
ने ले दे के 

औकात 
अपनी 
फिर भी 
आदमी 
की ही 
दिखाता है


 चित्र साभार: https://making-the-web.com

गुरुवार, 9 मई 2019

लिखना जरूरी है होना उनकी मजबूरी है कभी लिखने की दुकान के नहीं बिके सामान पर भी लिख


ये

लिखना भी

कोई
लिखना है

उल्लू ?

कभी

आँख
बन्द कर के

एक
आदमी में

उग आये

भगवान
पर
भी लिख

लिखना
सातवें
आसमान
पहुँच जायेगा

लल्लू

कभी

अवतरित
हो चुके

हजारों
लाखों

एक साथ में

उसके

हनुमान
पर भी
लिख

सतयुग
त्रेता द्वापर

कहानियाँ हैं

पढ़ते
पढ़ते
सो गया

कल्लू ?

कभी
पतीलों में

इतिहास
उबालते

कलियुग
के शूरवीर

विद्वान
पर
भी लिख

शहीदों
के जनाजे
के आगे

बहुत
फाड़
लिये कपड़े

बिल्लू

कभी
घर के
सामान

इधर उधर
सटकाने में
मदद करते

बलवान
पर
भी लिख

विष
उगलते हों

और

साँप
भी
नहीं हों

ऐसा
सुने और
देखे हों

कहीं
और भी

तो
चित्र खींच

चलचित्र
बना
फटाफट

यहाँ
भी डाल

निठल्लू

पागल होते

एक
देश के
बने राजा के

पगलाये

जुबानी
तीर कमान

पर
भी लिख

बे‌ईमानों
को
मना नहीं है

गाना
बाथरूम में

गा
लिया कर
नहाते समय

वंदे मातरम

‘उलूक’

मैं
निकल लूँ

अखबारों
में
रोज की
खबर में

शहर के
दिख रहे

नंगों
और
शरीफों के

शरीफ
और नंगे
होने के

अनुमान

पर
भी लिख ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com



रविवार, 14 अप्रैल 2019

कुछ भी करिये कैसा भी करिये घर के अन्दर करिये बाहर गली में आ कर उसके लिये शरमाना नहीं होता है

