उलूक टाइम्स: मौका
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मंगलवार, 20 मई 2014

एक आदमी एक भीड़ नहीं होता है

बेअक्ल 
बेवकूफ
लोगों का 

अपना
रास्ता 

होता है

भीड़ 
अपने रास्ते
में होती है

भीड़ 
गलत
नहीं होती है

भीड़ 
भीड़ होती है

भीड़ 
से अलग
हो जाने वाले
के हाथ में
कुछ नहीं होता है

हर किसी 
के लिये
एक अलग 

रास्ते का 
इंतजाम होना
सँभव 

नहीं होता है

भीड़ 
बनने 
का अपना 
तरीका
होता है

इधर 
बने या
उधर बने

भीड़ 
बनाने का
न्योता होता है

भीड़ 
कुछ करे 
ना करे
भीड़ से 

कुछ नहीं
कहना होता है

भीड़ 
के पास
उसके अपने
तर्क होते हैं

कुतर्क 
करने
वाले के लिये
भीड़ में घुसने 

का कोई 
मौका ही
नहीं होता है

भीड़ 
के अपने
नियम 

कानून
होते हैं

भीड़ 
का भी
वकील होता है

भीड़ 
में किसका
कितना हिस्सा
होता है 


चेहरे में
कहीं ना कहीं
लिखा होता है

किसी 
की 
मजबूरी 
होती है
भीड़ में 

बने रहना

किसी 
को भीड़ से
लगते हुए डर से
अलग होना होता है

छोटी 
भीड़ का
बड़ा होना 


और
बड़ी 

भीड़ का
सिकुड़ जाना

इस 
भीड़ से
उस भीड़ में
खिसक जाने
से होता है

‘उलूक’ 
किसी एक
को देख कर
भीड़ की बाते
बताने वाला

सबसे बड़ा
बेवकूफ होता है

चरित्र 
एक का
अलग 


और
भीड़ 

का सबसे
अलग होता है ।

गुरुवार, 15 मई 2014

बहुत जोर की हँसी आती है जब चारों तरफ से चोर चोर की आवाज आती है

सारे हैं शायद
चोर ही हैं
चोर जैसे
दिख तो
नहीं रहे हैं
पर लग रहा है
कि चोर हैं
इसलिये क्योंकि
सब मिलकर
चोर चोर
चिल्ला रहे हैं
किसको कह रहे
हैं चोर चोर
बस यही नहीं
बता रहे हैं
कुछ ऐसा जैसा
महसूस हो रहा है
चोर उसको चोर
कह रहा है
जो चोरों को
बहुत लम्बे
समय से चोरी
करते हुऐ
देख रहा है
कौन क्या क्या
चोर रहा है
उसको सब
पता है
उसको क्या
पता है
ये चोरों को
भी पता है
अब चोरों की
दुनियाँ में
जो चोर नहीं है
सबसे बड़ा
चोर तो वही है
अच्छा है चोरों
की दुनियाँ में
पुलिस नहीं होती है
चोर के पास ही
चोर को सजा में
ईनाम देने की
एक धड़ी होती है
घड़ी घंटी तभी
बजाती है जब
कहीं किसी दिन
चोरी नहीं होने की
खबर आती है
‘उलूक’ को वैसे तो
रात में ही आँख
खोलने में
विश्वास होता है
दिन में उसका
देखा हुआ
देखा जैसा भी
नहीं होता है
उसके घर से
शुरु होते हैं चोर
और कोई भी
मैं चोर हूँ
बिल्कुल भी
नहीं कहता है
मौका मिलता है
जैसे ही थोड़ा
सा कहीं भी
किसी के साथ
मिलकर चोर चोर
जरूर कह लेता है ।

