उलूक टाइम्स: रास्ते
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गुरुवार, 30 नवंबर 2023

रास्ते सब अपनी जगह हैं लोग बस कहीं नहीं जाते हैं


रोज के सफ़ेद पन्ने पुराने कुछ कुरेदने के दिन कभी याद आते हैं
बारिश अब नहीं होती है उस तरह से बादल मगर रोज ही आते हैं

फिसलने लगती है कलम हाथ से शब्द भागना जब शुरू हो जाते हैं
पकड़ने की कोशिश में समय को सपने तितलियां हो कर उड़ जाते हैं

भीड़ हर तरफ होती है रेले आते हैं कई कई आ कर चले जाते हैं
समुन्दर में गिरती चली जाती हैं नदियां बूंदों के हिसाब गड़बड़ाते हैं

फितरत तेरी अपनी है खूबसूरत है किसी की बस कौऐ उड़ाती  हैं
समझदारी संभाल कर रख चालाकी में  धागे चहरे के उधड़ जाते हैं

अपनी कुछ भी  नहीं कहते हैं दूसरे की पतंगें बना कर के उड़ाते हैं
बाजीगर पकडे तो नहीं जाते हैं पर उतरे चेहरे लिखे पर फ़ैल जाते हैं

कबूतर हों या कौऐ हों हवा अपनी ही उड़ाते हैं  
चूहे बड़े शहर के भी हों खोहें अपनी बनाते हैं
‘उलूक’ कोटर से थोड़ा सा झाकने से ही बस तेरे
नजदीकी तेरे अपने कुछ सनकते हैं कुछ कसमसाते हैं |

 

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

एक पन्ने पर कुछ देर रुक कर अच्छा होता है आवारा हो लेना पूरी किताब लिखनी जरूरी है कहाँ लिखा होता है

दरवाजा
खोल कर
निकल लेना
बेमौसम
बिना सोचे समझे

सीधे सामने के
रास्ते को
छोड़ कर कहीं

मुड़ कर
पीछे की ओर
ना चाहते हुऐ भी

जरूरी
हो जाता है
कभी कभी

जब हावी
होने लगती
है सोच
आस पास की
उड़ती हवा की

यूँ ही
जबर्दस्ती
उड़ा ले जाने
के लिये
अपने साथ
लपेटते हुए
अपनी सोच
के एक
आकर्षक
खोल में

अपने अन्दर
के 'ना' को
नकारने में माहिर

बहुत सारे
साफ हाथों से
सुलेख में
'हाँ' लिखे हुऐ
पोस्टर बैनर
ली हुयी
भीड़ के बीच

'नहीं' को
बचा ले जाने
की कोशिशें
नाकाम होनी
ही होती हैं

अच्छा होता है
नजर हटा लेना
अपने अन्दर
जल रही
आग से
बने कोयले
और राख से
पारदर्शी आयने
हो चुके चेहरों से

और देख लेना
आरपार
सड़क पर खड़े एक
जीवित शरीर को
आत्मा समझ कर
दूर कहीं
हरे भरे पेड़ पौंधों
उड़ते हुऐ चील कौवों
या क्रिकेट खेलते हुऐ
खिलदंडों से भरे
मैदान से उड़ती
हुई धूल को

कविताओं के शोर में
दब गयी आवाज को
बुलन्द कर ले जाना
आसान नहीं होता है

चलती साँस को
कुछ देर रोक कर
धीरे से छोड़ने के लिये
इसीलिये कहा जाता
होगा शायद

खाली
सफेद पन्ने भी
पढ़े जा सकते हैं
लिखना छोड़ कर
किसी मौसम में
‘उलूक’