गिरोहों
से घिरे हुऐ
अकेले को

घबराना
नहीं होता है

कुत्तों
के पास

भौंकने
के लिये

कोई
बहाना
नहीं होता है

लिखना
जरूरी है

सच
ही बस
बताना
नहीं होता है

झूठ
बिकता है

घर की
बातों को
कभी भी
कहीं भी

सामने से
लाना नहीं
होता है

जैसा
घर में होता है

और
जैसा
बताना
नहीं होता है

नंगई को
टाई सूट
पहना कर
नहलाना
नहीं होता है

भगवान के
एजेंटों को
कुछ भी
समझाना
नहीं होता है

मन्दिर
में ही हो पूजा

अब
उतनी
जरूरी 

नहीं होती है

भगवान
का ही जब
अब कहीं
ठिकाना 

नहीं होता है

कुछ
भी करिये

कैसा
भी करिये

करने
कराने को

देशभक्ति से

कभी भी
मिलाना
नहीं होता है

कुछ
पाने के लिये

किसी को
कुछ दे
कर आ जाना

हमाम में
नंगा होकर
नहाना
नहीं होता है

कुछ
पीटते हैं

ढोल

ईमानदारी का

ठेका लेकर

सारे
ईमानदारों
की ओर से

भगवान
और उनके
ऐजेंटों को

कुछ
बताना
नहीं होता है

उनसे कुछ
पूछने के लिये

इसीलिये
किसी को भी

कहीं आना
कहीं जाना
नहीं होता है

चोरों
उठाईगीरों
बे‌ईमानों को

खड़े
रहना होता है

उनके
सामने से
तराजू के
दूसरे पलड़े पर

 ईमानदारी को
तोलने के लिये

बे‌ईमानी
का बाँट

रखवाना 

ही होता है

इसीलिये

सजा
देकर उनको

जेल में
डालने के लिये

कहीं
जेलखाना
नहीं होता है 


‘उलूक’
देशद्रोही
की चिप्पियाँ

दूसरों में
चेपने के लिये

खुद
हमाम में
जा कर नहाना
नहीं होता है

कुछ
भी करिये

कैसा
भी करिये

घर के अन्दर करिये

बाहर
गली में
आ कर

उसके लिये
शरमाना
नहीं होता है

चित्र साभार: https://www.youtube.com/watch?v=hzefdiwf-dg

शुक्रवार, 22 मार्च 2019

पीना पिलाना बहकना बहकाना दौड़ेगा अब तो चुनावी मौसम हो गया है

आदमी
खुद में ही

जब

आदमी
कुछ कम
हो गया है

किसलिये
कहना है

रंग
इस बार
कहीं गुम
हो गया है

खुदाओं
में से

किसी
एक का

घरती
पर जनम
हो गया है

तो
कौन सा
किस पर

बड़ा
भारी
जुलम
हो गया है

मन्दिर
जरूरी नहीं

अब
वो भी

तुम
और हम
हो गया है

समझो

भगवान
तक को

इन्सान
होने का
भ्रम
हो गया है

झूठ
खरपतवार

खेतों में
सच के

सनम
हो गया है

काटना
मुश्किल
नहीं है

रक्तबीज
होने का
उसके

वहम
हो गया है

होली
के जाने का

क्यों रे
‘उलूक’

तुझे

क्या गम
हो गया है

पीना
पिलाना

बहकना
बहकाना

दौड़ेगा

अब तो

चुनावी
मौसम
हो गया है ।

चित्र साभार: https://miifotos.com

मंगलवार, 12 मार्च 2019

चिट्ठाजगत और घर की बगल की गली का शोर एक सा हुआ जाता है

अच्छा हुआ

भगवान
अल्ला ईसा

किसी ने

देखा नहीं
कभी

सोचता

आदमी
आता जाता है

आदमी
को गली का
भगवान
बना कर यहाँ

कितनी
आसानी से

सस्ते
में बेच
दिया जाता है

एक
आदमी
को
बना कर
भगवान

जमीन का

पता नहीं

उसका
आदमी
क्या करना
चाहता है

आदमी
एक आदमी
के साथ मिल कर

खून
को आज
लाल से सफेद

मगर
करना चाहता है

कहीं मिट्टी
बेच रहा है
आदमी

कहीं पत्थर

कहीं
शरीर से
निकाल कर

कुछ
बेचना चाहता हैं

पता नहीं
कैसे कहीं
बहुत दूर बैठा

एक आदमी

खून
बेचने वाले
के लिये
तमाशा
चाहता है

शरम
आती है
आनी भी
चाहिये

हमाम
के बाहर भी

नंगा हो कर

अगर
कोई नहाना
चाहता है

किसको
आती है
शरम
छोटी छोटी
बातों में

बड़ी
बातों के
जमाने में

बेशरम

मगर
फिर भी
पूछना
चाहता है

देशभक्त
और
देशभक्ति

हथियार
हो चले हैं
भयादोहन के

एक चोर

मुँह उठाये
पूछना चाहता है

घर में
बैठ कर

बताना
लोगों को

किस ने
लिखा है
क्या लिखा है

उसकी
मर्जी का

बहुत
मजा आता है

बहुत
जोर शोर से

अपना
एक झंडा लिये

दिखा
होता है
कोई
आता हुआ

लेकिन
बस फिर

चला भी
यूँ ही
जाता है

आसान
नहीं होता है
टिकना

उस
बाजार में

जहाँ

अपना
खुद का
बेचना छोड़

दूसरे की
दुकान में
आग लगाना

कोई
शुरु हो
जाता है

‘उलूक’

