उलूक टाइम्स: लम्बी
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सोमवार, 18 फ़रवरी 2019

लम्बी खींचने वालों की छोड़ ‘उलूक’ तुझे अपने कुर्ते को खुद ही खींच कर खुद का खुद ही ढकना है

फिर से
आ गया लिखने
एक और बकवास

चल बोल
अब क्या रह गया है

जिसे कहना है

फरवरी
का महीना है
वेतन नहीं
निकाल पायेगा
मार्च के महीने में

लग जा
भिड़ाने में
हिसाब किताब
आयकर का

बाकी
होनी को तो
अपनी जगह
उसी तरह
से होना है

जैसा
ऊपर वाले
ने करना है

प्रश्नों
को डाल दे
कबर में किसी

फिर
कभी खोद लेना
कौन सा किसी को
जवाब देने के लिये
कहीं से उतरना है

प्रश्न
दग रहे हैं
मिसाईल
की तरफ
प्रश्न करते ही
पूछने वाले पर
हवा में ही

जमीन
में वैसे भी
कौन सा
किसी को
मारना मरना है

चुन
ली गयी है
सरकारों
की सरकार

हजूर
इस प्रकार
और उस प्रकार

फर्क
कौन सा
जमीर बेचने
वाले के लेन देन
नफा नुकसान पर

जरा सा भी
कहीं पड़ना है

दो हजार
उन्नीस पर
नजर गड़ाये
हुऐ हैं सारे तीरंदाज

बिना
धनुष तीर के
अर्जुन ने लगाना
निशान आँख पर

मछली
की छोड़
ऊँट को करवट
बदलते देखना

उसी
तरफ लोटने
के लिये कहीं
नंगे किसी के
पाँवों पर
लुढ़कना है

‘उलूक’
कुछ नहीं
होना है तेरी
आदत को अब
इस ठिकाने
पर आकर

कौन सा
तूने भी
बकबास
करना छोड़ कर

तागा
लपेटने वाले
पतंग उड़ाते

देश के
पतंगबाजों से
पेच लड़ाने के लिये

अपनी
कटी पतंग
हाथ में लेकर
हवा में उड़ना है ।

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com

बुधवार, 9 जुलाई 2014

बात अगर समझ में ही आ जाये तो बात में दम नहीं रह जाता है

एक
छोटी सी
बात को 

थोड़े से
ऐसे शब्दों
में कहना
क्यों नहीं
सीखता है

जिसका अर्थ
निकालने में
समझने में
ताजिंदगी
एक आदमी
शब्दकोषों
के पन्नों को
आगे पीछे
पलटता हुआ
एक नहीं
कई कई बार
खीजता है

बात समझ में
आई या नहीं
यही नहीं
समझ पाता है

जब बात का
एक सिरा
एक हाथ में
और
दूसरा सिरा
दूसरे हाथ में
उलझा हुआ
रह जाता है

छोटी छोटी
बातों को
लम्बा खींच कर
लिख देने से
कुछ भी
नहीं होता है

समझ में
आ ही गई
अगर एक बात
बात में दम ही
नहीं रहता है

कवि की
सोच की तुलना
सूरज से
करते रहने
से क्या होता है

सरकारी
आदेशों की
भाषा लिखने वाले
होते हैं
असली महारथी

जिनके
लिखे हुऐ को

ना
समझ लिया है
कह दिया जाता है

ना ही
नहीं समझ में
आया है कहा जाता है

और
‘उलूक’
तू अगर
रोज एक
छोटी बात को
लम्बी खींच कर
यहाँ ले आता है

तो कौन सा
कद्दू में
तीर मार
ले जाता है ।

रविवार, 15 दिसंबर 2013

मुझ गधे को छोड़ हर गधा एक घोड़ा होता है

कोई भी
समझदार

पुराना
हो जाने पर

कभी भी
भरोसा
नहीं करता है

इसी लिये
हमेशा
लम्बी रेस
का एक
घोड़ा होता है

पुराना
होने से
बचने का
तरीका भी

बहुत ही
आसान होता है

परसों तक
माना कि
बना रहा
कहीं एक
मकान होता है

आज
के दिन
एक बहुत
माना हुआ
बड़ा किसान होता है

किसी को
नजर भर
अपने को
देखने का
मौका नहीं देता है

जब तक
समझने
में आता है

किसी को
जरा सा भी
कुछ कुछ

आज के
काम को छोड़
कल के किसी
दूसरे काम
को पकड़ लेता है

एक ही
काम से
चिपके
रहने वाला

उसके
हिसाब से
एक गधा होता है

धोबी दर
धोबी के
हाथों में
होते होते
पुराने से पुराना
होता ही रहता है

धोबी
बदल देने
वाला गधा ही
बस खुश्किस्मत होता है

होता होगा
गधा कभी
किसी जमाने में

पर आज
के जमाने का

सबसे
मजबूत घोड़ा
बस वही होता है

रोज का रोज

एक नये
काम को
नये सिरे से
जो कर लेता है

किसी
के पास
इतना बड़ा
दिमाग ही
कहाँ होता है

जो ऐसों के
किये गये
काम को
समझ लेता है

एक ही
आयाम में
जिंदगी
काटने वालों
के लिये

वही तो
एक बहुआयामी
व्यक्तित्व होता है

जिसने
कुछ भी
कभी भी
कहीं भी
पूरा ही नहीं
किया होता है ।