उलूक टाइम्स: होशियार
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रविवार, 10 दिसंबर 2023

बेवकूफ है बस एक ‘उलूक’ होशियार सारा जहां है

 

कुछ नहीं कह रहे हैं कुछ कहने की जरूरत ही कहां है
सब कुछ तो ठीक है किसी को बताने की फुर्सत ही कहां है

कुछ उसके आदमी हैं कुछ इसके आदमी है जो जहां है वो वहां है
अभी उधर वाला इधर वाले की खाल खीचे खाल है अभी और यहाँ है

जो उधर है वो सबसे होशियार है उसको भी पता है वो कहाँ है
वो इधर वाले के कपडे उतारे किस ने देखना है कौन है कहा है

कल इधर वाला उधर होगा तब देख लेंगे किसने क्या कहा है
सजा किस को हुई है या होने वाली है मौज में हैं जो हैं जहां हैं

गाली गांधी को दे दो गाली नेहरू को दे दो वो कौन सा यहां हैं
गाली देने में कौन से पैसे खर्च होते हैं गाली देने वाले शहंशाह हैं

जो कह रहा है बस वो ही सिर्फ एक बेवकूफ है सुनने वाला मेहरबां है
होशियार ‘उलूक’ तेरे अलावा बाकी बचा है जो सारा और सारा जहां है |

चित्र साभार: https://pixabay.com/



शनिवार, 6 नवंबर 2021

रोम से क्या मतलब नीरो को अब वो अपनी बाँसुरी भी किसी और से बजवाता है

 


सब कुछ समेटने के चक्कर में बहुत कुछ बिखर जाता है
जमीन पर बिखरी धूल थोड़ी सी उड़ाता है खुश हो जाता है

आईने पर चढ़ी धूल हटती है कुछ चेहरा साफ नजर आता है
खुशफहमियाँ बनी रहती हैं समय आता है और चला जाता है

दिये की लौ और पतंगे का प्रेम पराकाष्ठाओं में गिना जाता है
दीये जलते हैं पतंगा मरता है बस मातम नजर नहीं आता है

झूठ एक बड़ा सा हसीन सच में गिन लिया जाता है
लबारों की भीड़ के खिलखिलाने से भ्रम हो जाता है

पर्दे में रखकर खुराफातें अपनी एक होशियार खुद कभी आग नहीं लगवाता है
रोम से क्या मतलब नीरो को अब वो अपनी बाँसुरी भी किसी और से बजवाता है

कोई कुछ कर ले जाता है
कोई कुछ नहीं कर पाता है तो कुछ लिखने को चला आता है
कुछ समझ ले कुछ समझा ले खुद को ही ‘उलूक’
हर बात को किसलिये यहां रोने चला आता है ।

चित्र साभार: https://www.gograph.com/

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

जरूरी होते हैं प्रायश्चित भी अगर मरजी हो तो तर्पण कर लेने में कोई हर्ज नहीं खुद का जीते जी




जरूरी होते हैं
प्रायश्चित भी

उतने ही
जरूरी होते हैं

जितना
जरूरी होता है

होना
किसी का

किसी
खास जगह पर 

कोई एक
पंक्ति
पंक्तियों
के बीच से
चुन कर

मन मौज से
खड़े हो लेना
कहीं भी

पीड़ा
देता ही है
कभी ना कभी

कितनी

निर्भर करता है

पीड़ित की
औकात पर

किसी
मजबूत के
नाम की लाठी
लिये हुऐ

मजबूती
के साथ खड़े
कमजोर लोगों
के बीच

मजबूत
टाँगों 
की सोच के 
लोगों को

येन केन
प्रकारेण
हतोत्साहित
करने की
कोशिश में
सतत लगे

अपनी
कमजोर
इरादों 
की 
मजबूत टाँगों
के भरोसे
जा कर खड़े
हो लेने वाले
होशियार लोगों का

कोई
कुछ नहीं
बिगाड़ सकता है

गिरोह
बहुत
सम्मानित
शब्द
हो चुका है

कभी किसी
शुभाकाँक्षी
के द्वारा

कुछ पाने के लिये
कुछ खोना पड़ता है
समझाया गया
समझते समझते
सालों बीतते
बहुत कुछ पागये
कुछ
सौभाग्यशालियों ने
समझा दिया होता है