यहाँ भी
मरघट है

यहाँ भी
चितायें
जला
करती हैं

लाशों को
हर कोई
फूँकने
चला
आता है

घर
मोहल्ले
शहर में
जो होता है

चिट्ठाजगत
में भी होता है

पर सच

कौन है
जो देखना
चाहता है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

गुरुवार, 22 नवंबर 2018

पता ही नहीं चलता है कि बिकवा कोई और रहा है कुछ अपना और गालियाँ मैं खा रहा हूँ

शेर
लिखते होंगे
शेर
सुनते होंगे
शेर
समझते भी होंगे
शेर हैं
कहने नहीं
जा रहा हूँ


एक शेर
जंगल का देख कर
लिख देने से शेर
नहीं बन जाते हैं

कुछ
लम्बी शहरी
छिपकलियाँ हैं

जो आज
लिखने जा रहा हूँ

भ्रम रहता है
कई सालों
तक रहता है

कि अपनी
दुकान का
एक विज्ञापन

खुद ही
बन कर
आ रहा हूँ

लोग
मुस्कुराहट
के साथ मिलते हैं

बताते भी नहीं है
कि खुद की नहीं
किसी और की
दुकान चला रहा हूँ

दुकानें
चल रही हैं
एक नहीं हैं
कई हैं

मिल कर
चलाते हैं लोग

मैं बस अपना
अनुभव बता रहा हूँ

किस के लिये बेचा
क्या बेच दिया
किसको बेच दिया
कितना बेच दिया

हिसाब नहीं
लगा पा रहा हूँ

जब से
समझ में आनी
शुरु हुई है दुकान

कोशिश
कर रहा हूँ
बाजार बहुत
कम जा रहा हूँ

जिसकी दुकान
चलाने के नाम
पर बदनाम था

उसकी बेरुखी
इधर
बढ़ गयी है बहुत

कुछ कुछ
समझ पा रहा हूँ

पुरानी
एक दुकान के
नये दुकानदारों
के चुने जाने का

एक नया
समाचार
पढ़ कर
अखबार में
अभी अभी
आ रहा हूँ

कोई कहीं था
कोई कहीं था

सुबह के
अखबार में
उनके साथ साथ
किसी हमाम में
होने की
खबर मिली है
वो सुना रहा हूँ

कितनी
देर में देता
है अक्ल खुदा भी

खुदा भगवान है
या भगवान खुदा है
सिक्का उछालने
के लिये जा रहा हूँ

 ‘उलूक’
देर से आयी
दुरुस्त आयी
आयी तो सही

मत कह देना
अभी से कि
कब्र में
लटके हुऐ
पावों की
बिवाइयों को
सहला रहा हूँ ।

चित्र साभार: https://www.gograph.com

सोमवार, 20 अगस्त 2018

खुदा भगवान के साथ बैठा गले मिल कर कहीं किसी गली के कोने में रो रहा होता दिन आज का खुदा ना खास्ता अगर गुजरा कल हो रहा होता

एक आदमी
भूगोल हो रहा होता
आदमी ही एक
इतिहास हो रहा होता

पढ़ने की
जरूरत
नहीं हो
रही होती


सब को
रटा रटाया
अभिमन्यु की तरह

एक आदमी
पेट से ही
पूरा याद हो रहा होता


एक आदमी
हनुमान हो रहा होता
एक आदमी
राम हो रहा होता

बाकि
होना ना होना सारा
आम और
बेनाम हो रहा होता


चश्मा
कहीं उधड़ी हुई
धोती में सिमट रहा होता


ग़ाँधी
अपनी खुद की
लाठी से
पिट रहा होता


कहीं हिन्दू
तो कहीं उसे
मुसलमान
पकड़ रहा होता
कबीर
अपने दोहों को
धो धो कर
कपड़े से
रगड़ रहा होता


