उलूक टाइम्स: रहम
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बुधवार, 19 जून 2019

बरसों लकीर पीटना सीखने के लिये लकीरें कदम दर कदम

बरसों
लकीर पीटना

सीखने
के लिये लकीरें

समझने
के लिये लकीरें

कहाँ
से शुरु
और
कहाँ
जा कर खतम

समझ लेना
नहीं समझ पाना

बस लकीरें

समझते हुऐ
शुरु होने और
खतम होने का है

बस वहम और वहम

जो घर में है
जो मोहल्ले में है
जो शहर में है

वही सब
हर जगह में है

और
वही हैं
सब के
रहम-ओ-करम

सबके
अपने अपने
झूठ हैं जो सच हैं

सबके
अपने सच हैं
जरूरत नहीं है
बताने की

सबने
खुद को दी है
खुद की ही कसम

लिखना लिखाना
चाँद सूरज तारे दिखा ना

जरूरत
नहीं होती है
देखने की
दर्द-ए-लकीर पीट चल

मत किया कर रहम

पिटती लकीर है
मजे में फकीर है
सो रहा जमीर है
अमीर अब और अमीर है

कलम
लिखती नहीं है
निकलता है
उसका दम

कविता कहानी
शब्दों की जवानी

कितने
दिलाती है ईनाम

कौन है
भगवान
इधर का
और कौन है
उधर का

इन्तजार कर

भक्ति में
कहीं किसी की
कुछ तो रम

बड़े बड़े
तीरंदाज हैं
दिखाते हैं
समझाते हैं
नबाब हैं

हरकतें
दिख जाती हैं
टिप्पणी में
किस जगह से
किस सोच
के आप हैं

शोर
करते चलिये
नंगों के लिये
हमाम हर जगह हैं
नहीं होते हैं कम

अंधा ‘उलूक’ है
देखता बेवकूफ है
ना जाने क्या क्या
शरम बेशरम

लिखता
जरूर है

कविता
कहानी
लिखने का

नहीं उसे
सहूर है

पता नहीं
कौन पाठक है

पाँच हजार
पाँवों के निशान

रोज दिखते
जरूर 
 हैं 
उनको नमन ।

चित्र साभार: www.clipartof.com

बुधवार, 20 मई 2015

रहम कर अक्षरों पर

बस भी कर
रहने दे
परेशान
हो गये हैं
अक्षर
शायद सभी

तेरी बातों
में आकर
तेरे लिये
तेरी बातें
बनाते बनाते

बख्स भी दे
अच्छा नहीं है 

उछल कूद
कराना
इतना ज्यादा

दुखने लगे
हैं जोड़
ऊपर से लेकर
नीचे तक

अक्षरों को
हो सके तो
इतना
मत तोड़
अक्षर भी
जुड़ते हैं
मेहनत से
खुद ही
हर जगह
सबके साथ
सीधे सीधे

सीधे रास्ते के
होते हैं आदी
सीधे अक्षर
सभी जोड़ते हैं
अपने अपने
हिसाब से
कहीं कोई
कष्ट नहीं
होता है

ज्यादातर का
जोड़ घटाना
गुणा भाग
एक सा
होता है
आदत हो
जाती है
अक्षरों
को भी
जोड़ घटाना
गुणा भाग
करने वालों
को भी
एक दूसरे की

तेरा जैसा भी
बहुत सारों
के बीच में
कोई एक
होता है
तोड़ता है
मरोड़ता है
सीधे रास्तों
को छोड़ता है
पकड़ लेता है
कोई ना कोई
खूंटा कहीं

दीवार का
छोड़ कर
पेड़ पर जैसे
टाँक कर
अक्षरों को
छोड़ देता है

कब तक
सहे कोई
होता है
विद्रोही
सीधे साधे
चलने का
आदी अक्षर
जब कभी
बहुत ज्यादा
उन्हे टेढ़ा मेढ़ा
बना कर
टेढ़े मेढ़े
रास्ते में
मजबूरन
चलने के लिये
घुसेड़ देता है

पढ़ने वाला भी
रोज रोज के
टेढ़े मेढ़े को
देख कर
आना ही
छोढ़ देता है

इसीलिये
फिर से सुन
बस भी कर
रहने दे
परेशान
हो गये हैं
अक्षर
शायद सभी
तेरी बातों
में आकर
तेरे लिये
तेरी बातें
बनाते बनाते
किसी दिन
एक दिन
के लिये
ही सही
अक्षरों को
तोड़ना
मरोड़ना
और
निचोड़ना
छोड़ कर
उन्हे भी
कुछ
सीधे रास्ते
का
सीधा साधा
विराम
क्यों नहीं
कुछ दे
देता है ।

चित्र सभार: www.shutterstock.com

शनिवार, 31 मार्च 2012

रहम

सुन !

मेरे को
मत पका

कभी कुछ
अच्छी दो
बातें भी तो
ढूँढ कर ला

गजल सुना
चुटकुला सुना
रंगीन नहीं है तो
ब्लैक एंड वाहिट
ही चल दिखा

कभी दिल्ली
में भटक जाता है
वहाँ नहीं
चला पाता है
तो देहरादून
आ जाता है

तेरा अपना
शहर तो जैसे
तुझे रोज ही
काटने को
आता है

कभी तो
मुस्कुरा
दो बातें
प्रेम की
भी सुना


माना की
बीबी की
डाँठ भी
खाता है
पर कोई
तेरी तरह
नहीं
झल्लाता है

ज्यादा
कचकच
लगाने वाला
अपने को
मत बना

मान जा
कभी हमारे
लिये भी गा

तितलियाँ फूल
झरने देख
कर आ
उनके बारे में
आ कर बता

स्कूल
में बच्चों
को
पढ़ाता होगा
हमको तो
मत पढ़ा

अनारकली
आ रही है
आज टी वी में
क्या तुझे है पता

रोज लिखना
जरूरी है क्या

आज कविता
मत चिपका

हम पर रहम
थोड़ा सा खा ।