हौले हौले से

कुछ नहीं
करते चले जाते हुऐ
पहुँच लेना
वहाँ तक

जहाँ पहुँच कर
जरूरी हो जाता है
प्रायश्चित
कर लेना

बता बता
कर
पंक्तियों के
बीच के अर्थों में

कि
गुजर लेने
से पहले भी
खुद का
तर्पण कर लेना
सबसे समझदारी

यानि
अक्ल का काम
माना जाता है ‘उलूक’

बाकी तेरी मरजी।

चित्र साभार: www.stockunlimited.com

गुरुवार, 17 मई 2018

आसार नजर आ रहे हैं बेवकूफ होशियारों में शामिल हो कर जल्दी ही उजड़ने जा रहे हैं

सारे
होशियार
होशियारों
में शामिल
होते जा रहे हैं

सारे
होशियार
होशियारों
के लिये
होशियारी
के साथ
होशियारी
के गीत
गा रहे हैं

बचे हुओं
को महसूस
करा रहे हैं

उनका हो
खो जाना

और सियार
हो जाना

सियार सारे
मिलकर भी
मातम नहीं
मना पा रहे हैं

बहुत
नाइन्साफी है
सोचना
ठीक नहीं है

इन्साफ
करने वाले
लगे हुऐ तो हैं

अपने तराजू के
पलड़े धुलवा कर
जमी हुयी धूल
मिट्टी उड़ा रहे हैं

बेवकूफों को
साफ समझ
में आने लगा है
अपना मन भर
बेवकूफ हो जाना

पता नहीं
फिर भी क्यों

चारों तरफ से
हो रहे होशियारों
के हल्ले गुल्ले में से
होशियारी निकाल
कर होशियार
हो लेने के
मंसूबे बना रहे हैं

होशियारों को भी
समझ में आ रही है
अपनी होशियारी

होशियारी
के महलों में
पहुँच लेने के
होशियार पुल
बना रहे हैं

घर की कहानी
घर में समझ
रहे हैं अपने अपने

सारे
बेवकूफ
दूरदर्शन में
चल रही

होशियारी की
बहसों को
सुन सुन कर
होशियारी
पका पका
कर खा रहे हैं

होशियारी
गली मुहल्ले
गाँव शहर में
फैलती जा रही है

बेवकूफों के
जीने मरने के
लाले पड़ने के
दिन आ रहे हैं

‘उलूक’ बैचेन है
गणित देख कर
होशियार की
होशियारी का

उसे
बेवकूफों के
होशियारों में
शामिल होकर
उजड़ने के दिन
बहुत नजदीक
नजर आ रहे हैं ।

चित्र साभार:
zenzmurfy.deviantart.com

मंगलवार, 27 जून 2017

पुराना लिखा मिटाने के लिये नया लिखा दिखाना जरूरी होता है

लगातार
कई बरसों तक
सोये हुऐ पन्नों पर
नींद लिखते रहने से
 शब्दों में उकेरे हुऐ
सपने उभर कर
नहीं आ जाते हैं

ना नींद
लिखी जाती है
ना पन्ने उठ
पाते हैं नींद से

खुली आँख से
आँखें फाड़ कर
देखते देखते
आदत पढ़ जाती है
नहीं देखने की
वो सब
जो बहुत
साफ साफ
दिखाई देता है