ना तुलसी
राम का हो रहा होता
ना रामचरित मानस
पर काम हो रहा होता

मन्दिर में
एक आदमी के
बैठने के लिये
कुर्सियों का
इन्तजाम
हो रहा होता


लिखा हुआ
जितना भी
जहाँ भी
हो रहा होता
हर पन्ने का एक
आदमी हो रहा होता

आदमी आदमी
लिख रहा होता
आदमी ही
एक किताब
हो रहा होता


इस से ज्यादा
गुलशन कब
आबाद
हो रहा होता


 शाख
सो रही होती
‘उलूक’
खो रहा होता

गुलिस्ताँ
खुद में गंगा
खुद में संगम
और खुद ही
दौलताबाद
हो रहा होता।


चित्र साभार: http://clipartstockphotos.com

बुधवार, 25 अक्तूबर 2017

कहने दीजिये कुछ कह देने से कहीं कुछ नहीं होता है

कल का
नहीं
खाया है
पता है
आज
फिर से
पकाया है
वो भी
पता है

कल भी
नहीं
खाना था
पता था
आज भी
नहीं
खाना है
पता है

कल भी
पकाया था
कच्चा था
पता था

पूरा पक
नहीं
पाया था
वो भी
पता था

किसी ने
कहाँ कुछ
बताया था
बताना ही
नहीं था

आज भी
पकाया है
पक नहीं
पाया है

कोई नहीं
खायेगा
जैसा था
रह जायेगा

सब को सब
पता होता है
कौन कब
कहाँ कितना
और क्यों
कहता है

सारा हिसाब
बहीखातों में
छोड़ कर
इधर भी
और
उधर भी
एक एक पाई
का सबके
पास होता है

ईश्वर और
कहीं भी
नहीं होता है

जो होता है
बस यहीं कहीं
आस पास
में होता है

दिखता है
मन्दिरों की
घन्टियाँ
बजाना
छोड़ कर

गले में
अपने ही
घन्टी
बाँध कर
यहीं पर
के किसी
एक के लिये

कोई
कितना
जार जार
सर
हिला हिला
कर रोता है

कल नहीं
पता था जिसे
उसे आज भी
पता नहीं होता है

‘उलूक’
इसलिये
कहीं भी
किसी डाल
पर नहीं
होता है

जो होते हैं
वो हर जगह
ही होते हैं

नहीं
होने वाले
नहीं हो पाने
के लिये
ही रोते हैं

पकता रहे
कुछ कुछ
जरूरी है

रसोई
के लिये
रसोईये
का काम
पकाना
और
पकाना
ही होता है

समझ में आने
के लिये नहीं
कहा होता है

जो लिखा
होता है
वो सब
समझ में
नहीं आया
होता है
इसीलिये
लिखा होता है

रोज पकाया
जाता है
कुछ ना कुछ

अधपकों के
बस में बस
इतना ही
तो होता है
जो पकाने
के बाद
भी पका
ही नहीं
होता है।

चित्र साभार: Encyclopedia Dramatica

बुधवार, 23 अगस्त 2017

पढ़ने वाला हर कोई लिखे पर ही टिप्पणी करे जरूरी नहीं होता है



जो लिखता है उसे पता होता है 
वो क्या लिखता है किस लिये लिखता है 
किस पर लिखता है क्यों लिखता है

जो पढ़ता है उसे पता होता है 
वो क्या पढ़ता है किसका पढ़ता है क्यों पढ़ता है 

लिखे को पढ़ कर उस पर कुछ कहने वाले को पता होता है 
उसे क्या कहना होता है 

दुनियाँ में बहुत कुछ होता है 
जिसका सबको सब पता नहीं होता है 

चमचा होना बुरा नहीं होता है 
कटोरा अपना अपना अलग अलग होता है 

पूजा करना बहुत अच्छा होता है 
मन्दिर दूसरे का भी कहीं होता है 

भगवान तैंतीस करोड़ बताये गये हैं 
कोई हनुमान होता है कोई राम होता है 
बन्दर होना भी बुरा नहीं होता है 

