उलूक टाइम्स: भाव
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सोमवार, 25 अगस्त 2014

गलतफहमी में ही सही लेकिन कभी कोई ऐसे ही कुछ समझ चुका है जैसा नजर आने लगता है थोड़ी देर के लिये ही सही

कुछ तो
अच्छा ही
लगता होगा

एक
गूँगे बहरे को

जब

उसे
कुछ देर
के लिये
ही सही

महसूस
होता होगा

जैसे
उसके
इशारों को
थोड़ा थोड़ा

उसके
आस पास के

सामान्य
हाथ पैर
आँख नाक कान
दिमाग वाले

समझ
रहे हों
के जैसे
भाव देना
शुरु करते होंगे

समझ में
आता ही होगा

किसी
ना किसी को

कि एक
छोटी सी
बात को
बताने के लिये

उसके पास
शब्द कभी भी
नहीं होते होंगे

कहना
सुनना बताना
सब कुछ
करना होता होगा उसे

हाथ की
अँगुलियों से ही

या कुछ कुछ
मुँह बनाते हुऐ ही

बहुत
खुशी
झलकती होगी
उसके चेहरे पर

बहुत सारे
लोग नहीं भी

बस
केवल एक ही
समझ लेता होगा
उसकी बात को
उसके भावों को

या
दर्द और खुशी
के बीच की

उसकी
कुछ यात्राओं को

सोच भी
कभी कभी
एक ऐसा
बहुत छोटा
सा बच्चा
हो जाती है

जो एक
टेढ़ी मेढ़ी
लकड़ी को

एक
खिलौना
समझ कर
ताली बजाना
शुरु कर देता हो

कुछ भी
कैसे भी कहा जाये

सीधे सीधे
ना सही
कुछ इशारों
में ही सही

जरूरी नहीं है

अपनी
बात को
कहने के लिये
एक कवि या
लेखक हो जाना
हमेशा ही

लेकिन
बिना पूँछ के
बंदर के नाच पर भी

कभी
किसी दिन
देखने वाले
जरूर ध्यान देते हैं

अगर
वो रोज
नाचता है

‘उलूक’

किसी
दिन तुझे

इस तरह
का लगने
लगता है
कुछ कुछ
अगर

खुश
हो
लिया कर
तू भी
थोड़ी देर
के लिये
ही सही ।

बुधवार, 16 जुलाई 2014

ध्यान हटाना भी कभी बहुत जरूरी होता है

कहाँ लिखा
जाता है
उस सब में से
थोड़ा सा
भी कुछ

जो हिलोरें
मार रहा
होता है
भावों की
उमड़ती
उन नदियों
के साथ
जो भावों के
समुद्र में
मिलते हुऐ भी
शांत होती हैं

लहरें उठती
जरूर हैं
पर तबाही
नहीं कहीं
होती है

जहाँ जिस
किसी के पास
सुकून होता है

लहरों के
लहरों से
मिलने का
मौका
बहुत भाव
पूर्ण होता है

सूखे हुऐ
नैनो में भी
कहीं किसी
कोने में
नमी होना
जैसा
महसूस होता है

मतलब साफ
कि रोना
होता है लेकिन
रोना शोक
का नहीं
चैन का होता है

रोना उसे
भी होता है
जिसके नैनों
में बस
पानी और
पानी होता है

नदियों का
समुद्र से
मिलन
भयानक
होता है
लहरें भी
होती हैं
तबाही भी
होती है

रोने रोने
का अंतर
बहुत ही
सूक्ष्म होता है

लिखने
लिखने का
अंतर भी
इतना ही
होता है

सब कुछ
साफ साफ
कभी नहीं
लिख पाता है
एक लिखने वाला

इधर का
छोड़ कर
उधर के
ऊपर ही
लिख लेने से
पूरा नहीं तो
अधूरा ही सही
बैचेनी को
चैन महसूस
होता है

रोज की बात
अलग होती है
बरसों में कभी
सावन हँस
नहीं बस
रो रहा होता है

'उलूक'
को कोई
सुने ना सुने
आदतन अपनी

कुछ ना कुछ
कह ही
रहा होता है ।

बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

सरकारी खर्चे पर सिखा रहे हैं ताली बजाना क्यों नहीं जाता है !