सोमवार, 12 मई 2014

सियार ने खड़े किये हुऐ हैं कान होशियारी जरूर दिखायेगा

आज हो ही गया
लग पड़ कर पूरा
बहुत दिन से
लग रहा था
कहीं है कुछ तो
अधूरा अधूरा
कल से दो चार
दिन के लिये
कोई कहीं
नहीं जायेगा
उसके बाद कौन
कहाँ पहुँच जायेगा
ये सब मशीनों का
मूड ही बता पायेगा
किस ने खर्च किया है
और कुछ खरीदा है
किस को मौका मिला
है बेचने का जिसने
बेच भी दिया है
बहुमत बनेगा और
सौ आना पक्का बनेगा
पर शक्ल उसी तरह
की ही तो ले पायेगा
जिस तरह का बहुमत
रोज कोई अपने
आसपास हमेशा
अपने जैसों के
साथ मिल बैठ
कर बनायेगा
कान का पूँछ से
वैसे तो कम ही
पड़ता है मतलब
कान पूँछ के पास
हो सकता है
नहीं भी जायेगा
काम निकालने
निकलवाने की भी
प्रैक्टिस करनी
पड़ती है जनाब
काम निकालने
के लिये बिना
पूँछ वाला भी
किसी और की
पूँछ मोड़ कर
अपने कान के
पीछे से भी
निकाल ले जायेगा
अँगुली में लगा
हुआ काला निशान
इतनी जल्दी भी
फीका नहीं हो जायेगा
कहीं खिलेगा चमकेगा
कहीं नीला होते होते
काला पड़ जायेगा
जो भी होगा
अच्छा होगा
अच्छे को ही
आगे ला
कर दिखायेगा
नहीं भी होगा
तो अच्छा
ही आया है
मान कर तसल्ली
करने का
संदेश दे जायेगा
कितनी बार
हो चुका है
इसी तरह का
क्या पता
इस बार
कुछ नया
इतिहास बनायेगा
छोटे छोटे गाँवों से
मिलकर बने देश ने
हमेशा गाँव दिखाया है
इसी बार बताया
जा रहा है
शहर से
होता हुआ शहर
अपनी चाल दिखायेगा
सोलहवाँ सावन
है सरकार
सरकार बनने
बनाने में
देख लीजियेगा
सोलह गुल
जरूर खिलायेगा
इसकी बने तो इसकी
उसकी बने तो उसकी
जैसी कहने वालों का
बोलबाला हमेशा ही
जलवा बिखेरता रहा है
इस बार भी नहीं चूकेगा
अपना दाँव चलाने का
मौका जरूर
निकाल ले जायेगा ।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014

इस देश में जो शरमाता है वही बेशरम कहलायेगा

पता था ईमानदार
बनकर सरकार
नहीं चला पायेगा
भ्रष्टाचार से चलते
हों जहाँ घर तक
उस देश में कैसे
तुझे ज्यादा दिन
तक मौज मनाने
का आसान मौका
दे दिया जायेगा
अच्छा किया जो
इस्तीफा दे दिया
अब सारे ईमानदारी
के ठेकेदारों के
नाम से दुबारा
टेंडर खुलवाया जायेगा
आम आदमी की टोपी
और आम आदमी का
गाना गा कर आंखिर
कितनी दूर तक
कोई चल पायेगा
बहुत अच्छा किया
जो भी किया
चल सड़क पर आजा
फिर से कुछ नये
क्राँतिकारी गीत सुनायेगा
मीडिया फिर से
टी आर पी के जुगाड़
के लिये तेरी कुछ
नई कहाँनियाँ कुछ
नये नाटक बनायेगा
इस देश में बस
वही टिक पायेगा
जो मुँह में राम
बगल में छुरी दबायेगा
हर मौहल्ले में
जिस देश की
होती है पुराने
चोरों की बहुत
सी गलियाँ
वहाँ किसी भी
नये प्रयोग करने
वाले को इसी तरह
लात मार मार कर
भगा दिया जायेगा
उसके बाद भगाने
वालों का जत्था ही
लगा कर राम और
रहीम के मुखौटे
बेवकूफ जनता को
ईमानदारी से वोट
देने के लिये उकसायेगा
अच्छा किया तूने
बहुत अच्छा किया
पर क्या तू फिर से
गधे की सवारी करने
के लिये दुबारा
गधों के दरबार में
कभी और किसी
दिन हाजिरी लगायेगा
हो सकता है
कुछ तरस खा कर
अगली बार गधा
तुझे हल्की दुलत्ती
लगा कर ही
खुश हो जायेगा
कर फिर कुछ कर
हमारे पास भी
कोई काम
धाम नहीं है
फिर से कुछ
बकवास करने
का एक मौका
हमारे हाथ में
तब भी आ जायेगा ।

