उलूक टाइम्स: सुर
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गुरुवार, 15 अगस्त 2019

लिखना जरूरी है तरन्नुम में मगर ठगे जाने का सारा बही खाता हिसाब



लिखना
जरूरी है

तरन्नुम
में मगर

ठगे
जाने का
सारा

बही
खाता हिसाब

कौन
जानता है

सुर मिले
और
बन पड़े

गीत
एक
धुप्पल में
कभी

यही बकवास

आज ही
के दिन
हर साल

ठुमुकता
चला आता है

पुराने
कुछ
सूखे हुऐ
घाव कुरेदने

फिर
एक बार
ये अहसास


भूला
जाता है
ताजिंदगी

ठगना
खुदा तक को 
खुद का

बुलंद कर खुदी

कहाँ
छुपता है
 जब
निकल पड़ती है

किसी
बेशरम की कलम

खोदकर
किसी
पुरानी कब्र से
 खुद
अपनी भड़ास

निकलते हैं
कपड़े
झक सफेद
कलफ इस्त्री किये

किसी
खास एक दिन
पूरे साल में

धराशायी
करते हुऐ
पिछले
कई सालों के

कीर्तिमान
ठगी के पुराने
खुद के खुद ही
बेहिसाब

फिर भी
जरूरी है
‘उलूक’

बिता लेना
शुभ दिन
के
तीन पहर
किसी तरह
यूँ ही

बधाईयाँ

मंगलकामनाओं
के
बण्डल बाँधकर

चौथे पहर
लिख लेना
फिर
सारा
सब कुछ
ठगी
उठाईगिरी

या
और भी
कुछ
अनाप शनाप।

चित्र साभार: https://biteable.com

मंगलवार, 18 अगस्त 2015

एक रंग से सम्मोहित होते रहने वाले इंद्रधनुष से हमेशा मुँह चुरायेंगे

अपने
सुर पर
लगाम लगा

अपनी
ढपली
बजाने से
अब
बाज
भी आ

बजा
तो रहा हूँ
मैं भी ढपली
और
गा भी
रहा हूँ कुछ
बेराग ही सही

सुनता
क्यों नहीं

अब सब
अपनी अपनी
बजाना शुरु
हो जायेंगे तो

समझता
क्यों नहीं
काँव काँव
करते कौए
हो जायेंगे

और
साफ सफेद
दूध से धुले हुऐ
कबूतर फिर
मजाक उड़ायेंगे

क्या करेगा
उस समय

अभी नहीं सोचेगा
समय भूल जायेगा
तुझे
और मुझे

फिर
हर खेत में
कबूतरों की
फूल मालाऐं
पहने हुऐ
रंग बिरंगे
पुतले
नजर आयेंगे

पीढ़ियों दर
पीढ़ियों के लिये

पुतलों पर
कमीशन
खा खा कर

कई पीढ़ियों
के लिये
अमर हो जायेंगे

कभी
सोचना
भी चाहिये

लाल कपड़ा
दिखा दिखा कर

लोग क्या
बैलों को
हमेशा
इसी तरह
भड़काऐंगे

इसी तरह
बिना सोचे
जमा होते
रहेंगी सोचें

बिना
सोचे समझे
किसी एक
रंग के पीछे

बिना रंग के
सफेद रंग
हर गंदगी को
ढक ढका कर

हर बार
की तरह

कोपलों को
फूल बनने
से पहले ही

कहीं पेड़ की
किसी डाल पर

एक बार
फिर से

बार बार
और
हर बार
की तरह ही

भटका कर
ले जायेंगे ।

चित्र साभार: www.allposters.com

मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

कैसे लिखते हो गीत नहीं बताओगे तो रोज इसी तरह से पकाया जायेगा


प्रश्न: 
किस तरह लिखा जाये कभी बस ज्यादा नहीं एक ही सही 
गीत लय सुर ताल में तेरे गीतों की तरह
शहनाईयाँ भी खाँसना शुरु हो जाती हों जिसे देख कर 
बस यूँ ही ऐसे ही बिना बात के गुस्से से 
रुठे हुऐ मीतों की तरह ?

उत्तर: 
किसने कहा जमाने को देख अपने आस पास के 
फिर मुँह का जायका बिगाड़
समझ के 
नीम के टुकड़े खा लिये हों जैसे
पड़ोसी से ही अपने
वो भी उधार ले नोट पचास 
पचास के 

सौंदर्य देखना सीख सौंदर्य समझना सीख 
सौंदर्य के आस पास रह कर चिपकना सीख 
आँख कान मुँह अपने बंद कर लोगों के बीच में रहना सीख 

पहले इसे सीख तो सही फिर कहना कैसी कही 
खुद बा खुद ही तू एक गीत हो जायेगा 
जहाँ जायेगा जिधर निकलेगा 
सुर ताल और लय में अपने आप को बंधा हुआ पायेगा 

लिखने लिखाने की सोचना ही छोड़ देगा 
बिना लिखे पेड़ जमीन और आकाश में लिख दिया जायेगा 
जितना मना करेगा उतना छाप दिया जायेगा 
हजार के नोट में गाँधी जी की छुट्टी कर तुझे ही चेप दिया जायेगा 

इस सब में 
लपेटने की अपनी आदत से भी बाज आयेगा 
गीत लिखेगा ही नहीं फिल्मों में भी गवाया जायेगा 

शाख पर बैठे गुलिस्ताँ उजाड़ने के लिये बदनाम ‘उलूक’
गीतकार हो जायेगा ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com