खेल के नियम
खेल से ज्यादा
महत्वपूर्ण होते हैं

नदी के किनारे से
चलते समय के
आभास अलग होते हैं

बीच धारा में पहुँच कर
अन्दाज हो जाता है

चप्पू नदी के
हिसाब से चलाने से
नावें डूब जाती हैं

बात रखनी
पड़ती है
सहयात्रियों की

और
सोच लेना होता है
नदी सड़क है
नाव बैलगाड़ी 
है 
और
यही जीवन है

किताबों में
लिखी इबारतें
जब नजरों से
छुपाना शुरु
कर दें उसके
अर्थों को

समझ लेना
जरूरी हो
जाता है

मोक्ष पाने
के रास्ते का
द्वार कहीं
आसपास है

रोज लिखने
की आदत
सबसे
अच्छी होती है

कोई ज्यादा
ध्यान नहीं
देता है
मानकर कि
लिखता है
रहने दिया जाये

कभी कभी
लिखने से
मील के पत्थर
जैसे गड़ जाते हैं

सफेद पन्ने
काली लकीरें
पोते हुऐ जैसे
उनींदे से

ना खुद
सो पाते हैं
ना सोने देते हैं

‘उलूक’
बड़बड़ाते
रहना अच्छा है

बीच बीच में
चुप हो जाने से
मतलब समझ में
आने लगता है
कहे गये का
होशियार लोगों को

पन्नो को नींद
आनी जरूरी है
लिखे हुऐ को भी
और लिखने वाले
का सो जाना
सोने में सुहागा होता है ।

चित्र साभार: Science ABC

शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

बेवकूफ हैं तो प्रश्न हैं उसी तरह जैसे गरीब है तो गरीबी है



जब भी कहीं कोई प्रश्न उठता है 
कोई ना कोई 
कुछ ना कुछ कहता है 

प्रश्न तभी उठता है 
जब उत्तर नहीं मिलता है 

एक ही विषय होता है 
सब के प्रश्न
अलग अलग होते हैंं 

होशियार के प्रश्न 
होशियार प्रश्न होते हैंं 
और 
बेवकूफ के प्रश्न 
बेवकूफ प्रश्न होते हैं 

होशियार 
वैसे प्रश्न नहीं करते हैं 
बस प्रश्नों के उत्तर देते हैं 

बेवकूफ 
प्रश्न करते हैं 
फिर उत्तर भी पूछते हैं 
मिले हुऐ उत्तर को 
जरा सा भी नहीं समझते है 

समझ गये हैं 
जैसे कुछ का 
अभिनय करते हैं 
बहस नहीं करते हैं 

मिले हुए उत्तर के चारों ओर 
बस सर पर हाथ रखे 
परिक्रमा करते हैं 

समय भी प्रश्न करता है समय से 
समय ही उत्तर देता है समय को 

समय होशियार और बेवकूफ नहीं होता है 
समय प्रश्नों को रेत पर बिखेर देता है 

बहुत सारे 
रेत पर बिखरे हुऐ प्रश्न 
इतिहास बना देते हैं 

रेत पानी में बह जाती है 
रेत हवा में उड़ जाती है 
रेत में बने महल ढह जाते हैं 
रेत में बिखरे रेतीले प्रश्न 
प्रश्नों से ही उलझ जाते हैं 

कुछ लोग 
प्रश्न करना पसन्द करते हैं 
कुछ लोग उत्तर के डिब्बे 
बन्द करा करते हैं 

बेवकूफ 
‘उलूक’ 
की आदत है जुगाली करना 
बैठ कर कहीं ठूंठ पर 
उजड़े चमन की 
जहाँ हर तरफ उत्तर देने वाले 
होशियार 
होशियारों की टीम बना कर 
होशियारों के लिये 
खेतों में हरे हरे 
उत्तर उगाते हैं 

दिमाग लगाने की ज्यादा जरूरत नहीं है 
देखते रहिये तमाशे 
होशियार बाजीगरों के
घर में बैठे बैठे 

बेवकूफों के खाली दिमाग में उठे प्रश्न 
होशियारों के उत्तरों का कभी भी 
मुकाबला नहीं करते हैं । 

चित्र साभार: Fools Rush In

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

NAAC ‘A’ की नाक के नीचे की नाव छात्रसंघ चुनाव

किसी
बेवकूफ
ने सभी
पदों पर
नोटा पर
निशान
लगाया था

तुरन्त
होशियार
के
होशियारों
ने उसपर
प्रश्नचिन्ह
लगाया था

सोये हुऐ
प्रशासन
की नींद
जारी
रही थी
काम
निपटाये
जा रहे थे

लिंगदोह
कुछ देर
के लिये
अखबार
में दिखा था
और
प्रशासन
की फूँक
भी खबर
के साथ
हवा में
उड़ती हुई
थोड़ी देर
के लिये
चेतावनियाँ
लिये
उड़ी थी

