उलूक टाइम्स: रुमाल
रुमाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रुमाल लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 4 जनवरी 2021

फिर फटेंगे ज्वालामुखी फैलेगा लावा भी कहीं बैठा रह मत लिखा कर कोई कहे भी अगर लम्बी तान कर बैठा है

 



कलम अपनी
ढक्कन में
कहीं डाल कर बैठा है 

एक लम्बे समय से
आँखें निकाल कर बैठा है 

कान खुले हैं मगर
कटोरा भर तेल डाल कर बैठा है 

बड़बड़ाना जारी है
मुँह में रुमाल डाल कर बैठा है 

सारे पूछ कर
कुछ करने वालों को
सलाम मार कर बैठा है 

पूछने वालों के
कुछ अलग ही होते काम हैं
मान कर बैठा है ।

सब पूछते हैं
सबके पास कुछ है पूछने के लिये
खुद भी पूछना है
कुछ ठान कर बैठा है 

किसी के लिये
पूछने में भी लगा है
सुबह से लेकर शाम पूछने की दुकान पर
कुँडली मार कर बैठा है 

मोटी खाल
समझने में लगा है आजकल
मोटी खाल का मोटी खाल के साथ
संगत
कमाल कर बैठा है 

शरम बेच कर
मोटी खाल बेशरम
मोटी खालों के संगम के प्रबंधन का
बेमिसाल इंतजाम कर बैठा है 

बैठने बिठाने के चक्कर में बैठा
कोई कहीं जा बैठा है
कोई कहीं जा बैठा है 

‘उलूक’
अभी बहुत कुछ
सिखायेगी तुझे जिंदगी

इसी तरह बैठा रह
शाख पर किसी टूटी
श्मशान के सूखे पेड़ की 

शरम करना
छोड़ दे अभी भी
देख और मौज ले नंगई के
और कह
अट्टहास के साथ

नंगा एक
नंगों के साथ मिलकर
कितनी शान से
हमाम लूट कर बेमिसाल बैठा है ।

चित्र साभार: https://www.canstockphoto.com/


शनिवार, 14 नवंबर 2020

बकवासी ‘उलूक’ फिर से निकली है धूप अँधेरे से निकल दीवाली दिन में सही कुछ नया कर ही डाल

 


चल
कुछ तो निकाल

बहुत दिन हो गये
अब
कुछ भी सही
आज
फिर से लिख डाल 

आदत
रोज बकने की ना दबा

कब्र खोद
हड्डियाँ शब्दों की सही
मरी ही निकाल 

फटी
जेब ले खंगाल

बड़े नोटों को दे
श्रद्धाँजलि
चिल्लर ही सही
तबीयत से उछाल 

सम्भाल दे
ना अनकही
कूड़ा कूड़ा हो कमाल

सड़े को
फिर ना सड़ा
मसाला कुछ मिला

अचार ही सही
कुछ तो बना डाल 

जन्मदिन
बापू चाचा ताऊ

बहुत हो गये
नया शगूफा निकाल

दिवाली मना
पठाके ही नहीं 
सब कुछ जला डाल

कहाँ है कॉरोना
किस बात का है रोना

मुँह खोल हाथ मिला
गले मिल प्यार जता

किस बात की
नाराजगी
भीड़ जुलूस ही सही
पहन सर ही पर रुमाल

उल्लुओं की कथायें
उल्लू की जुबानी

पंडाल
एक लगा
बातें बना कर उड़ा
कुछ दावतें ही दे डाल 

बहुत
हो चुकी सच्चाई 
झूठ के पैर दिखा डाल

डट ले
गद्दी सम्भाल
बहुत दिन रह लिया चुप
चल
बड़ी जीभ निकाल
 
रोज का रोज ना कही
हफ्ते पंद्रह दिन
ही सही
कुछ तो कर बबाल

चल
कुछ तो निकाल
बहुत दिन हो गये
अब

कुछ भी सही
‘उलूक’
आज फिर से
कुछ तो लिख डाल ।

चित्र साभार: https://pooh.fandom.com/

बुधवार, 10 मई 2017

जमीन पर ना कर अब सारे बबाल सोच को ऊँचा उड़ा सौ फीट पर एक डंडा निकाल

पुराने
जमाने
की सोच
से निकल

बहुत
हो गया
थोड़ा सा
कुछ सम्भल

खाली सफेद
पन्नों को
पलटना छोड़

हवा में
ऊँचा उछल
कर कुछ गोड़

जमीन पर
जो जो
होना था
वो कबका
हो चुका
बहुत हो चुका

चुक गये
करने वाले
करते करते
दिखा कर
खाया पिया
रूखा सूखा

ऊपर की
ओर अब
नजर कर
ऊपर की
ओर देख

नीचे जमीन
के अन्दर
बहुत कुछ
होना है बाकि
ऊपर के बाद
समय मिले
थोड़ा कुछ
तो नीचे
भी फेंक

किसी ने नहीं
देखना है
किसी ने नहीं
सुनना है
किसी ने नहीं
बताना है

अपना
माहौल
खुद अपने
आप ही
बनाना है

सामने की
आँखों से
देखना छोड़

सिर के पीछे
दो चार
अपने लिये
नयी आँखें फोड़

देख खुद को
खुद के लिये
खुद ही

सुना
जमाने को
ऊँचाइयाँ
अपने अन्दर
के बहुत उँचे
सफेद
संगमरमरी
बुत की

आज मिली
खबर का
‘उलूक’
कर कुछ
खयाल

जेब में
रखना छोड़
दे आज से
अपना रुमाल

सौ फीट
का डंडा
रख साथ में
और कर
कमाल

लहरा सोच
को हवा में
कहीं दूर
बहुत दूर
बहुत ऊँचे

खींचता
चल डोर
दूर की
सोच की
बैठ कर
उसी डन्डे
के नीचे
अपनी
आँखें मींचे ।


चित्र साभार: http://www.nationalflag.co.za