शनिवार, 28 दिसंबर 2013

ऐसा भी तो होता है या नहीं होता है


जाने
अंजाने में 

खुद
या
सामूहिक 
रूप से

किये गये 
अपराधों के 
दंश को 

मन के
किसी 
कोने में दबा कर 

उसके ऊपर 

रंगबिरंगी 
फूल पत्तियाँ 

कुछ
बनाकर 
ढक देने से 

अपराधबोध
छिप 
कहाँ पाता है 

सहमति
के
साथ 
तोड़ मरोड़कर 

काँटों के जाल
का 
एक फूल
बना 
देने से

ना तो 
उसमें खुश्बू 
आ पाती है 

ना ही
ऐसा कोई 
सुन्दर
सा रंग

जो 
भ्रमित कर सके 
किसी को
भी 
कुछ देर
के 
लिये ही सही 

सदियां
हो गई 
इस तरह की
प्रक्रिया
को 
चलते आते हुऐ 

पता नहीं
कब से 

आगे भी
चलनी हैं 

बस
तरीके बदले हैं 
समय के साथ 

जुड़ते
चले जा रहे हैं 
इस तरह एक साथ 
अपराध दर अपराध 

जिसकी
ना किसी 
अदालत में सुनवाई 
ही होनी है

ना ही 
कोई फैसला
किसी 
को ले लेना है
सजा के लिये 

बस
शूल की तरह 
उठती हुई चुभन को 

दैनिक जीवन
का 
एक नित्यकर्म 
मानकर

सहते 
चले जाना है 
और
मौका मिलते ही 
संलग्न
हो जाना है 
कहीं
खुद

या कहीं 
किसी
समूह के साथ 
उसके दबाव
में 

करने
के लिये एक 
मान्यता प्राप्त
अपराध।

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

भले हैं नारद जी अच्छा ही चाहते हैं

नारद जी को
ये जरा भी 

समझ में
नहीं आता है

देवताओं और
असुरों से
साथ साथ
आखिर क्यों
नहीं रहा जाता है

कितने साल
देखिये हो गये
कितने असुर
असुर नहीं रहे
देवता जैसे
ही हो गये

देवताओं का
असुरों में
असुरों का
देवताओं में
आना जाना
भी अब
देखा ही जाता है

नारद जी को
वैसे तो
देवता ही
माना जाता है

असुरों के यहाँ
आना जाना
लेकिन उनका
बहुत बार देखा
सुना जाता है

बहुत
समय से
इसीलिये
जुगाड़
लगा रहे हैं

असुरों को
देवताओं में
मिलाने का मिशन

अपना ध्येय
बना रहे हैं

देवता तो
हमेशा बहुमत
में होते हैं

क्योंकी वो तो
देवता लोग होते हैं

ये बात
कोई
नहीं देखता
कुछ देवता
देवताओं के
कहने पर
नहीं जाते हैं

पर देवता तो
देवता होते हैं
गिनती में
देवताओं के
साथ ही हमेशा
गिने जाते हैं

असुर तो
हमेशा से ही
अल्पसंख्या
में पाये जाते हैं

मौका
मिलता है कभी
अपने काम के लिये
देवता हो जाने में
नहीं हिचकिचाते हैं

बेवकूफ
लेकिन हमेशा
ही नहीं बनाये जाते हैं

समझते हैं
सारे असुर
अगर देवताओं के
साथ चले जायेंगे

अभी
छुप कर करते हैं
जो मनमानी

उसे करने के लिये
खुले आम मैदान में
निकल के आ जायेंगे

यही सब सोच कर
असुर रुक जाते हैं

ज्यादा
नुकसान
कुछ उनको
नहीं होता 
है

देवताओं
के राज्य में
वैसे भी
उनके काम
कौन सा
हो पाते हैं ।

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

बात की बात

बात पहले भी
निकलती थी
दूर तलक
भी जाती थी
बहुत समय
नहीं लगता था
पता नहीं कैसे
फैल जाती थी
साधन नहीं थे
आज के जैसे
बात तब भी
उछल जाती थी
आज भी बहुत
बात होती है
बात कभी तो
बाद में होती है
उससे पहले किसी
ना किसी के
पास होती है
कोई किसी से
नहीं पूछता है
अपने आप ही
आ जाती है
आज की बात में
वो बात पर नजर
नहीं  आती है
बात बडी़ बडी़
बातों के बीच में
कहीं खो जाती है
बहुत मुश्किल से
कोई बात का होना
बता पाता है
बात का ठिकाना
भी खोज लाता है
दबी हुई जबान से
बातों के बीच से
बात को निकाल
कर लाता है
उस बात की बात
लोग बस बनाते
ही चले जाते हैं
गाँधी जो क्या हैं 
कोई यहाँ जो
बात कहते कहते
देश को आजाद
कर ले जाते हैं
बात वैसे ही
कच्ची निकला
करती है अभी भी
लेकिन अब बात
को पहले लोग
पूरा पकाते हैं
मसाले नमक
मिर्च साथ में
मिलाते  हैं
जब बात के
होने का मतलब
निकल जाता है
बात बनाने वाला
खतरे को पार कर
अपने को बचा
ले जाता है
बात को तरीके से
सजाया जाता है
मौका देख कर
पूरा का पूरा
फैलाया जाता है ।

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

निविदा खुलने का समय है आया

दस सालों तक
कुछ ना किया हो
बस घर में बैठ के
वेतन लिया हो
ऎसा अनुभव
नहीं बटोर पाया
निविदा निकली थी
अखबारों में
सर्वोच्च पद के लिये
मुझ पति ने
उस पति के आसन
तक पहुँचने का
हाय बहुत सुंदर मौका
यूँ ही है गँवाया
निविदा के कितने
सील बंद लिफाफे
हो चुके हैं जमा
राज्यपिता के संदूक में
अभी तक राज ये
नहीं है खुल पाया
मुख्यमंत्री अब जब
भारी मतों से है
जीत कर आया
आशा जगी है
'ए' क्लास आवेदकों में
जिसने अपना भाग्य
लिफाफे में है
बंद करवाया
चुनाव जीत कर
मुख्यमंत्री घोषणा
है कर आया
ना जाति का है
ना क्षेत्र का है
बस है इसी राज्य का
जिसने है उन्हें जिताया
नवनिर्माण की निविदा
तो है नहीं यह
पुराने निर्माण को
खोदने की ताकत
लेकर देखना है
अब कौन है आया
पता भी तब चलेगी
यह बात हमको
कि सबसे बडी़
बोली कौन है
दे कर के आया ।