अखबार में
खबर किसने
चलाई थी
और क्यों ये
अलग प्रश्न था
अलग बात थी

गुण्डाराज
के गुण्डों
पर किसे
कुछ
कहना था
और
किस की
औकात थी

पर पिछले
दो महीने
के ताण्डवों
से परेशान
कुछ दूर
दराज के
गावों से
शहर में
आकर पढ़
रहे इन्सान
सुखाते
जा रहे
कुछ जान
कुछ बेजान
कुछ परेशान
किसी ने
नहीं देखे थे

दिखते
भी कैसे
नशे में
चूर भीड़
बौराई
हुई थी
और
प्रशासन
शाशन के
आशीर्वादों
से
लबालब
जैसे
मिट्टी नई
किसी
खेत की
भुरभुराई
हुई थी

जो
भी था
चुनाव
होना था
हुआ
मतपत्र
गिने
जाने थे
किसी ना
किसी ने
गिनना था

एक मत पत्र
बीच में
अकेला दिखा
जिसमें हर
पद पर नोटा
था दिया गया

किसी ना
किसी
ने कुछ
तो कहना
ही था

बेवकूफ
वोट देने
ही क्यों
आया था
सारे पदों
पर
नोटा पर
मुहर लगा
अपनी
बेवकूफी
बता कर
आखिर
उसने क्या
पाया था

‘उलूक’
मन ही मन
मुस्कुराया था
हजारों में
एक ही
सही पर
था कहीं
जो अपने
गुस्से का
इजहार
कर
पाया था
असली
मतदान
कर उस
अकेले
ने सारे
निकाय
को आईना
एक
दिखाया था ।

चित्र साभार: Canstockphoto.com

बुधवार, 21 सितंबर 2016

‘उलूक’ वन्दे माता नमो जय ऊँ काफी है इससे ज्यादा कहाँ से चढ़ कर कूदना चाहता है

कहाँ कहाँ
और
कितना कितना
रफू करे
कोई बेशरम
और
करे भी
किसलिये
जब फैशन
गलती से
उधड़ गये को
छुपाने का नहीं
खुद बा खुद
जितना हो सके
उधाड़ कर
ज्यादा से ज्यादा
हो सके तो
सब कुछ
बेधड़क
दिखा ले
जाने का है

इसी बात पर
अर्ज किया है

कुछ ऐसा है कि
पुराने किसी दिन
लिखे कुछ को
आज दिखाने
का सही मौका है
उस समय मौका
अपने ही
मन्दिर का था
समय की
बलिहारी
होती है
जब वैसा ही
देश में
हो जाता है

दीमकें छोटी
दिखती हैं
पर फैलने में
वक्त नहीं लेती हैं

तो कद्रदानो सुनो

जिस दिन
एक बेशरम को
शरम के ऊपर
गद्दी डाल कर
बैठा ही
दिया जाता है
हर बेशरम को
उसकी आँखों से
उसका मसीहा
बहुत पास
नजर आता है
शरम के पेड़
होते हैं
या
नहीं होते हैं
किसे जानना
होता है
किसे चढ़ना
होता है
जर्रे जर्रे पर
उगे ठूँठों
पर ही जब
बैठा हुआ
एक बेशरम
नजर आता है

अब हिन्दू
 की बात हो
मुसलमान
की बात हो
कब्र की
बात हो
या
शमशान
की बात हो

अबे जमूरे
ये हिन्दू
मुसलमान
तक तो
सब ठीक था
ये कब्र और
शमशान
कहाँ से
आ गये
फकीरों की
बातों में


समझा करो
खिसक गया
हो कोई तो
फकीर याद
आना शुरु
हो जाता है

अब खालिस
मजाक हो
तो भी
ये सब हो
ही जाता है

अब क्या
कहे कोई
कैसे कहे
समझ
अपनी अपनी
सबकी
अपनी अपनी
औकात की

दीमक के
खोदे हुऐ के
ऊपर कूदे
पिस्सुओं से
अगर एक
बड़ा मकान
ढह जाता है

क्या सीन
होता है

सारा देश
जुमले फोड़ना
शुरु हो जाता है

‘उलूक’
तू खुजलाता रह
अपनी पूँछ

तुझे पता है
तेरी खुद की
औकात क्या है

ये क्या कम है
आता है
यहाँ की
दीवार पर
अपने भ्रम
जिसे सच
कहता है
चैप जाता है

छापता रह खबरें

कौन “होशियार”
 बेवकूफों के
अखबार में
छपी खबरों से
हिलाया जाता है ।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

