उलूक टाइम्स: लोहा
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शनिवार, 13 सितंबर 2014

मित्र “अविनाश विद्रोही” आपके आदेश पर इतना ही कुछ मुझ से आज कहा जायेगा

मित्र आपने
आदेश दिया है

उस पर
और उसके
चित्र के पाँव
सड़क पर
दिखा दिखा कर
धो कर पीने
वालों पर
कुछ लिखने
को कहा है

आपके
आदेश का
पालन करने
जा रहा हूँ

मैं आपके
उस सबसे
बड़े महान
के ऊपर
आज कुछ
लिखने ही
जा रहा हूँ

नाम
इसलिये नहीं
ले पा रहा हूँ

कहीं
इस बदनामी
का फायदा भी वो
उठा ले जायेगा

बहुत दिन
पोस्टरों में
रहा है गली गली
इस देश की

आने वाले
समय के
मंदिरों की
मूर्ति हो जायेगा

आज
साईं बाबा
को बाहर
फेंका जा रहा है

कल
हर उस
खाली जगह
पर वो
खुद ही जाकर
अपना बैठ जायेगा

उसके
चमचों की
बात कर के क्यों
अपना दिमाग
खराब करते हो

अभी
बहुत सालों तक
हर गली हर पेड़ पर
वो ही लटका हुआ
नजर आयेगा

इस देश
की किस्मत
अच्छी कही जाये
या बुरी

तेरी मेरी
किस्मत में
फुल स्टोप
उसके चमचे
का कोई चमचा
ही लगायेगा

सोच कर
आया था
‘उलूक’

पाँच साल
पूरे हो चुके
ब्लाग पर

अब शायद
गली की
बातों को छोड़
घर की रोशनी पर
कुछ लिखा जायेगा

किसे
मालूम था
फेस बुक के
संदेश बक्से में

तेरा संदेश
उस पर
और
उसके चमचों पर
कुछ ना कुछ
लिख ले जाने
को उकसायेगा

उसके
पाँच सालों पर है
तेरी काली नजर

पर
अगले पाँच साल भी
उसका कोई ना कोई

चमचा
तुझे जरूर
कहीं ना कहीं रुलायेगा

क्या पता

उसकी
हजार फीट
की प्रतिमा
बनाने के
नाम पर
कुछ लोहा
माँगने ही
तेरे घर ही
आ जायेगा ।

