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गुरुवार, 25 जून 2015

इकाई दहाई नहीं सैकड़े का अंतिम पन्ना




कुछ
जग बीती हो 
या
कुछ आप बीती 

यहाँ
सब बराबर होता है 
ये भी
एक मिसाल है 
 :) 


कभी
किसी समय 
सब कुछ छोड़ कर 

अपनी
खुद की एक
बात कह देने में 
कोई बुराई नहीं है 

बाकी बातें 
अपनी जगह हैं 

ये भी सही है 
कोई
सुनता नहीं है 

ना
किसी को
कोई 
फर्क पड़ता है 
किसी के 
कहते रहने से 

अपना
सब कुछ 
समेटते समेटते 
इधर उधर के
कुछ 

कुछ
उलझे उलझते 
किसी और के 

कटोरों
में
बटोरे हुऐ 

तुड़े मुड़े
कागजों की 
सिलवटों को

सीधा 
करते चले जाने से 

ना ही
सिलवटे‌ 
सीधी होती हैं 

ना ही
कागज के 
दर्द ही कम होते हैं 

उधर की दुनियाँ में 

उसके
सच्चे होने 
का
भ्रम ही 
तो होता है 

इधर
तो सभी 
कुछ भ्रम है 

भूलभुलइया 
की
गलियों में
बने हुऐ रास्तों 
के निशान

जिन्हें 
कोई भी आने 
जाने वाला 
देखने समझने 
की कोशिश 
नहीं करता है 

फिर भी
भीड़ 
आ भी रही है 
और 
जा भी रही है 

ऐसे में
सब कुछ 
सबका लिख 
दिया जाये 
या
कभी अपनी 
किताब का 
एक कोरा पन्ना 
खोल के रख 
दिया जाये 

एक ही बात है 

उसपर

सबकुछ 
लिख दिये गये 

और 
खुद पर
कुछ नहीं 
लिखे गये

दोनो 
एक ही बात हैं 

उनके लिये

जिन्हे 
गलियाँ पसंद हैं 

निशान लगी
दीवारें नहीं ।
चित्र साभार: www.canstockphoto.com