सारे नंगे लिख रहे होते हैं कपड़े जहाँ वहाँ चिंता की बात नहीं होती है नंगा हो जाना / बस हर तरफ कपड़े कपड़े हो जाने का इंतजार होना जरूरी होता है

मेरे घर से
शुरु होता है
शहर की गली
दर गली से
गुजरते हुए
दफ्तर दुकान
और दूसरे
के मकान
तक पहुँच
रहा होता है
हर नंगे के
हाथ में होता है
एक कपड़ा
जगह जगह
नंगा हो रहा
होता है
फिर भी
किसी को
पता नहीं
होता है
किसलिये
एक बेशरम
नजर नीची
कर जमीन
की ओर देख
रहा होता है
और
कपड़ा पहने
हुऐ उसी गली
से निकलता
हुआ एक
बेवकूफ
शरम से
जार जार
तार तार
हो रहा
होता है
कपड़ा होना
जरूरी होता है
किसी डंडे पर
लगा होना
एक झंडा
बना होना
ही कपड़े का
कपड़ा होना
होता है
हरी सोच के
लोगों का हरा
सफेदों का सफेद
और
गेरुई सोच
का गेरुआ
होना होता है
कुत्ते के पास
कभी भी
कपड़ा नहीं
होता है
आदमी होना
सबसे कुत्ती
चीज होता है
लिखने लिखाने
से कुछ नहीं
होता है
वो उसकी
देख कर
उसके लिये
उसकी जैसी
लिख रहा
होता है
कपड़ा लिखने
वाला कुछ
कहीं ढकने
ढकाने की
सोच रहा
होता है
किसी के
लिखे कपड़े
से कोई
अपनी कुछ
ढक रहा
होता है
हर कपड़ा
किसी के
सब कुछ
ढकने के
लिये भी
नहीं होता है
हर किसी को
यहाँ के भी
पता होता है
हर किसी को
वहाँ के भी
पता होता है
कपड़ा कुछ भी
कभी कहीं भी
ढकने के लिये
नहीं होता है
कुछ बना ले
जाते हैं पुतले
जिन्हें पता होता है
कपड़ा पुतला
जलाने के
लिये होता है
जिसके जलना
शुरु हो जाते हैं
पुतले उसका
अच्छा समय
शुरु हो जाने
का ये एक
अच्छा संकेत
होता है
मौज कर
'उलूक'
तेरे जैसे
बेवकूफों
के पुतले
फुँकवाने
के लिये
"होशियार"
के पास
समय ही
नहीं होता है ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

ऊपर वाले के जैसे ही कुछ अपने अपने नीचे भी बना कर वंदना कर के आते हैं

आइये साथ
मिलकर
अपनी अपनी
समझ कुछ
और बढ़ाते हैं
दूर बज रहे
ढोल नगाड़ों
में अपने अपने
राग ढूँढ कर
अपनी सोच के
टेढ़े मेढ़े पेंच
अपनी अपनी
पसंद के झोल में
कहीं फँसाते हैं
अपने घर में
सड़ रहे फलों
पर इत्र डाल कर
चाँदी का वर्क लगा कर
अगली पीढ़ी के लिये
आइये साथ
साथ सजाते हैं
शोर नहीं है
नहीं है शोर
कविताएं हैं गीत हैं
झूमते हैं नाचते हैं गाते हैं
आइये सब मिल जुल कर
अपने अपने घर की
खिड़कियाँ दरवाजे के
साथ में अपनी
आँख बंद कर
दूर कहीं चल रहे
नाटक के लिये
जोर शोर से
तालियाँ बजाते हैं
कलाकारी कलाकार
की काबिले तारीफ है
आखिरकार उम्दा
कलाकारों में से
छाँटे गये कलाकार
के द्वारा सहेज कर
मुंडेर पर सजाया गया
एक खूबसूरत कलाकार है
आइये लच्छेदार बातों के
गुच्छों के फूलों को
मरी हुई सोचों के ऊपर
से जीवित कर सजाते हैं
बहुत कुछ है
दफनाने के लिये
लाशों को कब्र से
निकाल निकाल
कर जलाते हैं
कहीं कोई रोक कहाँ है
अपने अपने घर को
अपनी अपनी दियासलाई
दिखा कर आग लगाते हैं
रोशनी होनी है
चकाचौंध खुद कर के
चारों तरफ झूठ के
पुलिंदों पर सच के
चश्में लगा लगा कर
होशियार लोगों को
बेवकूफ बनाते हैं
नाराज नहीं होना है
‘उलूक’
आधे पके हुऐ को
मसाले डाल डाल कर
अपने अपने हिसाब से
अपनी सोच में पकाते हैं
स्वागत है आइये चिराग
ले कर अपने अपने
रोशनी ही क्यों करें
पूरी ही आग लगाते हैं ।

