उलूक टाइम्स: राम
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सोमवार, 21 जनवरी 2013

राम नहीं खोल सकता कोई वैंडर तेरे नाम का टेंडर

सोच रहा था
कल से

इस पर
कुछ भी नहीं
लिखना
विखना चाहिये

करने
वाले को
कौन सा इसे
पढ़ ही लेना है

मुझे भी
बस चुप ही
रहना चाहिये

पर
मिर्ची खाने पर
पानी पीना कभी
 ही जाता है

सू सू
की आवाज
बंद भी
कर ली जाये

तब भी
मुँह लाल
होना तो
सामने वाले को
दिख ही जाता है

इसलिये
रहा नहीं गया

जब देखा
स्वयंवर
टाला ही
जा चुका है

सारे के सारे

बनाये गये
रामों को

दाना
डाला जा चुका है

बेशरम
राम बनने का
जुगाड़ लगा रहे थे

देख
भी नहीं रहे थे

राम
की मुहर जब

ना
जाने कब से

वो
अपने पास ही
दिखा रहे थे

अब जब राम
भगवान होते हैं
पता था इन सबको

फिर
ये कैसे
सीता को
पाने के सपने
देखे जा रहे थे

खेमे पर खेमे
किसलिये बना रहे थे

सुग्रीव
भी बेचारे
इधर से उधर
जाने में अपना
समय पता नहीं
क्यों गंवा रहे थे

रावण
के परिवार की तरह
राज काज जब
संभाला जा रहा था

लोगों को
दिखाने के लिये
रावण का पुतला भी
निकाला जा रहा था

सीता के
अपहरण के लिये
राम बनकर ही मौका
निकाला जा रहा था

कैसे
हो जायेगा
स्वयंवर
उसके बिना मूर्खो

जब
उसने अभी तक

अपना
रामनामी चोला
अभी नहीं उतारा था ।

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पूरी बात

शर्ट की
कम्पनी
सामने
से ही
पता चल
जाती है
पर
अंडरशर्ट
कौन सी
पहन कर
आता है
कहाँ 
पता 
चल पाता है

अंदर
होती है
एक
पूरी बात
किसी के
पर वो
उसमें से
बहुत
थोडी़ सी
ही क्यों
बताता है

सोचो तो
अगर
इस को
गहराई से
बहुत से
समाधान
छोटा सा
दिमाग
ले कर
सामने
चला
आता है

जैसे
थोड़ी 
थोड़ी
पीने से
होता है
थोड़ा सा
नशा
पूरी
बोतल
पीने से
आदमी
लुढ़क
जाता है

शायद
इसीलिये
पूरी बात
किसी को
कोई नहीं
बताता है

थोड़ा थोड़ा
लिखता है
अंदर की
बात को
सफेद
कागज
पर अगर
कुछ
आड़ी तिरछी
लाइने ही
खींच पाता है

सामने वाला
बिना
चश्मा लगाये
अलग अलग
सबको
पहचान ले
जाता है

पूरी बात
लिखने की
कोशिश
करने से
सफेद
कागज
पूरा ही
काला हो
जाता है

फिर कोई
कुछ भी
नहीं पढ़
पाता है

इसलिये
थोड़ी
सी ही
बात कोई
बताता है

एक
समझदार
कभी भी
पूरी रामायण 
सामने नहीं
लाता है

सामने वाले
को बस
उतना ही
दिखाता है
जितने में
उसे बिना
चश्में के
राम सीता
के साथ
हनुमान भी
नजर आ
जाता है

सामने
वाला जब
इतने से
ही भक्त
बना लिया
जाता है

तो

कोई
बेवकूफी
करके
पूरी
खिचड़ी
सामने
क्यों कर
ले आता है
दाल और
चावल के
कुछ दानों
से जब
किसी का
पेट भर
जाता है ।

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

हे राम !

राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत है पुरानी

दादी से माँ तक
आते आते लगता है
अब चैन की
नींद सो रही है

बच्चों के
भारी भारी बस्तों में
स्कूल की रेलमपेल में
सीता भी उनींदी सी
किसी किताब
किसी कापी
के किसी मुढ़े तुढ़े पन्ने में
कहीं खो रही है

घर में भी फुरसत में
बातों बातों में कभी
राम भी भूले से भी
नहीं आना चाह रहे हैं

कर्म और
फल वाली
कहावत में भी
मजे अब उतने
नहीं आ रहे हैं

फलों के पेड़ भी
अब लोग गमलों में
तक कौन सा
लगाना चाह रहे हैं

बोते हुवे वैसे
बहुत से लोग
बहुत सी चीजें बस
दिखाने के लिये
दिखा रहे हैं

आम का बीज
दिख रहा है
उसी बीज से बबूल
का पेड़ उगा ले
जा रहे हैं

दादी और माँ ने भी
ऎसा कुछ कभी
क्यों नहीं बताया
जो दिखाया भी
इस जमाने के
हिसाब से बड़ा
अजीब सा ही दिखाया

अब वो सब पता नहीं
कहां खोता जा रहा है
जमाना जो कुछ
दिखा रहा है
पता नहीं चल रहा है
वो किस खेत में
बोया जा रहा है

बड़ी बैचेनी है
कोई इस बात
को क्यों नहीं
समझा रहा है

जब राम का
हो रहा है ये हाल है
तो बतायें
क्या फिर बच्चों को
कृ्ष्ण कबीर तुलसी
रहीम के बारे में

जब राम की कहानी
तुलसी की जुबानी
बहुत ही पुरानी
जैसी हो रही है

दादी से
माँ तक होकर
मुझ तक आते आते
जैसे कहानी
के अन्दर ही
किसी कहानी में
ही कहीं खो रही है।