खुद ही पढ़ने
और
समझ लेने
के लिये
खुद लिखे गये
आवारा रास्तों
के निशान।

चित्र साभार: canstockphoto.com

बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

ऊपर जाने के रास्ते समझो जरा नीचे से निकल कर जाने हो रहे हैं

डूबते हुऐ जहाज
में बहुत तेजी
से हो रहे हैं
एक नहीं एक
साथ हो रहे हैं
सारे हो रहे हैं
सारे के सारे
काम ही हो रहे हैं
काम का दिखना
जरूरी नहीं है
जरूरी है देखना
किनारे से
भोंपुओं के सहारे
सहारे से कई
इशारे हो रहे हैं
हो रहें हैं कि
नहीं हो रहे हैं
इतनी गजब की
बातें हो रही है
ये सब कुछ
जल्दी ही गिन कर
गिनीज बुक को
बताने हो रहे हैं
जहाज की सैल्फी
डूबती हुई जनता
खुद ही ले रही है
किस्मत बहुत ही
खराब है कुछ
लोगों की जहाँ
जहाज चलाने वाले
के लोगों के शोर
नगाड़ों के शोर
में खो रहे हैं
किसी के होश
उड़ रहे हैं जहाज
के डूबने की
सोच सोच कर
पैंट के पाँयचे
ना जाने किस डर
से गीले हो रहे हैं
बेवकूफ का बेवकूफ
रह गया ‘उलूक’
उसे तो हमेशा
दिखा है सोचने
समझने के
लाले हो रहे हैं
वादा किया भी है
ऊँचाईयों में ले
जाने का जहाज
वादा निभाने के
लिये ही तो काम
सारे हो रहे हैं
किसने कह दिया
ऊपर को ही जाना
जरूरी है ऊँचाईयाँ
छूने के लिये
मन लगा कर
इच्छा से डूब कर
भी ऊपर को ही
जाने के रास्ते
जब बहुत
आसान और
बहुत सारे हो रहे हैं ।

चित्र साभार: blogs.21rs.
es  

शनिवार, 4 जुलाई 2015

पीछे का पीछे ही ठीक है आगे देखने वाले ही आगे जाते हैं

लौट कर
देखने की चाह
अपने ही बनाये
हुऐ शब्दों के
रास्ते पर
बस एक चाह
ही रह जाती है

लौटा जाता नहीं है
पीछे से शब्दों की
एक बहुत ही लम्बी
सी कतार रह जाती है

मुड़ कर
देखना भी
आसान
नहीं होता है

गरदन
अपनी नहीं
अपने ही लिखे
शब्दों की टेढ़ी
होती सी
नजर आती है

चलना शुरु
करती है
जिंदगी भी
अपने खुद के
ही पैरों पर
हमेशा ही आगे
की ओर ही

पीछे देखने की
सोचने सोचने तक
पूरी हो जाती है

बहुत कुछ
चलता है
साथ में
शब्दों के
बनते बिगड़ते
रास्तों में

अपने बहुत कम
ही रह पाते है
अपने जैसों को
छाँटते हुऐ
साथ बदलते
बदलते शब्द भी
रास्ते बदलते
चले जाते हैं

कैसे लौटे कोई
देखने के लिये
अपने ही ढूँढे हुऐ
शब्दों के पिटारों में
दीमक जिंदगी के
किसने देखें हैं
क्या पता शब्दों को
चाटते हुऐ ही
साथ में चलते
चले जाते हैं

मिटता हुआ
चलता है समय भी
दिखता कुछ
भी नहीं है
हम भी तुम भी
और सभी
धुंधले होते ही
चले जाते हैं

आगे के शब्दों पर
नजर रहना ही
ठीक लगता है
पीछे लिखे हुऐ
महसूस कराते हैं
जैसे कुछ
खींचते हैं
कुछ खींच
कर गिराते हैं ।

चित्र साभार: imageenvision.com

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

हमेशा होता है जैसा उससे कुछ अनोखा नहीं होगा


तुम को लगता होगा
कभी तुम पर लिखा हुआ होगा यहाँ पर शायद कुछ

उसे लगता होगा 
हो सकता है उसके लिये ही कहा गया हो कुछ

पर समय पर लिखा गया कुछ भी
किसी पर भी नहीं लिखा होता है

जो हो रहा होता है उसे तो होना ही होता है

और तुम पर कुछ लिख लेने का साहस होने के लिये
अंदर से बहुत मजबूत होना होता है

चौराहे पर खड़े होकर खीजने वालों के लिये
चार रास्ते होते हुऐ भी  कहीं रास्ता नहीं होता है

हर तरफ से लोग आते हैं और चले जाते हैं
सभी को अपनी मंजिलों का पता होता है

जिसे भटकना होता है
उसके लिये एक ही रास्ता बहुत होता है

ना कहीं मंजिल होती है
ना ही कोई ठिकाना होता है

आना और जाना
उसे भी आता है बहुत अच्छी तरह

जाना किस के लिये और कहाँ होता है
बस यही और यही पता नहीं होता है

परसों गुजरा था इसी चौराहे से
आज फिर जाना होगा
आने वाले कल में भी
इसी रास्ते में कहीं ना कहीं ठिकाना होगा

सब दिखायेंगे
अपने अपने रास्ते
पर जिसे खोना होगा हमेशा की तरह
उसके आने जाने का रास्ता
इस बार भी
पिछली बार की तरह ही
उनहीं गिने चुने निशानेबाजों के निशाने होगा

ऐसे में मत सोच लेना गलती से भी
 कोई तुम पर या फिर उस पर लिख रहा होगा

कुछ ही दिन हैं बचे इंतजार कर 'उलूक'
हर चौराहे पर 
सारा सब कुछ बहुत साफ साफ लिखा होगा ।

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/