उलूक टाइम्स: रहीम
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शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

कुछ रूह होती हैं कुछ रूह भूत होती हैं

कुछ रूह होती हैं
सहला देती हैं रूह को बस यूँ ही
कुछ बदल देती हैं समां
यूँ ही आस पास का
लगता है कहीं होती हैं

गोश्त और गोश्त में
कहां कोई फर्क नजर आता है
गोश्त कुछ रूह से महकी हुई
मगर जरुर होती हैं

शुक्रिया कहने की जरुरत
कहां कब रह जाती है
आसपास एक नहीं
जब चाहने वाली कई रूह होती हैं

अब रूह कहें आत्मा कहें
राम और रहीम की भी होती हैं
बहस कुछ गोश्त पर छपी
हमेशा होती हैं और जरुर होती हैं

हजार रूह के बीच
बस एक दो कुछ अजीब होती हैं
गोश्त और रूह से अलहदा
कुछ थोड़ा सा भूत होती हैं

हजारों ख्वाहिशे होती हैं
रूह भी कभी कभी रोती है
उलूक जाना लकड़ियों में है
जलना लकड़ियों में है
खबरें होती हैं
और हमेशा मगर
किसी गोश्त की होती हैं |

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/ 




सोमवार, 17 नवंबर 2014

जरूरी है याद कर लेना कभी कभी रहीम तुलसी या कबीर को भी



बहुत सारी तालियाँ
बजती हैं हमेशा ही
अच्छे पर अच्छा
बोलने के लिये
इधर भी और
उधर भी
 नीचे नजर
आ जाती हैं
दिखती हैं
दूरदर्शन में
सुनाई देती हैं
रेडियो में
छपती हैं
अखबार में
या जीवित
प्रसारण में भी
सामने से खुद
के अपने ही
शायद बजती
भी हों क्या पता
उसी समय
कहीं ऊपर भी
अच्छा बोलने
के लिये अच्छा
होना नहीं होता
बहुत ही जरूरी भी
बुरे को अच्छा
बोलने पर नहीं
कहीं कोई पाबंदी भी
अच्छे होते हैं
अच्छा ही देखते हैं
अच्छा ही बोलते हैं
ज्यादातर होते ही हैं
खुद अपने आप में
लोग अच्छे भी
बुरी कुछ बातें
देखने की उस पर
फिर कुछ कह देने की
उसी पर कुछ कुछ
लिख देने की
होती है कुछ बुरे
लोगों की आदत भी
अच्छा अच्छा होता है
अच्छे के लिये
कह लेना भी
और जरूरी भी है
बुरे को देखते
बुरा कुछ कहते
रहना भी
करते हुऐ याद
दोहा कबीर का
बुरा जो देखन मैं चला
हर सुबह उठने
के बाद और
रात में सोने से
पहले भी ।

 चित्र साभार:
funny-pictures.picphotos.net