उलूक टाइम्स: सफेदपोश
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बुधवार, 30 जून 2021

लिख ‘उलूक’ गंदगी किसे सूँघनी है किसे समझनी या देखनी है सबके जूतों को साफ रहना होता है

 



फर्जी कमाई बंद हो जाने का
खराब दिमाग पर भी बहुत बड़ा असर होता है
पुराने दुश्मन से गला मिलन कर बाप बना लेने का
यही सुनहरा अवसर होता है

शिकारी दिखा खुद को
बन्दूक ताना हुआ हमेशा किसी पर भी
एक शिकार होता है
जिस पर तानता रहा हो बन्दूक ताजिंदगी
उसकी बन्दूक खुद एक बना खड़ा होता है

कुछ होती हैं फर्जी तितलियाँ
बर्रोँ के चँगुल में फँसी
उन्हें कुछ हो लेने का शौक होता है
बन्दूकची साथ में रख लेता है अपने
गोलियाँ बन चुकी हैं बन्दूक की उन्हें भी पता होता है

ऊपर से कमायी जाने वाली रकम
हाथ से निकल जाने का सदमा बहुत गहरा होता है
एक चलाने वाला बनता है
एक बन्दूक हो जाता है साथ की
दो तितलियोँ को गोलियाँ हो लेने का आदेश देता है

किसी की समझ में नहीं आती हैं समाज के सफेदपोशों की हरकतें
अफसोस होता है
कंधे ढूँढ कर कुछ बन्दूक चलाने वाले ऐसे
और उनके लिये बन्दूक और गोलियों हो लेने वालों के लिये
अखबार मेँ एक पन्ना होता है

‘उलूक’ तुझे नोचनी है
अपनी गंजी खोपड़ी हमेशा की तरह
जैसा तू है और तेरे साथ होता है
कोई समझता है या नहीं समझता है
कोई लेता है संज्ञान नहीं लेता है से क्या होता है
लिखना जरूरी है
हो रहे अपने आस पास का कूड़ा हमेशा
वही कूड़ा
जो अपनी खबर छपवाने के लिये
किसी अखबार के दरवाजे पर खड़ा होता है ।


शनिवार, 18 अप्रैल 2015

उसपर या उसके काम पर कोई कुछ कहने की सोचने की सोचे उससे पहले ही किसी को खुजली हो रही थी

‘कभी तो
खुल के बरस
अब्र इ मेहरबान
की तरह’

जगजीत सिंह
की गजल
से जुबाँ पर
थिरकन सी
हो रही थी

कैसे
बरसना
करे शुरु

कोई
उस जगह

जहाँ
बादलों को भी
बैचेनी हो रही थी

खुद की
आवाज

गुनगुनाने
तक ही
रहे अच्छा है

आवाज
जरा सा
उँची करने की

सोच
कर भी
सिहरन
हो रही थी

कहाँ
बरसें खुल के
और
किसलिये बरसें

थोड़ी
सी बारिश
की जरूरत भी
किसे हो रही थी

टपकना
बूँद का
देख कर

बादल से
पूछ लिया
है उसने
पहले भी
कई बार

क्या
छोटी सी चीज
खुद की
सँभालनी

इतनी ही भारी
खुद को हो रही थी

किसे
समझाये कोई
अपने खेत की
फसल का मिजाज

उसकी
तबीयत तो

किसी को
देख सुन कर ही
हरी हो रही थी

उसकी
सोच में
किसी की
सफेदपोशी
का कब्जा
हो चुका है

कुछ
नहीं किया
जा सकता है
‘उलूक’

‘मेरा
बजूद है
जलते हुऐ
मकाँ की तरह’

से यहाँ

मगर
गजल
फिर भी
पूरी हो रही थी ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

सोमवार, 8 सितंबर 2014

जो भी उसे नहीं आता है उसे पढ़ाना ही उसको बहुत अच्छा तरह से आता है

रसोईया नहीं है
पर कुछ ना कुछ
जरूर परोसता है
मेरे आस पास ही है
कोई बिना मूँछ का
जो अपनी
मूँछे नोचता है
उसे देख कर ही
मुझे पता नहीं
क्या हो जाता है
और वो है कि
मेरे पास ही
आ आ कर
कुछ ना कुछ
गाना शुरु
हो जाता है
महिलाओं को
देखते ही उसकी
बाँछे खिल जाती हैं
बहुत अच्छी तरह
पता होता है उसे
बीबी उसकी
घर पर ही दिन में
दिन भर के लिये
सो जाती है
सारी दुनियाँ के
ईमानदारों में
उसका जैसा ईमान
नहीं पाया जाता है
बस यही बात जोर
जोर से बताता है
और बाकी बातों
को दूसरों की बातों
के शोर में दबाता है
दुकान बातों की
कहीं भी खोल
कर बैठ जाता है
उसकी दुकान के
तराजू के पलड़े
के नीचे चिपकाया
हुआ चुम्बक
वैसे भी कोई नहीं
देख पाता है
उसकी हरकतों का
पता इसको भी है
और उसको भी है
जानते बूझते हुऐ भी
इसके साथ मिलकर
वो भी उसके गिरोह में
शामिल हो जाता है
दुनियाँ के दस्तूर
रोज बदल रहे हैं
बड़ी तेजी के साथ
एक चार सौ बीस
चार सौ बीस को
बस मोरल पढ़ाता है
जयजयकार होती है
आजकल कुछ ऐसे ही
सफेदपोशों की सब जगह
सबको पता होता है
बंदर ही बिल्लियों को
लड़ा लड़ा कर
रोटियाँ कुतर जाता है
‘उलूक’ तेरी किस्मत
ही है खराब कई सालों से
गुलशन उजाड़ता है
कोई और ही हमेशा
और उल्लू को फालतू में ही
बदनाम कर दिया जाता है ।

चित्र साभार: https://www.etsy.com