उलूक टाइम्स: मातम
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शनिवार, 25 मई 2019

खुजली कान के पीछे की और पंजा ‘उलूक’ की बेरोजगारी का


पहाड़ी
झबरीले 

कुछ काले
कुछ सफेद

कुछ
काले सफेद

कुछ मोटे कुछ भारी
कुछ लम्बे कुछ छोटे
कुत्तों के द्वारा
घेर कर ले जायी जा रही

कतारबद्ध
अनुशाशित
पालतू भेड़ों
का रेवड़

गरड़िये
की हाँक
के साथ

पथरीले
ऊबड़ खाबड़

ऊँचे नीचे
उतरते चढ़ते
छिटकते
फिर
वापस लौटते

मिमियाते
मेंमनों को
दूर से देखता

एक
आवारा जानवर

कोशिश
करता हुआ

समझने की

गुलामी
और आजादी
के बीच के अन्तर को

कोशिश करता हुआ 
समझने की

खुशी और गम
के बीच के
जश्न और
मातम को

घास के मैदानों के
फैलाव के
साथ सिमटते
पहाड़ों की
ऊँचाइयों के साथ

छोटी होती
सोच की लोच की
सीमा खत्म होते ही
ढलते सूरज के साथ

याद आते
शहर की गली के
आवारा साथियों
का झुँड

मुँह उठाये
दौड़ते
दिशाहीन
आवाजों में
मिलाते हुऐ
अपनी अपनी
आवाज

रात के
राज को
ललकारते हुऐ

और

इस
सब के बीच

जम्हाई लेता
पेड़ की ठूँठ पर
बैठा
‘उलूक’

सूँघता
महसूस
करता हुआ

तापमान

मौसम के
बदलते
मिजाज का

पंजे से
खुजलाता हुआ

यूँ ही
कान के पीछे के
अपने ही
किसी हिस्से को

बस कुछ
बेरोजगारी

दूर
कर लेने की
खातिर
जैसे।

चित्र साभार: www.kissanesheepfarm.com

शनिवार, 8 अगस्त 2015

हर कोई मरता है एक दिन मातम हो ये जरूरी नहीं होता है

हर बाजार में
हर चीज बिके
ये जरूरी भी
नहीं होता है
रोज बेचता है कुछ
रोज खरीदता है कुछ
उसके बाद भी कैसे
किसी को अंदाजा
नहीं होता है
किसी की मौत
कहाँ बिकेगी
कौन कब और
कहाँ पैदा होता है
कहीं सुंदर सी
आँखों की गहराई
ही बिकती है
कहीं खाली आवाज
गुंजाता हुआ
खंडहर हो चुके
एक कुऐं में भी
प्राइस टैग बहुत
उँचे दामों का
लगा होता है
कहीं बहुत भीड़
नजर आती है
और सामने से
बहुत कुछ उधड़ा
हुआ सा होता
ये जरूरी नहीं है
जिंदगी का फलसफा
हर किसी के लिये
हमेशा एक सा होता है
किसी को खून देखकर
गश आना शुरु होता है
किस को अगर नशा
होता है तो बस गिरे हुऐ
खून के लाल रंग को
देखने से ही होता है
बहुत मरते हैं रोज
कहीं ना कहीं दुनियाँ
के किसी कोने में
हर किसी के मरने
का मातम जरूरी नहीं है
हर किसी के यहाँ होता है ।

चित्र साभार: www.examiner.com

गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

सायरन बजा देवता नचा

कुछ ही दिन पहले तक
लोगों के बीच में था
एक आदमी अब
सायरन सुना रहा है
सड़क पर खड़ी जनता को
अपने से दूर भगा रहा है
सायरन बजाने वालों
में बहुत लोगों का अब
नम्बर आ जा रहा है
जिसका नहीं आ पा रहा है
वो गड्ढे खोदने को जा रहा है
काफिले बदल रहे हैं
झंडे बदल रहे हैं
कुछ दिन पहले तक
सड़क पर दिखने वाला 

चेहरा आज बख्तरबंद 
गाड़ी में जा रहा है
पुराने नेता और उनको
शहर से बाहर तक 

छोड़ने जाने वाले लोगों
को अब बस बुखार
ही आ रहा है
गाड़ियां फूलों की माला
सायरन की आवाज
काफिले का अंदाज
नहीं बदला जा रहा है
टोपी के नीचे वाला
हर पाचं साल में
बदल जा रहा है
शहर में लाने ले जाने
वाले भी बदल जा रहे हैं
बदल बदल के पार्टियों
के राजकाज को वोटर 

सिर खुजाता जा रहा है
बस सुन रहा है सायरन
का संगीत बार बार
पहले वो बजा रहा था
अब ये बजा रहा है
देव भूमि के देवताओं
को नचा रहा है
मेरा प्रदेश बस 
मातम  मना रहा है
दिन पर दिन
धरती में समाता
जा रहा है 

उसको क्या पड़ी है
वो बस सड़क पर
गाड़ियां दौड़ा रहा है
सायरन बजा रहा है।