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

कुछ देशी इलाज करवा बहुत फालतू बातें आजकल कर रहा है

समय
बदला है
तरीके
भी बदले हैं
उसी तरह
उसके
साथ साथ

बस
नहीं बदली है
तो तेरी समझ

समझा कर

पहले
जो कुछ भी
हुआ करता था
उस समय के
हिसाब से ही
हुआ करता था

अब
उस समय
का हिसाब
इस समय
भी सही हो

इस बात को
समय कभी भी
किसी से भी

किसी
जमाने में भी
कहीं नहीं
कहा करता था

लौह पुरुष
हुआ था
कहते हैं
कोई कभी

किसे पता है
कितना लोहा
उसमें हुआ
करता था

एक
कोई और
धोती पहना हुआ
एक चश्मा लगाये
लाठी लेकर

सच की
वकालत
भी करता था

होता था
बहुत कुछ
स्वत: स्फूर्त

अपने आप
ऊपर से
नीचे की
ओर ही नहीं

विपरीत
दिशाओं में भी
खुद का खुद
कुछ कुछ
बहा करता था

समय
बदल गया है

लौह पुरूष
नहीं भी
बन रहा है

चिंता
मत किया कर

लौहा
पूरे देश से
कोई आज भी
जमा कर रहा है

बनेगा
कुछ ना कुछ

सच की
वकालत
बिना लाठी चश्में
और धोती के भी

कोई कोई
कर रहा है

बस बताना
पड़ रह है

एक दो नहीं
पूरी एक
भीड़ के द्वारा

कि कोई
कुछ कर रहा है
और ईमानदारी
से ही कर रहा है

एक तू है
अभी भी
पुराने
तरीकों पर
ना जानें क्यों
अढ़ रहा है

सोच
कितने लोगों
से उसे
कहलवाना
पड़ रहा है

संचार तंत्र
का भी सहारा
जगह जगह
लेना पड़ रहा है

दस लोगों का
ईमानदारी का दिया
हुआ प्रमाण पत्र भी
क्या तेरे पल्ले
नहीं पड़ रहा है

जब
कह दिया गया है
छपा दिया गया है
टी वी में तक
दिखा दिया गया है

तब भी
तू बेकार में
मण मण
कर रहा है ।

बुधवार, 12 जून 2013

समाज को समझ सामाजिक हो जा

तेरे मन की जैसी नहीं होती है
तो 
बौरा क्यों जाता है 

सारे लोग लगे हैं जब लोगों को पागल बनाने में 
तू क्यों पागल हो जाता है 

जमाना तेजी से बदल रहा है 
कुछ तो अपनी आदतों को बदल डाल 
बात बात में फालतू की बात अब ना निकाल 

मान भी जा 
कुछ तो समझौते करने की आदत अब ले डाल 

देखता नहीं 
बढ़ती उम्र में भी आदमी बदल जाता है 
अच्छा आदमी होता है तो आडवानी हो जाता है 

अपने घर से शुरु कर के तो देख जरा 
थोड़ा थोड़ा घरवाली की बात पर
होना छोड़ दे अब टेढ़ा टेढ़ा

उसके बाद 
आफिस की आदतों में परिवर्तन ला 
साहब चाहते हों तुझे गधा भी बनाना 
वो भी बन कर के दिखा 
समझा कर 
तेरा कुछ भी नहीं जायेगा 
पर तेरा साहब जरूर एक धोबी हो जायेगा

सत्कर्म करने वाला ही मोक्ष पाता है 
किताबों में लिखा है ऎसा माना जाता है 
ऎसी किताबों को कबाड़ी को बेच कर के आ 
बहुमत के साथ रह बहुमत की बात कर 
बहुमत के मौन की इज्जत करने में
तेरा क्या जाता है 

तू इतना बोलता है 
तेरे को सुनने क्या कोई आता है 
समझने वाले लोग
समझदारों की बात ही समझ पाते हैं 
तेरे भेजे में ये कड़वा सच क्यों नहीं घुस पाता है 

अब भी समय है 
समझदारों में जा कर के शामिल हो जा 
अन्ना की टोपी पहन मोदी को माला पहना 
मौका आता है जैसे ही राहुल की सरकार बना 
सबके मन की जैसी करना अब तो सीख जा 
बात कहने को किसी ने नहीं किया है मना 

लेखन को धारदार बना 
लोहे की हो जरूरी नहीं लकड़ी की तलवार बना 

मन की जैसी नहीं हो रही हो तो मत बौरा 
खुद पागल क्यों होता है 
लोगों को पागल बना 

समाज से अलग थलग पड़ने का नहीं है मजा 
बहुमत को समझने की कभी तो कोशिश कर 
'उलूक' थोड़ी देर के लिये ही सही सामाजिक हो जा । 

चित्र साभार: https://www.gettyimages.in/

सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

खरीददार


रद्दी बेच डाल लोहा लक्कड़ बेच डाल
शीशी बोतल बेच डाल 
पुराना कपड़ा निकाल नये बर्तन में बदल डाल

बैंक से उधार निकाल
जो जरूरत नहीं उसे ही खरीद डाल
होना जरूरी है जेब में माल

बाजार को घर बुला डाल
माल नहीं है परेशानी कोई मत पाल 
सब बिकाउ है जमीर ही बेच डाल 

बस एक मेरी परेशानी का तोड़ निकाल 
बैचेनी है बेचनी कोई तो खरीददार ढूँढ निकाल।

चित्र साभार: Active India