उलूक टाइम्स: मुट्ठी
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सोमवार, 24 अगस्त 2015

दलों के झोलों में लगें मोटी मोटी चेन बस आदमी आदमी से पूछे किसलिये है बैचेन

कंधे पर लटके हुऐ
खुद के कर्मों के
एक बेपेंदी के
फटे हुऐ झोले में
रोज अपने खाली
हाथ को डालना
मुट्ठी भर हवा
को पकड़ कर
हाथ को बाहर
निकालना
कुछ इधर फेंकना
कुछ उधर फेंकना
बाकी शेष कुछ हवा
को हवा में ऊपर
को उछालना
ये सोच कर
शायद
किसी को कुछ
नजर आ जाये
और लपक ले जाये
उस कुछ नहीं में से
कोई कुछ कुछ
अपने लिये भी
उस समय जब
भरे झोले वाले लोग
चाहना शुरु करें
कोई ना देखे
उनके झोले
कोई ना पूछे
किसके झोले
सूचना भरे झोलों
का आदान प्रदान
हो सके तो बस
बंद झोलों और
बंद झोलों के बीच
ही बिना किसी के
कहीं कोई जिक्र
किये हुऐ और
बाकी एक अरब से
ऊपर के पास के
झोलों के पेंदें रहें
फटे और खुले
ताकि बहती रहे
हवा नीचे से ऊपर
और ऊपर से नीचे
आसान हो
निकालना
हवा को हाथ से
मुट्ठी बांध कर
और चिल्लाना
भूखे पेट ही
इंकिलाब
जिंदाबाद
आर टी आई
मुर्दाबाद।

चित्र साभार: www.manofactionfigures.com


बुधवार, 21 मई 2014

मुट्ठी बंद दिखने का वहम हो सकता है पर खुलने का समय सच में आता है



अंगुलियों
को 

मोड़कर 
मुट्ठी बना लेना 

कुछ भी
पकड़ 
लेने
की
शुरुआत 

पैदा होते हुऐ 
बच्चे
के साथ 

आगे भी
चलती 
चली जाती है 

पकड़
शुरु में 
कोमल होती है 

होते होते
बहुत
कठोर
हो जाती है 

किसी भी
चीज को 
पकड़ लेने की सोच 

चाँद
भी पकड़ने
के 
लिये
लपक जाती है 

पकड़ने की
यही 
कोशिश
कुछ 
ना कुछ
रंग 
जरूर दिखाती है 

आ ही
जाता है 
कुछ ना कुछ 
छोटी सी मुट्ठी में 

मुट्ठी
बड़ी और बड़ी 
होना
शुरु हो जाती है 

सब कुछ हो 
रहा होता है 

बस
आँख बंद 
हो जाती है 

फिर
आँख और 
मुट्ठी 
खुलना शुरु 
होती है

जब 
लगने लगता है 
बहुत कुछ

जैसे
हवा पानी 
पहाड़ अपेक्षाऐं 
मुट्ठी में आ चुकी हैं 

और
पकड़ 
उसके बाद 
यहीं से

ढीली 
पड़ना शुरु 
हो जाती है 

‘उलूक’
वक्र का 
ढलना
यहीं से 
सीखा जाता है 

वक्र का
शिखर 
मुट्ठी से बाहर 
आ ही जाता है 

उस समय
जब 
सभी कुछ
मुट्ठी 
में
समाया हुआ 

मुट्ठी में
नहीं 
मिल पाता है 

अपनी अपनी
जगह 
जहाँ था

वहीं
जैसे 
वापस
चला जाता है 

अँगुलियाँ
सीधी 
हो
चुकी होती हैं 

जहाज
के
उड़ने का 
समय
हो जाता है ।


चित्र साभार:
 http://www.multiversitycomics.com/

शुक्रवार, 9 मई 2014

सँभाल के रखना है सपनों को मुट्ठी के अंदर फना होने तक

मुट्ठियाँ
बंद रखना
बस
कोशिश करके
कुछ ही दिन
और
बहुत कुछ है
जो
अभी हाथ में है
जिसे कब्जे में
लिया है सभी ने

अपने अपने
सपनों से
अपनी अपनी
सोच और
अपनी औकात के
हिसाब किताब से

कुछ ना कुछ
थोड़ा थोड़ा
गणित
जोड़ घटाना
नहीं आते हुऐ भी

समझ में आ
ही जाता है
अंधा भी
पहचान
लेता है
खुश्बू से
बदलते हुऐ
रंगों को

कान बंद
करने के
बाद भी
आवाजों की
थरथराहट
बता देती है
संगीत मधुर है
या कहीं
तबाही हुई
है भयानक

चैन से सोने
के दिनों में
सपनो को
आजाद कर देना
अच्छी बात नहीं है

सपने
आसानी से
मरते भी नहीं हैं

ताजमहल
पक्का बनेगा
बनना ही
उसकी नियति है

हाथों को
कटना ही है
और
खाली हाथों के
कटने से अच्छा है
बंद मुट्ठियाँ कटें

पूरे नहीं होने हों
कोई बात नहीं
कम से कम
सपने दिखें तो

बंद अंगुलियों के
पोरों के पीछे से
ही सही कहीं

जैसे
दिखता है
सलाखों
के पीछे
एक मृत्यूदंड
पाया हुआ
अपराधी
कारागार में ।

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

गौरैया

गौरैया
रोज की तरह
आज 
सुबह

चावल
के
चार दाने
खा के
उड़ गयी

गौरैया
रोज आती है

एक मुट्टी
चावल
से
बस चार दाने
ही
उठाती है

पता नहीं क्यों

गौरेया
सपने नहीं देखती
होगी शायद

आदमी
चावल के बोरों
की
गिनती करते
हुवे
कभी नहीं थकता

चार मुट्ठी चावल
उसकी किस्मत
में होना
जरूरी 
तो नहीं

फिर भी
अधिकतर
होते ही हैं
उसे मालूम है
अच्छी तरह

जाते जाते
सारी बंद मुट्ठियां
खुली रह जाती हैंं 

और
उनमें
चावल 
का
एक दाना
भी नहीं होता

गौरैया
शायद ये
जानती होगी ।