समय आने
पर ही
सब कुछ
सीखा
जाता है

चिंता नहीं
करनी चाहिये
अगर किसी
चीज को
करना नहीं
आता है

अब कोई
माँ के पेट
से ही सब
कुछ कर
लेना सीख
नहीं पाता है

हर कोई
अभिमन्यु
जैसा ही
 हो जाये
ऐसा भी
हर जगह
देखा नहीं
जाता है

ऐसा कुछ
हुआ था
कभी
बस
महाभारत
की कहानी
में ही सुना
जाता है

आश्चर्य भी
नहीं करना
चाहिये
अगर कोई
हलवाई
कपड़े सिलता
हुआ पाया
जाता है

कौन सा
गुनाह हो
गया इसमें
अगर कोई
डाक्टर मछली
पकड़ने को
चला जाता है

मेरी समझ
में बस इतना
ही नहीं
आ पाता है

थोड़ा सा
धैर्य रखने में
किसी का
क्या चला
जाता है

कोई माना
किसी को
खुश करने
के लिये कहीं
कठपुतली
का नाच
करवाता है

तालियां बजाने
के लिये
तुझे बुलाना
चाहता है

क्यों
सोचता है
तुझे तो
ताली बजाना
ही नहीं
आता है
चले जाना
चाहिये जब
सरकारी
खर्चे पर
बुलाया
जाता है

जब जायेगा
देखेगा
तभी तो
कुछ सीख
पायेगा
फिर मत
कहना कभी
बड़े बड़े
लोगों के
कार्यक्रमों
में तुझे
भाव ही
नहीं दिया
जाता है ।

रविवार, 29 सितंबर 2013

मुड़ मुड़ के देखना एक उम्र तक बुरा नहीं समझा जाता है

समय के साथ बहुत सी
आदतें आदमी की
बदलती चली जाती हैं
सड़क पर चलते चलते
किसी जमाने में
गर्दन पीछे को
बहुत बार अपने आप
मुड़ जाती है
कभी कभी दोपहिये पर
बैठे हुऐ के साथ
दुर्घटनाऐं तक ऐसे
में हो जाती हैं
जब तक अकेले होता है
पीछे मुड़ने में जरा सा
भी नहीं हिचकिचाता है
उम्र बढ़ने के साथ
पीछे मुड़ना कम
जरूर हो जाता है
सामने से आ रहे
जोड़े में से बस
एक को ही
देखा जाता है
आदमी आदमी को
नहीं देखता है
महिला को भी
आदमी नजर
नहीं आता है
अब आँखें होती हैं
तो कुछ ना कुछ
तो देखा ही जाता है
चेहरे चेहरे पर
अलग अलग भाव
नजर आता है
कोई मुस्कुराता है
कोई उदास हो जाता है
पर कौन क्या देख रहा है
किसी को कभी भी
कुछ नहीं बताता है
सब से समझदार
जो होता है वो
दिन हो या शाम
एक काला चश्मा
जरूर लगाता है ।

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

भाव का चढ़ना और उतरना


भावों
का उठना 
भावों
का गिरना 

सोच में हों 
या बाजार में 
उनका बिकना 

समय
के हिसाब से
जगह
 के हिसाब से
मौके
 के हिसाब से 

हर
भाव का भाव 
एक
भाव नहीं होना

निर्भर
करता है 

किसका 
कौन सा भाव 
किसके लिये 
क्यों कब
और 
कहाँ जा 
कर उठेगा 

मुफ्त
में साझा 
कर लिया जायेगा 

या फिर
 खडे़ खडे़ ही 
खडे़ भाव के साथ 
बेच दिया जायेगा

भावों के 
बाजार के 
उतार चढ़ाव भी 
कहाँ समझ में 
आ पाते हैं 

शेयर मार्केट
जैसे 
पल में चढ़ते हैं 
पल में उतर जाते हैं 

 कब
किसका भाव 
किसके लिये
कुछ 
मुलायम हो जायेगा 

कब कौन
अपना भाव 
अचानक बढ़ा कर 
अपने बाजार मूल्य 
का ध्यान दिलायेगा 

कवि का भाव 
कविता का भाव 
किताब में लिखी हो 
तो एक भाव 
ब्लाग में लिखी हो 
तो अलग भाव 