सामने से आकर धो देना 
होली का एक मौका होता है 

पीठ पीछे बहुत करते हैं तलवार बाजी 

‘उलूक’ कहीं भी नजर नहीं आने वाले 
रायशुमारी करने वालों का 
सारे देश में एक जैसा एक ही ठेका होता है । 

चित्र साभार: Cupped hands clip art

बुधवार, 23 नवंबर 2016

सब नहीं लिखते हैं ना ही सब ही पढ़ते हैं सब कुछ जरूरी भी नहीं है लिखना सब कुछ और पढ़ना कुछ भी


मन तो बहुत होता है 
खुदा झूठ ना बुलाये 

अब खुदा बोल गये 
भगवान नहीं बोले 
समझ लें 

मतलब वही है 
उसी से है जो कहीं है 
कहीं नहीं है 

सुबह 
हाँ तो बात 
मन के बहुत 
होने से शुरु हुई थी 

और 
सुबह सबके साथ होता है 
रोज होता है वही होता है 

जब दिन शुरु होता है 
प्रतिज्ञा लेने जैसा 
कुछ ऐसा 
कि 
राजा दशरथ का प्राण जाये 
पर बचन ना जाये जैसा 

जो कि 

कहा जाये तो सीधे सीधे 
नहीं सोचना है आज से 
बन्दर क्या उसके पूँछ 
के बाल के बारे में भी 
जरा सा

नहीं बहुत हो गया 
भीड़ से दूर खड़े 
कब तक खुरचता रहे कोई 
पैर के अँगूठे से
बंजर जमीन को 
सोच कर उगाने की 
गन्ने की फसल 
बिना खाद बिना जल 

बोलना बोलते रहना 
अपने को ही
महसूस कराने लगे अपने पूर्वाग्रह 

जब 

अपने आसपास अपने जैसा 
हर कोई अपने साथ बैठा 
कूड़े के ढेर के ऊपर 
नाचना शुरु करे गाते हुऐ भजन 
अपने भगवान का 
भगवान मतलब खुदा से भी है 
ईसा से भी है 
परेशान ना होवें 

नाचना कूड़े की दुर्गंध 
और 
सड़ाँध के साथ 
निर्विकार होकर

पूजते हुऐ जोड़े हाथ


समझते हुऐ 


गिरोहों से अलग होकर 
अकेले जीने के खामियाजे 


‘उलूक’ 
मंगलयान पहुँच चुका होगा 

मंगल पर 

उधर देखा कर 
अच्छा रहेगा तेरे लिये 


कूड़े पर बैठे बैठे 
कब तक सूँघता रहेगा दुर्गंध 


वो बात अलग है 
अगर नशा होना शुरु हो चुका हो 


और 


आदत हो गई हो 


सबसे अच्छा है 
सुबह सुबह फारिग होते समय 

देशभक्ति कर लेना 

सोच कर तिरंगा झंडा 
जिसकी किसी को याद 
नहीं आ रही है इस समय 
क्योंकि देश व्यस्त है 
कहना चाहिये कहना जरूरी है ।

चित्र साभार: All-free-download.com

बुधवार, 31 दिसंबर 2014

भगवान जी भगवान जी होते हैं और नंगे नंगे होते हैं भगवान जी का नंगों से कोई रिश्ता नहीं होता है नंगा भगवान से बड़ा होता है


किसी को कैसे बताऊं अपना धर्म
नहीं बता सकता 

कुछ लोग मेरे धर्म के
शुरु कर चुके हैं रक्त पीना 
वो मुर्गा नहीं खाते हैं ना ही वो बकरी खाते हैं 

समझ में
बस एक बात नहीं आती है 
कि वो कुत्ता क्यों नहींं खाते हैं 
वो कुत्तों से प्यार भी नहीं करते हैं 
ना ही कुत्ते उनको देख अपनी पूँछ हिलाते हैं 