चित्र साभार: www.womanthology.co.uk

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

बाअदब बामुलाहिजा होशियार सब्र कर जल्दी ही आ रहे हैं ठेकेदार


सरकार के 
एक खेत में उगी हुई 
सरकारी फसल 
उसको खुले आम चरते हुऐ 
सरकार के ही पाले पोसे 
गाय बैल घोड़े भेड़ बकरियां 

सरकार से 
पेट पालने के लिये मिली 
घास को नहीं खा रहे हैं 

अपने अपने 
खेतों में 
जा कर रख आ रहे हैं 
क्या करेंगे उसका 
किसी को कुछ भी नहीं बता रहे हैं 

बैल बैलों के साथ 
घोड़े घोड़ों के साथ नजर आ रहे हैं 

बकरियां और भेड़ें 
मेंमनो को झुनझुने थमा कर 
बहला रहे हैं 

खेत के मालिक लोग 
सरकार के पास पहुंच कर 
बड़ी पूजा करवाने का कुछ जुगाड़ लगा रहे हैं 

सरकार के
दूसरे 
खेत के किसान लोग
जो 
अपने खेतों में नहीं जा रहे हैं 
सरकार को काले चश्मे पहुंचाने का जुगाड़ लगा रहे हैं 

उजड़ते हुऐ 
खेत के किसानों को
मेडल 
दिलवाने के लिये
विपक्ष के लोगों को भी बहकाने में 
सफल होते नजर आ रहे हैं 

मजबूर सरकार क्या करेगी 
जिसको खुद डी कम्पनी के लोग चला रहे हैं 

खेत दर खेत में 
चल पड़ी है इसीलिये हवा एक जैसी 
हर जगह खेत वाले अपनी अपनी लहलहाती 
फसलों को खोदते जा रहे हैं 

कोई किसी से नहीं डर रहा है 
किसी को ऐ कम्पनी का भरोसा है
कोई डी कम्पनी तक 
सीधे अपनी भी पहुंच बता रहे हैं

‘उलूक’ 
और उसके ही जैसे कुछ
और 
बेवकूफ
डाल कर कान में अंगुली
आसमान को
ताकते 
नजर आ रहे हैं ।

चित्र सभार: https://simpsons.fandom.com/

बुधवार, 18 जनवरी 2012

आशा है

समय के साथ
कितने माहिर
हो जाते हैं हम
चोरी घर में
यूँ ही
रोज का रोज
करते चले
जाते हैं हम
दिल्ली में चोर
बहुत हो गये हैं
जागते रहो
की आवाज भी
बड़ी होशियारी से
लगाते हैं हम
बहुत सारे चोर
मिलकर बगल
के घर में लगा
डालते हैं सेंघ
पर कभी कभी
पड़ोस में ही
होकर हाथ मलते
रह जाते हैं हम
चलो चोरी में
ना मिले हिस्सा
कोई बात नहीं
बंट जायेगा चोरी
का सामान कल
कुछ लोगों में जो
हमारे सांथ नहीं
फिर भी आशा
रखूंगा नहीं
घबराउंगा
बड़े चोर पर ही
अपना दांव
लगाउंगा
आज कुछ भी
हाथ नहीं
आया तो भी
बिल्कुल नहीं
पछताउंगा
कभी तो बिल्ली
के भाग से
छींका जरुर
टूटेगा और
मैं भी अपनी
औकात से
ज्यादा लपक के
ले ही आउंगा।