कवि
ने लिखी हो 
तो
कुछ मीठा भाव 

कवियत्री
अगर हो 
तो
फिर तीखा भाव 

भावों
की दुनियाँ में 
कोई मित्र नहीं होता

शत्रु
का भाव हमेशा 
ही रहता है बहुत ऊँचा



आध्यात्मिक
भाव 
से होती है पूजा 

भावातीत ध्यान 
भी
होता है कुछ

पता नहीं चलता


चलते चलते
योगी
कब जेल के अंदर
ही
जा पहुँचा 



पता नहीं
क्या ऎसा
कुछ भाव उठ बैठा

सभी
के
भावों पर 
भावावेश में

भाव 
पर ही कुछ
लिख ले जाऊँ का 
एक
भाव जगा बैठा 



दो
तिहाई जिंदगी 
गुजरने के बाद 
एक बात इसी भाव 
के
कारण आज 
पता नहीं कैसे 
पता लगा बैठा



कुछ भी
यहां
कर 
लिया जाता है 

आदमजात
भाव 
का कोई कुछ 
नहीं कर पाता है 



उदाहरण 
दिया जाता है 

खून
जब लाल 
होता है सबका 

फिर
आदमी बस 
आदमी ही क्यों 
नहीं होता है 

सब
इसी भाव पर 
उलझे रहे पता नहीं 
कितने बरसों तक

जबकी
खून का 
लाल होना ही 
साफ बता देता है
भाव का भाव हर 
आदमी के भाव में 
हमेशा से ही होता है 

हर
आदमी बिकने 
को
तैयार

अपने 
भाव पर जरूर होता है 

कभी
इधर वाला 
उधर वाले को 
खरीद देता है 

कभी
उधर वाला 
इधर वाले को 
बेच देता है 

कोई
किसी से 
अलग कहाँ होता है 

ऎसा
एक भाव 
सारी प्रकृति में 
कहीं भी और 
नहीं होता है 

आदमी
का भाव 
आदमी के लिये 
हमेशा एक होता है 
भाव ही धर्म होता है 
भाव ही जाति होता है 

कहने को
कोई 
कुछ और कहते रहे 

यहाँ
सब कुछ 
या तो आलू होता है 
या फिर प्याज होता है 

दिल
के अंदर 
होने से क्या होता है 
जब हर भाव का 
एक भाव होता है ।

बुधवार, 6 जून 2012

आँख आँख

घर में आँख से
आँख मिलाता है

खाली
बिना बात के
पंगा हो जाता है

चेहरा फिर भाव
हीन हो जाता है

बाहर आँख वाला
सामने आता है
कन्नी काट कर
किनारे किनारे
निकल जाता है

आँख वाली से
आँख मिलाता है
डूबता उतराता है
खो जाता है

चेहरा नये नये
भाव दिखाता है

रोज कुछ लोग
घर पर आँख
को झेलते हैं

बाहर आ कर
खुशी खुशी
आँख आँख
फिर भी खेलते हैं

आँख वाली
की आँख
गुलाबी
हो जाती है

आँख वाले
को आँखें
मिल जाती हैं

सिलसिला सब ये
नहीं चला पाते हैं
कुछ लोग इस कला
में माहिर हो जाते हैं

करना वैसे तो बहुत
कुछ चाहते हैं
पर घर की आँखों
से डर जाते हैं

इसलिये बस
आँख से आँख
मिलाते हैं

पलकें झुकाते हैं
पलकें उठाते हैं
रोज आते हैं
रोज चले जाते हैं

आँख आँख में
अंतर साफ साफ
दिखाते हैं ।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सारे कुकुरमुत्ते मशरूम नहीं हो पाते हैं

जंगल
में उगते हैं

कुकुरमुत्ते

कोई
भाव नहीं
देता है

उगते
चले
जाते हैं


बिना
खाद
पानी के

शहर
में सब्जी
की दुकान पर

मशरूम
के नाम पर

बिक जाते हैं
कुकुरमुत्ते

अच्छे
भाव के साथ

चाव से
खाते हैं लोग

बिना
किसी डर के

गिरगिट
की तरह
रंग
बदल लेना

या फिर

कुकुरमुत्ता
हो जाना

होते
नहीं हैं
एक जैसे

बहुत से
गिरगिट

रंग बदलते
चले जाते हैं

इंद्रधनुष
बनने की
चाह में

पर उन्हेंं
पता ही
नहीं चल
पाता है

कि
वो

कब
कुकुरमुत्ते
हो गये

कुकुरमुत्तों
की भीड़
में उगते हुवे

मशरूम
भी नहीं
हो पाये।