मुझे अपने सर के बाल नोचने हैं 

वो व्हिस्की के नशे में कुछ लोगों को आदेश दे रहे हैं 
भाई तेरी पूँछ और मेरी पूँछ का बाल हरा है 

शुरु हो जा नोचना
गंजो के सिर के बालों को 
सबसे अच्छा होता है 

पैसा उसका धर्म है किसी को नहीं पता होता है 

नंगा होना अपराध नहीं है 
पैसा है तो नंगा हो जा मुनि कहलायेगा 
पैसा नहीं है भिखारी कहलायेगा 

नियम कानून कोर्ट नंगो के लिये नहीं होती है 
नंगों की जय जयकार होती है 

काश कोई नंगा मेरा भी बाप होता 
मैं भी शायद कहीं आबाद होता। 

चित्र साभार: www.fotosearch.com

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

पी के जा रहा है और पी के देख के आ रहा है

अरे ओ मेरे
भगवान जी
तुम्हारा मजाक
उड़ाया जा रहा है
आदमी पी के जैसी
फिलम बना रहा है
जनता देख रही है
मारा मारी के साथ
बाक्स आफिस का
झंडा उठाया
जा रहा है
ये बात हो रही थी
भगवान अल्ला
ईसा और भी
कई कई
कईयों के देवताओं
के सेमिनार में
कहीं स्वरग
या नरक या
कोई ऐसी ही जगह
जिसका टी वी
कहीं भी नहीं
दिखाया जा रहा है
एक देवता भाई
दूसरे देवता को
देख कर
मुस्कुरा रहा है
समझा रहा है
देख लो जैसे
आदमी के कुत्ते
लड़ा करते हैं
आपस में पूँछ
उठा उठा कर
बाल खड़े
कर कर के
कोई नहीं
कह पाता है
आदमी उनको
लड़ा रहा है
तुमने आदमी को
आदमी से
लड़वा दिया
कुत्तों की तरह
पूरे देश का
टी वी दिखा रहा है
भगवान जी
क्या मजा है
आप के इस खेल में
आपकी फोटो को
बचाने के लिये
आदमी आदमी
को खा रहा है
आप के खेल
आप जाने भगवान जी
हम अल्ला जी के साथ
ईसा जी को लेकर
कहीं और किसी देश में
कोई इसी तरह की
फिलम बनाने जा रहे हैं
बता कर जा रहे हैं
फिर ना कहना
भगवान जी का
कापी राईट है
और किसी और का
कोई और भगवान
उसकी नकल बना कर
मजा लेने जा रहा है ।

