उलूक टाइम्स: भीड़
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शनिवार, 7 अप्रैल 2012

कुछ

कभी कुछ
व्यक्त नहीं
करने वाली
भीड़ में से

कुछ लोग
अपने आप
कुछ हो
जाते हैं

बाकी कुछ को
समाचार पत्र के
माध्यम से बताते हैं
वो कुछ हो गये हैं

नहीं बोलने
वाले कुछ लोगों
को कोई फर्क
नहीं पड़ता है
अगर कोई
अपने आप कुछ
हो जाता है
और बताता है

जो कुछ
हो जाते हैं
वो भी कभी
कुछ नहीं
बोलते हैं

बस कुछ कुछ
करते चले जाते हैं
कुछ भी किसी को
कभी नहीं बताते हैं

ऎसे ही कुछ कुछ
होता चला जाता है

ऎसे ही यहाँ के कुछ
वहाँ के कुछ लोगों
से मिल जाते हैं

बीच बीच में
कुछ कुछ
करने कहीं कहीं
को चले जाते हैं

ये सब भारत देश
के छोटे लोकतंत्र
कहलाते हैं

कुछ भी हो कुछ
करना इतना भी
आसान नहीं होता है

कुछ कर लिया
जिसने यहां
उससे बड़ा
भगवान ही
नहीं होता है।

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सारे कुकुरमुत्ते मशरूम नहीं हो पाते हैं

जंगल
में उगते हैं

कुकुरमुत्ते

कोई
भाव नहीं
देता है

उगते
चले
जाते हैं


बिना
खाद
पानी के

शहर
में सब्जी
की दुकान पर

मशरूम
के नाम पर

बिक जाते हैं
कुकुरमुत्ते

अच्छे
भाव के साथ

चाव से
खाते हैं लोग

बिना
किसी डर के

गिरगिट
की तरह
रंग
बदल लेना

या फिर

कुकुरमुत्ता
हो जाना

होते
नहीं हैं
एक जैसे

बहुत से
गिरगिट

रंग बदलते
चले जाते हैं

इंद्रधनुष
बनने की
चाह में

पर उन्हेंं
पता ही
नहीं चल
पाता है

कि
वो

कब
कुकुरमुत्ते
हो गये

कुकुरमुत्तों
की भीड़
में उगते हुवे

मशरूम
भी नहीं
हो पाये।

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

भीड़

भीड़ को
पढा़ते पढ़ाते
अब वो
भीड़ बनाना
अच्छा सीख
गया है

भीड़ पहले
कभी भी
उसका पेशा
नहीं रही

भीड़ से
निपटने में
अचानक
उसे लगा
भीड़ बहुत
काम की
चीज हो
सकती है

उस दिन
से उसने
पेशा ही
बदल डाला

अब वो
केवल एक
इशारा भर
करता है

कुछ
अजीब सा
वो भी
आसमान
की तरफ
देख कर

भीड़
चली आती है
भीड़
आपस में
बात करती है
खुले हाथ
लहराती है

लौटते हुवे
भीड़ की
मुट्ठियाँ
बंद होती हैं

एक दूसरे
से कुछ
छिपाते हुवे

एक भीड़
लौटी
वो फिर
इशारा
शुरू
कर देता है

मैने
बहुत दिन
असफल
कोशिश की
उस भीड़
का हिस्सा
बन जाने
के लिए

अब मैंने
भी वही
इशारा
करना शुरु
कर दिया है

पर कोई
नहीं आता
मेरे आसपास

भीड़
रोज
देखती है
मुझे उसी
इशारे के
साथ
जो उसका
भी है
और मैं
भीड़
देखता हूँ
जाते हुवे
उसकी तरफ
उसी इशारे
की तरफ
जिस इशारे
को सीखने
के लिये
मैने
भी अपना
पेशा छोड़
दिया है ।