चित्र साभार: galleryhip.com

गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

मैरी क्रिसमस टू यू

पितामह
और
संध्याकाल

गणेश
स्तुति
रामरक्षा
हनुमान
चालीसा
और
ध्यान

कहीं
अंधेरे में
कुछ कुछ
दिखता हुआ

शायद
भगवान

सुबह
की दौड़
बस्ता

प्रार्थना सभा
ईशू के गीत

चमकता
चेहरा
दाड़ी
कुछ कथाऐं

बलिदान
करता हुआ
एक भगवान

पच्चीस दिसम्बर
सजी हुई
एक इमारत

मोमबत्तियाँ
केक चर्च
कहानियाँ
और
कहानियों
में ही कहीं
कोई
एक शैतान

चर्च की
बजती घंटियाँ
मंदिर की
आरतियाँ

सलीब
पर लटका
कोई
एक ईश्वर
गुदा हुआ
कीलों से

रिसता
हुआ खून

बलिदान
करता
एक भगवान

राम में ईशू
ईशू में राम
भगवान ईश्वर
धनुष तलवार
शंखनाद घंटियाँ
मधुर आवाज

बचपन
से पचपन
की ओर
धर्म और
अधर्म

आदमी
और शैतान
आदमी से
आदमी
की कम
होती पहचान

ना दिखे राम
ना मिले ईशू
होते चले
इसके उसके
और
मेरे भगवान

बाकी
कुछ नहीं
रह गया
कहने को

क्या कहूँ
बस
कुछ भूलूँ
कुछ
याद करूँ

हैप्पी
क्रिसमस टू यू
मैरी
क्रिसमस टू यू ।

चित्र साभार: luvly.co

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

तू कर अपने मन की हम अपनी करनी करवाते हैं

अब अगर कोई
आम चोर रहा हो
और दूसरा उसे
देखते हुऐ भी
कुछ भी नहीं
कह रहा हो
हो सकता है
उसकी नजर
सेबों पर हो
सेबों के गायब
होते समय
आम खाने वाला
चुप हो जायेगा
उस समय भी तू
मामले को उठा कर
उसका पोस्ट मार्टम
करना शुरु हो जायेगा
पता नहीं क्या क्या
फितूर उठा उठा
के ले आता है
फिर कभी इधर
कभी उधर जा
कर बताता है
इस जमीन पर भी
तेरे जैसे और
कितने तरह के
जोकर पैदा हो जाते हैं
खुद तो कुछ नहीं
कर पाते हैं और
दूसरों के करने पर
पता नहीं क्यों
फाल्तू में खौराते हैं
अब कोई आम चोरे
कोई सेब चोरे
कोई ना चोरे
इस सब को
लिखने दिखाने
के लिये तेरे जैसे ही
यहाँ चले आते हैं
अपने धंधों की बात
तुझ जैसे ही लोग
लोगों को बताते हैं
किसी को भी
नहीं देखा जाता
अपनी पोल पट्टी
सभी यहाँ आने से
पहले सँभाल के
कहीं जरूर आते हैं
कहीं भी कुछ
कर के आते हैं
यहाँ पर्देदारी की
इज्जत पूरी बनाते हैं
पता नहीं तेरे
जैसे लोग भजन
वजन में ध्यान
क्यों नहीं लगाते हैं
लोग पूजा पाठ
भी करते हैं
भागवत सागवत
भी करवाते हैं
पंडाल लगवाते हैं
और मैय्या मोरी
मैं नहीं माखन खायो
गाना जरूर बजवाते है
समझाते हैं चोरी करना
जब भगवान कृष्ण ही
नहीं छोड़ पाते हैं
तो तेरे जैसे के
कहने सुनने पर
कौन बेवकूफ लोग हैं
जो ध्यान लगाते हैं ।

सोमवार, 6 जनवरी 2014

वो क्या देश चलायेगा जिसे घर में कोई नहीं सुना रहा है

सुबह सुबह
बहुत देर तक
बहुत कुछ कह
देने के बाद भी
जब पत्नी को
पतिदेव की ओर से
कोई जवाब
नहीं मिल पाया
मायूस होकर उसने
अपनी ननद
की तरफ मुँह
घुमाते हुऐ फरमाया
चले जाना ठीक रहेगा
पूजा घर की तरफ
भगवान के पास जाकर
नहीं सुना है कभी भी
कोई निराश है हो पाया
भगवान भी तो बस
सुनता रहता है
कभी भी कुछ
कहाँ कहता है
बिना कुछ कहे भी
कभी कभी बहुत कुछ
ऐसे ही दे देता है
पतिदेव जो बहुत देर से
कान खुजला रहे थे
बात शुरु होते ही
कान में अँगुली
को ले जा रहे थे
बहुत देर के बाद दिखा
डरे हुऐ से कुछ
नजर नहीं आ रहे थे
कहीं मुहँ के कोने से
धीमे धीमे मुस्कुरा रहे थे
बोले भाग्यवान
कर ही देती हो तुम
कभी ना कभी
सौ बातों की एक बात
जिसका नहीं हो सकता है
मुकाबला किसी के साथ
देख नहीं रही हो
आजकल अपने
ही आसपास
सब भगवान का
दिया लिया ही तो
नजर आ रहा है
सारे बंदर लिये
फिर रहे हैं अदरख
अपने अपने हाथों में
मदारी कहीं भी
नजर नहीं आ रहा है
तुझे भी कोशिश
करनी चाहिये
भगवान से
ये सब कुछ कहने की
भगवान आजकल
बिना सोचे समझे
किसी को भी
कुछ ना कुछ
दिये जा रहा है
जितना नालायक
सिद्ध कर सकता है
कोई अपने आप को
आजकल के समय में
उतनी बड़ी जिम्मेदारी
का भार उठा रहा है
सब तेरे भगवान
की ही कृपा है
अनाड़ियों से बनवाई
गयी पकौड़ियों को
सारे खिलाड़ियों को
खाने को मजबूर
किया जा रहा है
वाकई जय हो
तेरे भगवान जी की
कुछ करे ना करे
झंडे डंडो में बैठ कर
चुनावों में कूदने
के लिये तो
बड़ा आ रहा है
पति भी होते हैं
कुछ उसके जैसे
उन्ही को बस
पति परमेश्वर
कहा जा रहा है
बहुत ज्यादा
फर्क नहीं है
कहने सुनने में
तेरी मजबूरी है
कहते चले जाना
कोई नहीं सुन
पा रहा है
पति भी भेज रहा है
चिट्ठियाँ डाक से
इधर उधर तब से
डाकिया लैटर बाक्स
खोलने के लिये ही
नहीं आ रहा है ।

सोमवार, 18 नवंबर 2013

तारा टूटे कहीं तो भगवान करे उसे बस माँ देखे


ऐसा बहुत बार हुआ है 
आसमान से टूटता हुआ एक तारा 
नीचे की ओर उतरता हुआ
जब दिखा है 

गूंजे हैं कान में
किसी के कहे हुऐ कुछ शब्द 
तारे को टूटते हुऐ देखना बहुत अच्छा होता है 
सोच लो मन ही मन कुछ 
कभी ना कभी जरूर पूरा होता है 

बहुत याद आती है उसकी और पड़ जाते हैं सोच 
क्यों और किसलिये उसने ऐसा
हमेशा कहा होता है 

तब दुनिया का एक सब से खूबसूरत चेहरा
सामने होता है 

पुराने दिनों की बात आ जाती है
अचानक याद 
बहुत से तारे टूटते हुऐ एक साथ 
आसमान से गिरते हुऐ
फुलझड़ी की तरह 
देखे थे किसी एक रात
उसने और मैंने साथ साथ 

इतने सारे टूटते हुऐ तारे
जैसे बरसात हो गई हो 
जाहिर करनी है
मन ही मन कोई इच्छा भी इस समय 
जैसे याद ही नहीं रह गई हो 

कब इतना समय आगे निकल गया
पता ही नहीं चला 

कल रात देख रहा था
आसमान की ओर 
एक टूटता हुआ तारा आ रहा था
जैसे जैसे नीचे की ओर 

मुझे याद आ रही थी
उसकी इच्छायें 
पता नहीं कितनी पूरी हुई होंगी 
आज जब वो पास में नहीं है 
जरूर कहीं ना कहीं से 
तारे को टूटते हुऐ
जरूर देख रही होंगी 

क्योंकि मेरी इच्छायें
उस समय भी पूरी हो जाती थी 
जब तारे के टूटते समय तुम पास खड़ी होती थी 

आज भी पूरी होती है 
तब भी
जब तुमको गये हुऐ भी बरसों हो गये 

पता नहीं
कितनों की इच्छायें पूरी हो जाती हैं
एक माँ
जब भी तारे को टूटते देखती है

आज भी माँ
जब भी कोई तारा टूटता है
मुझे कोई इच्छा नहीं याद आती है 
उस समय बस और बस 
मुझे तुम्हारी
बहुत याद आती है ।

चित्र साभार: 
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